आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

एक फूल एमेली के लिए: भूतनाथ

Art: Sunita

(A Tribute to William Faulkner)

आषाढ़ का पहला दिन था. सारंग अपनी छुट्टियों के आखिरी रविवार को घर पर बैठ कर बरबाद नहीं करना चाहता था. उसके कॉलेज का आखिरी साल शुरू होने ही वाला था. कुछ दिन की छुट्टियाँ थी, तो फिलहाल घर आ गया था. टीवी देखने और कंप्यूटर पर गेम खेलने के बजाये, सुबह सुबह वो गंगा की तरफ निकल पड़ा. वापस लौटते तक १० भी बज सकते थे, जो कि बड़ी मुश्किल बात थी. गर्मी इतनी तेज़ पड़ रही थी कि पूछो मत.

“गंगा में कोई न कोई हर समय पुण्य-स्नान कर रहा होता है. काफी चौड़ा पाट है. भले ही कितनी बार गंगा अपनी धारा बदले, ये घाट नहीं बदला. कम से कम तो १०० साल पुराना होगा ही. बगल में ये जो चर्च है, १९०५ का बना हुआ है. घाट बड़ा सुन्दर है. बगल में इतने घने आम के बगीचे हैं, लीची के भी पेड़ हैं. इतनी फुर्सत अब कहाँ जो केवल इसको अकेले बैठ कर निहारा जाए. चर्च के पीछे बहुत लोग इक्कट्ठे हैं. शायद वो कब्रिस्तान है. किसी को दफनाया जा रहा है. दुनिया ऐसी ही है. कोई आता है, कोई जाता है. दुनिया इतनी बड़ी है, किसी के आने जाने से क्या फर्क पड़ता है. जो आज हुआ है, पहले भी कभी हुआ होगा, फिर कभी होगा, शायद बिलकुल ऐसा ही, जैसे २ घड़ी पहले हुआ था. फिर किस बात का दुःख, किस बात का रोना. जब सब कुछ ऐसा ही होना है, तो फिर खुश क्यूँ न रहा जाए. आशा करनी चाहिए, कोशिश करनी चाहिए, अच्छा खाना खाना चाहिए, लोगो की मदद करनी चाहिए.”

गंगा के घाट पर एक भड़भूजा वाला नदी से चढ़ कर ऊपर आया. सारंग चिल्लाया- “भूंजे वाले, इधर आईयेगा.”

भूंजा वाला शायद उस पार से आ रहा था. पगडी पहन रखी थी. उम्र करीब ४५ की होगी.

“सुबह सुबह उस पार से आते हो? सुबह कौन लेगा तुम्हारा भूंजा. शाम में इसकी खरीद होगी.”

“मालिक, हो जाती है कुछ बिक्री. गंगा मैया की कृपा है.”

सारंग ने सर हिलाया. बाहर रहते रहते खुद को बाबू समझने लगा था. बोला- “अच्छा, पांच रुपये का मिला कर बना दो. प्याज मिर्च डाल के बना दो.”

थोड़ी में फिर टोक कर पूछा- “ये जो लीची और आम का बाग़ है, किसका है?”

– “मालिक, ये तो एक ज्योतिष का है. सुना है पगला गए हैं.”

– “काहे से पगला गयें हैं?”

भूंजा वाले ने दोना बढाया- “भूत प्रेत का चक्कर है. घाट किनारे कहीं रहे का है? एक तरफ ईसाई लोग का कब्रिस्तान, एक तरफ औघड़ लोग रात भगवान जाने कौन तंतर मंतर फूकें हैं…”

सारंग ने भूंजा का दोना उठाया और आम के बाग़ की तरफ बढ़ गया. सुनसान इलाका था. बाग़ का दरवाजा भी खुला था. सारंग फांकते फांकते, कभी अपने लाल कुरते को झाड़ते हुए, आगे बढ़ता गया. दूर किनारे, गंगा की तरफ वाली दीवार के पास कोई बूढा आदमी चारपायी बैठा हुआ था. पास में एक बन्दर भी था.

सारंग उसके पास पहुँच कर उन्हें देखने लगा. ये बूढा आदमी कभी अपनी पुरानी हाथ घड़ी देखता, कभी बन्दर को देखता. बन्दर के गले में एक रस्सी थी जो कि चारपायी से बंधी हुई थी. बूढे आदमी के सर पर के आधे बाल उड़ गए थे, बचे रंग दिए गए थे. काला मोटा चश्मा था, और ढेर से झुर्रियां.

सारंग को देख कर बूढे आदमी ने कहा- “यहाँ क्या लेने आये हो?”

सारंग ने शान्ति से जवाब दिया- “जी, मैं गंगा दर्शन को आया था. ये बाग़ देखने का मन हुआ तो चला आया.”

बूढे आदमी ने फिर घड़ी देखी और बोला- “जल्दी से कोई प्रश्न पूछो!”

सारंग चौंका, फिर यूँ ही बोल पड़ा- “मेरी ट्रेन की टिकट पक्की हो जायेगी?”

बूढे आदमी ने बन्दर से कहा- “बोल सिकंदर!” फिर बन्दर थोड़ा उछला. उसकी खाएँ खाएँ सुन कर बूढे आदमी ने कहा- “२९ को जा रहे हो? पक्की हो जायेगी.”

सारंग थोड़ा भौचक्का रह गया. बूढे इंसान ने कहा- “मेरा नाम रूद्रप्रताप हुआ. मुझे ९० बरस लग रहे हैं. लगता है देख कर? या देख कर लगता मैं पागल हूँ?”

-“आपको कैसे पता?”

रूद्रप्रताप जी ने कहा- “ये जो तुम्हारे हाथ में भूंजा है वो सिकंदर को दो.”

सारंग ने आगे बढा दिया. बन्दर झट से ले कर उसे खाने लगा. रूद्रप्रताप ने अपनी घड़ी देखी और बोला- कुछ और पूछो. सारंग ने जवाब दिया- “कुछ और पूछने नहीं पूछने का क्या औचित्य है? जो आज हुआ है, पहले भी कभी हुआ होगा, फिर कभी होगा, शायद बिलकुल ऐसा ही, जैसे २ घड़ी पहले हुआ था. फिर किस बात का दुःख, किस बात का रोना. जब सब कुछ ऐसा ही होना है, तो फिर खुश क्यूँ न रहा जाए. “

रूद्रप्रताप ने जोर का अट्टहास लगाया. फिर कहा- “सब कुछ ऐसा ही नहीं होता है. एक बात बताओ, जो होगा तुम्हें मालूम है क्या? या जो हुआ वो तुम्हें मालूम है क्या?”

सारंग ने कहा- “आप बहुत रहस्यमय लगते हैं. लोग कहते हैं आपने प्रेत सिद्ध कर रखे हैं.”

-“उससे क्या होता है. तुम्हें कुछ पूछना है तो बताओ.”

सारंग ने दूर तक नज़र दौड़ाई. चर्च के पीछे जहाँ दफनाया जा रहा था, वहां बस कोई एक औरत खड़ी थी. सारंग ने उसे दिखा कर कहा- “वो कौन है? वहाँ आज किसको दफनाया गया है? वो कौन खड़ी है? वो क्या सोच रही है?”

रूद्रप्रताप ने घड़ी देखी और कहा- “अच्छा, तुम्हें आज ‘एमेली मिंज’ के बारें में जानना है. सब पता चल जाएगा.”

सारंग ने पूछा- ‘एमेली मिंज’ कौन?

रूद्रप्रताप जी ने घड़ी देखी फिर बन्दर की तरफ चेहरा मोड़ कर कहना शुरू किया. सारंग उनकी पीठ देखता रहा, मानो जैसे उनकी पीठ पर कोई फिल्म चल रही हो. “वो जो औरत खड़ी है वहां पर, वो ‘एमेली मिंज’ की माँ है. वो अभी ये सोच रही है कि कुछ ही दिन पहले तो ‘एमेली’ इस दुनिया में आई थी. लोग कहते हैं ६४ साल हो गए!”

फिर वो अजीब से आवाज़ में शुरू हो गया..

“४० साल होने हो आये. एमेली के बाबू देहात के हॉस्पिटल में नौकरी करते थे. एमेली घर में सबसे बड़ी, नीचे कैसे २ बहनों और १ भाई का ख्याल रखती रही. गॉड ने मुझे इतनी हिम्मत नहीं दी. एमेली के बाबू नहीं कभी घर की सुध नहीं ली. कभी कभार २-३ महीनों में एक बार घर आते. उस पर जो एक दो दिन घर में रुकना हो, दारु में सराबोर. मैं तो झाड़ू मार के निकाल देना चाहती थी, एमेली ने मुझे हमेशा रोका. कहती रही गॉड सब देखता है. गॉड ने यही सोचा होगा हमसब के लिए. बदले में कुछ एक पैसे. बाकी एमेली ट्यूशन करके कमाती थी. कैसे कैसे करके एम. ए. किया. कैसे कैसे उसकी नौकरी लग गयी. एमेली टीचर बन गयी, और हम सब लोग एमेली के साथ आ गए.”

रुद्रप्रताप ने फिर अपने बन्दर को झिड़का- “बस कर सिकंदर.” फिर उसका बड़ी देर तक न जाने क्या खुसुर-फुसुर करते रहे.

थोड़ा रुके फिर सारंग की तरफ मुड़ कर कहा- एमेली यहाँ जिला स्कूल में एक टीचर थी. तुम यहीं के हो, जानते हो उनको?

सारंग – “नहीं, मैं कभी यहाँ पढ़ा नहीं. हमेशा बोर्डिंग स्कूल, फिर बाहर कॉलेज. मुझे नहीं मालूम. मेरा घर यहीं है, पर इनके बारे में नहीं पता है.”

रूद्रप्रताप- ये आदिवासी महिला थी. कुछ साल पहले स्कूल से सेवानिवृत हुई थी. इनकी माता जी अभी जिंदा है, जैसा कि तुम देख रहे हो. बड़ी पवित्र आत्मा थी.

सारंग- लगता है कि ये आपको पहले से मालूम था. फिर नया क्या बता रहे हैं?

रूद्रप्रताप- (हँस कर)- परखना चाहते हो!

सारंग ने फिर नज़र दौड़ाई. एमेली की माँ वहाँ से जा रहीं थी. कोई और वहाँ खड़ा रह गया था. फिर कोई लड़का उसी तरफ बढ़ता जा रहा था. सारंग देखते ही बोल पड़ा- “अच्छा, अब ये कौन लड़का उस तरफ जा रहा है?”

रूद्रप्रताप ने अपनी घड़ी देखी- “सिकंदर, बोल अब..”

एक बार फिर बन्दर के करतब को देख कर उन्होंने कहना शुरू किया- “इस लड़के का नाम ‘बंटी’ है. ये एमेली के साथ काम करने वाले रामप्रसाद बाबू का लड़का है. ये एमेली के कब्र पर डालने के लिए अपने पड़ोसी के घर से लाल गुलाब तोड़ कर लाया है.

ये सोच रहा है- “एमेली आंटी अब नहीं रहीं. बचपन को याद करो तो हमेशा एमेली आंटी याद आती हैं. माँ की अच्छी दोस्त थी. मैंने माँ से कई बार पूछा करता था, ‘माँ, ये तो काली हैं, मोटी हैं, आप इनसे क्यूँ बात करती हैं?’ माँ कहती थी- ‘लेकिन ये हर बार तुम्हारे लिए चॉकलेट ले कर आती हैं. तुम्हारा इतना ख्याल कोई और रखता है?’ इतना तो शायद कोई और नहीं मानती थी. शायद इसलिए कि उन्होंने कभी शादी नहीं की थी. पिताजी के स्कूल एक दो बार चला गया था. दिन भर उन्होंने मुझे कलेजे से चिपकाये रखा था. कुछ कवितायें सुनाती थी- यीशु मसीह के बारें में. थोड़ा बड़ा हुआ तो बड़ी कोफ्त हुई, मुझे ईसाई बनाना चाहती थी क्या? अब लगता है कितनी बेमानी बातें मैं सोचता था.

दिखने में वो भले ही मोटी- काली थी. भले ही लोग उन्हें पागल कहते थे. हाँ, २-३ बार पागलखाने में भर्ती हुई थी. लेकिन इसके पीछे कारण था. पिताजी एक बार अपने दोस्तों से चर्चा कर रहे थे कि उनका भाई गुम गया था, तब से उन्हें ऐसे दौरें पड़ते थे. उनके स्कूल में पढने वाले लड़कों ने भी बताया था कि कई बार पढ़ाते पढ़ाते वो कैसे रो पड़ती थी. कैसे अपने भाई का हुलिया बताने लगती थी- कद पांच फ़ुट सात इंच, काफी सुन्दर, लेकिन साँवला, नाम दीपक मिंज, उसके बायें हाथ में गोदना से लिखा हुआ है -दीपक मिंज. अगर किसी को कभी कहीं दिखे, कभी रेल में सफ़र करते हुए किसी के हाथ में, किसी भिखारी के हाथ में ये निशान दिखे, कभी भी, कहीं भी… तो ज़रूर बताना. यीशु मसीह उसका भला करेंगे. इतनी बार कहा था कि सबको याद था. मुझे कई बार उनसे नफरत से होने लगी. पागल है, ऊपर से मुझे ईसाई बनाना चाहती है, मैं हिन्दू ही ठीक हूँ. एक बार एक मिठाई की दुकान पर मिल गयी थी. मैंने नमस्ते किया, फिर कितने प्यार से उन्होंने मुझे मिठाई खिलाई. मैं ना ना करता रह गया.

मुसलमान का छुआ नहीं खाते हैं, ईसाई का खा भी सकते हैं. हुह, बाद में कितने सारे मुसलमान लड़को का टिफिन खाया… क्या बेकार की बातें थी. लेकिन सबसे बड़ी वो बात थी. उस दिन की बात. कमसे कम ३-४ साल बाद पिताजी के स्कूल जाना हुआ था. अचानक मैं चौदह साल का हो गया था. कद ऊँचा, बाल बड़े, ३-४ साल बहुत होते हैं. तब तक थोड़ी बहुत समझ भी आ गयी थी. थोड़ा पिताजी का डर, थोड़ा मेरा बोर्डिंग स्कूल, औपचारिकता सीख गया था. पिताजी से मिल कर जाने लगा, वो मुझे देख कर हैरानी में पड़ गयी. मुझे समझ नहीं आया,ऐसा क्या हुआ, बस पाँव ही तो छुए थे. वो मुझे कैसे देखे जा रहीं थी. कितनी ख़ुशी, कितना आश्चर्य, कैसे आँखों में पानी आ गया.

मुझसे पूछा- “बंटी हो?”

मैंने हाँ में सर हिलाया. मेरे सर पर हाथ फेरने लगी. कैसे ख़ुशी से देख रहीं थी. फिर अपने बैग को खोला. कहने लगी- अब मेरे पास चॉकलेट नहीं हैं. तुम सब बड़े हो गए हो. हाँ, मेरे पास आज कल फूल होते हैं. बड़े सहेज कर उन्होंने कुछ हरसिंगार के फूल रखे थे. मेरे हाथों में एक फूल रख कर कहा- घर जाने से पहले मुट्ठी मत खोलना. मैंने भी हाँ में सर हिला दिया. जब बाहर निकल कर आया, तो पीछे मुड़ कर देखा, स्टाफ रूम के बाहर खड़ी हो कर वो मुझे वैसी ही ठगी-ठगी देख रहीं थी.”

रूद्रप्रताप चुप हो गए. सारंग ने पूछा- और? और कुछ नहीं जानते हैं आप एमेली के बारे में?

रूद्रप्रताप गरज कर बोले- “सिकंदर के लिए कुछ खाने का ले कर आओ. तब आगे की बात होगी.”

सारंग ने कहा- “आप ये धीरे से भी बोल सकते थे.”

रुद्रप्रताप जी ने कहा- “बड़े दुस्साहसी हो!”सारंग फिर कुछ सोचता हुआ धीरे धीरे पीछे हटना लगा. एक बार नज़र भर कर आम का बगीचा देखा और मन ही मन सोचा कि वो वापस यहाँ नहीं आएगा.  धीरे धीरे सारंग बाहर टहलता हुआ चर्च के पास आ गया. सारंग सोचने लगा- ‘शायद एमेली को कोई अच्छा वर नहीं मिला होगा. वैसे उनकी ज़िन्दगी का कोई ध्येय तो था नहीं. अब ऐसे अंत पर दुःख क्या प्रकट करना. दिखने में अच्छी नहीं थी, शादी नहीं हुई. थोड़ा बहुत घर संभाला. मैं भी क्या सोचने लगा हूँ. हो सकता है सब झूठ हो. ये पागल बुड्ढा झूठ बोल रहा है. एक बार गलती से मेरी ट्रेन के बारे में क्या तुक्का लगा, मैं तो सब सच मान बैठा हूँ. जा कर देखा जाए, कौन है, कौन नहीं.’

जब सारंग चर्च के गेट से अन्दर दाखिल हुआ, तो एक लड़का नाम आँखों से बाहर आ रहा था. जैसे ही वो सारंग के बगल से गुजरा,  सारंग ने हलके से कहा- “बंटी!”

वो लड़का ठिठक गया. सारंग ने पीछे मुड़ कर देखा. लड़के ने कहा- आपने मुझे कुछ कहा?

सारंग ने ना में सर हिलाया और आगे बढ़ गया. चर्च के पीछे कब्रिस्तान में उस नयी कब्र के पास केवल एक इंसान खड़ा था. सारंग ने अपने ललाट से पसीना पोछा और पास जा कर  साथ में खड़ा हो गया.  वो महाशय कभी अपनी पेशानी पोछते, कभी रुमाल से अपनी आँखें.

सारंग ने अँधेरे में तीर चलाया- ‘एमेली आंटी आपकी क्या लगती थी?’

महाशय ने चौंक कर सारंग को देखा, फिर कहा- ‘कोई नहीं.’

थोड़ी देर में उन्होंने ने कहा- ‘तुम्हारी क्या लगती थी?’

सारंग ने कहा- ‘आंटी. मेरे पिताजी के स्कूल में पढ़ाया करती थी. आपका परिचय?’

-‘थॉमस!’

फिर थोड़ा मौन.

सारंग ने फिर छेड़ा- आप यहाँ पर?

थॉमस ने कहा- ‘एमेली मेरी दोस्त हुआ करता थी. दोस्त भी नहीं, किसी ज़माने में हमारा मैरिज़ होना था.’

सारंग ने चौंक कर थॉमस को देखा. दिखने में इतना बुरा नहीं था. कमसे कम २०-२५ साल पहले ठीक ही दिखा करता होगा. ये एमेली को पसंद करता था?

सारंग ने जी को कड़ा कर के पूछा- ‘मैं समझता हूँ कि ये उचित समय नहीं ये सब पूछने के लिए, लेकिन फिर भी… आपने उनसे शादी क्यूँ नहीं की?’

थॉमस- ‘बेटा, हम सब क्या क्या सोचता है. क्या हो जाता है. सब गॉड के हाथ में हैं. हमारे हाथ में कुछ भी नहीं.’

सारंग ने फिर जोर दे कर पूछा- ऐसा क्या हुआ?

थॉमस- ‘उसको बहुत ज़िम्मेदारी था. उसके फादर को हमारा मैच पसंद नहीं था. मेरे को क्या था, मैं दूसरे जगह मैरिज़ बना लिया, लेकिन एमेली अकेला रह गया.’

सारंग- “आज फिर कैसे आना हुआ?”

थॉमस की आवाज़ रूंध गयी- ‘गॉड का फेवरिट चाइल्ड था. वो चला गया तो मेरे को आना था. अगर हम एमेली को पर्सनली नहीं भी जानता तो भी आता. बहुत अच्छा औरत था. बहुत अच्छा.’

सारंग धीरे धीरे थॉमस से दूर टहलने लगा. ‘मैं वापस रूद्रप्रताप के पास तो जाऊँगा नहीं. बुड्ढा सच बोल रहा था. या फिर शायद उसको सब मालूम होगा, मुझे उल्लू बना रहा होगा. थॉमस से कुछ पूछा तो जा नहीं सकता है. घर जा के पूछता हूँ. शायद कोई एमेली को जानता हो. उसके बारे में सही ढंग से बता सके.’

सारंग जब जाने लगा तो थॉमस ने उसे रोक कर कहा- “तुम एमेली को एक गुलाब नहीं भेंट करोगे?’

थोड़ी देर के लिए हतप्रभ हो कर सारंग ने कहा- ‘मैं ले कर आता हूँ. मेरे घर के गुलाब उन्हें पसंद आयेंगे.’

सच में घर पहुँचते पहुँचते ९.३० बज गए. घर में लोग परेशान हो रहे थे. अहाते में किसी साइकिल लगी हुई थी. घर में घुसते के साथ माँ ने टोका- ये ९.३० बजे तक कौन सी सुबह की सैर होती है? कुछ खा पी कर निकलते. कितनी गर्मी हो रही है, लहर लगेगी तब अक्ल आयेगी.

“ये साइकिल किसकी लगी हुई है? कौन आया हुआ है?”

-‘जिला स्कूल के टीचर रामप्रसाद बाबू आये हुए हैं.’ कह कर माँ अन्दर चली गयी.

पिताजी की अन्दर से आवाज़ आई- “सारंग. इधर आओ.”

सारंग चुप चाप सर झुकाए ड्राइंग रूम में चला गया.

“ये देखिये. ये हमारा बड़ा लड़का है. अभी छुट्टी में आया है. साहबजादे को नेचर से बहुत लगाव है. सुबह सुबह घूमने निकल गए थे.

रामप्रसाद बाबू ने पूछा- “कहाँ गए थे बेटा?”

-चर्च के पास वाले गंगा घाट पर.

“हरे हरे, सर आपको क्या बताएं. आज एमेली जी को सुबह सुबह दफनाया गया है.”

-“क्या? एमेली दी गुजर गयीं?” पिताजी चौंके.

रामप्रसाद बाबू ने कहा- “बहुत लोग आये थे. कल रात में उनका स्वर्गवास हो गया था.”

-“किनका?” तभी माँ उधर से अन्दर आई. सारी बातें सुन कर बोली- उनकी बहन?

रामप्रसाद बाबू ने कहा- “हाँ, वो ठीक है.”

रामप्रसाद बाबू ने आगे कहा- ‘हिम्मत की मिसाल थी एमेली. करीब ३० साल से जानता था. जब आई थी तो कैसी बुरे हाल में थी. २ बहनों को पढाया, लिखाया, शादी की. भाई को पढाया. भाई नौकरी करके कहीं और रहने लगा. एक दिन खबर आई कि गुम गया है. फिर पागलपन का दौरा पड़ने लगा.’

माँ थोड़ी परेशान सी हो गयीं. उठ कर दूसरे कमरे में चली गयीं. सारंग भी उनके पीछे पीछे चला आया. माँ ने फ़ोन कर के कहा- “सरला दीदी, नमस्ते. …. सुना कि एमेली जी नहीं रहीं. जी.. मुझे भी चलना है. आप हो आयीं? मुझे भी बताना था. क्या… फिर जाना है? कहाँ? अच्छा ठीक है, आप आगे मार्केट चली जायेगी, मैं और सारंग वापस चले आयेंगे.”

सारंग ने पूछा- “माँ, ये कौन थी!”

-“जिला स्कूल में पढाती थी.

-फिर आप इतना परेशान क्यूँ हो रही हो?

माँ ने सारंग को झिड़की दी- “हमारी जान पहचान में थी. हमें जाना होगा. सरला दीदी के साथ काम करती थी. सरला दीदी के रिटायर होने के बाद, करीब २-३ साल बाद, यानी आज से ३ साल पहले एमेली रिटायर की थी. अभी इतनी उम्र भी नहीं हुई थी.”

सारंग सर झुका कर सुनता रहा. आखिर ऐसा क्या था एमेली में जो सुबह से उसे बस उसके बारें में सुनना पड़ रहा है.

माँ ने आगे कहा- ‘सारंग, बगीचे से लाल गुलाब तोड़ के ले आ.’

सारंग चुपचाप फूल तोड़ने निकल गया. मन ही मन वो कुढ़ रहा था. अभी मैं घूम के आ रहा था तो लहर लग जायेगी, अभी इतनी गर्मी है, घर में एक कार भी नहीं है. पता नहीं रिक्शा भी मिलेगा या नहीं?  पैदल जाना आना पड़ेगा. माँ २ रुपये ज्यादा देने से रही, वो बाकी समय पैदल चलेगी.

सरला आंटी पड़ोस में रहती थी. सारंग माँ के साथ फूल ले कर उनके घर पहुंचा. वो भी तैयार थी. सब साथ पैदल चलने लगे.

सरला आंटी- बरखा, बहुत गर्मी हो गयी है.

माँ ने कहा- आगे रिक्शा मिल जाएगा.

सरला आंटी- हाँ, दो रिक्शा कर लेंगे. सारंग इतना बड़ा और मोटा हो गया है तू… अरे शर्माना क्या.. खाते पीते घर के लगने लगे हो अब.

माँ और सरला आंटी बातें करते थोड़ा पीछे चल रहे थे. सारंग उनकी बातें सुन रहा था.

सरला आंटी- बड़ी मेहनतकश थी. बहुत ईमानदार. सारी क्लास लेती थी. सबको पढ़ाती थी. बच्चे जब नहीं पढ़ते थे तो उनको समझाती थी. कई बार रोने लगती थी. ‘हम गॉड को क्या जवाब देगा, ये सब नहीं पढता है, हम क्या बोलेगा.’ आज तक कभी किसी से झगड़ते, लड़ते नहीं सुना. जहां तक होता था सबकी मदद करती थी. एक उसके बगल में रहती थी प्रेमलता दी. वो इतनी दुष्ट औरत, हमेशा कभी कह के- ए एमेली, कोल्ड ड्रिंक पिलाओ न, ए एमेली सिनेमा चलो न. बेचारी कभी ना नहीं बोली.

माँ ने कहा- यहाँ तो कोई रिक्शा नहीं दिख रहा. थोड़ा आगे चलते हैं, रिक्शा मिल जायेगा. धूप में खडा रहने से क्या होगा.

सरला आंटी- हाँ, चलो चलो. आज कल बाहर कहाँ निकलना होता है. मैं क्या बोल रही थी, एमेली गजब की औरत थी. जो ऐसे बाप को माफ़ कर दे उसका क्या कहेंगे.

माँ ने हाँ में सर हिलाया.

सरला आंटी कहीं सोच में पड़ गयी. कुछ याद करते करते कहा- उसका बाप हॉस्पिटल में काम करता था. जहाँ काम करता था वहाँ की नर्स से चक्कर चलता था. उसका बदली हो गया था लेकिन उस जगह को छोड़ के जा नहीं रहा था. उसकी मैय्या यहाँ रोते रहती थी. बाप वहां दारु पी के धुत्त. मैंने उसको कहा की जा के बाप को ले आओ. बेचारी सुनती रहती थी. एक दिन एमेली बोली आज मैं जा के फादर को ले कर आएगी. जो वहाँ पहुँची, बाप नशे में धुत्त था. बाप को किसी तरह समझा बुझा के लाने लगी, तो वो नर्स बोली के जा रहे हो तो अपनी बच्ची को भी ले जाओ. हम इसको नहीं पालेगा. बेचारी एमेली सन्न रह गयी. अभी २ बहन का शादी करायी थी, भाई को पढ़ा रही थी, एक और जिम्मेदारी..लेकिन घबरायी नहीं. बोली ठीक है. हम पालेगी. और बाप को ले कर चली आई. बाप फिर अपना नया जगह चला गया. उस लड़की को पाल पोस कर बड़ा की.’

माँ ने कहा- सबसे बुरा तो उसकी अपनी बहन के दूल्हा ने किया. उसकी के साथ भाई का नौकरी लगा था. साथे काम भी करता था. और एक दिन बोला कि आपका भाई ऑफिस से निकला और  गायब हो गया.

सरला आंटी- ‘लोग कहते हैं कि उसका जीजा बड़ा घोटाला किया हुआ था. एमेली का भाई था ईमानदार. कुछ अनबन हुआ तो मार के फेंक दिया. बेचारी एमेली को जब ये सब पता चला तो मानी नहीं. पागल हो गयी. उसको लगा कि बहनोई ऐसा नहीं करेगा. ६ महीना बाद जब हस्पताल से वापस आई, बड़ी मुश्किल से संभाला अपने आप को.

माँ- हाँ. बड़ी हिम्मत वाली थी.

सरला आंटी- बरखा, यहाँ भी रिक्शा नहीं है. थोड़ा छाया छाया चल कर पहुँच जायेंगे. ज्यादा दूर नहीं है. वैसे भी ज्यादा चलना कहाँ होता है. मैं क्या बोल रही थी, अपने लिए उसने लड़का भी ठीक किया. शादी के लिए राजी किया. उसके बाप को लगा कि शादी कर लेगी तो पैसा घर में नहीं देगी. फिर उसका दारु कैसे चलेगा. जाके लड़का को बोला कि मेरी बेटी पागल है, उससे ब्याह करोगे.

माँ – हाँ, वो यहीं नगरपालिका में काम करता था न.

सरला आंटी- हाँ जी. है ही अभी, उस तरफ कोर्ट के पास एक दुकान खोल लिया है. लेकिन कैसा बाप था उसका. फिर भी कभी एमेली एक शब्द नहीं बोली. एक बार भी अपना जुबान गन्दा नहीं की. बाप उसको बोला, कि तुम क्या ख्वाब पालती है? तुम इतनी काली है, तुमसे कौन शादी करेगा? तुमको कौन लाल गुलाब देगा?

माँ- अच्छा, ये बात था?

सरला आंटी- हाँ. तभी तो एमेली कहती थी कि जब वो मर जाए तो उसके कब्र पर लाल गुलाब चढा देना. सबको मालूम था कि उसके कब्र पर लाल गुलाब चढाना है.

माँ- मैं एमेली से मिली थी ऐसे कि जब सारंग छोटा था, हम उसको दशहरा में घुमाने ले गए थे. इसके पापा उस समय यहाँ नहीं थे. वहाँ पे ये कुछ चाट खा लिया. उसके बाद इतना उल्टी, इतना कै करने लगा बाज़ार में… हमको समझ नहीं आया कि क्या करें. हम सोचे के डॉक्टर के पास ले चलते हैं, कैसे रिक्शा करें, कैसे इसको संभालें, मेरा हालत ख़राब हुए जा रहा था. तभी एमेली जी आके बोली, हम रिक्शा ले कर आता है. फिर मेरे साथ गयी. डॉक्टर के यहाँ बैठी रहीं. बाद में पता चला कि ईसाई हैं, और जिला स्कूल में पढ़ाती हैं.”

सारंग सुनकर एक बार ठिठक गया.

सरला आंटी ने कहा- “फिर तो एमेली को फूलो से बहुत लगाव था. हर पर्व त्यौहार में जाती और फूल चढाती. मुझे कहती, सरला दी, मेरे मरने पर लाल गुलाब देना मत भूलना. मैं उसको डांट देती थी. कहती थी, कितना अच्छा होता है तुम लोगो को पर्व त्यौहार. इतना फूल, दीप..”

माँ- कभी कभार उनसे मिलना हो जाता था.

फिर माँ और सरला आंटी को एक रिक्शा वाला मिल गया. सारंग बेचारा धूप में दूसरे रिक्शे की तलाश में आगे बढ़ता रहा. एक और रिक्शा उसे भी मिल गया. सारंग सोचता रहा- ‘ये कोई बड़ी बात थी क्या? मेरी तबियत ख़राब थी, माँ की थोड़ी बहुत मदद कर दी.’

सारंग, उसकी माँ और सरला दी एमेली के कब्र के सामने खड़े थे. सरला आंटी ने एक बार फिर लाल गुलाब चढा दिया. वो हलके हलके रो रही थी. माँ ने भी गीली आँखों से एक लाल गुलाब रखा. सरला आंटी ने सारंग से आँखों आँखों में कहा- “दुःख की बात ये भी है कि तुम उन्हें नहीं जानते. तभी तो हमारे दुःख से तुम्हें कोई मतलब नहीं.”

सारंग ने इस प्रश्न का उत्तर नज़रें नीची करके दी. किंचित मन में ही उसने कहा- “किसी आदमी के जीने मरने का क्या दुःख? माना कि वो बहुत अच्छी थी, अपने परिवार के लिए बहुत कुछ किया लेकिन इससे क्या? महापुरुष लोग पूरी दुनिया के लिए करते हैं.”

माँ ने भांप लिया. मन ही मन दुआ की- ईश्वर सारंग को सदबुद्धि दे.

सारंग ने बाकी बचे गुलाब एमेली के कब्र पर बिखरने चाहे तो माँ ने टोका- ‘ऐसे नहीं. एक फूल एमेली के लिए.’

सारंग ने बाकी बचे फूल एक-एक कर के निकाले और एमेली के कब्र पर आहिस्ते से रख दिए.

One comment
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  1. Bhootnath jii,

    Aapki kahani padhi to socha ki aapko likhu.. kisi ki jeene marne ka kya dukh…. sahi kaha aapne…barsaat mein aise kai baar maine bhi phool bikharaye hain..

    Aapko yaad hai ya nahin?

    Roli

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