आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

कमाटीपुरा की अम्मा (पुस्तक-अंश): एस. हुसैन जैदी

Art: Samia Singh

अंग्रेजी से अनुवाद: प्रभात रंजन

एक वेश्या का जन्म

उसे जबरदस्ती लाल, दुल्हन का जोड़ा पहना कर एक बिस्तर पर बिठाया गया जिसके ऊपर खूब सारी गुलाब की पंखुडियां बिखरी हुई थीं. उसके होंठों को सुर्ख लाल रंग से रंग दिया गया था और एक बड़ी सी नथ उसके नाक से लटक रही थी, जो उसको और भी भडकाऊ बना रही थी. कमरे में एक पुराने ग्रामोफोन पर एक पुराना गाना बार-बार बजाया जा रहा था.

अचानक उसके कमरे का दरवाजा खुला. घबड़ाई हुई मधु सिहर उठी जब उसने जगन सेठ को कमरे में घुसते हुए देखा. उसकी आंखें खून की तरह लाल थीं- देखकर लग रहा था कि उसने खूब पी रखी थी- जब उसने बिस्तर पर बैठी उस लड़की को देखा. अपे दिमाग में आदर्श औरत की कल्पना को याद किया, और उसका उससे मिलान किया. उसे इस बात की बहुत खुशी हुई कि वह उसका पहला होगा. उसके घूरने से, मधु ने सारे कपड़े पहने होने के बावजूद खुद को अंदर से नंगा महसूस किया. इस सोलह वर्ष की लड़की को इसका कुछ अंदाज नहीं था कि यह ‘नथ उतारने’ की रस्म थी. इसका नाम पड़ा है पारंपरिक विवाहों की सुहाग रात से, जहां पति सम्भोग से पहले अपनी कुमारी पत्नी की नथ को उतारता है. वेश्याओं में, हालाँकि, नथ उतारने का मतलब होता है किसी कमसिन का जिस्मफरोशी के धंधे में उतरना.

जगन सेठ अपने कपड़े उतारने लगा और मधु की हड्डियों में सिहरन दौड़ गई. लेकिन रश्मि ने उसे चेतावनी दी थी कि वह न तो रोये न ही किसी तरह का विरोध दिखाए. ‘अगर तुम रोती हो, तो वह आदमी तुमको जान से मार देगा. जैसा जैसा वह कहे वैसा वैसा करना.’ मैडम रश्मि के पास उसे वह आदमी लेकर आया था जिसने लॉज से उसका अपहरण कर लिया था. सिर्फ तीन हफ्ते पहले वह एक आदमी श्रवण के साथ अपने गाँव से भागकर मुंबई आई थी. वे कुछ दिनों तक एक लॉज में रहे. एक दिन कुछ लोग आये और उन्होंने उसका अपहरण कर लिया. मधु को अभी तक नहीं पता था कि श्रवण ने दलाल बंकर उसे हजार रुपए में एक चकलाघर में बेच दिया था.

इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती कि क्या हो रहा था, जगन सेठ अपने कपड़े उतारकर उसके पास बैठ गया. एक भयानक गंध- पान, बीडी और देशी शराब की मिली-जुली गंध- उसको महसूस हुई. मधु ने अपना सिर पीछे कर लिया, वह ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी. कुछ देर की शांति रही फिर सेठ ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसके कानों में फुसफुसाया, ‘मेरी तरफ देखो…’

मधु ने कोई जवाब नहीं दिया. चिढकर, सेठ ने उसकी ठोढ़ी उसका चेहरा अपनी ओर घुमा लिया. उसे जबरदस्ती उसका नंगा शरीर देखना पड़ा. वह फूले शरीर वाला आदमी था और उसका पेट भयानक रूप से निकला हुआ था- उसको बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस आदमी को बिलकुल शर्म नहीं आ रही थी. शरमाकर, उसने अपना सिर झुका लिया.

जगन सेठ ने उसे बिस्तर पर गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया. उसने उसका घाघरा उठा दिया अपनी उंगलियां उसके पैरों के बीच डाल दी. उसे धीरे-धीरे ऐसे घुमाने लगा जैसे वह बदले में कुछ प्रतिक्रिया चाह रहा हो. मधु घबड़ा गई थी: उसने अपनी आंखें बंद कर ली और एक छोटी-सी प्रार्थना पढ़ने लगी. इस उम्मीद में कि वह रुक जायेगा. उसे यह बात नहीं समझ में आ रही थी कि यह तो उसके कष्टों की शुरुआत थी. कुछ मिनटों में ही जगन सेठ ने उसकी लाल घाघरा चोली उतार दी थी. मधु ने कुछ विरोध करने की कोशिश की, लेकिन सोलह साल की लड़की और उस मोटे सेठ में कोई मुकाबला नहीं था.

मधु के गलों पर आंसू ढुलकने लगे; जितना ही वह उसे हटाने की कोशिश करती उतना ही वह उसके साथ जानवरों की तरह व्यवहार करता. जब सेठ उसके ऊपर से हटा, कई बार उसका बलात्कार करके, और जब उसने उसका अधिक विरोध किया तो उसने पिटाई भी की, तब मधु काँप रही थी, घावों से भरी, बेइज्जत, उसे इतना दर्द हो रह था कि घर से भागने के बाद से पहली बार वह मौत के बारे में सोचने लगी थी.

जब रश्मि और उसके पति को पता चला कि उसने जगन सेठ को चोट पहुंचाने की कोशिश की तो उन्होंने मधु की पिटाई कर दी. उन्होंने उसे यह भी बताया कि श्रवण ने उसको बेचा था. और इस बात से हालाँकि उसे गहरा झटका लगा, मधु ने एक बूँद आंसू नहीं गिराया.

उसने खाने-पीने से इनकार कर दिया, और आसपास लोगों की मौजूदगी को पहचानने से भी इंकार कर दिया. व पत्थर जैसी हो गई- किसी मरी हुई जैसी. शुरु-शुरु में, मैडम रश्मि ने एक और आदमी उसके ऊपर थोपने की कोशिश की लेकिन कुछ ही मिनट में वह आदमी गुस्से में  धड़धड़ाता हुआ बाहर निकला और अपने पैसे वापस मांगने लगा, और मैडम रश्मि से कहने लगा कि वह ठंढी औरतों को अपने चकलाघर में रखती हैं. वह डर गईं कि कहीं इसके कारण ग्राहक न काम हो जाएँ उसने मधु के पास तब तक किसी को भी नहीं भेजने का फैसला किया जब तक कि वह लड़की पूरी तरह से ठीक न हो जाए.

बहरहाल, एक हफ्ते लड़की को आश्रय देने के बाद रश्मि ने तय किया कि अब बहुत हो गया. केवल दो समाधान थे जिनके बारे में वह सोच सकती थी: एक तो यह कि मधु को समझा-बुझाकर तैयार करवाया जाए, दूसरा यह कि मधु निकाल बाहर किया जाए. दूसरा आसान रास्ता था, लेकिन उसके कारण पुलिस के चक्कर में फंस जाने का खतरा था. तब उसने किसी के बारे में सोचा, शायद वही थी जो उसे इस उलझन से निकलने में मदद कर सकती थी.

गंगूबाई उस इलाके की बहुत बड़ी अम्मा था, चकलाघर की. इसके अलावा कि उसके कई कोठे थे, उसका अपने साथ काम करने वाली औरतों पर बेहद प्रभाव भी था. मधु के जिद के बारे में सुनकर गंगूबाई ने आकर मधु से बात करने का फैसला किया. यह उसके लिए आम कामकाज की तरह था और मधु का व्यवहार उसके लिए आश्चर्यजनक नहीं था.

पांच फीट लंबी गंगूबाई सफ़ेद साड़ी पहने अपनी गाड़ी से उतरी और मधु के कमरे में जानेवाली सीढियां चढ़ने लगी. अन्य यौनकर्मियां या तो अपनी बालकनी से देख रही थी या सड़क पर थी ग्राहकों की तलाश में, उसको देखकर सब सम्मान से झुकने लगीं.

गंगूबाई मधु के कमरे में घुसी और उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया, उसने सबको यह आदेश दिया कि वे उन्हें कुछ देर तन्हाई में बात करने दें. १० गुना १० के उस कमरे में गंगूबाई के लिए खास तौर पर एक कुर्सी लगाई गई थी. कमरे के एक कोने में एक छोटी-सी चारपाई थी, जिस पर मधु पालथी मारे बैठी थी. गंगूबाई ने कुर्सी के ऊपर ध्यान नहीं दिया और उसके बगल में जाकर बैठ गई.

‘तुम्हारा नाम क्या है?’ उसने पूछा.

कोई जवाब नहीं आया. मधु ने अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा रखा था और उसने ऊपर नहीं देखा. गंगूबाई ने उसका चेहरा पकड़ा और मधु को जबरदस्ती अपने आपको देखने के लिए विवश किया. लड़की की आंखें लगतार रोने से लाल और फूली-फूली लग रही थीं. इस बात को समझते हुए कि मधु से बहुत ध्यान से निपटने की जरूरत है , गंगूबाई ने पास की मेज पर रखे जग से थोड़ा पानी लिया और अपने पल्लू को उसमें डुबाया. फिर उसने बड़े आहिस्ता से मधु के चेहरे को उससे पोछने लगी. गंगूबाई ने एक-दो मिनट तक ऐसा किया, और तब लड़की जोर-जोर से रोने लगी और उसने गंगूबाई को जोर से भींच लिया.

‘प्लीज मुझे जाने दीजिए… प्लीज, मैं आपसे विनती करती हूं… नहीं तो मैं मर जाउंगी’, वह गिडगिडाई.

‘मैं ऐसे लोगों से बात नहीं करती जो रोते रहते हैं. अपनी हालत तो देखो. पहले रोना बंद करो फिर मैं तुम्हारी बात सुनूंगी. मैं यहां तुम्हारी मदद करने आई हूं’, गंगूबाई ने कहा.

मधु ने किसी तरह अपनी रुलाई बंद की.

‘तुम्हारा नाम क्या है?’

‘मधु…’

‘मधु बेटी, तुम ऐसे क्यों कर रही हो? तुमने कई दिनों से खाना भी नहीं खाया है. क्या तुम अपने आपको मारना चाहती हो?’ गंगूबाई ने माँ जैसी ममता के साथ पूछा.

‘मैं यहां रहने के बजाय मर जाना पसंद करुँगी.’

‘बेटी, अगर तुम यहां आना नहीं चाहती थी, तो फिर तुम यहां आई कैसे?’ गंगूबाई को उन हालातों के बारे में नहीं बताया गया था जिनमें मधु को उस चकलाघर में लाया गया था.

‘श..श्रवण’, मधु ने किसी तरह उसका नाम लिया और और फिर आंसुओं में रोने लगी, उसके धोखे की कसक हो रही थी.

‘हम रत्नागिरी में अपने गाँव से भागे थे. उसने वादा किया था कि वह मुझसे शादी करेगा क्योंकि हमारे माता-पिता हमारे संबंधों के खिलाफ थे. लेकिन… इन्होंने बताया कि उसी ने मुझे यहां बेच दिया था. प्लीज… मैं घर जाना चाहती हूं…’

गंगूबाई चुप रही; उस लड़की की बातों से उसकी अपनी यादों का समंदर उमड़ने लगा था, वह उस दौर में चली गई जब वह सोलह साल की थी.

गंगा हरजीवनदास काठियावाडी गुजरात के काठियावाड के एक गाँव में पली-बढ़ी थी. उसके परिवार में प्रतिष्ठित वकील, शिक्षाविद थे और काठियावाड के राजपरिवार से उसके परिवार के मजबूत रिश्ते थे. गंगा के पिता और भाई अनुशासन पसंद थे और उन्होंने उसकी पढ़ाई पर ख़ासा ध्यान दिया, जो १९४० के दशक के दशक ग्रामीण परिवारों के लिए असामान्य बात थी. हालाँकि, गंगा का दिल कहीं और था: उसे फिल्म और एक्टिंग का नशा था. स्कूल के दोस्तों ने जो मुंबई शहर की यात्रा की थी, उसको वहां की बिल्डिंगों, कारों, फिल्मों, वहां के लोगों के बारे में बताया था, और जल्दी ही उस स्थान को देखने का नशा सा उसके ऊपर छा गया.

उसकी यह इच्छा और बढ़ गई जब उसके पिता ने २८ साल के रमणीक लाल को नया अकाउन्टेंट नियुक्त किया. वह उसके प्रति मोहित तो थी ही, उसने यह भी सुन रखा था कि रमणीक ने कुछ साल मुंबई में बिताए थे. वह उसकी तरफ खींची जा रही थी और उससे बातें करने के बहाने खोजती रहती थी. वह बंगले के कोने वाले कमरे में उसे चाय या खाना देने के बहाने से जाती रहती थी, रमणीक को भी उसके साथ कुछ समय बिताना बुरा नहीं लगता था.

शुरु-शुरु में उसकी बातचीत मुम्बई और हीरोइन बनने के उसके अपने सपने को लेकर होती थी, लेकिन जल्दी ही वह प्यार में बदल गया. अब, रमणीक गंगा से स्कूल के बाहर और गाँव के खेतों में मिलने लगा. उसने उससे वादा किया कि उसे मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री में अपने संपर्कों के माध्यम से एक रोल दिलवा देगा, और फिर पूछा कि क्या वह उससे शादी करना चाहती थी. गंगा खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी. वह जानती थी कि वह अनिश्चय की जमीन पर बढ़ रही है, लेकिन वह पहली बार खतरा उठाने को तैयार थी, क्योंकि वह उसे बुरी तरह प्यार करने लगी थी. हालाँकि, वह इस बात को जानती थी कि उसके माता-पिता न रमणीक से उसे शादी करने देंगे न ही उसे हीरोइन बनने देंगे, वह बुरी तरह चाहती थी. उसी समय रमणीक ने उससे अपने साथ मुंबई चलने के लिए कहा. गंगा ने तुरंत उसका सुझाव मान लिया लेकिन उसके रूढ़िवादी संस्कारों ने उसे बिना शादी किए ऐसा करने से रोक दिया. इसलिए मुंबई जाने से एक दिन पहले गंगा और रमणीक ने काठियावाड के एक मदिर में गुप्त रूप से विवाह कर लिया. फिर उसने रमणीक के कहने पर कुछ कपड़े, अपनी माँ के गहने, कुछ नगदी एक बैग में रखे और उन्होंने अहमदाबाद के रास्ते मुंबई जाने वाली ट्रेन पकड़ ली. उसने कोई पत्र नहीं छोड़ा और उसने अपने दोस्तों को रमणीक के साथ अपने प्रेम संबंध के बारे में बताया भी नहीं था. एक बार जब उसने छोड़ दिया तो वह जानती थी कि वह अपने पिता के सम्मान की रक्षा के लिए काठियावाड वापस नहीं लौट सकती.

दो दिन बाद गंगा और रमणीक मुंबई सेन्ट्रल स्टेशन के प्लेटफोर्म पर उतरे. स्टेशन बहुत बड़ा था और वह तुरंत गंगा के मन में बस गया. उसने इस जगह के बारे में स्कूल की अपनी सहेलियों से सुना था और वह इस बात को लेकर दुखी हो गई कि वह अपनी कहानियां अपनी सहेलियों के साथ साझा नहीं कर पायेगी. ‘चिंता मत करो, यहां तुम्हारे अनेक नए दोस्त बन जायेंगे. और जब काठियावाड के तुम्हारे दोस्तों को यह पता चलेगा कि तुम मुंबई में बहुत बड़ी स्टार बन गई हो तो वे तुमसे मिलने खुद यहां आएँगी’, रमणीक ने आंसू बहाती गंगा से कहा.

दोनों एक लॉज में ठहरे जहां दोनों ने पहली बार शारीरिक संबंध स्थापित किए. अगले कुछ दिन वे शहर में घूमते रहे. वे ट्राम में चढ़े, लोकल ट्रेन में चढ़े, कार में चढ़े और उन्होंने पूरा शहर देख लिया- उसी पैसे से जो गंगा ने अपने माता-पिता की तिजोरी से चुराए थे. गंगा के लिए यह सब जादू था, सपने सरीखा. उसे घर छोड़ने का कोई पश्चाताप नहीं था.

एक सप्ताह बाद रमणीक ने सुझाव दिया कि जब तक वह कुछ स्थायी कमरा ढूंड लेता है तब तक वह उसकी मासी के साथ रहे. ‘लॉज में रहना महंगा पड़ रहा है… मैं किराए पर कोई छोटा कमरा ढूंढने जा रहा हूं तब तक तुम मेरी मासी के साथ रह सकती हो’, उसने कहा.

गंगा को आश्चर्य हुआ क्योंकि उसने हमेशा यही कहा था कि इस शहर में उसका कोई नाते-रिश्तेदार नहीं है; हालाँकि, बिना अधिक हुज्जत के वह तैयार हो गई. रमणीक की मासी उसे लॉज से लेने आई. उस औरत, जिसने अपना नाम शीला बताया था, का गंगा के ऊपर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा. उसने भडकाऊ कपड़े पहन रखे थे और हमेशा पान चबाती रहती थी. रमणीक ने उनके लिए एक टैक्सी मंगवाई और गंगा को उसके अंदर बैठते हुए कहा कि वह एक दिन में लौटकर आ जायेगा.

जब वे उस गली में मुड़े जिसमें शीला मासी का घर था, गंगा को झटका सा लगा यह देखकर कि अनेक अधनंगी औरतें घूम रही थीं और ऊपर बालकनी से झाँक रही थीं. शीला मासी ने जब यह देखा कि गंगा कुछ असहज हो रही है तो उसने कहा, ‘मुंबई के अलग-अलग इलाकों में औरतें अलग-अलग तरह के कपड़े पहनती हैं.’

‘यह कौन सा इलाका है?’ गंगा ने पूछा.

‘कमाटीपुरा. क्या तुमने इसके बारे में सुना है?’ शीला मासी ने पूछा.

‘नहीं.’

‘अच्छा… मैं यहीं रहती हूं. तुमको भी यहां कुछ समय रहना होगा’, उसने मुस्कुराते हुए कहा.

‘नहीं, मैं यहां बस एक दिन के लिए आई हूं…’ गंगा ने तुरंत कहा, खुद को जैसे भरोसा दिलाते हुए.

शीला मासी ने कुछ नहीं कहा, बल्कि उन्होंने अपना सिर खिड़की की तरफ कर लिया. जब वह टैक्सी से उतरी तो उसने देखा कि उत्सुक निगाहें उसे घूर रही थीं. लगा कि उस इलाके में सभी रमणीक की मासी को जानते थे; गंगा ने शांत रहने की कोशिश की, फिर भी रमणीक की गैरमौजूदगी से उसे चिंता होने लगी.

शीला मासी उसे एक छोटे से कमरे में ले गई और गंगा से कहा कि अपना सामान ठीक करके मुँह हाथ धो ले.

‘मुझे अपना सामान नहीं खोलना है. कल तो मैं जा ही रही हूं.’, गंगा ने कहा.

शीला मासी ने उसकी ओर देखा और फिर आखिरकार कहा, ‘मैं इस बात को तुमसे और नहीं छिपा सकती. मैं रमणीक की मासी नहीं हूं, मैं एक चकला चलती हूं.’

सन्नाटा छा गया. गंगा हतप्रभ थी कि रमणीक ने उसे झूठ बोला, लेकिन हालात उसे अब भी पूरी तरह नहीं समझ में आ रहा था. ‘मैं यहां क्यों हूं?’ उसने पूछा.

‘रमणीक ने तुम्हें ५०० रुपए में मेरे हाथों बेच दिया है. वह वापस नहीं आएगा. वह वापस काठियावाड चला गया है.’

‘तुम झूठ बोल रही हो’, गंगा चिल्लाई. वह इस बात पर यकीन नहीं कर सकती थी कि रमणीक, उसका संगी, वह आदमी जिसके ऊपर उसने पूरा भरोसा किया, उसने उसको धोखा दे दिया.

‘झूठ बोलकर मुझे क्या मिलेगा, गंगा? मैं जानती हूं कि तुम एक अच्छे परिवार की हो लेकिन तुम्हारे पति ने ही तुम्हारा सौदा हमसे किया.’

‘रमणीक ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’ उसने पूछा.

‘मैं नहीं जानती- लेकिन अब, तुम्हें हम लोगों की बात सुननी पड़ेगी.’

‘मैं नहीं सुनूंगी’, गंगा ने गुस्से में कहा और कमरे से निकलने का प्रयास किया. लेकिन शीला ने अपनी पूरी ताकत लगाकर उसे कमरे के अंदर खींच लिया.

‘मेरी अच्छाई का फायदा मत उठाओ! अब तुम एक चकले में हो और तुम यहां मेरे ग्राहकों को खुश करने के लिए हो. भागने की न ही हिम्मत करना न ही कोशिश’, शीला ने कमरे से बाहर जाते हुए कहा और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया.

दिन गुजरते गए; गंगा को पीटा जाता, उसे भूखा रखा जाता क्योंकि वह सारा दिन रोती रहती थी. रमणीक की अब भी कोई खबर नहीं थी और गंगा को समझ में नहीं आ रहा था कि अपने भाग्य को स्वीकार कर ले या घर चली जाए. रमणीक के साथ भागकर उसने अपने माता-पिता की पहले ही बदनामी कर दी थी. उसके पिता, जो अभी ही हो सकता है कि मजाक के पात्र बन गए हों, उसे कभी वापस स्वीकार नहीं करेंगे. साथ ही, उसकी और बहनों की भी शादी होनी है; उसका परिवार गंगा के लिए उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता.

शीला भी उसे याद दिलाती रहती थी कि एक बार काठियावाड के गाँव वालों को इस बात का पता चल गया कि वह मुंबई में कमाटीपुरा में रह कर आई है, वे उसके घर वालों को बाहर कर देंगे. उसके परिणामों के बारे में सोचकर उसने आखिरकार यह फैसला किया कि वह घर नहीं लौटेगी.

दूसरा एक ही विकल्प बचा था मरने का, जो लगभग असंभव इसलिए था क्योंकि इतने सारे लोगों की नजर उसके ऊपर रहती थी. दो हफ्ते बाद आखिरकार गंगा हार मान गई. वैसे भी, उसने सोचा, उसके शरीर का पहले ही एक उचक्के ने उपभोग किया है, और किसी भी तरह वह उसके घावों को नहीं मिटा सकती.

गंगा ने शीला को बुलाया और कहा कि वह हर वह काम करने को तैयार थी जो वह चाहती थी. खुशी के मारे शीला ने उसे गले से लगा लिया और कहा कि उसका चकला हमेशा उसका पूरा ध्यान रखेगा.

उसी रात गंगा को नथ उतराई की रस्म के लिए भेजा गया. रमणीक ने केवल गंगा को ही झूठ नहीं बोला था बल्कि शीला से भी झूठ बोला था. उसने गंगा को यह कहते हुए शीला से बेचा था कि वह कुमारी थी, अब चूंकि गंगा जिस्मफरोशी के तौर तरीकों से वाकिफ नहीं थी, उसने शीला को यह बात नहीं बताई.

गंगा ने बड़ी उपेक्षा के साथ नथ उतराई की रस्म अदा की. अंदर से तो उसका एकदम मन नहीं था लेकिन उसने सेठ के साथ पूरी तरह सहयोग दिया, यह जानते हुए कि अब यही उसका पेशा था. उसके भाग्य से, सेठ उससे बहुत खुश हुआ. काम पूरा करने के बाद सेठ ने उसे अच्छा नजराना दिया और सोने की एक अंगूठी भी दी.

बाहर जाते हुए वह पीछे घुमा और उसने पूछा, ‘वैसे तुम्हारा नाम क्या है?’

पहले तो वह कुछ झिझकी, और फिर उसने जवाब दिया, ‘गंगू’. उसने अतीते के हर निशान को मिटाने के बारे में सोचा. इसके बाद से गंगा गंगू बन गई.

विकृत मानसिकता वाला पठान

जल्दी ही गंगू कमाटीपुरा की सबसे महंगी वेश्याओं में से एक हो गई, जिसकी मांग बहुत रहती थी. उसने काठियावाड, रमणीक और अपने अतीत के हर चीज को पीछे छोड़ दिया, उसने जीवन के उस पहलू के बारे में सोचना भी छोड़ दिया. हैदराबाद, कोलकाता, दिल्ली जैसे दूर के शहरों के सेठ भी जब शहर में होते तो खास तौर से उसकी मांग करते. शीला को इससे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि गंगू सबसे सुन्दर लड़कियों में नहीं थी लेकिन पुरुष बिस्तर पर उसके कौशल के बारे में बात करते ही चले जाते थे.

गंगू ने अपने ग्राहकों के साथ बिना भावनात्मक तौर पर जुड़े हुए ही उनके बटुए खुलवाने की कला सीख ली थी. गंगू जो पैसे कमाती, उससे अपने लिए सोने के जेवर बनवाती. यह उसका एकमात्र शौक था, इसके अलावा वह कभी-कभार पास के सिनेमा हॉल में सिनेमा देख लिया करती थी. सिनेमा में कैरियर बनाने का उसका सपना तो बीती हुई बात हो चुकी थी, लेकिन सिनेमा के लिए उसका नशा कम नहीं हुआ था. शीला उसके इस शौक के बारे में जानती थी लेकिन चुप रहती थी क्योंकि वह अपने लिए पैसे देने वाली इस गाय को खोना नहीं चाहती थी.

जब गंगू २८ साल की थी, तो एक बदमाश पठान, जिसने इस कठियावाडी के बारे में दूसरे आदमियों से सुन रखा था, गंगू के बारे में पूछता हुआ एक दिन शीला के चकले में घुस आया. वह छह फीट से भी लंबा था तथा अन्य ग्राहकों के मुकाबले भारी-भरकम भी था. शीला उसे अंदर जाने से रोकना चाहती थी लेकिन उस आदमी की भयानक प्रकृति ने उसे कुछ कहने से रोक दिया. वह झिझकते हुए मान गई, इस उम्मीद में कि गंगू अपने अनुभव के आधार पर इस ग्राहक से भी ठीक से निपट लेगी. हालाँकि, परिणाम बहुत अलग रहा. पठान गंगू से बहुत क्रूरता से पेश आया था- उसने बिस्तर पर ऐसी क्रूरता पहले नहीं देखी थी; और फिर, वह वेश्यालय से शीला को एक भी पैसा दिए बिना निकल गया.

वेश्यालय में सभी सदमे में थे, लेकिन कोई भी नहीं, जिसमें शीला भी शामिल थी, कुछ बोला, सबको डर था कि कहीं उसका संबंध इलाके के पठान गैंग से होगा. इस मुठभेड़ ने चार दिनों तक गंगू को अक्षम बना दिया, वह अपने ग्राहकों का मनोरंजन करने की हालत में नहीं रह गई. शीला ने गंगू से माफ़ी मांगी और उससे कहा कि वह इस बात को सुनिश्चित करेगी कि भविष्य में उसके साथ ऐसा कुछ भी न हो पाए.

एक महीने बाद पठान लौटा, इस दफा उसने बहुत पी रखी थी. जब शीला ने उसे देखा तो उसने दो लोगों को बुलाया. हालाँकि, वे पठान के सामने कुछ भी नहीं थे, इससे उल्टे उसका गुस्सा और भड़क गया. वह गंगू के कमरे में घुस गया. वह किसी और ग्राहक के साथ थी, लेकिन पठान ने उस आदमी को नंगा ही बाहर फेंक दिया और दरवाजा बंद कर लिया. शीला डर के मारे दरवाजा पीटती रही; वह जानती थी कि वह पुलिसवालों को इसमें शामिल नहीं कर सकती थी. इस दफा जब पठान गया तो उसने गंगू के शरीर को अच्छी तह से नोच-काट खाया था.

इस अग्निपरीक्षा के बाद गंगू को अस्पताल ले जाना पड़ा और और गंगू को मजबूरन अपंगों की तरह कमरे में हफ़्तों पड़े रहना पड़ा. गंगू के अपनी मजबूरी के कारण केवल अपने ऊपर ही गुस्सा नहीं आ रहा था बल्कि शीला के ऊपर भी, जब उसको इस बात का पता चला कि शीला ने उस समस्या को सुलझाने के लिए कुछ भी नहीं किया.

शीला के साथ बुरी तरह झगडने के बाद गंगू ने आखिरकार खुद ही उस पठान से निपटने का फैसला किया. गंगू इस बात को समझ गई कि अगर वह खामोश रही तो भविष्य में बड़ी-बड़ी समस्याओं की बुनियाद पड़ जायेगी. उसने उस आदमी के बारे में पता लगाना शुरु किया. आखिरकार, अपने एक ग्राहक से उसे पता चला कि उसका नाम था शौकत खान और उसका ताल्लुक करीम लाला के गिरोह से था.

अब्दुल करीम खा, जो करीम लाला के नाम से जाना जाता था, उस समय छोटा-मोटा गिरोहबाज ही था. वह औरतों का सम्मान करने के लिए जाना जाता था. उन दिनों वह पठानों का एक संघ चलाता था पख्तून जिरगे हिंद. गंगू ने समझ लिया कि अगर कुछ हो सकता था तो करीम लाला के माध्यम से ही हो सकता था. शीला समेत दूसरी लड़कियों ने उसे बहुत समझाया कि वह उससे न मिले, क्योंकि वह अपनी गतिविधियों और उग्रता के लिए दक्षिण मुंबई में बदनाम था, लेकिन वह अपने जिद पर अडी रही. एक शुक्रवार जब करीम लाला ने जुमे की नमाज अदा की ही थी और लैमिंगटन रोड पर अपने घर ताहिर मंजिल को लौट रहा था, गंगू ने उसे आवाज दी. वह बैदा गली के बाहर उसका इंतज़ार कर रही थी, उस गली के बाहर जो उसके घर जाती थी.

‘करीम भाई, सलाम. मुझे आपसे एक छोटी-सी मदद चाहिए’, उसने कहा.

उसको देखकर ही पठान इस बात को समझ गया कि वह पास के इलाके की एक वेश्या है.

‘किस बारे में?’ उसने पूछा, वह उसकी बेबाकी से हैरान था और सड़क पर एक वेश्या से बातचीत करने को लेकर असहज.

‘आपके एक आदमी के बारे में.’

उसने आश्चर्य के साथ कहा, ‘घर आओ, हम लोग वहां बात करेंगे. यहां बात करना अच्छा नहीं लगता.’ कहते हुए वह गली में आगे आगे चलने लगा, गंगू पीछे-पीछे चलने लगी.

करीम लाला अपने घर में किसी वेश्या के आने देने के खिलाफ था इसलिए उसने गंगू से ऊपर अपनी बिल्डिंग की छत पर जाने के लिए कहा और इस बीच उसने घर के कपड़े पहन लिए. ऊपर उसके लिए चाय और नाश्ता भेज दिया गया. दस मिनट के बाद जब करीम लाला ऊपर छत पर आया तो उसने ध्यान दिया कि गंगू के लिए जो भी चीजें उसने भिजवाई थी उसने उनमें से किसी चीज को हाथ नहीं लगाया था.

‘तुमने कुछ खाया क्यों नहीं?’

‘अगर आपको मेरी जैसी बदनाम महिला के अपने घर में आने देने से समस्या है तो मेरे लिए यह गलत होगा कि मैं उन बर्तनों को गन्दा करूँ जो आपकी रसोई से आई हो.’

करीम लाला अवाक रह गए.

‘तुम्हारा नाम क्या है?’ उसने आखिरकार पूछा.

‘गंगू… मैं कमाटीपुरा में काम करती हूँ.’

तुम मुझसे क्या चाहती हो?’

‘भाई, मैं नहीं जानती कि आपने कभी अपने किसी आदमी में गलती देखी है और उसको सजा दी है, खासकर तब जब उसने मेरे जैसे किसी आदमी  के साथ कुछ गलत किया हो. लेकिन आप अगर ऐसा करते हैं तो मैं जीवन भर आपकी रखैल बन कर रखने के लिए तैयार हूं’, उसने कहा.

करीम लाला का चेहरा लाल हो गया; किसी ने कभी उससे ऐसे बात करने की हिम्मत नहीं दिखाई थी. फिर भी उसने शांत रहने की कोशिश करते हुए कहा, ‘मैं घर-परिवार वाला आदमी हूं, कभी मुझे इस तरह से बात मत करना. और जहां तक मेरे आदमियों की बात है तो अगर उन्होंने कुछ गलत किया हो तो मैं उनको ठीक करना भी जानता हूं. लेकिन वह है कौन?’

‘शौकत खान. मैंने सुना है कि वह आपके ही गिरोह का है.’

मेरे गिरोह… मैं ऐसे किसी आदमी को नहीं जानता हूं.’

‘मैंने पता किया है…’

‘हुम्म… क्या किया है उसने?’

उसने पिछले कुछ हफ़्तों में मेरा बलात्कार किया है और बदले में मुझे कुछ दिया भी नहीं. ठीक है मैं वेश्या हूं लेकिन मैं कोई ऐसी चीज नहीं हूं जिसका कोई जब चाहे इस्तेमाल करे. उस आदमी की वजह से मुझे अस्पताल में जाना पड़ा… उसने खूंखार की तरह मेरे साथ व्यवहार किया…’ गंगू ने कहा और अपने हाथ और बांह के निशानों को दिखाने लगी.

वे निशान इतने भयानक थे कि देखते ही करीम लाला ने अपना सिर झुका लिया.

उस तरह की क्रूरता के निशान को देखकर वह भौंचक्का रह गया, वह भी उस पठान द्वारा जिसे उसके ही गिरोह का बताया जा रहा था.

‘गंगू जब अगली बार वह आये मैं चाहता हूं कि किसी तरह मुझे खबर की जाए. उसे तब तक बिजी रखना जब तक कि मैं न आ जाऊं. मैं उससे खुद निपट लूँगा. अब तुम जा सकती हो.’

गंगू मुस्कुराई और उसने अपने पर्स से छोटा-सा एक धागा निकाला, ‘करीम भाई, सालों हो गए जब मैंने किसी को रखी बंधी हो, क्योंकि जबसे मुझे यहां लय गया, मैंने मर्दों के साथ खुद को महफूज नहीं महसूस किया. आज, आपने सुरक्षा का वादा करके भाईचारे में मेरे विश्वास को फिर से जगा दिया है.’

वह पठान सरदार गंगूबाई की ढिठाई से हैरान था. यह नौजवान लड़की जो कुछ देर पहले कह रही थी कि वह उसकी रखैल बनने के लिए तैयार है, अब कह रही थी कि वह उसे भाई बनाना चाहती है. वह मुस्कुराया और उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया ताकि वह धागा बांध सके, यह कहते हुए, ‘यह तुमको मेरी जुबान है, अब से तुम मेरी बहन हो.’

फिर उसने नाश्ते में से एक मिठाई निकाल कर उसे खिला दिया. ‘उम्मीद करता हूं कि तुम अब शिकायत नहीं करोगी, ‘ उसने कहा. गंगूबाई धन्य हो गई.

करीम लाला ने कमाटीपुरा में शीला के चकलाघर के आगे एक जासूस लगा दिया; यह नौजवान हर उस आदमी का हिसाब रखता था जो रोज-रोज गंगू के पास आते थे. कई दिनों तक शौकत खान का कुछ पता नहीं था; गंगू को अफ़सोस था- उसको उम्मीद थी कि वह आएगा ताकि करीम लाला उसे ठिकाने लगा देगा.

करीब तीन हफ्ते बाद वह उस चकलाघर में फिर आया. गंगू ने एक और वेश्या के माध्यम से उस जासूस को खबर भिजवाई, जो सुनते ही करीम लाला के घर की ओर साईकल में चढ़कर भागा. खान इस बार और अधिक खूंखार लग रहा था लेकिन गंगू ने फैसला किया कि वह पूरी तरह से उसका साथ देगी जब तक कि करीम लाला वहां नहीं आ जाता. दस मिनट से भी कम समय में उसने दरवाजे पर जोर की आवाज सुनी. ‘दरवाजा खोलो.’

आवाज वैसे तो अनचीन्ही लग रही थी, उसमें खतरनाक अंदाज दिख रहा था. उस चकलाघर में खुद को रोकने के एक और प्रयास से गुस्से में आकर खान ने गंगू को थप्पड़ से मारा और उठ खड़ा हुआ. उसको इसका अंदाजा नहीं था कि उसका सामना और किसी से नहीं बल्कि खुद करीम लाला से था. गंगू खुद को चादर से लपेटने के लिए दौडी.

शौकत खान की घिग्घी बंध गई जब उसने उसने दरवाजे पर करीम लाला और दो दूसरे पठानों को हॉकी स्टिक के साथ खड़े देखा. उसने जल्दी से अपनी पेंट पहनी और भागने की कोशिश कर ही रहा था कि करीम लाला ने उसको चकलाघर से खींच कर बाहर निकाल लिया. फिर उसने खान को निर्ममता के साथ हॉकी स्टिक से पीटना शुरु कर दिया. खान ने उसे रोकने की कोशिश की और उससे पख्तून में बात करने लगा, उसके ऊपर आरोप लगाने लगा कि वह अपने भाई के खिलाफ जा रहा है, वह भी एक वेश्या के लिए. इससे करीम लाला को और भी गुस्सा आ गया, उसने जोर से उसके पेट में लात मारी और सिर में जोर से एक स्टिक मारा. ‘खुद को पठान कहने की जुर्रत मत करो’, करीम लाला गरजा.

आखिर में, जब करीम लाला पूरी तरह से निश्चिन्त हो गया कि उसने इसकी इतनी हड्डियां तोड़ दी हैं कि वह हफ़्तों बिस्तर पर पड़ा रहे, तो वह रुक गया. ‘गंगू मेरी राखी बहन है. अगली बार अगर किसी ने इसके साथ खराब ढंग से व्यवहार किया तो मैं उसको मार डालूँगा’, उसने कमाटीपुरा को चेतावनी देते हुए जोर से कहा.

उसके बाद गंगू के लिए हालात बदल गए. कमाटीपुरा के लोग उसे अलग ढंग से देखने लगे. दक्षिण मुंबई के सबसे खतरनाक माफिया सरदार के साथ उसके संबंध ने उसको एक अलग ही मुकाम पर पहुंचा दिया. कोई नहीं, यहां तक कि शीला भी नहीं, उससे पंगा लेने की कोशिश नहीं करता था. गंगू के लिए एक अलग ही दुनिया खुल गई. अपने राखी बंद भाई का नाम ले-लेकर वह नागपाडा पुलिस और अंडरवर्ल्ड के साथ अपने संबंध बनाने लगी.

जब कुछ समय बाद शीला अचानक मर गई तो वहां के लोगों ने गंगू से घरवाली* का चुनाव लड़ने के लिए कहा. वह तुरंत तैयार हो गई, इस उम्मीद में कि इससे उसको वेश्यावृत्ति से मुक्ति मिल जायेगी. आश्चर्य नहीं कि वह चुनाव जीत गई और बहुत कम उम्र में चकलाघर की अम्मा बन गई. गंगूबाई को गंगूबाई कठेवाली बुलाया जाने लगा, कोठेवाली की जगह. गंगूबाई ने खुद को कठेवाली ही कहना चुना, अपने पारिवारिक नाम काठियावाडी से अपने अंतिम जुडाव के रूप में.

*चकले की अम्मा को अक्सर घरवाली कहकर संबोधित किया जाता है. रेड लाइट इलाकों की अपनी सामाजिकता होती है, ऊँच-नीच होता है, अगर कोई वेश्या चुनाव जीत जाती है तो उसका दर्जा बढ़ जाता है. एक घरवाली के अधिकार में कुछ पिंजरे(बिस्तरे) होते हैं.

 रक्षक

मधु के रोने की आवाज से गंगूबाई कठेवाली वर्तमान में आ गई. ‘तुम रोना बंद करोगी? लोगों को लगेगा कि मैं तुम्हें सजा दे रही हूँ’, गंगूबाई ने अधीर होते हुए कहा.

‘प्लीज मुझे यहां से निकाल लीजिए’, मधु ने फिर रोते हुए कहा.

उस बूढी औरत ने मधु के गाल पर हाथ रखते हुए कहा, ‘अच्छा, एक मिनट के लिए सोचो कि मैंने तुमको यहां से जाने की अनुमति दे दी… फिर क्या करोगी तुम?’

‘मैं रत्नागिरी अपने गाँव चली जाउंगी’, मधु ने तुरंत जवाब दिया.

‘किसके पास?’

‘क्या सवाल है? जाहिर है, अपने माता-पिता के पास’, लड़की ने कहा.

‘ऐ लड़की, फिर से जवाब देने की हिम्मत मत करना…’ गंगूबाई ने चेतावनी दी.

सोलह साल की उस लड़की ने तुरंत माफ़ी मांग ली. गंगूबाई ने उसकी माफ़ी को अनदेखा करते हुए बोलना जारी रखा. ‘तुम्हें इस बात को समझना चाहिए कि अपने प्रेमी के साथ भागकर तुमने अपने माता-पिता की बड़ी बदनामी कर दी है. अगर तुम्हारे गाँव के लोगों को यह पता चल गया कि तुम कमाटीपुरा में थी, तो तुमको जात-बाहर कर दिया जायेगा.’

‘मेरे माता-पिता शायद तब मुझे स्वीकार कर लें अगर उनको मैं यहां के बारे में न बताऊँ’, मधु ने जवाब दिया.

‘फिर तुम उनसे क्या कहोगी?’ उसने पूछा, लड़की के आत्मविश्वास से आश्चर्यचकित होते हुए.

‘पता नहीं…’

लंबी ख़ामोशी छा गई, उसके बाद गंगू बाई ने कहा, ‘तुम्हारी तरह मैं भी भाग गई थी. मैं तब तुम्हारी उम्र की थी जब मेरे पति ने मुझे बेच दिया था… मैं कभी नहीं लौटी क्योंकि अगर मेरे परिवारवालों को यह पता चल जाता कि मैं कमाटीपुरा से आई हूं तो वे मुझे मार देते. मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं था कि मैं इस जगह को अपना घर बना लूं. अगर तुम अपने परिवार वालों के पास लौट भी जाओ, तो उनको इससे कौन रोक सकता है कि वे तुम्हें समाज से निकाल दें? यहां एक लड़की थी, विनीता, उसने सोचा कि उसका परिवार अलग है और वह घर लौट कर गई.’ कुछ देर चुप रहने के बाद गंगू बाई ने कहा, ‘कुछ महीने बाद हमने उसके गाँव के एक लड़के से सुना कि उसे इज्जत के लिए मार दिया गया.’

मधु फिर से रोने लगी. ‘इसका मतलब है कि मुझे हमेशा यहीं रहना होगा?’ उसने पूछा.

‘मैंने यह तो नहीं कहा. मैं तो बस यह जानना चाहती हूं कि क्या तुम अपने माता-पिता को समझा पाओगी.’

‘मैं कोशिश तो कर सकती हूं’, मधु ने कहा. उसने आगे कहा, ‘मैं यह समझ चुकी हूं कि मैं गलत थी, और मैंने उसकी कीमत भी अदा कर दी है. मुझे माफ़ी मांगने का एक अवसर दीजिए; अगर मैं सफल नहीं हो पाती तो मैं रत्नागिरी में कोई छोटा-मोटा काम कर लुंगी लेकिन मैं यहां नहीं रहना चाहती.’

गंगूबाई ने मधु के चेहरे की तरफ देखा, मानो उसके दिमाग को पढ़ने की कोशिश कर रही हो. कुछ देर बाद वह उठी, दरवाजा खोला और उसने मैडम रश्मि को आवाज दी.

‘इसे जाने दो’, जब रश्मि आई तो गंगू ने उससे कहा. ‘यह यहां रहने के लिए नहीं बनी है.’ मैडम रश्मि को झटका लगा. ‘लेकिन इसके लिए हमने एक हजार रुपए दिए थे. हम इसको कैसे जाने दे सकते हैं?’

‘मुझे पता है. तुम समझ लेना कि धंधे में घाटा हो गया. भविष्य में मैं नहीं चाहती कि किसी लड़की को उसकी मर्जी के बगैर धंधे में लाया जाए. समझ में आया?’ गंगूबाई ने पूछा. ‘यह पक्का करो कि इसे रत्नागिरी की सही बस में बिठाया जाए. संभव हो तो पप्पू को इसे छोड़ने के लिए भेज दो.’ कहते हुए गंगूबाई ने कमरा छोड़ दिया, मधु के लिए उसने धन्यवाद कहने का अवसर भी नहीं छोड़ा. गंगूबाई की इस नेकनीयती की खबर कमाटीपुरा की संकरी गलियों में जंगल की आग की तरह फ़ैल गई. चकलाघर की एक ऐसी अम्मा के रूप में उनको जाना जाता था जो धंधे और पैसे से अधिक अहमियत औरत को देती थी. मधु की यह मुक्ति अनेक अन्य औरतों के लिए नजीर बन गई और उन अनेक औरतों ने गंगूबाई से संपर्क किया. अगर उनका मामला उनको सही लगा तो उन्होंने उनको जाने की इजाजत दे दी, अगर नहीं कर सकी, तो उन्होंने यह पक्का किया कि वे भागने में सफल रहें. कमाटीपुरा के चकलाघरों को वह बहुत सख्ती से चलाती थी और समय के साथ लोगों में उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई. उन्होंने वहां की वेश्याओं को शौकत खान जैसे लोगों से बचाया जो औरतों के साथ दुर्व्यवहार करते थे या वैसे लोगों से जो उनसे शादी का वादा करते थे और उनको पैसे भी नहीं देते थे. ये लोग गंगूबाई से डरते थे क्योंकि उसके अंडरवर्ल्ड के लोगों से संबंध थे और पुलिसवालों से भी; धन्धेवालियाँ उनको माँ की तरह मानती थीं और उसको गंगूमा कहकर बुलाया करती थीं. बड़े घरवाली* चुनाव में उनकी जीत ने उनकी हालत को और भी मजबूत बना दिया.

गंगूबाई खुले तौर पर शहरों के लिए वेश्यावृत्ति के इलाकों की आवश्यकता की वकालत करती थी. आजाद मैदान में एक महिला सभा में दिए गए भाषण के लिए उनको आज भी याद किया जाता है. बालिकाओं एवं महिलाओं के सशक्तिकरण के मुद्दे के समर्थन में एक सभा का आयोजन किया गया था. अनेक प्रमुख राजनीतिक दलों, गैर-सरकारी संगठनों एवं अन्य संगठनों की महिलाओं को उसमें आमंत्रित किया गया था. गंगूबाई को भी आमंत्रित किया गया था वेह्याओं में साक्षरता के प्रसार में मदद करने के उद्देश्य से. आयोजकों ने उनसे वेश्यालयों में रहने वाली महिलाओं की अवस्था पर बोलने के लिए कहा. हालाँकि, जब उनको मंच पर बुलाया गया और उनका परिचय ‘कमाटीपुरा की अध्यक्ष’ के तौर पर दिया गया तो लोगों ने संदेह के साथ उनका स्वागत किया. सूती की सफ़ेद साड़ी पहने गंगूबाई उन लोगों की नफरत को महसूस कर लिया. मंच पर चढ़ते वक्त गंगूबाई घबड़ाई हुई थी- इससे पहले उसने कभी भी जनता के सामने बोला नहीं था. उसने दिन में कई बार भाषण देने का अभ्यास किया था, तो भी इतनी बड़ी भीड़ के सामने खड़े होकर उसको ऐसा लग रहा था जैसे उसको कुछ भी नहीं आता था. जब वह माइक्रोफोन के करीब आई तो उसने देखा कि भीड़ के एक कोने में कुछ लोग बातचीत कर रहे थे. लेकिन लोगों के व्यवहार ने उसको इस बात के लिए और तैयार कर दिया कि वह अपनी बात उनके सामने सिद्ध करे, और अचानक उसकी घबड़ाहट कम हो गई.

गंगूबाई ने आयोजकों और वहां बैठे लोगों सकते में ला दिया जब उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा, ‘मैं एक घरवाली हूं, घर तोड़ने वाली नहीं. आप में से अनेक लोग इस उपाधि को औरत के ऊपर कलंक के रूप में देखते हैं, लेकिन यही कलंक है जिसने अनेक हजारों औरतों के सतीत्व, एकनिष्ठता, नैतिकता को बचाया है.’

सभा में सन्नाटा छा गया. गंगूबाई का बोलना जारी रहा, ‘भारत के अन्य शहरों के मुकाबले मुंबई की सड़कें आज अधिक सुरक्षित हैं. आप शायद ही किसी ऐसी घटना के बारे में सुनेंगे जिसमें सड़क पर किसी महिला के साथ दुराचार करने की कोशिश की गई हो. मैं शहर के प्रशासन से किसी प्रकार का श्रेय नहीं लेना चाहता लेकिन मेरा पक्के तौर पर यह मानना है कि इसका थोड़ा-बहुत श्रेय कमाटीपुरा की बदनाम औरतों को भी मिलना चाहिए.’

‘हमारा दर्जा वैध रूप से विवाहित घरवालियों के बाद ही आता है. पुरुषों की कामुकता के सामने खुद को समर्पित कर हम समाज की सभी महिलाओं का भला कर रही हैं. पुरुषों की शारीरिक आवश्यकताओं का ध्यान रखने वाली मुट्ठी भर महिलायें असल में आप सबको एक तरह से हमले से बचा रही हैं. ये औरतें पुरुषों की पाशविकता को कुंद करती हैं, जो एक ऐसी बात है जिसे गुजरात में मेरे गृहनगर में संभव नहीं किया जा सकता’, उन्होंने कहा. ‘आपको शायद लगता हो कि हम जो करते हैं उसमें हमें आनंद आता है. लेकिन मेरा यकीन कीजिये, यह हमारे लिए आसान नहीं होता. हम में से अधिकतर को यह मजबूरी में करना पड़ता है क्योंकि हमें अपने परिवारों की देखभाल भी करनी पड़ती है. मुझे यह जानकर शर्म महसूस होती है कि समाज अपने रक्षकों को ही नीची निगाह से देखता है. देश के जवानों की तरह ही जो युद्ध के मैदान में अनथक इसलिए लड़ते हैं ताकि आप को कोई चोट न पहुंचे, हम वेश्याएं भी अपनी लड़ाई रोज लड़ती हैं. फिर हम कैसे अलग हैं? क्यों एक जवान को पुरस्कार दिया जाता है, राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा जाता है, क्यों एक वेश्या को अपमानित किया जाता है, अछूतों की तरह व्यवहार किया जाता है? मुझे जवाब दीजिए.’

वहां मौजूद भीड़ ने पूरे ध्यान से गंगूबाई को सुना. दूसरी तरफ ऐसा लग रहा था कि गंगूबाई किसी और ही लोक में हो, भावनाओं से लबालब, ‘किसी के पास कोई जवाब नहीं होगा’, उसने कहा, ‘क्योंकि इस सवाल के उठने के लिए आप सब जिम्मेदार हैं. इस समस्या का एक ही समाधान यह है कि वेश्याओं के साथ समानता का व्यवहार किया जाए. जिस दिन आप ऐसा करने में सफल हो जाते हैं, मैं मान लूंगी कि समाज ने ‘महिला सशक्तिकरण’ को प्राप्त कर लिया है. अगर हैदराबाद जैसे रूढ़िवादी शहर में रेड लाईट एरिया का नाम महबूब की मेंहदी हो सकता है, कमाटीपुरा का नाम मुंबई जैसे आधुनिक शहर में नफरत का कारण बन जाता है? अंत में मैं एक और अंतिम तुलना करना चाहूंगी. हम सब के घर में एक टॉयलेट होता ताकि हम दूसरों के घर को गन्दा न करें. यही कारण है कि प्रत्येक शहर में वेश्यावृत्ति क्षेत्र बनाये जाने की आवश्यकता है. सरकार से मेरी विनम्र प्रार्थना है कि रेड लाईट एरिया को समाज में सह-अस्तित्व दें.’

वहां मौजूद भीड़ तत्काल खड़ी हो गई और जोरदार तालियाँ बजाने लगी. इतने विश्वसनीय ढंग से किसी ने वेश्याओं के हित में बात नहीं की थी.

अहितकर माँ

गंगूबाई के भाषण को अनेक प्रांतीय समाचारपत्रों ने प्रमुखता से छापा और उसकी ख्याति अचानक बढ़ गई. अनेक पत्रकार और मंत्री उससे मिलने पहुंचे, व्यवस्था से लड़ने के उसके साहस और वेश्यावृत्ति को अपराधों की श्रेणी से बाहर निकालने के उसके प्रयासों से प्रभावित होकर. वह समाज में अपने आप में एक ताकत के रूप में उभरकर आई.

१९५० और ६० के दशक में व्यावसायिक वेश्याओं ने शुक्लाजी स्ट्रीट, मानाजी राव जी स्ट्रीट तथा फोरस रोड का अलेक्जेन्द्रिया सिनेमा से लेकर जयराज भाई लेन तक के हिस्से वाले पश्चिमी क्षेत्र में अपना ठिकाना बना लिया. उस समय, वेश्याएं माना जी राव जी स्ट्रीट को पार नहीं करती थी या कमाटीपुरा के केन्द्रीय या पूर्वी इलाकों की तरफ नहीं जाती थी क्योंकि उस इलाके के लोग उसे पसंद नहीं करते थे. हालाँकि, सरकारी स्कूल में जाने वाले बच्चों या पश्चिमी कमाटीपुरा में अवस्थित अनेक मंदिरों में जाने वालों को वेश्याओं के इलाके से होकर गुजरना पड़ता था. इसके अलावा, सेंट एंथनी गर्ल्स हाई स्कूल, जिसका निर्माण १९२० के आरम्भ में हुआ था, का प्रवेश द्वार बेलासिस रोड से था. पीछे स्कूल बिल्डिंग से कमाटीपुरा की १४ वीं सड़क दिखाई जिसमें उस समय २५० से अधिक धन्धेवालियाँ रहती थीं, जो इमारत की ऊपरी मंजिल से दिखाई देती थीं.

१९६० के दशक के आरम्भ में सेंट अन्थोनी स्कूल के प्रशासक तथा आसपास रहने वाले लोग यह चाहते थे कि इस इलाके को वेश्याओं से मुक्त करवा लिया जाए क्योंकि उनको ऐसा महसूस होता था कि इन धन्धेवालियों का विद्यार्थियों के मन पर गलत असर पड़ सकता था. स्कूल के प्रशासकों ने हवाला दिया कि किसी शिक्षण संस्थान के २०० यार्ड के इलाके में वेश्यावृत्ति नहीं की जा सकती. उस रेड लाईट एरिया के विरुद्ध एक मजबूत आंदोलन उठ खड़ा हुआ. लगातार प्रदर्शन हो रहे थे, अधिकारियों के साथ बैठकें हो रही थीं, लेकिन दोनों ही पक्ष अपने स्थान से हटने के लिए तैयार नहीं थे.

जब वेश्यावृत्ति विरोधी भावना तेज हुई तो धन्धेवालियाँ मदद के लिए गंगूबाई के पास गई, और उसने सफलतापूर्वक वेश्याओं को वहां से हटाने के विरोध में आंदोलन चलाया और उसका नेतृत्व किया.

अपने राजनीतिक संपर्कों की वजह से उसको भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु से नई दिल्ली में उनके आवास पर मिलने का समय मिल गया. एक बार फिर गंगूबाई ने इतिहास रच दिया, स्थानीय चकलाघर की वह अकेली मैडम थी जिसको देश के प्रधानमन्त्री से मिलने का मौका मिल गया.

गंगूबाई कठेवाली के आखिरी दिनों के बारे में अधिक कुछ पता नहीं चलता. अधिकतर लोग उसे याद करते हैं सोने के बौर्डर वाली सफ़ेद साड़ी और सोने के बटन वाली ब्लाउज के लिए. गंगूबाई को सोने के गहने प्रदर्शित करने का शौक था. वह सोने की कमानी वाला चश्मा लगाती थी और उन्होंने सोने के नकली दांत भी लगवा रखे थे. वह अपने जमाने की अकेली कोठे वाली थी जिसकी अपनी काले रंग की बेंटले कार थी. हालाँकि, इसके बारे में किसी को भी ठीक से नहीं पता है कि उसने अपने जीवन काल में इतनी संपत्ति कैसे अर्जित की.

उसने कभी शादी नहीं की, लेकिन कहा जाता है कि उसने अनेक बच्चों को गोद लिया था जो उसके साथ ही कमाटीपुरा की १२ वीं गली के उसके छोटे कमरे में रहते थे. उनमें से अधिकतर अनाथ या बेघरबार थे. गंगूबाई ने उनके लालन-पालन में खूब दिलचस्पी ली और यह सुनिश्चित किया कि उनको बेहतर शिक्षा मिले. उन सारे बच्चों में से केवल एक, बब्बी आज भी कमाटीपुरा में रहती है.

इस इलाके की एक सामाजिक कार्यकर्ता जिसको पहले गंगूबाई ने सहारा दिया था, ने उनके बारे में बताते हुए कहा कि वह ‘कमाटीपुरा की महारानी’ थी. ‘आज भी, कमाटीपुरा के चकलाघरों में गंगूबाई की फ्रेम करवाई तस्वीरें और मूर्तियां मौजूद हैं. आप किसी से गंगूबाई के बारे में पूछिए और वह आपको अपने कमरे में फ्रेम करवा कर रखी हुई एक तस्वीर की ओर इशारा कर देंगे. हो सकता है वे उसको न जानती हों लेकिन उन्होंने उसके बारे में सुना जरूर होगा’, उसने बताया.

गंगूबाई की अच्छाई, जाहिर है, सिक्के का एक पहलू है. कमाटीपुरा में पहले रेस्तरां चलाने वाले एक आदमी ने इसे सही ढंग से यूं कहता है. ‘ऐसा नहीं है कि उसमें सब कुछ अच्छा-अच्छा ही था. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आखिर वह एक चकलाघर चलाती थी. हजारों औरतों को अपने लिए काम करवाना आसान नहीं होता… उसका एक अँधेरा पक्ष भी निश्चित था जिसे लोगों ने भूलना ही बेहतर समझा. ऐसे आप इस धंधे में आगे नहीं बढ़ सकते.’

बब्बी के अनुसार, गंगूमा दिन की शुरुआत सुबह छह बजे गुजरती अखबार ‘जन्मभूमि’ पढते हुए चाय पीकर करती थी. इसके बाद नाश्ता करके बगल के घर में ताश खेलने चली जाती थी. वह पक्की जुआरी थी और लगभग रोज ही जुआ खेलती थी. उसके अनेक व्यसन थे- वह बीडी पीती थी, रानी छाप पीती थी और पान चबाती थी. अनेक मंत्रियों और पत्रकारों के साथ भी उसका उठना-बैठना था. गंगूबाई का देहांत बुढापे में १९७५ से १९७८ के बीच कभी हुआ. उसके बाद, इलाके के चकलों में उसके पुतले लगाये गए.

आज, कमाटीपुरा की १२ वीं गली, जिसे एक जमाने में इलाके की सबसे अमीर गली कहा जाता था, अपने पुराने दिनों की परछाईं बनकर रह गई है. पुराने गौरवपूर्ण दिनों के विपरीत यहाँ अब देखने लायक कुछ भी खास नहीं है, सिवाय हाथगाडियों, आवारा कुत्तों तथा छोटे-मोटे काम करने वाले इंसानों के. गली जो पहले एम्बेसेडर, मर्सिडीज और बेंटले जैसी गाड़ियों से भरी रहती थी, अब साइकिल और जंग लगी स्कूटरों से भरी रहती है. अन्य गलियों के मुकाबले १२ वीं गली में एक या दो चकले रह गए हैं, जो लोहे जैसी इच्छाशक्ति वाली गंगूबाई के जमाने से बहुत अलग है.

उसके शानदार जीवन को लेकर अनेक कहानियां हैं जो अब किस्सों का रूप ले चुकी हैं. गंगूबाई कि एक सबसे प्रसिद्ध कहानी जो है उसका कोई प्रमाण नहीं मिलता, जिसे कमाटीपुरा की धन्धेवालियाँ बड़े गर्व और अधिकार के साथ सुनाती हैं. इस घटना के बारे में न तो कुछ लिखा गया है न ही कुछ पता चलता है, इसकी विश्वसनीयता को बताने वाला कोई प्रमाण भी नहीं मिलता. इसकी जुबानी विश्वसनीयता ही है, मुँह जुबानी तौर पर ही यह कहानी लगभग चार दशकों से चल रही है और गंगूबाई की यह कुछ बड़ी कहानियों में से एक है. पंडित नेहरु के साथ अपनी निजी मुलाकात में उसने उनको मुम्बई में रेड लाईट एरिया के महत्व के बारे में बताया तथा उनको बचाए जाने के बारे में भी कहा. कहा जाता है कि गंगूबाई ने अपनी हाजिरजवाबी और विचारों की सफाई की वजह से नेहरु को प्रभावित कर लिया था. नेहरु ने उससे पूछा कि वह इस धंधे में क्यों आई जबकि उसे अच्छी नौकरी या अच्छा पति मिल सकता था.

कहते हैं कि गंगूबाई ने बड़ी निर्भीकता के साथ उनके सामने एक प्रस्ताव रखा. उसने उनसे कहा कि अगर वे उसे मिसेज नेहरु बनाने के लिए तैयार हैं तो वह अपना धंधा छोड़ देगी. नेहरु को झटका लगा, उन्होंने ऐसी बात करने के लिए उसे झाड़ लगाईं. लेकिन शांत गंगूबाई ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘गुस्सा मत होइए प्रधान मंत्री जी. मैं तो बस अपनी बात को साबित कर रही थी; कुछ करने से उपदेश देना हमेशा आसान होता है.’ नेहरु शांत रहे.

बैठक के अंत में, नेहरु ने, जिन्होंने उसके दूसरे प्रस्ताव को तुरंत ख़ारिज कर दिया था, उसके प्रथम प्रस्ताव पर विचार करने का आश्वासन दिया और कहा कि इस मामले में वे कुछ करेंगे. उसके बाद सरकार के हस्तक्षेप के कारण वेश्याओं को उनके स्थान से हटाने का आंदोलन खत्म हो गया. गंगूबाई के इस तर्क ने कि स्कूल का निर्माण उस बात के करीब सौ साल बाद हुआ जब वहां वेश्यावृत्ति की शुरुआत हुई थी, उसको स्पष्ट विजेता बना दिया. ‘क्या संबंधित  अधिकारी अंधे थे जो उन्होंने स्कूल का निर्माण किया?’ उसने सवाल किया.

गंगूबाई की जीत हुई, और इस तरह से उन्होंने हजारों वेश्याओं आर्थिक संकट में पड़ने से बचा लिया, ऐसा पहली बार नहीं हुआ था.

==========================

पुस्तक का नाम: माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई; स्टोरीज ऑफ वुमेन फ्रॉम द गैंगलैंड्स

(मुंबई माफिया की हसीनाएं; अंडरवर्ल्ड से जुड़ी औरतों की कहानियां)

लेखक: एस. हुसैन जैदी, जेन बोर्गेस के साथ.

भूमिका- विशाल भारद्वाज

Leave Comment