आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

प्राथमिक शिक्षक: प्रभात

Pages: 1 2

प्राथमिक शिक्षक

1

पासबुस पढ़कर बीये किया है मैंने
बनबीक सीरिंज पडकर अैमे
डोनेसन से किया है बीएड
राजकीय प्राथमिक साला चूनावाला में पडाता हूं
नहीं मूड होता तो साथी गंगाराम कोली को फोन पर बता देता हूं
बिना बात सीएल खराब नहीं करता अगले रोज साइन लगा देता हूं
लेकिन फिर भी चूंकि आन-गारमेन्ट डयूटी है
जाना तो पड़तार्इअै
घपला इतना करो जितना चल सके
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी आंख मारने की आदत)

तीन साल पहले जब मेरी नियुक्ति हुर्इ यहां
इससे पहले अपणे क्या कहते हैं वो क्या नाम से
श्री रा.क. जोशी रा.उ.प्रा.वि. बोराड़ा में था
फिर इधर आया तो साब
तीन सौ बच्चे आते थे
अब तीस आते हैं
सब प्राइवेट स्कूलों में चले गए
और जाए भी क्यों नहीं साब
सरकारी स्कूल का तो भटटा बैठ गया है क्या नाम से
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी आंख मारने की आदत)

अब देखिए न इतने सारे एनजीओ वाले स्कूलों में आते हैं

हम कहते हैं अच्छा है आओ
पढ़ाओ
हमसे तो नहीं बढ़ रहा आगे ये देस
तुम बढाओ

2

अभी 19 से 23 का प्रशिक्षण था
जाणे कौणसी संस्था वाड़े आए थे
मैंने कहा गंगाराम यार मैं घूम आता हूं
मिसेज भी कर्इ दिन से मारकेट-मारकेट रो रही थी
मैंनेका वो मारकेट हो आएगी और मैं प्रशि. में
एक दो घण्टा लेटसेट का तो देखो हर जगै चलतार्इअै
तो हम दोनों जणे साब चल दिए

हांलाकि रहजीडेंसिल था
पण अपण का सिद्धान्त है प्रशि. हो चाय स्कूल
साढे चार बजे से ज्यादा
किसी हालत में ठहरणे का सव्वाल ही नहीं
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी आंख…)

तो पौंच गए साब प्रशि. में
अब वहां बैठणे को जगै ही नहीं
छोटे-छोटे से दो कमरे
अब देखो शिक्साधिकारियों की उल्टी बुद्धि
अरे मैं खैता हूं जहां बैठणे को जगैर्इ नहीं
ऐसी स्कूल में प्रशि. रखवायार्इ क्यों ?
मैंने तो बोल दिया पैले जगै देख लो
कल होगा प्रशि.
बारै तो बजी गए

सो नाश्ता किया और फ्री मूड से घर

अगले दिन जगै देखी
प्रशि.शुरू हुआ

वहां भी देखो भगवान की लीला
वैसा ही लटियानाला कमरा
मैं तो खैता हूं इस गोरमेंट ने और इन एनजीओ वाड़ो ने
शिक्सकों को तो बेकूप बणा ही रक्खा है
भारतमाता को भी बेकूप बणा रक्खा है
तो साब प्रशि.शुरू हुआ
इधर ये हटटे-कटटे साठ सरकारी मास्टर
और उधर दो पतले-पतले छोरे
जो जाणैं नहीं एबसीडी
और आजायं शि.प्र.शि. में

अब बो भी बेरोजगारी के मारे होते हैं भापड़े
और उनकी सुणता कौणअै
हम हमारे अधकारियों कीर्इ नहीं सुणते
इधर तीन साल से एक जगै बणे हुए हैं
मजाअलै कोर्इ हिला दे
सीदी शिक्सा मंत्री तक एप्रोचअै
और एप्रोच का तो आजकल देखो ऐसा है
किसी की एप्रोच नहीं है
एप्रोच है इसकी
किसकी ? पैसे की
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी आंख…)

अब वो दो छोरे पढाणे लगे साब हमको
बोले ये बताओ आपने जीवन में
कौनसी-कौनसी किताबें पढी हैं ?
मास्टरों ने जो पढ़ा था बता दिया
गध-पध संग्रह
कोर्स रीडर रैपिट रीडर
हिन्दी के श्रेस्ट निबंध
मानस हिन्दी व्याकरण आदि इत्यादि

अब छोरे अपणी बताणे लगे
कोर्इ हज्जारों किताबों के नाम ले डाले
और मटों ने, जैसे तो टीच दिया हो टीचरों को
अब ये परेसटीज का सवाल हो गया कि नहीं
तो मैंने कहा रे देखो
हम भी अैमे बीएड हैं
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी…)

गोरमेंट ने कुछ सोच समजकर ही हमें पात्रता दी है
तुम लोगों को प्रशि. देना है तो दो नहीं देना मत दो
मास्टरों की इज्जतों के साथ छीना-झपटी क्यों करते हो ?

मेरे इतना बोलतेर्इ तो मामला गरमा गया
मास्टरों ने ऐसी-ऐसी सुणार्इ उन छोरों को क पूछो मत
फिर मुझे ही दया आ गर्इ क्या नाम से
अपण तो हिन्दू हैं न
हिन्दू में ये चीज जादा होती है
अब तो बिज्ञानिक रिसर्च और कर्इ सर्बेंओं से भी
सिद्ध हो चुकी है ये बात कि हिन्दू में
ये चीज
जादा होतीअै

मैंने देखो पूरे मामले को कैसे टैं-किल किया
मुझे क्या है एक वो टोपिक याद था
और उनमें एक जो छोरा जादा बोलरा था
उसके मांउ झांककर मैंने कहा
देख बात ऐसी है
‘अबे सुण बे गुलाब
असिस्ट
अकड़ क्या दिखला रहा है कैपिटल-लिस्ट।

अब उन छोरों को भी मामला सांत करणार्इ था
बोले साब बहुत अच्छी कबिता है
अब ये बताओ ये किसकी है ?
मैंनेका किसकी है उसके तो मैं घर नहीं गया हूं

उसकी मैंने खीर नहीं खार्इ है
बैसे कबिता लिखणे वाड़ों के घरों में खीर बणती होगी
मुझे इसमें बिस्वास कमीअै
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी…)

पर जिन दिनों मैं आरएसके टेस्ट फाइट
करता था जब साब मैंने पढ़ी थी
ये तो किस्मतर्इ खराब थी
और घरवाड़ों की थोड़ी पोजिसन डाउन थी
वरना आज किसी डिसिटक के मालिक
होणे के लायक थे हम भी पर क्या करें
किसमत में तो ये डिपाटमेंट लिखा था
और देखो कवियों का तो ऐसाअै सुणो ध्यान से
गौर करणा जरा हमारी बात पे

कि किसी सायर ने कहा है
कि किसी सायर ने कहा है
जहां न पौंचे रवि वहां पौंचे कवि
पर ये रवि वो मिस्टर रविकांत तोसनीवाल नहीं है
जो शिक्सकों के पिछले प्रशि. में पधारे थे
इसमें सूर्य-चन्द्रमा वाड़े रवि की बात है

होल तालियों की गड़गड़ाट से गूंज उठा
मास-टर एकदम राजी हो गए
बोले अब लग रहा है कि प्रशि. चलराअै
प्रशि. तो देखो अपणे ही लोगों द्वारा होणा चर्इए
उनको क्याअै डिपाट की पूरी नोलेज होती है
सिक्सक क्या चाते हैं ये उनी को पता रहताअै
फिर तो शेरो-सायरी सुरू हो गर्इ, उधर से कोर्इ कहने लगा
नो नौलेज बिदाउट कोलेज
इधर से किसी ने कहा-
नो लाइफ बिदाउट बाइफ
अब इसमें बाइफ की जगै बाइक जादा सटीकअै
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह…)

इतने में हमारे बीओ साब आ गए
बोले प्रशि. कैसा चलरा है ?
सबने कहा साब अच्छा चलराअै
दयाअै आपकी
और ऐसे ही प्रशि. रखवाओ तो क्या है टीचरों का नोलेज बढ़ता है
और जो टीचर एसटीसी ही किए हुए हैं उनका ये समझो कोलेज बढ़ता है
क्योंकि यहां कुछ सीकेंगे तो म्हा कुछ सिका पाएंगे
और अगर न्हयार्इ कुछ नहीं सीके तो इस सदन के बीचोंबीच पधारे
हमारे परम आदरणीय सर जी हम लोग म्हा क्या सिका पाएंगे
क्योंकि ???
क्योंकि इस देस के बच्चों का भविस्य शिक्सकों के हाथ में हैं
सिक्सकों की तरक्की होगी तो देस की तरक्की होगी
बैठो-बैठो खैके बीओ साब ने उसे तो बेटा दिया
फिर वे अपनी बात बताने लगे
बोले मैं देखो भौत सिद्धान्तवादी आदमी-इंसान हूं
और आज से नहीं मेरा शुरू से
अब क्या बताऊँ आपको कि
शुरू से भी शुरू से मेरा यही स्वतंत्र-सिद्धान्त रहा है कि
एक तो गददारी
गददारी नहीं करणी अपणे विभाग के साथ
क्यों ? क्योंकि हमारा विभाग हमें रोज-ही दे रहा है
रोजही से हमारे बाल-बच्चे पढ़ते लिखते आगे बढ़ते हैं
हम उन्हें अच्छे प्रार्इवेट स्कूलों में पढ़ा सकते हैं
किसी अच्छे ऐजुकेसनल सेन्टर में कोटा जैसी इन्स्टी-टूट में डाल सकते हैं
उससे क्या है हमारे बच्चों का भविस्य सुरक्षित होता है
तो पैली बात तो याद रखो-रोज-ही
दूसरी बात हमारे देस के दूसरे राष्ट्रपिता हुए हैं
श्रीमान डा.स्वरपल्ली राधाकृष्णमनन
ये क्यों भूलते हो कि वो स्वयं अपने आप में
एक महान से महान शिक्सक भैभूति थे
तो इन राष्ट्रनिर्माण कार्य-कर्ताओं से हमें प्रेरणा लेनी चार्इए
कुछ सीख तो अवश्यम्भावी रूप से ग्रहण करनी चाहिए

मैं तो कहता हूं जब आपका यह सुधि प्रशि.सम्पूर्णता की ओर अग्रसर हो
आप ये प्रण लेकर यहां से जायें कि
हम हमारे बच्चों को पढ़ाकर इस देस का
भाग्य तो क्या एक दिन तो तकदीर को भी बदलकर रख देंगे
होल तालियों की गड़गड़आट से गुंजायमान हो उठा
फिर चाय आ गर्इ
लेकिन समोसे वाला नहीं आया
खैर माननीय सीआरसीएफ ने फोन लगाया
और वो भी सर्इसलामत आ गया
सीआरसीएफ की सख्त डू-टी बनती है कि
चाय हो चाये नाश्ता उसके टाइम टेबल में
जरा भी गड़बड़ नहीं होनी चाहिए

वरना सीआरसीएफ होणे का मतलब ही क्या हुआ ?
क्या ? (क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह…)

चाय के बाद बीओ साब ने फिर मिटिंग ली
ली क्या बल्कि दी या ली कह लो एक ही बातअै
और साब की मीटिंग की ये खास बात आप
हमेशा देख लेणा कहीं भी कभी भी
कि जब वो बोलेंगे तो या तो
पेन-ड्रोप साइलेण्ट रहेगा या वो बोलेंगे
मजाअलै कोर्इ दूसरी आवाज आ जाय
फिर बीओ साब ने पूछा
सबके अकाउण्ट में सैलरी पौंची कि नहीं ?
इसकी रिपोट चाहिए मुझको
सबने हाथ खड़े कर दिए क साब नहीं पौंची
बीओ साब चिल्ला धरे-नहीं पौंची ? कैसे नहीं पौंची ?
पौंच जानी चाहिए थी ? अब पौंच जाएगी
और कोर्इ अन्यथा प्रोबलम ?
कर्इयों ने हाथ खड़े कर दिए
हमारे ये पैसा नहीं पौंचा
हमारे वो पैसा नहीं पौंचा
सरपंच से लेकर जइअन-अइअन
तैसीलदार सब हमपै अधकारी बणे रहते हैं
निर्माण के कामों में सबका तो दो परसेण्ट
पांच परसैण्ट बारा परसैण्ट फिक्स है
हमारे हाथ पल्लै क्या पड़ताअै
बतार्इए आप
फिर हमपै बाउण्ड्री बाल करातेर्इ क्यों हो ?
हमें क्यों डिसट्रब करते हो ?

एकबार तो बीओ साब सकापका गए
बोले देखो-ऐसी बात इस सदन में करणा
सोभा नहीं देता
आपर्इ बताओ सोभा भैनजी सोभा देताअै क्या ?
सोभा भैनजी ने कहा-पता नही साब
आखिरकार बीओ साब ने सबको आ-स्वस्थ किया
कि सब हो जाएगा
लेकिन एक बात आप लोग कान खोलकर सुण लो
ऐ कानाराम कान क्या कुचर रहा है
तू भी कान खोल कर सुण
तेरे स्कूल से बार-बार सिकायत मिल रही है मुझे
तो मैं कह रहा था कि करो वो
जिससे देश का नाम रोशन हो
ठीक है तो मैंने आपको पूरे दो घण्टे का समय दिया
अब मुझे अगली मीटिग में जाणा है
मगर मैं ये तय नहीं कर पा रहा हूं
यहां खाणा है कि वहां खाणा है
कोर्इ टीचर बोला-साब दोनों जगै ही खाणा है
चलो ठीक है वो बात मैं माननीय
सीआरसीएफ महोदय प्रभुदयाल जी से कर लूंगा
अरे अरे खड़े होने की जरूरत नहीं है
बैठो सब और अगर मुझे ये सिकायत
कहीं से मिल गर्इ
मैं फोन कर करके पल-पल की रिपोट लेता रहूंगा
कि किसी भी सिक्सक ने समै का पालन नहीं किया
तो ये ठीक नहीं होगा
इस पर एक भैनजी गमक उठी
सर मेरे तो हजबैण्ड लेने आ गए सर
दूसरी बोली शाम को गांव के लिए बस नहीं मिलती सर
तीसरी बोली मेरे पांव में लगरीअै सर
अब चलूंगी तब शाम तक पौंचूगी घर
देखो ये बातें तुम अपने सीआरसीएफ महोदय से कर लीजिए
अगर विशेस ही कोर्इ समस्या है तो बात अलग है
जैसे कि ममता भैनजी के पांव की चोट
लेकिन डयूटी इज बी मस्ट होणी चाहिए आपकी

कहते हुए बीओसाफ निकल गए
अभी आया कहते हुए एक-एक करके
सारे सिक्सक भी पीछे से निकल गए
क्या ? (क्या के साथ ही दीपक एमएलए…)

इस तरह प्रशि. का दूसरा दिन
हंसी-खुसी के साथ सम्पन्न हुआ
तीसरा और अंतिम दिन तो आप जाणौ
सब को टीएडीए लेकर जाणे की जल्दी रहती है
तो उसमें खास ध्यान देणे वाड़ी बात नहीं है

अब करें भी क्या
स्कूल एक
मास्टर दो
एक-एक स्कूल में कार्यरत
पन्द्रह-पन्द्रह एनजीओ
इन भीसम प्रस्थितियों में आप क्या कर लो ?

एनजीओ वाड़े
और ये हमारे अधकारी लोग
सिवाय लुफफाजी के करते क्या है ?
इधर देखो इधर
छाती ठोक के खैता हूं
फील्ड की हमारी हमीं जाणतें हैं
हम हमारी ऐसी-कम
तीन तैसी कराएं क्या ?
अयं क्या करें हम ?
क्या ?
क्या ? (क्या के साथ ही दीपक एमएलए…)

3

अरे ऐ लड़के टाइम क्या हो गया
घण्टी समै पर लगा दी थी तुमने ?
लगा दी थी, बढिया
सब कमरों के ताले खोले सफार्इ की ?ठीक
प्र-थाना हो गर्इ ? ठीक
गंगाराम आ गया ? ठीक
आर्इए आर्इए रामसरूप जी
बड़े दिनों में दर्सण दिए
कहीं बार-वार चले गए थे क्या ?
और बाल-बच्चे खेती-बाड़ी गांव-ढाणी
सब बढ़िया तो है न ?

अपणा सब ठीक चलराअै साब आपकी दया से
फस्सकिलास स्कूल चलराअै
अपण ने तो देखो साब इस ऐजूकेस-नल
डिपाट में आकर ये ही सीखा है
खरी खैणा और सुकी रहणा क्यों ?
गल्त खैराउं तो बताइए आप हैं हैं
तो ये तो साब देस जो है न ऐसे ही चलेगा

और सु णाओ
आपके तो मजे हैं जी
मैं तो कहता हूं छोटी नौकरी करनी है तो
आपकी तरै तैसील की करौ
ओवर इनकम के सोर्स भौत हैं
तौंगली उठाके आते हैं गंवार लोग
तौंगली झड़ाके चले जाते हैं
क्या ? (क्या के साथ ही दीपक एमएलए…)

हमारे अब आप देखो दो कमरों का ये पैसा है
नया अधिकारी आए दिन गिद्ध की तरह चक्कर काट रहा है
बूझो क्यों ? कमीशन तो पहले वाड़ा ले गया ज्यौं
अपण को कुछ खास नहीं मिला साब
येर्इ कोर्इ दो ढार्इ पांच सात के लमसम
बाकी कुच्छ लेण-देणा नहीं है
वो तो भला हो गंगाराम का जिसे
र्इमानदारी का भू-खार छंडा रहता है चौबीसों धण्टे
वरना इसमें भी बांट-चूंट होर्इ जाती
क्या ?(क्या के साथ ही…)

ऐ लड़के इधर आ बेटा
उसके लात क्यों मार्रा था ?
बो तेरे घूंसा क्यों मार्रा था ?
तुम यार फिल्मों में क्यों नहीं चले जाते
फार्इटिंग बण जाणा वहां जाके ?
ऐसे इसकूल में लड़ना नहीं चार्इये बेटे
भार्इ-भार्इ की तरह रैना चाहिए
जैसे हिन्दी-चीनी रहते हैं
अब चीनी में तो तुम समझ गए होगे
मीठी लगती है
पर हिन्दी में नहीं
समजने की जुरत भी नहीं
चल एक काम कर ये ले पैसे
और भार्इसाब के लिए फोर-इस्क्वायर लिया
अपणै एसमएसी के मुख्य माननीय मेम्बर हैं भार्इसाब

जान्ता तो है न कैसी आती है
ये पैकिट साथ में ले जा
और हां बच्चों से बोल कक्स्या में बैठें
खैना किताब खोलकर पाठ पढ़ो सारे

माटसाब डण्डा लेके आरे हैं
और सुण ले के आ फटाफट
हैडमास्टसाब वाड़े रूप में आणा
रूप में क्या वो रूम में आणा

और साब सुणाओ आपके पिलाट का क्या चलराहै ?
हमें भी उधरी कोर्इ दिलाओ न
अब मास्टरी में तो देखो लेणा-देणा कुछ है नहीं
तीस हजार मिलते हैं
आप जाणौं क्या होता है इस मंहगार्इ के जमाने में
पेट्रोल की कीमत किसी भी मोमेन्ट पे बढ जातीअै

जीप की आवाज कैसी है ?
पोसार चैक करने वाले हैं शायद ?
बैठिए आप तो बिराजिए साब
अच्छा अच्छा नए बीओ साब पधारे हैं
आइए आइए
आइए साब
आइए आइए
और साब बड़े दिनों में दर्सण दिए
और अपणे इसकूल में वो
फर्नीचर वाड़े बज्ट क्या हुआ साब ?
अरे ऐ लड़के पाणी पिला साब को
अरे ऐ लड़के
पैली-दूसरी वाड़ो की छुटटी कर दे किवकली
साब आ गए समै नहींहै
और साब सुणाएं
बच्ची के सम्बन्ध का खहीं बैठा के नहीं
अब वो तो देखो लिखी होगी जो होगी
कर्तब करणा अपणा फर्ज है क्या नाम से

मैंने सुणा साब बर्मा को एपीओ कर दिया ?
अकेले अकेले बणाणे के चक्कर में होगा
बडिया किया
राह-रीत का तो जमाना ही नहीं रहा

इस बार शिक्सक दिवस पर सम्मान-वम्मान कराओ साब
आपके राज में नहीं होगा तो कब होगा
आप अपणा समझते हैं इसलिए
आपसे जो दिल में है वो कह देते हैं
वरना अप्पण को क्या तो लेणा सम्मान से
क्या देणा वम्मान से
क्यों साब क्या नाम से ?

एक बात है साब अपणा इस्कूल अफग्रेड हुआ है तो
इस बार फंक्सन में कुछ रंगा-रंग हो जाए
आपका आदेष हो तो खाद मंत्री जी से मैं बात कर लूं
अपणे गांव के ही हैं
आपके हाथों माल्यार्पण हो जाए मंत्री जी को
इस्कूल में एक और हैडपम्प की घोषणा पक्की समझो
वैसे इतने हैण्डपम्पों का करेंगे क्या
पाणी दे तो एक ही भौतअै
पर कुछ और घोषणा करवा लेंगे बिदयाल्यै बिकास के लिए
नगद जैसा कुछ

क्या है रे लड़के इधर क्या घूमरा है
कक्सा में जाके बैठ
अरे साब के बच्चे बोला न बाद में आणा
जो भी लाया है बाद में लाणा
देख्ता नहीं बीओ साब पधारे हैं
क्या हुआ साब चल दिए ?
बैठते न साब
अबी आए अबी चल दिए
दयाद्रस्टी रखणा

अरे ऐ लड़के
ले आया बेटा लेआ लेआ
भार्इसाब को दे पाकिट
और रामझारे में पाणी लेके आ
तो ये हालत है साब
अधकारी लोग सिर पर छंडे रैहते हैं
अब पढाओ कब ?
आपके सामने खै गए कि नहीं
ये डाक नहीं भेजी बो डाक नहीं भेजी

मैं तो इस्पैस्ट खैता हूं
या तो डाक्खाना ही चला लो
या इस्कूल ही चला लो
पण ये तो ऐसे ही है सिस्टम
पूरा का पूरा सिस्टम भ्रस्ट हो गया है

अरे ऐ लड़के इधर आ
छुटटी की धण्टी लगा
और सुण मोटर सार्इकिल के
पहिए चैक कर पंचर तो नहींयं

पंचर हो तो फटाफट गनी खां के जा
निकड़़ा के ला
देखें कितने जल्दी करता है
शाबास बेटा

और सुणाओ साब
अखबार पडो तो ले जाओ
ऐ लड़की सुषमा कमरों के ताले लगा
अच्छा साब राम-राम
इस्कूल खोलने में देरसेर हो जाती है तो
गांव में कोर्इ कान तो नहीं हिलाता ना
वैसे तो आपके रहते कोर्इ दिक्कत नहीं है
फिर भी जमाना खराब है साब
वैसे तो लड़कों को चाबी दे रक्खी है
फिर भी

अच्छा साब चलूंगा
तीन ही बजे हैं लेकिन
क्या है शाम को कुछ गैस्ट आणेवाले हैं
गांव यहां से नैट बीस पड़ता है
ओके ओलदि-भस्ट

4

अरे ऐ लड़के टाइम क्या हो गया
घण्टी समै पर लगा दी थी तुमने ?
लगा दी थी, बढिया
सब कमरों के ताले खोले ? सफार्इ की ? ठीक
प्र-थाना हो गर्इ ? ठीक

दो घण्टे हो गए कोर्इ पीछे से आया तो नहीं था न ?
ठीक
अच्छा अब ऐसा करो
गंगाराम को आज डाक बणाणी है
भौत काम है
पोसारवाड़ी आर्इ कि नहीं ?

आ गर्इ ? ठीक
क्या बणारीअ
कढी ? ठीक

आज के अखबार ला दो
और सब बच्चे उसी कल वाड़े
पेड़ के नीचे बैठकर गिणती बोलो
तू बुलवाणा सौ तक की कम्पलेट
पैलै हिन्दी में फिर इंगलेसी में

और डण्डा टेबल के ऊपर रख देणा मैं आराऊँ
चल डण्डे को टेबिल के नीचे रख देणा
आजकल आरती-ए जाणें क्या आ गया है
अब आ गया तो आ जाणें दे
तू ऐसा कर ऊपरर्इ रख देणा
होगी जो देखी जाएगी
समज में तो आए आया क्याअै
सब बच्चों से खैणा मुंह पर उंगली रखकर बोलें
किसी की मुंह से उंगली हटे तो बताणा
ओके अब जा

सुण ऐसा कर दो दरीपटियों को मिला कर इधर
बरण्डे में छाया में बिछा दे
और भागकर पुस्तकालय से
दोचार किताब उठा ला सिराणे के लिए
अब जा बेटा

हे राम हे राम
हे राम तेरी मर्जी
तू असली हम फर्जी
एक बात है अखबार भी क्या चीज बणा दीअै
कुछ भी देखो फिल्मी चित्र
सोने चांदी का भाव
पिलाट सिलाट की सूचना सब घर बैठे
कौडि़यों के मोल अबे-लेबल
राम-राम क्या जमाना आ गया
हिंसा चोरी डकैती बलत्कार के अलावा कुछ नहीं

चारों तरफ
समझ में नहीं आता
क्या होगा इस देस का ?

अरे तुम दोनों बच्चे फिर आ गए
जब तुम दो मिन्ट सांती के साथ बैठकर पढ़ ही नहीं सकते
क्यों आते हो स्कूल ?
क्यों अपणा और अपणे घरवाड़ों का समै खराब कररे हो
मुझे पता है नहीं पढ़ सकते तुम लोग
तुम्हारी सात पीढ़ी नहीं पढ़ी
तुम कैसे पढ़ोगे मेरे बाप
इधर आ
चल इधर आ
हाथ आगे कर
भगवान भी आ जाए न भगवान भी
तो तुझे नहीं पढा सकता
मैं तो चीजर्इ क्याऊँ
क्योंकि तू तो वो चीजअै जो मैं भी नहींऊँ

तू भी हाथ आगे कर
जादा रोणा-धोणा है तो अपणे घर जाके करणा ये रिहर्सेल
ये तो कुच्छ भी नहीं है कुच्छ भी
हमारे जमाने में प.रामनराण शास्त्री पेड़ से
उल्टा लटका देते थे क्या ?
आंसू मत टपकाओ
इसे तो प्यार मानो प्यार
जाओ जाकर बैठो कक्सा में

और तू इधर सुण
किसी इंटलिजेंट से लड़के को भेज
कहीं भेजणा है बाहर
अब तुझे तो क्या भेजूं
पांचूर्इ में आ गया
ऊँट की नांर्इ बढ़ गया
पांच सौ पांच और पांच सौ पांच कितने हुए
बता सकता है ?
नहीं न
यही तो मैं खैराऊँ
अल्लातालार्इ मालिक है तुमारा
मेरे समझ में नहीं आता
घरवाड़े ध्यान नहीं दे सकते बच्चों पर
तो पैदा क्यों कर देते हैं
अरे ये कोर्इ गोड गिफट थोड़े है
खैर तू जा यार दफा हो
दफा हो लेकिन कभी तीन सौ दो मत हो जाणा मेरे मालिक
आजकल स्कूलों पै वैसे ही ताले लगवा रहे हैं लोग
करे आंगणवाड़ी की सिस्टर
भरे मास्टर
और सुण सरिता को बोलणा
पाणी लेकर आएगी हैडपम्प से मांज कर
कौणसी वाड़ी सरिता को बोलेगा ?
सरिता चतुर्वेदी को
हां जा अब ठीक

5

और भर्इ गंगाराम सुणा क्या खबर
कबिता सुणाएगा ?
चल सुणा
देख यार हमें तो ये तेरी कबिता हो या बबिता
समझ में आती नहीं है क्या नाम से
लेकिन चल तू सुणा
सुणाणे लगा साब गंगाराम-

‘संस्कृति तो थी भली
और वह इंसानी मानवीयता को
यहां तक खींच लार्इ थी
लेकिन मानव की यह अमोल विरासत
अब छिन्न-भिन्न हो रही थी
मूल्य तो थे भले
और वे इंसानी उदात्तता को
यहां तक खींच लाए थे
लेकिन अब उनमें गहरी गिरावट आ गर्इ थी
बदलाव का यह ऐसा दौर था
जिसने हृदयों के समीकरण बिगाड़ दिए थे
वे मशीन की तरह धड़कने लगे थे
करुणा के आगार इंसानी हृदय
खण्डहरों में तब्दील हो गए थे
व्यक्तिगत जिन्दगियां खासी उजाड़
और जीवन विहीन थी
जीवन के होने के गान के नारकीय शोर में
जीवन के अभाव का अजब समारोह
धरती पर चल रहा था

एक ओर नगरों में शापिंग माल बढ़ रहे थे
दूसरी ओर कैंसर की तरह बढ़ रही थीं
झुग्गी झोंपडि़यां
इन झोंपड़पटिटयों में
भारी तादाद में रहते थे वे परिवार
जिन्हें कंगाल बनाने में इस षताब्दी ने
सारी ताकत झौंक दी थी

न्यूनतम मानवीय संवेदनाओं के साथ रहते थे
वे परिवार इन झोंपड़पटियों में

छोटे-छोटे चार-चार पांच-पांच साल के नग्न बच्चे
सुबह होते ही शहर में बिखर जाते थे कटोरा लिए
देर शाम थके हारे काम से लौटते थे अपने डेरों में
जहां उन्हें उनके जर्जर पिता मिलते थे
और भी जर्जर उनकी मांओं के बाल खींचकर
धरती पर दे मारते हुए
जहां उन्हें बड़ी बहनें मिलती थी
झुग्गी के अंधकार में जमीन खोदकर बनाए
पत्थर के चूल्हे पर खाध बनी बैठी हुर्इ
जहां उन्हें राजनेताओं सरीखे सफेदपोश एनजीओ वाले मिलते थे
उन्हें खा जाने के लिए आए हुए

झुग्गी झोंपडि़यों और रेल की पटरियों के
बीच से जाते कच्चे रास्ते पर
यह तेरह चौदह साल की बच्ची
अपने घुटनों में सिर फंसाए बैठी है
इसके आठ कदम दूर
बीस-बाइस की उम्र के दो भारतीय नौजवान
बैठे हैं गिद्ध की तरह दृष्टि जमाए
लड़की धरती को कागज बना
तिनके से चित्र उकेर रही है धूल में
चित्र में उसने ढेरों-ढेर झुग्गी झोंपडियों में
हवा में हरहराते अपने झिलंगे से घर को बनाया है
घर के आगे बनाए हैं पेड़ जिनमें छाया है

और अब वह जार-जार रो रही है
उसका घर और पेड़
भीग रहे हैं उसके आंसुओं की
बारिश से

उसे उसका घर
आंसुओं की बाढ़ में बहता नजर आ रहा है

अब बाकी की कल सुणाणा यार
मेरे इसमें तेरी एक चीज समझ में आर्इ
कि शहरों में सोफिंग माल बन रहे हैं
और ये ही इस कविता की क्या कहते हैं वो
जान है
और जान है तो जहान है
क्या ? (क्या के साथ ही…)

यार कुछ रूपैये चर्इए थे उधार
जेब में पड़े हो तो देना सौ-पचास
मुझे शाम को जाते वक्त क्या है
चौराहे से कुछ लेकर जाणा है
वो क्या कहा है न किसी सायर ने
जाती नहीं कम्बख्त मुंह को लगी हुर्इ
मेरा पर्स आज घरवाड़ी ने निकाल लिया

अब चल तू डाक बणा फटाफट
मैं जरा सीआरसीएफ से मिलते हुए
घर निकलूंगा

6

अरे ऐ लड़के टाइम क्या हो गया
घण्टी समै पर लगा दी थी तुमने ?
लगा दी थी बढिया
सब कमरों के ताले खोले सफार्इ की ?ठीक
प्र-थाना हो गर्इ ? ठीक
गंगाराम आ गया ? ठीक
दो घण्टे हो गए कोर्इ पीछे से आया तो नहीं था न ?
आया था ?
कौन ?
क्यों ?
मौसमी की मां
क्यों ?
मौसमी ने घर जाकर मेरी शिकायत की ?
क्या ?
कि कल मैंने उससे कहा कि
पढ़ने में क्या धरा है
तेरे घरवाड़ों से बोल शादी कर दे

तो ये क्या कोर्इ घर जाकर बोलणे की बात थी
और फिर इसमें मैंने गलत क्या कहा ?
तू ऐसा कर घर जाकर
बुलाकर ला डोकरी को
कहणा माटसाब ने मौसमी की
छात्रबति लेणे के बुलाया है

7

यार गंगाराम सच बताणा
मुझे सक होराअै
खहीं तू मेरेर्इ पे तो नहीं बणाराअै
ये तेरी कबिताओं बबिताओं ललिताओं लतिकाओं को
क्या ? (क्या के साथ ही…)

खैर चल सुणा यार
तू भी क्या याद रखेगा
कैसा दिलदार कलिंग मिला था तुझे
तेरी गोरमेण्टसरवेण्टी में
सुणा
गंगाराम को तो सुणा कहणे की देर है
ओटो इस्टाटअ मेरा मटा

अपनी भाषा खो चुकने के बाद
तुम भाषा के शिक्षक बने हो
ताकि छीन सको बच्चों से उनकी भाषा
ताकि यथावत चले यह गलीज व्यवस्था

तुम में जरा भी बची होती अपनी भाषा
माने अपनी संस्कृति अपनी विनम्रता
और चीजों से अनुराग
और उन्हें अपने होने के आलोक में देख पाना

तुम पहले दिन ही बच्चों के बीच
उनके जीवन के उल्लास और उजास से भरी
भाषा के सम्पर्क में आकर
अपने आपको बौना अक्षम और निरुपाय पाकर
क्षमा मांगते कक्षा में पहले दिन ही
और निकल जाते फिर से नर्इ शुरूआत करने
भाषा सीखने

तब तुम नहीं रहते व्यवस्था के लिजलिजे कारिंदे
तब तुम होते एक सच्चे शिक्षक
जिसके वाक्य इतने प्राणवान होते
कि बच्चों का तुमसे संवाद को जी करता
फिलहाल तो तुम्हें कोर्इ भी टरका देता है
कोर्इ भी ऐरा-गैरा शिक्षा प्रभारी
जिला शिक्षा अधिकारी

ये तूने हण्डरेण्ट पर -सेण्ट मेरे पर लिखी है
और डीओ साब पर
नहीं ये हम सब पर है

ये तेरी बणाणेवाड़ी बात है
लेकिन बेटा तेरी भाषावाड़ी बात है न
बो बिल्कुल गल्तअै
तेरी क्या भाषाअै ? रसहीन सुगंध बि-हीन
सुवाद बि-हीन
अरे भाषा तो हमारे पास है
भाषा की टकसाल लगा दें साड़ी

और एक बात तुझसे कहूं
तू मास्टरी छोड़
और किसी एनजीओं में चलेजा
यहां क्या लेगा
यहां से एनजीओ
एनजीओ से फंडीजेंसी
कैसा सुलभ सस्ता टिकाऊ बिकाऊ रास्ताअै
क्या ? (क्या के साथ ही…)

यहां क्या मिलता है तुझे अटठारा
वहां अस्सी मिलेगा
तेरे जैसे नोलेजफुलों को तो
मुंह मांगी कीमत पर खरीदते हैं वे
पिछले दोएकर्इ बरस में
बड़ी-बड़ी संस्थाओं में से बड़े-बड़े चले गए
क्या ? (क्या के साथ ही…)

क्योंकि भर्इ उनका भीसतो
छिपा हुआ मकसद है न वही
शिक्सा का बाजार खड़ा कर देस की तबाही
लेकिन इस बार कबिता में तू बो माल लाया
कि टैमपास साड़ा होतार्इ नजर आया

खैर बढिया
अब चल तू डाक बणा
मैं कक्सा देखता हूं

8

गंगाराम जाणैं आज कहां मर गया ?
ये भी रामजीर्इ होता जा रहा है जीव को
हजार बार कह दिया ये तेरी
कबिताओं और बबिताओं
ललिताओं लतिकाओं का चक्कर छोड़ साड़े
इनके चक्कर में यूंर्इ किसी दिन
कुत्ते की मौत मर लेगा
क्या रक्खा है इनमें
जब हमारे डिपाट के शिक्सा मंत्री
माननीय राधारमण सर्राफ ही नहीं लिखते कबिता
तू क्यों इन चक्करों में पड़ताअै

अच्छा खुद फरार है
और कबिता टेबल पर छोड़ गया है
देखूं तो लिखा क्या है

कहीं मेरे बारे में तो नहीं ?

तुम और किसान

अच्छा ये तो हुआ सीरसक माने कबिता
बबिता में क्या लिखा है देखूं तो जरा

तुम वो हो जो काम करो तो न करो तो
आज की पूरी तन्ख्वाह पाओगे
तुम मेज पर पांव रखकर ऊँघने
और थड़ी पर चाय पीते हुए
पांच बजाने की भी तन्ख्वाह पाओगे
और अगर तुम दफतर में गए
और वहां तुमने कुछ काम निपटाए जरूरतमंदों के
और ऐवज में इसके
हफता वसूलने की तरह पैसा वसूला उनसे
तब भी तुम आज की तुम्हारी पूरी तन्ख्वाह पाओगे
तुम इस देश की सरकार के दफतर के कार्मिक होने के नाते
भ्रष्ट आचरण में डूबने की भी पूरी तन्ख्वाह पाओगे
उन कामों की भी तन्ख्वाह पाओगे जो तुम नैतिकता की दृशिट से देखो तो
राष्ट्रद्रोह जैसे होंगे
तुम त्यौहार और रविवार की भी तन्ख्वाह पाओगे
आराम करने के ऐवज भी तुम्हें पैसा मिलेगा
और इसी दौरान तुम्हें पदोन्नतियां और पुरस्कार भी मिलेंगे

क्या तुमने कभी महसूस किया है कि
किस कदर सुरक्षित है तुम्हारा जीवन
क्या तुम महसूस कर सकते हो
इस सुरक्षा के बदले में आखिर क्या देते हो तुम इस देश को ?

तुम्हारी सौ मांगें हैं और हजार शिकायतें
लगता है तुम हालात से जरा भी खुष नहीं हो
तुम क्या सोचते हो लालच लालच और लालच के सिवा क्या है वह
जिसके चलते कि खुश नहीं हो तुम ?
अगर कीटनाशकों ने सबिजयों को बर्बाद कर दिया है
तो यह किसने किया है ?

अगर भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है इस देश में
तो क्या तुम इस कुकर्म में शामिल नहीं हो ?
अगर अन्याय और हिंसा इतनी अधिक है कि

अखबार का हर पृष्ठ उससे रंगा दिखार्इ देता है
तो इसके विरूद्ध तुम क्या कोशिश कर रहे हो ?

सबकी तरह तुम भी प्रतीक्षा कर रहे हो
तुम्हें प्रतीक्षा पसंद है
तुम प्रतीक्षा करना चाहते हो
तुम जानबूझकर प्रतीक्षा करना चाहते हो
उधर वह किसान है तुम्हारा भार्इ
जो गांव में छूट गया है और खेतों में खट रहा है
वह आज दिनभर खेत में खटेगा
इसके ऐवज में आज उसे क्या मिलेगा ?
वह कल भी दिन भर खटेगा
पूरे हफते पूरे महीने
वह चार महीने दिन रात एक कर के
मावनीयता की सच्ची मूर्ति की तरह जूझता रहेगा
अंत में उसे क्या मिलेगा
चार महीने के हरेक दिन के एवज में ?

खेती का मंहगा खर्चा काटने के बाद
उसे तुम्हारी चार दिन की तन्ख्वाह के जितना मिलेगा
जिसमें उसे सब कुछ करना है
बहन को कपड़े पहुंचाने हैं
बेटी के विवाह का तामझाम गाड़ना है
आसमान छूते भावों पर
गुड़ चीनी मसाले खरीदना ही ख रीदना है
और केरोसीन चिमनी के लिए
या आत्मदाह के लिए

अरे क्या मगजमारी है यार
इसको पढ़कर ऐसा नहीं लगता क्या कि
कुण्ठित हो गया है गंगाराम

खैर पर आज मर कहां गया
मुझे तो चौकी जाणा था
थानदार साब को टैम दे रखा था मैने तो
कि कल हमारे स्कूल में प्र-थाना समै में आएं
और हमारे बच्चों को कुछ दिशा-ज्ञान दे जाएं
बाकी अंदर की बात तो ये है कि ऐसी बातों से
लिंक बणता है
टैम-बेटैम काम आते हैं ऐसे लोग

पिछले दिनों ही मेरा एक भतीजा टाइप लड़का
रैकी और रैफ में फंस गया था
ले देकर इन्हीं की मार्फत मामला रफा-दफा हुआ था
क्या ? (क्या के साथ ही…)

9

आइए आइए गंगाराम जी आ गए
एक बात बता यार गंगाराम
बेटी के बाप मैं कब का यहां खट रहा हूं
कब का तेरा बेट देखराऊँ
तू चला-चला अब आयाअै
मैं तेरे बाप का नौकर हूं क्या यार जो
तेरे से तीन-तीन घण्टे पैलै आकर
सारे स्कूल को सम्हाड़ूंगा
या तो ऐसा है कि मुझे नौकर समज रखा है तूने
या फिर ऐसा है कि तेरी आदी तन्खा दे दिया कर
बण जाऊँ तेरा नौकर

नहीं मुझे कोर्इ दिक्कत नहीं होगी तेरी जाति से
क्योंकि जाति तो पांतिअै
तेरी तेरी पांतिअै
मेरी मेरे पातिअै
बोल तैयारअै तू हर महीने देणे ?
क्या ? (क्या के साथ ही…)

देख मेरी तरफ ध्यान से
और सुण
सियाराम की सी कर दूंगा
सस्पेण्ड करा दूंगा
कुछ नहीं लगता आजकल मास्टर को सस्पैण्ड कराणे में
गांव के एक आदमी की तिरछी नजर चार्इए बस

या तो अपणे रंग-ढंग ठीक कर ले
मैं अपणी पर आ जाता हूं न
तो किसी गंगाराम की तो क्या
रामजी कीर्इ नहीं सुणता

अब जा साइकिल का स्टैण्ड लगा
और डाक बणा आफिस में बैठकर
बच्चों को मैं देखता हूं

10

सुणा है गंगाराम को सस्पैण्ड कर दिया ?
कर दिया और क्या
लगा दिया ठि काणे
बीओ साब पे कबिता लिखता था
बो क्या समझता था
यहां सब बेकूप बैठै हैं
अभी तो सस्पैण्ड हुआ है
कल टर्मीलेट भी होगा
और इस बार वाला बीओ तो
महान वो है

सीदे-सीदे पचास हजार की ठुक गर्इ है
इससे कम में सुल्टारा नहीं होणे वाड़ा
इसका तो कामी ये है
रोज एक मुर्गी पकड़ना
और हलाल करना
गांवों में लोग बैठा रखे हैं
कौण मास्टर कब क्या कर्राअै

धणौली में डोकरी मर गर्इ थी
चरण मास्टर बच्चों की छुटटी कर दाग में चला गया
पीछे से पौंच गया ये कव्वा समसान की खीर खाने
मैंने कहा नै महान वो है
कर दिया एपीओ

और एक ये बेकूप गंगारामअै
छोरी सर पे आरीअै
स्यादी करणीअै एक दो साल में
एक बार तो हार्ट अटैक आर्इ चुका है
दूसरे में लमलेट हो लेगा
बैठे ठाले पेट पे लात मारी साड़े ने
खुद तो मरा जो मरा
परिबार को क्यों मारा
करेगा सो भरेगा इसमें क्याअै

पैलै तो मेरे पै और बीओ साब पै लिख लेता था
अब लिख बेटा किसपै लिखेगा
तेरा बाप वहीं बैठता है रोज सामने
बिलाक सिक्सा ओफिस में

कोर्इ पुर्जा-वुर्जा लिखा मिल गया न कहीं
वहीं ठोक देंगा
बड़ा खडूंस आदमी है
मेरा तो उठणा-बैठणाअै उसके साथ

मैं तो अच्छी तरै जाणता हूं
उसके कारनामे

उसके बारे में मेरे से जादा
खांसे जाणेगा गंगाराम ?

11

क्या ?
गंगाराम ने आत्महत्या कर ली ?
सक तो मुझे जभी हो गया था
जब उसने ये कबिता लिखी थी

i

मेरी र्इमानदारी, सज्जनता
सच बोलने के साहस की
जरूरत तो खैर थी ही नहीं
लेकिन मुझमें इनके होने भर से
उन्हें परेशानी होने लगी
उन्होंने मुझे काम छोड़कर जाने के लिए
असहाय छोड़ दिया

ऐसा लग रहा है मैं गायब हो रहा हूं अपने ही शरीर में से
कोर्इ और इसमें अपनी जगह बना रहा है
मेरे शरीर में हवा भर रही है

और सुस्ती और नींद और उबासी और उबकार्इ
मेरा चमड़ा मुटिया रहा है
मैं बेडोल हो रहा हूं
मेरा दिमाग निरर्थकताओं को
सहन कर पाने की क्षमता खोकर
और कुछ भी सार्थक न कर पाकर
एक अजीब से भोज्य पदार्थ में बदल रहा है
आज ये सारे परिवर्तन मुझे मुझमें होते दिख रहे हैं
कल को हो सकता है दिखना बंद हो जाएं
तब मेरे पिता,भार्इबंधु, मकान मालिक आगे आएं
और मेरा मानसिक इलाज कराने
किसी सयाने-भोपे के पास ले जाएं

ii

ये क्या चीज है जो मेरे सपनों में आती है
और मेरी जान लेना चाहती है
अदृश्य जानवर की तरह
मेरी छाती पर बैठ जाती है

और मुझे इस तरह से दबाती है
जैसे हत्यारे लोग
अंधेरे में स्त्रियों का गला दबा देते हैं तकिए से

iii

बच्चों से खाली हो चुके हैं स्कूल के गलियारे
राहगीरों से खाली हो चुके हैं तमाम रास्ते
किसानों से खाली हो चुके हैं खेत
भेड़ बकरियों से खाली हो चुके हैं पहाड़
गाय भैंसों से खाली हो चुके हैं चरागाह
सूरज से खाली हो चुकी है आधी धरती

iv

जीवन की अनिशिचत यात्रा में
तुम हो राह में मिले पेड़
पोखर हरे मैदान
और सुगम पगडण्डी की तरह
तुम हो वह सब जो पीछे छूट गया है

वक्त जरूरत तुमसे मिलना
आगे पता नहीं
होगा भी कि नहीं
और यात्रा भी अब यह
कितनी बाकी रही
कुछ निशिचत नहीं

बेहतर हो कि यह
समय रहते पूरी हो जाए
राह के दोनों ओर जगह-जगह
दिखार्इ पड़ते हैं ऐसे राहगीर भी
जिनके तन पर तार नहीं
पात्र में अन्न नहीं जल नहीं
खड़े रहने में अक्षम इन राहगीरों को देखता हूं

अभी चलना है कर्इ-कर्इ बरस
राह के पेड़
पोखर हरे मैदान
पगडण्डी
सब इनके लिए
हो चुके हैं अर्थहीन
गल चुकी है त्वचा
मगर शेष है यात्रा

12

क्या ?
गंगाराम ने आत्महत्या नहीं की ?
क्यों ?

उल्टे कबिता लिखकर चिपकायी
बिभाग के सूचना पटट पर
और कबिता की पच्चीस
फोटो कोपी कराके बिभाग के बरामदे में बिखरा दी
ये देखो

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16 comments
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  1. कविता में अनेकानेक जगह ‘र्’ का प्रयोग है जो मेरे ख़याल से प्रिंटिंग की गलती है, सुधार लें.

  2. Umda

  3. Prabhat ji bisfotak rup se samvedanshil hai ye kavita.

  4. मुझे आश्चर्य है कि प्रभात हमारे समय में हैं और कविता भी लिख रहे हैं.

  5. वस्तु स्थितियों का समग्र साक्षात्कार कराने वाली सशक्त कविता-श्रृंखला रचने के लिए कवि को हार्दिक बधाई .

  6. dhaansu kavita hai prabhat

  7. facebook par ap kis name se hai prabhat ji

  8. kavita shikhchak ke sarokaron ko bhee abhivyakt karti hai yah achchee bat hai

  9. यह भाषा मुझे पसन्द आई. कमाल की ज़िन्दा भाषा है. और इस का पाठ कवि के अपने टोन मे , क्या मज़ेदार होगा . आभार लेखक का और प्रस्तोता का .

  10. jinda dhardar kavita… ! yah painapan,yah saralpan,yah sahajata…bhav,bhasha…sab jinda…essi lekhni ko dhardar lekhnion kee umra lage… prabhat yah ujala baneye rakhana…iss ujale kee sakhat jaroorat hai%

  11. Prabhat Ji Hamare Samay K Bahut Achhe Kavi Hain. Is Lambi Kavita Mein Sikchan Sanstano Ki (Dur)-Dasha Saf Dekhi Ja Skti Hai. Prabhat Ki Bhasha Aur Kahne Ka Dhang Nirala Hai. Badhai.

  12. बहुत ही अच्छी कविता है. मराठी के रमेश इंगले उत्राद्कर द्वारा लिखी गयी कादंबरी ‘निशानी… डावा अंगठा’ की याद आयी.अर्थात कविता की अपनी एक अलग पहचान है.
    शिक्षक और व्यवस्था के बारे में बड़े गहरे कमेन्ट दोनों का समान सूत्र है. कविता में किया गया बोली भाषा का प्रयोग बहुत प्रभावित करता है. धन्यवाद.
    Mihir, Thanks for Recco.

  13. इस लंबी कविता को पढ़ कर कई शिक्षकों के चेहरे आँखों के सामने घूम गए जो इन चरित्रों पर फिट बैठते हैं …. एक बेहतरीन कविता के लिए प्रभात जी का शुक्रिया .

  14. bahut hi dhardar kavita. aaj siksha ka swarup kuch esi tarah ho gya hai. sarkari sansthano ka jo hal hai uska pura byora yaha prabhat ne rakh diya hai. sadhu…. sadhu….prabhat.

  15. प्रभात जी,
    सर्वांगीण यथार्थपरक रचना के लिए साधुवाद! बात करना चाहता हूँ , फोनं. दें.

  16. Prabhat ji – aap ki sari uplabdh kavitayen padhta hoon – hamesha hi achchhi lagti hain – par iska to jawab nahin. Raag darbari ki yaad dila gayi. Dhanyawad.

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