आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

नील ताल: मीना अरोड़ा नायक

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नील ताल: मीना अरोड़ा नायक

एक नीला चाँद. फ़िर एक नीला चाँद. और नीली आँखें. आखिर एक देह कितना नीलापन समो सकती है बिना उसके नीलेपन के आगे समर्पित हुए?

ये रहे हम: ब्रेडफ़र्ड में एक बगीचे की एक बेंच पर, नाशपाती के दरख्त तले, एक दूसरे के आस-पास बैठे हुए. बेंच की लकडी अभी भी बसंत के सूर्य की स्मृति की ऊष्मा संजोये हुए है और इसकी लोहे की पीठ अभी तलक पीले गुलाब के गुच्छों की कल्पना में डूबी हुई है. एक दूसरे से सटकर बैठे हम – बीच में मैं, एक तरफ़ जिंदगी भर की महफूजियत और दूरी तरफ़ एक नयी सनसनाती गर्माहट, पूरे नीले चाँद, सितारों, संगीत, और लॉटरी के टिकटों की बातें करती हुई. ‘हर चीज़ के पीछे एक आकस्मिकता है. जैसे कि ये तारे….कोई संगति नहीं.  जब देखो, जब मर्ज़ी निकल पड़ते हैं’, मैं कहती हूँ.

‘नहीं, ऐसा तभी होता है जब हर चीज़ अपने ठिकाने पे हो’, रे कहता है. वह दूर चाँद की तरफ़ देखता है और फ़िर मेरी तरफ़ एक ऐसे प्रगाढ़ नीलेपन के साथ मानो वो संसार का पहला नीला हो. उस नीले को अपने भीतर नहीं खींचा जा सकता. मेरी साँस साथ नहीं देती. जो कुछ थोड़ा सा मेरे मन में उलझा रह जाता है उसकी आवाज़ किसी गर्भस्थ शिशु की धड़कन सी बजती है – बुलंद और इकसार.

‘संगीत ! कुछ ताल तो होनी ही चाहिए. रचना, या ताल. बिना किसी ताल के तो यह हो नहीं सकता’, देव कहता है. रे एक वादक है जिसकी ख्वाहिश है कि वह एक ऐसी ताल रचे, जो जितनी मुश्किल हो उतनी ही सरल, ऐसी कि जिसमें आसमान अपने को समूचा खोल कर रख दे.  “एक बार सितारों की लय पकड़ में आ जाए, तो संख्याएँ उसके पीछे पीछे ख़ुद चली आएँगी – यही है ऊपर ऊपर दिखाई देती आकस्मिकता में छुपी एक ख़ास तरह की संगति.   ‘हम पिछले पाँच सालों के जीतने वाले अंकों से शुरू कर सकते है. मैं लॉटरी गज़ट की एक कापी खरीद लेता हूँ’, रे कहता है.

‘चलो ये तय रहा’. देव अचानक मेरे ऊपर से हाथ बढाकर रे के कमीज़ की जेब से ‘कैमल्स’ का मुचडा हुआ पैकेट निकाल लेता है.

‘हाँ, हम इसका तोड़ ढूंढ सकते हैं’, वो होठों में सिगरेट दबाये बडबडाता है. इतने में रे मेरी ओर झुकता है सिगरेट सुलगाने के लिए. वह जल्दी से कुछ कश खींचता है. ‘अगर इस सब के पीछे कोई तर्क है, जो कि होना चाहिए, तो हमें सिर्फ़ इतना करना है कि इन अंकों में कोई क्रम ढूंढ़ना है. संगीत मैं तैयार करूंगा. तुम अंको का अगला तर्कसंगत क्रम तलाश करोगे. फ़िर हम उनका मिलान करके देखेंगे. अगर वे एक जैसे हुए, तो यह वही अंक होंगे जिनकी हमें तलाश है. जीतने वाले अंक. बोलो, क्या कहते हो? क्या तुम साथ दोगे? ‘

‘हाँ’, रे अपने वज़न को थोड़ा खिसकाते हुए कुछ ऊपर होके बैठ जाता है, उसकी कुहनियों के मोड़ मेरी कुहनियों से दूर हो जाते हैं. और शाम की ठिठुरन अब तक बची आयी गर्माहट को तुंरत दबोच लेती है. वह देव के हाथ से पैकेट लेता है, और उसके किनारों को सीधा करते हुए एक बिना फिल्टर वाली सिगरेट निकाल कर जलाता है. उसका पहला ही कश एक ही बिन्दु से निकलते कई घेरे बनाता हुआ हवा में फ़ैल जाता है.

जब चांदनी मेरे आँगन में ब्रेडफ़र्ड के गुलाबी-पीले फूलों के आस पास रोशनी के घेरे की तरह आ बैठती है, तो यह जगह परियों की रिहाइश सी जान पड़ती है. मैं अपनी हथेली फैला कर पंख फड़फड़ा कर धुएँ में नीचे उतर रही एक फूल-परी को पकड़ने की कोशिश करती हूँ. उसके पंखुडी-पंख घेरे के धुँआंसे दिल को चटकाने लगते हैं.

देव को लगता है हम अपने चारों ओर घेरे बना लेते हैं – रिश्तों के, अहसासों के, प्रगाढ़ताओं के, घेरे जितना हम जीते हैं उसके और जितना हम मरते हैं उसके; कई लयों के घेरे लेकिन सब के सब एक बनी बनाई परिधि के अन्दर. हम एक बिन्दु से शुरू करते हैं और परिधि के अन्दर अन्दर ख़ुद को थोड़ी बहुत आजादी दे लेते हैं. लेकिन घेरे को पूरा करने के लिये हमें वापस उसी बिन्दु पर लौटना होता है. हम कितना बड़ा घेरा खींचते हैं यह इस पर है कि हम परिपूर्णता को कैसे परिभाषित करते हैं. देव के लिये मैं सात जन्मों में कभी रही आयी पत्नी, या लाड़-दुलार से बिगड़ी बच्ची से लेकर संगीत की एक पूरी परम्परा को जन्म देने वाली देवी तक कुछ भी हो सकती हूँ. मेरे लिये देव मेरी मूल भूमि का एक निजी टुकड़ा है, मुझे इतना मुक्त छोड़ता हुआ कि मैं हवा में उड़ जाऊं, नयी-नयी लयों को ढूंढू, कि मेरा मन घर से बाहर भटक सके. मुझे और अधिक प्यार करने के किये जो मुक्त करे, उससे मैं कम प्यार कैसे कर सकती हूँ? कभी कभी मुझे चिंता होती है, हमारी लयें कहीं ऐसी पूर्णताओं की तलाश में न निकल पड़ें जो घेरे से परे खींच ले जाये!

‘पांच अंकों की चिंता नहीं है. मुश्किल होगी पॉवर बॉल में’, देव कहता है.

टीइज्म में लंच टेबिल्स सिर्फ़ दस हैं. दोपहर में लोग यहां म्यूजिकल चेयर्स खेलते हैं. इनाम होता है धूप-खिड़की में बैठने की जगह, पांचवी मंजिल से वाशिंगटन डी सी का नज़ारा और यहां की मशहूर शाकाहारी थाली. लेकिन इसे चलाने वाले विजेता को यह लुत्फ़ सिर्फ़ आधे घंटे तक उठाने देते हैं. मेरे पास दस मिनट बचे हैं. मैं कोशिश करती हूँ कि आवाज़ों के शोरगुल से थोड़ा ऊपर उठकर धूप को, शहर को, खुद को कुछ पा लूं.

‘कभी तुमने ट्रेन गुजरने से ठीक पहले पटरियों पर अपनी हथेलियां रक्खी हैं?’

वह धूप-खिड़की के कांच में मुझे दिख रहा है. मैं हाथ बढ़ाकर खिड़की के कांच पर फैलाती हूँ; मेरा फैला हाथ उसके होठों, उसकी नाक को ढक लेता है, मेरी अंगुलियां उसकी आंखों की ओर बढती है.

‘ट्रेन देह में से कांपती हुई गुजर जाती है’.

‘हाय’, मैं उसकी ओर मुड़ते हुए कहती हूँ.

‘क्या मैं आपके साथ बैठ सकता हूँ?’

मैं अगले आधे घंटे तक शब्दों की कंपकंपाहट को अपने भीतर आने देती हूँ. उसकी नीली आँखें, उसकी आर पर देखती नीली आँखें, मेरी कंपकंपाहट को अपने अन्दर सोख लेती हैं.

टीइज्म दुपहरों में एक बदहवास खेल बन जाता है जो हम रोज़ खेलते हैं.

मेरा घर नई तालों से गूंजने लगता है. देव हर साल की जीतने वाले नंबरों की श्रंखला पर संगीत सरंचनाएं बनाता है. नई तालों के चमत्कार से चकराई मैं उसके तबलों के साथ बैठी रहती हूँ.

‘अगर तुम जीत गए तो पैसे का क्या करोगे?’ मैं एक शाम उससे पूछती हूँ.

वह अचकचा कर मेरी और देखता है, मानो मैंने समीकरण में एक नया पेंच डाल दिया हो. “असल मुद्दा यह है कि इस लॉटरी का रहस्य पकड़ा जाय, ताल के उस तर्क को जो इसके पीछे है,” अंततः वह बोलता है. “पैसा तो अपने आप प्रकट हो जाएगा.”

“रे अपने हिस्से का क्या करेगा?”

“उसके पास कई योजनायें हैं.” वह कहता है, “जो वो हमें नहीं बताएगा.”

“उसे छोड़ दो, मुझसे शादी कर लो.” रे अपने अपार्टमेन्ट में कंप्यूटर के कागजों के ढेर में बैठा है, हर शीट अंको की एक तारीखी दास्ताँ कहती है – लॉटरी  का पाँच साल का इतिहास.

‘मैं उससे प्यार करती हूँ.”

“तो फ़िर यह सब क्या है?”

मैं सर हिलाती हूँ.

“मैं सोचता हूँ यह एक आकर्षण है. मुझे लगता है जिस दिन तुम एक बार मेरे साथ प्रेम कर लोगी – सिर्फ़ एक बार, उसी दिन यह ख़त्म हो जाएगा.”

“फ़िर मुझे अपने आपको मारना ही होगा.क्योंकि मेरे लिए सब कुछ ख़त्म नहीं होगा. और तब तक मैं सारे नियम तोड़ चुकी होउंगी.

“तो मुझ पर एक कृपा करो. जिस दिन तुम्हें मरना हो, मुझे बुला लेना. और जो मुझे चाहिए दे देना,” वह हँसता है.””

“तो मैं ऐसा होने के बाद मर जाओंगी.” मैं भी उसके साथ हंसती हूँ.

“अगर मैं लॉटरी जीत जाऊं तो क्या तुम मुझसे शादी कर लोगी? तब मैं अमीर हो जाऊंगा.”

“आधे अमीर. आधा पैसा तो देव के पास जाएगा. मेरी तो दोनों तरफ़ जीत है.”

मैं एक कुशल गृहिणी हूँ. पूर्ण भारतीय पत्नी की एक मिसाल. मेरा घर साफ़ रहता है, सुरुचि से सजाया हुआ. जब मेहमान घर का मुआयना करते हुए आधे रस्ते रूक कर कहते हैं,” कितना सुंदर घर है” तब देव के चेहरे पे जो गर्वीली संतुष्टि आती है, वो देखना मुझे बहुत अच्छा लगता है. मेरा फ्रिज हमेशा देव के पसंदीदा खाने से अटा रहता है. मैंने उसकी पसंदीदा डिश – तली हुई मसालेदार मछली बनाना सीख लिया है, ठीक उसी विधि से जिससे उसकी माँ बनाती है, ठीक उसी विधि से जिससे सब बंगाली लड़कियां बनाती हैं ताकि लगे घर में खुशहाली है. मैं पूरा ध्यान रखती हूँ कि उसके लौटने से पहले घर आ जाऊं कि दरवाज़े पर, नए मेक-अप और नयी मुस्कान से उसका स्वागत कर सकूं, मेरी शादी वाली सुबह मेरी माँ ने मुझे “गुरुत्वाकर्षण की शक्ति” समझाई थी. “जिस सुंदर पत्नी को घर आया पति अच्छा लगे उसमें ऐसा गुरुत्वाकर्षण होता है जो पति को भटकने से रोकता है.” मैं ख़याल रखती हूँ कि रात में हमारे सारे मतभेद दूर हो जाएँ. जब तक उसके दिमाग से हर बोझ उतर न जाए मैं उसे सोने नहीं देती. अगर सारी माफियाँ मुझे ही मांगनी पड़े तो क्या हुआ? माँ का सिखाया हुआ एक और सबक: “रातें धोखेबाज होती हैं. वे उनके कानों में बेवफाई फूंकती  हैं.ऐसा मौका कभी मत देना.” जब भी वह मेरे करीब आता है, मैं अपने को सौंप देती हूँ. लेकिन देव मेरा ख़याल रखता है, मेरे मूड को समझता है, उसे सहज ही पता चल जाता है मैं कब उसकी कामना करती हूँ. मुझे उसे बिस्तर में कभी भी झेलना नहीं पड़ा. हम तभी एक दूसरे के करीब आते जब न सिर्फ़ मुझे उसकी कामना हो बल्कि ज़रूरत भी.

रे और मैं ‘स्कल्पचर गार्डन’ में पसीने से तर-ब-तर बैठे हैं, धुप हमारी त्वचा पर गिरती है. इस क्षण हम धूप के बर्तन होने के सिवा कुछ भी नहीं हैं. रे की छाती का सुनहरा उसके लिनेन के सफ़ेद शर्ट को दागी बनाता है. मैं उसकी ठुड्डे से फिराते हुए अपनी अंगुली उसके गले के मोड़ से नीचे गड्ढे तक ले जाती हूँ, और वहीं रोक देती हूँ. पसीना मेरे स्तनों के बीच रिसते नल से बहते पानी की तरह बहता है.

‘आख़िर मुझ में ऐसा क्या है?” रे की आवाज़ अटकती है, “यु आर अ मैरिड वुमन.”

‘हैपिली मैरिड” मैं कहती हूँ.

‘फ़िर यह सब ग़लत क्यों नहीं लगता?”

“हमारा एक दूसरे पर पिछले जन्म का कुछ बकाया है.”

“कितना? एक रात, एक दिन, या एक पूरी ज़िंदगी? हमें कैसे पता कितना?”

“हमें पता चल जाएगा.” मैं कहती हूँ. ‘स्कल्पचर गार्डन’ में बड़े बड़े स्थापत्य हैं.  रे के आने से पहले मुझे पता ही नहीं था मेरे संसार में कोई कमी है; मुझे सिर्फ़ देना ही आता था. अब मैं उससे वह सब ले लेना चाहती हूँ जो मेरा उस पर बनता है. अगर एक दिन या एक रात ही है, तो मैं किसी भिखारी की तरह हाथों का दोना बनाकर उससे ले लूंगी.

हर रात मैं कुशल अनुष्ठानों से दिन का अन्तिम संस्कार करती हूँ – उसकी कीमती चीज़ें, आने वाली पीढियों की विरासत,निकाल कर अलग करती हूँ- , उसे नहलाती हूँ. देह के रंध्रों से सांसारिक अशुद्धियाँ हटाती हूँ. उसकी मृत्यु-गंध को अपने अन्दर खींचती हूँ  फ़िर से वस्त्र पहनाने से पहले – प्रेमी के गाम्भीर्य के सम्मुख जाने के लिए चंचलता को वस्त्र पहनाना. बिस्तर एक घाट है.

देव बिस्तर पर फ़ैल कर लेटा है, उसकी टांगें वैसे मुक्त फ़ैली हुई जैसे हवाई जहाज से कूदते किसी पैराशूटिस्ट की, दबाव से चौरस अपने शरीर से हवा को थामते हुए. मैं मेरी तरफ़ से रजाई हटाके बिस्तर में घुस जाती हूँ. मेरी पीठ उसकी ओर है. वह करवट लेता है, चेहरा अब मेरी ओर, और अपनी एक बांह मेरी कमर में डाल देता है.

“क्या तुम कभी मृत्यु के बारे में सोचती हो?” वह कहता है. उसकी आवाज़ नींद और जागने के बीच किसी गहरी साँस की तरह.

“हर रात,” मैं फुसफुसाती हूँ.

“कभी कभी मैं घबरा जाती हूँ.”

मैं उसकी बांह को अपने चारों ओर कस के लपेट लेती हूँ, और उसकी गोद में सिमट जाती हूँ. भारत में कभी स्त्रियां सती हो जाया करती थीं, खुद को पति की चिता में झोंकते हुए, उसके बिना रहने के बजाय उसके साथ मरने के लिये.

रे लाफायते पार्क में सीमेंट की एक शतरंजी मेज पर बैठा बलूत के किसी पूर्वज वृक्ष का स्केच बना रहा है. उसके पीछे अमेरिकी इजराईली और अमेरिकी फिलिस्तीनी एक दूसरे से दस फीट की दूरी पर प्रदर्शन कर रहे हैं. फिलिस्तीन में हिंसा फिर से फूट पड़ी है. इजराईली विशेष तौर पर टेम्पल माउंट गये और फिलिस्तीनियों ने अपनी पाक सीमा के उल्लंघन का विरोध किया. अठ्ठाईस फिलिस्तीनी और चार इजराईली मारे गये हैं .

एक गिलहरी दौड़ती हुई बलूत की शाख तक चढ़ जाती है और खोखल में बने घोसले में जा कर गायब हो जाती है.

“यह तो एक तरह से शरण लेने जैसा है.” मैं कहती हूँ.

“हाँ,” वह कहता है, “किसी बेतरतीब विकास जैसा. किसी ने एक अपार्टमेन्ट यहाँ बना लिया. किसी ने किसी ने एक सोसायटी वहां. बिना किसी तरतीब के.  और शाखाएँ वैसे ही निकलती चलती हैं जैसे सड़कें ताकि और लोग खप सकें.  सबका स्वागत है!”

मैं उसके कंधे के ऊपर से स्केच को देखते हुए कहती हूँ,”अच्छा है.”

वह अपना सर हिलाता है ” ये शाखाएँ किसी सुरक्षित मोहल्ले की गलियां जैसी नहीं, खतरनाक डंडों जैसी लग रही है, मुझे फ़िर से बनाना पड़ेगा.” वह ऊपर देखता है – उसकी आँखें आकाश हैं, समुद्र – अविरल नीला. “यह संसार कुछ ज़्यादा ही तंग है. मैं इस पेड़ में रहूँगा,” वह कहता है.

मैं उठ कर पेड़ तक जाती हूँ और उसकी काष्ठीय मृदुता पर हथेली छुआते हूं कि वह इसकी सांसारिकता को अपने भीतर ले ले. मैं चाहती हूँ वह मेरी आंखों में झांके, उनमें नीले के जलवे देखे. उसकी आँखें बलूत की शाखाओं को चीर कर आ रही सूर्य की किरणों के सामने चुंधिया गयी हैं. उसकी फिजूल ही लम्बी, भूरी पलकें उसकी भौहों को छूती है. रे के भौहें किसी छोटे बच्चे जैसी हैं. उन्हें अभी तक ख़ुद अपनी जबान नहीं आयी है. वे वही कहती है जो उसकी आँखें कहती हैं.

रे अपना स्केच पैड, पेंसिलें उठा कर जाने लगता है, प्रदर्शनकारियों के बीच से हो कर. कभी वह एक फिलिस्तीनी जान पड़ता है, कभी एक इजराईली, और कभी १५ वीं स्ट्रीट पर लंच के लिए भाग रही भीड़ का एक हिस्सा. लाफायते पार्क में फिलिस्तीनी और इजरायली एक दूसरे से दस फीट दूर खड़े शांतिपूर्वक  प्रदर्शन करते रहते है. उनके अमेरिकी सपने की बढ़ती फसल उनकी ज़मीन पर हो रही रही हिंसा को निगल लेती है.

मैं लंच के वक्त सुनसान गलियों में, रोजमर्रा के सामान की दुकानों में, पार्कों में, टीइज्म की धूप-खिड़कियों में – संयोग से मिल जाने की वे सब जगहें जो हमने इरादतन खोज निकाली – में नीले को ढूंढती हूँ.

हवा, रोशनी, परछाईया जो फुसफुसा कर मुझे उसके होने का पता देती हैं – कोई ढब, कंधों का किसी अदा से झुकना.

आसमान में कई सूराख हैं, उसका नीला छितराया हुआ है. यह छनकर मेरी आंखों में आता है. मैं चाहती हूँ मेरा जीवन नीले से पहचाना जाय. हर सुबह मैं अलमारी में वे कपड़े ढूंढती हूँ जिनमें नीलापन बसा हो.

एक दोपहर लंच के लिये जाते हुए मैं फूलों की दुकान में घुस जाती हूँ और नीले हाइड्रैन्जिया खरीद लेती हूँ. आंखों के डाक्टर के यहां नये कांटेक्ट लेंस लगवाने जाती हूँ तो एक बार लगा के देखने के लिये भी नीले लेंस उठा लेती हूँ.

“तुम पर जंचता है नीला” – देव किसी शाम कहता है.

मेरे कंठ में रुलाई घुमड़ती है. जब उस रात देव मेरे करीब आता है, मैं किसी शर्मीली भारतीय दुल्हन-सी हो जाती हूँ, सर से पांव तक सजी हुई. कपड़े उतारने में ही जैसे रात गुजर जाती है. फिर मैं उसकी हर फुसफुसाहट पर कांपती हूँ. वह मेरा पहला प्रेमी है. वही आखिरी. मैं उन्माद हूँ. मैं मृत्यु हूँ.

काल के आरंभ में आदिम जल शांत थे. किंतु सृष्टि रचना के लिये कोलाहल अनिवार्य था. उस मौन का टूटना अनिवार्य था, देव-दानव में संघर्ष अनिवार्य था. शांत समुद्र को मथा गया; और  उसमें निकले जीवनदायी तत्व – दूध, मक्खन, अमृत और उनका ठीक विलोम – विष, ऐसा शक्तिशाली विनाशक जिसने तीनों लोकों को असहाय कर दिया. संहार के देव शिव के सिवा कोई और उस विष का सामना करने में सक्षम नहीं था, उन्होंने एक पवित्र मंत्र का रूप धरा और विष को अपने कंठ में किसी मंत्रोच्चार की तरह धारण कर लिया. तभी से शिव का नाम नील-कंठ पड़ गया. और इस तरह विष का रंग उजागर हुआ था.

मैं नीले को त्याग देती हूँ. मैं नीली फितरत वाले सब कपड़े अलमारी से निकालती हूँ और उन्हें बड़े जतन से उन कपड़ों के साथ रख देती जिन्हें मुझे पहनना छोड़ देना है. मैं नीले कांटेक्ट लेंस निकाल देती हूँ और डायरी में नोट कर लेती हूँ कि डाक्टर को बिना रंगों वाले लेंस के लिये बोलना है. दफ्तर में मैं हाइड्रैन्जिया रिसेप्सनिस्ट के पास रख आती हूँ.

अब मैं शाम को टीवी पर चुस्त फिकरों वाले सिटकॉम देखती हूँ जिनमें जवान जोड़े प्रेमियों की, उनके बिस्तरों की, उनके बीच चलने वाले चक्करदार खेलों की बातें करते हैं. बेसमेंट के कमरे से देव की ताल चुपके से ऊपर तलक चली आती है. रे ने उसे अंकों की आखिरी श्रंखला भेज दी है. वे देव के काम करने की जगह के पास एक काफी शाप में मिले थे. मैंने अपने आंगन में कौऔं के आने का इंतज़ार करना बंद कर दिया है – भारतीय पक्षी जो आत्मीयों के आने का संकेत देते हैं. मेरे पड़ौस के आसमान में एक भी कौआ नहीं है. रे ने मेरे मौहल्ले न आने की कसम ले ली है.

देव की अंतिम ताल में एक सुर विवादी है, एक मात्रा कहीं कम है – एक नक्षत्र जो अपनी कक्षा से छूटकर ब्लैक होल में फिसल गया है.

“किसी दिन तुम आकर सुनती क्यों नहीं?” देव मेरे साथ खड़ा है. “मुझसे नहीं हो रहा. कोई एक स्वर है जो लग ही नहीं रहा”

मैं सिर हिलाती हूँ.

“रे की वजह से?”

मैं उसे देखती हूँ. उसके आंखें गुज़ारिश कर रहीं हैं – इनकार कर दो.”

“मैं खो गई हूँ”, मैं धीरे से कहती हूँ. मुझे घेरे की शुरुआत नहीं मिल रही. मैं उसकी तरफ हाथ बढ़ाती हूँ. “मुझे बचा लो.”

उसके चेहरे पर शांति छा जाती है – किसी को मार देने के बाद की चुप्पी. “मैं नहीं बचा सकता. वापसी का रास्ता तुम्हें खुद ही ढूंढना होगा.”

जैकपॉट हैः 162 मिलियन डालर. लॉटरी  का टिकट खरीदने वालों की कतारें उम्मीद जितनी लम्बी हैं. जितने की संभावना हैः दस लाख पर एक. रे अपने अंकों को कई बार जांच चुका है पर देव का एक सुर अभी भी नहीं लग रहा है. मुझे बेसमेंट से उसकी आवाज़ आती रहती हैः जैसे कोई बच्वा मैथ्स की टेबल्स सीखता है और ऐन बीच में बार बार भूल जाता है. वह भी घेरे में उस बिंदु को भूल चुका है जो घेरे को पूर्ण करता है.

यह एक मिथ है, मैं उस पर बरसना चाहती हूँ; जैसे मोक्ष का मिथ, निर्वाण का मिथ, जैसे किसी संपूर्णता का मिथ, जो इसलिए बनाये गए कि हम भटकते रहें. जीवन असंगत है – असंगत शुरुआत, असंगत अंत. इसमें कोई पैटर्न नहीं, और जो हम अपने लिये बनाते हैं वे नीले के एक हल्के से इशारे पर असंगति में मिल जाते हैं.

जब मैं छोटी थी मैं कहती थी मैं चरम को अनुभव करने के उस क्षण भर का इंतज़ार कर रही हूँ – चरम सुख या चरम दुख.

जब मैं छोटी थी, समझदार थी.

मैं अपनी कार की चाबियां उठाती हूँ और घर से बाहर निकल जाती हूँ.

उसी रात रे के अपार्टमेंट में घंटी बजती है. देव का फोन है. “स्पीकर फोन ऑन कर दो.” वह कहता है. टेलिफोन लाईनों की स्थिर दूरी के बावज़ूद तबले के बोल प्रारब्ध-की-सी साफगोई से कमरे तक पहुंचते हैं.

धा धा धिन धिन/ त्रक धिन ना
तेतेकतगड़ीघेने/ त्रक धिन ना
धग धिन धिन ते ते/ कतगड़ीघेने
“इक्कीस बोल हैं – यही पॉवर बॉल है, इक्कीस”
घरन धागे-तेते तागे-तेते-करन/
किते-तगे तगे-तिते करन/
कत-घरण कते धा-किते तक धुमा/
किते-तक तक-घरड़े तक-घरने/
धा किते-तक तक-घरने धा/
किते-तक तक-घरने तक-घरने/ धा
धेते धेते तागे तेते / धुमा केते धुम
धुमा केते तागे तेते/ क्रेधे तेते धुम
तागे ननकेते धुम तेते / कतगड़ीघेने

“बारह, सात, उन्नीस, और छब्बीस. यही वो अंक हैं.” वह कहता है, “जाओ अपना टिकट खरीद लो. सब तुम्हारा है. पूरा का पूरा.

जब शिव की पत्नी पार्वती ने चंचलता में शिव के तीनों नेत्रों पर अपनी हथेलियां रख दीं तो तीनों लोकों में अंधकार छा गया क्योंकि शिव के नेत्र सूर्य, चंद्र और अग्नि हैं. शिव के माथे से कामोद्वेग में एक स्वेद बूंद उनके तीसरे नेत्र – अग्नि – में जा गिरी. और स्वेद के उस बीज से एक भयंकर बालक का जन्म हुआ – अंधक – अंधा, क्योंकि वह अंधेरे में जन्मा था और नीला क्योंकि वह आवेग से जन्मा था. पार्वती अंधक को अपनी संतान की तरह स्वीकारना चाहती थीं क्योंकि जिस आवेग से वह जन्मा था वह उन्होंने जगाया था और उसके अंधेपन का कारण वह अंधकार था जो उनकी वजह से सर्वत्र छा गया था. लेकिन अंधकार और आवेग से अंधे अंधक ने जन्म लेते ही पार्वती की कामना की. तब संहार के देव शिव ने त्रिशूल अंधक के पार करके उसे त्रिशूल की नोंक पे बींध कर तांडव किया – ऐसा नृत्य जिसकी लय आरंभ-सी तरंगित और अंत-सी भयंकर होती है, लय जिसमें जीवन का बीज मृत्यु में बिंधा होता है.

उस मल्टी स्टेट लॉटरी  के 162 मिलियन डालर के जैकपॉट की विजेता हैरिसबर्ग, पेनसिलवेनिया की एक बयासी साला दादी अम्मा हैं. एक इन्टरव्यू में वह कहती है कि उसने कम्प्यूटर से कहा कि अंक ढूंढ निकाले और उसने निकाले – बारह, सात, उन्नीस, छब्बीस; पॉवर बॉल – इक्कीस.

(अंग्रेजी से अनुवाद: गिरिराज किराड़ू)

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