आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

टॉफी का विज्ञापन देता विमान : मोनिका कुमार

Art: Samia Singh

खेल समारोह में दर्शकों के पाले में बैठ
देखती हूँ
खिलाड़ी गरमा रहें हैं खुद को
दूर से वे लग रहें हैं दौड़ते हुए सफेद जुराबों के जोड़े

उड़ते हुए गुब्बारे अब खो गए हैं
पाले में बैठे बच्चों ने भी समझ लिया है
सब गुब्बारे खेलने के नहीं
कुछ गुब्बारे
विधान के लिए आरक्षित हैं

मुख्य अतिथि ने खोल दिया है कबूतरों का पिंजरा
फड़फड़ाते हुए वे उड़ गए हैं
कबूतर शायद गुब्बारे बन गए हैं
और गुब्बारे कबूतर
सभी ने छोड़ दिया है मैदान
और मैदान के ऊपर का आकाश
कौन क्या है
कुछ पता नहीं चलता

खिलाडियों का आह्वान करता संगीत बज रहा है
जलती हुई मशाल की लपटें धूप में अदृश्य हो रही है
शायद पहुँच रही है इसकी गर्माहट
खिलाड़ियों के तलुवों तक
पर नहीं पहुँच रही इसकी तपिश मेरे पैरों तक
जिन्हें दी गई है जलावतनी किसी बर्फीले टापू पर
जो पैतावों के बीच सदा सर्द रहते हैं

इन छोटे शीत टापुओं से बेखबर
वह खिलाडी पहुँच गया है आरंभ बिंदु पर
जिसे जैवलिन से लिखनी है कविता
धरती के सीने पर
उसने दाग दी है जेवलिन
और जमीन को छूते
वहाँ से मिटटी उखड़ आई है
यह जैवलिन चुभी है मेरे सीने में
और यह जो उखड़ा है
वह लहू है
पर इसके छींटे नहीं पड़े है औरों पर
जैसे नहीं दिख रहा किसी को
कैसे डरे हुए हैं पैर मोज़ों में

आह्वान का बचा हुआ संगीत
शोक धुन बन गया है
कीपर ने बजा दी है पर सीटी
अगले खिलाडी की बारी के लिए
जैसे कुछ नहीं हुआ हो
जैसे किसी के पैर यहाँ सर्द नहीं पैतावों में
जैसे अभी अभी जो जैवलिन ने उखाड़ी
वह मिटटी भर थी
कुछ और नहीं

वर्जिनिया वूल्फ का युद्ध ग्रस्त सिपाही
सैप्टिमस वारेन स्मिथ
इन्कार कर रहा है बाहर देखने से
वह नहीं देख रहा
पत्नी की झीम होती उँगलियाँ
उँगली से सरक रही शादी की अंगूठी
उसे सुनती हैं युद्ध की आवाजें
थड थड थड
उसे दिखता है
युद्ध में बिछुड गया
दोस्त और ऑफिसर
युद्ध से बच आए लोग
जीवन को विपर्यय में भी जीते हैं
सारे रस्ते बोझिल हैं
सभी विकल्प शर्मसार हैं
मेरी शिकायत है मुझसे कोई बात नहीं करता
सैप्टिमस को लगता है
उससे लगातार कोई बात कर रहा है
उसी ने रोक रखी है प्रलय
जो बस उठ कर ध्वस्त करना चाहती  है दुनिया को
उसी के पास हैं रहस्य
बचा सकते हैं जो मानवता को
बताने चाहिए उसे यह रहस्य कैबिनट और प्रधानमंत्री को
पर उसके सब ख्याल गड्ड मड्ड है
टॉफी का विज्ञापन देता विमान
उसके लिए संदेश छोड़ रहा है
यह सन्देश अतियंत सुन्दर हैं
पर इसकी कोई भाषा नहीं है
वे इतने सुन्दर हैं
और उसकी गाल पर बिना चेतावनी आँसू लुढक आए हैं
क्यूंकि धुआं लगातार उसके लिए
नए आकार ले रहा है

मैं नहीं दोहरा सकती
सैप्टिमस रोने का अंत कैसे करता है

मुझे याद आ रही है
तोमस त्रांस्तोमर की कविता
जब वह देखता है  ‘शंघाई  में सड़कें’
“हर आदमी के पास
आठ आठ चेहरे होते हैं
गल्तियों से बचने के वास्ते
हर आदमी के पास
एक अदृश्य चेहरा भी होता है
जो जताता है
“कुछ है जिसके बारे में आप बात नहीं करते ”

एक घड़ियाल रोते हुए
ठीक से कहें तो
आँसू बहाते हुए
आया मेरे ख्याल में

वैसे उसे फर्क नहीं पड़ता
कौन क्या कहता है
वह तो चिड़िया घर के तालाब में भी मस्त रहता है
घंटो एक ही मुद्रा में
जैसे घड़ियाल न हो
मरा हुआ घड़ियाल हो
छोटी मोटी छेड़छाड़ से बेखबर
किताबनुमा मुंह लिए
जिसके अंदर हर दांत असली है

सूचना क्रांति के प्रसार का असर
घड़ियालों तक भी पहुंचा है
मुझे बताया रोते हुए उसने
जिस तरह किन्ही भी अंसुअन को
कहा जा रहा है ‘उनके’ आँसू
वह इससे आहत है

जाते हुए घड़ियाल ने
मेरे ख्याल से
सुबकते हुए बताया

ठीक चार कक्ष है
उसके भी दिल में
वही दिल
दीवाना दिल
और उसके आँसू
उतने ही असली
और नकली
जैसे निकलते हैं प्याज काटते हुए

जिस तरह है अपना अपना रोना
उसी तरह है अपने अपने आँसू

( जबीग्निएव हरबर्ट के लिए )

3 comments
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  1. तीसरी कविता मुझे बहुत अच्‍छी लगी। ‘असुयन’ को ‘अंसुअन’ कर लिया जाए तो अच्‍छा लगेगा।

  2. मिसेज डैलोवे दे सारे किरदारन ते पोइम्स लिख…सैप्टिमस दे नाल तां सब नूं हमदर्दी हुंदी पढ़ के पर ओहदी बीवी दा इक्कालापन सोहना समझिए तू…यार तेरियां पोइम्स मेनू ओथे ली जांदीआं जित्थे एह सब होया…एदा लगदा जिददा हुने स्टेडियम च सी ते फिर सैपटीम्स दी घरवाली नूं घुट के जफ्फी पाई..फिर सैप्टिमस वांग ही मैनूं जंग दियां सारीयाँ घटनावां ने ओहना ही डराया..लव यु यार

  3. मोनिका घड़ियाल की सुस्ती और बेफिक्री, घायल सैनिक की बेचैनी और खेल की शुरुआत पर इतनी शानदार कवितायें लिखने के लिए बधाई.

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