आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

नींद में अव्यक्त हैं सपने: लीना मल्होत्रा राव

ओ रेतीले देश के अजनबी

ओ रेतीले देश के अजनबी
मै देखती हूँ उस रेगिस्तान को अपने सपनो में
जिसकी रेत बिखरी रहती है मेरे बिस्तर पर
जिस्म को रगडती है बेतहाशा
घाव रिसते हैं पर दिखते नहीं…
भीगती हूँ
जब भी बारिश में
मेरे पाँव उस धूप में निकल जाते हैं जो रेगिस्तान पर लहू लुहान पड़ी है
उसकी आंच मेरे नंगे पांवो से घुस जाती है
मेरी आत्मा को तपाने के लिए
एक नाम में पक कर
महकने लगती हूँ मैं
मेरी उदासियाँ झड़ने लगती हैं
और बादल थक कर हार मान जाते हैं
इस तरह तुम्हारा रेगिस्तान मेरे शहर में चला आता है
तुम नहीं आते.

सप्तपदी

तुम्हारे पास सिगरेट थी
मेरे पास सूरज
सप्तपदी में दोनों ही शामिल न थे!

फिर जब मैंने
सूरज को धो पोंछकर, चमकाकर फलक पर रखा
तो धरती क्यों गाढे धुंए से भर गई

क्या तुम्हारी सिगरेट मेरे सूरज से जलती थी?

अव्यक्त

अनेक खिलौने अव्यक्त हैं इस मिटटी में
कई दीवारे अव्यक्त हैं जो बनायेंगी घर
उन आदमियों के लिए जो अभी पैदा नही हुए
घड़े अव्यक्त हैं जो लेंगे आकार
भरेंगे जल उन स्रोतों से
जिनके पर्वत अभी पाताल में
भूकंप की हरी झंडी की प्रतीक्षा में
अलसाये हुए पड़े हैं
करोड़ों साल पहले जीवाश्म से बना कोयला
सो रहा है
अव्यक्त है धोबी की इस्त्री में
बीज में अव्यक्त हैं पेड़
भावी नींद में अव्यक्त हैं सपने
बारिश अव्यक्त
ताले में बंद पड़ी है मेघ में,
मेघ घटा में,
घटा मौसम में
मौसम धरती की झुकी हुई धुरी में अव्यक्त है अभी

अभिव्यक्त है
जो समूचा सच नही है वो भी
टिमटिमाता हुआ तारा है जो आकाश में
वह हज़ार साल पहले मर चुका है
उसकी रौशनी की हज़ार प्रकाशवर्ष की यात्रा है ये
जिसकी चमक आ पहुची है हम तक अभी अभी

अव्यक्त में
अभिव्यक्ति
है एक पूरी सृष्टि

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8 comments
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  1. ‎’सप्तपदी’ अपने लघु आकार के बावजूद, और ‘नींद में अव्यक्त हैं सपने’ अपने विस्तृत फलक के कारण याद की जाती रहेंगी. भाषा की ताज़गी और अनूठे रूपकों का सृजन-संयोजन तुम्हारी ‘विशिष्टता’ बनते जा रहे हैं. बधाई.

  2. लीनाजी के इमानदार और संवेदनशील भाव, ओ रेतीले देश के अजनबी का सम्मोहित करने वाला अंदाज़, सप्तपदी…. दाम्पत्य की अनकही विवशता, और अव्यक्त में
    अभिव्यक्ति …है एक पूरी सृष्टि.. अनोखे बिम्ब… लीनाजी की कवितायेँ पढने में खुद को कविता से जुड़ता हुआ पाते हैं. कविताओं में भावों का तारतम्य प्रभावित करता है..

  3. अभिव्यक्त है
    जो समूचा सच नही है वो भी
    टिमटिमाता हुआ तारा है जो आकाश में
    वह हज़ार साल पहले मर चुका है
    उसकी रौशनी की हज़ार प्रकाशवर्ष की यात्रा है ये
    जिसकी चमक आ पहुची है हम तक अभी अभी

    अव्यक्त में
    अभिव्यक्ति
    है एक पूरी सृष्टि…..बहुत अच्छी कविताएँ ..God Bless You

  4. लीना की कविताऍं अच्‍छी हैं। संवेदनशील और अपनी तार्किक संगति में बुनी हुई। बधाई।

  5. ”……अव्यक्त में
    अभिव्यक्ति
    है एक पूरी सृष्टि…..”
    ——————-
    सच कहा है लीना जी ने. सृष्टि अव्यक्त ही है. हम सारा जीवन आपने को व्यक्त करते रहते हैं लेकिन अव्यक्त ही रह जाते हैं! बहुत सुन्दर बिम्ब और शब्द संयोजन किया है इस कविता में — मिट्टी में खिलौने अव्यक्त हैं और दीवारों में घर ! बीज में पेड़ और धोबी की इस्त्री में कोयला !
    लीना की कविताओं में एक छटपटाहट है — शायद अपने को व्यक्त करने की. ऐसा तभी होता है जब अपनी अनुभूतियाँ घनीभूत हो जाएँ. वे प्रायः ही मानव इतिहास के उस गह्वर तक चली जाती हैं, जहां अपनी आदिम अवस्था को हम छोड़ आये हैं. उनकी कई कविताएँ उस अवक्त को व्यक्त करना चाहती हैं जो इस सृष्टि की शुरुआत से नर और नारी का द्वन्द रहा है. प्रतिलिपि की इन कविताओं में भी ऐसा ही है —–”..क्या तुम्हारी सिगरेट मेरे सूरज से जलती थी? ” या फिर — ” ..इस तरह तुम्हारा रेगिस्तान मेरे शहर में चला आता है
    तुम नहीं आते”

    संभवतः यह द्वन्द ही लीना की कविताओं का बीज रूप है. उनका रोज का यह द्वन्द ही उनसे इतनी गंभीर कविताएँ लिखवाता है.
    द्वन्द झेलने का कष्ट तो वे ख़ुद ही महसूसती होंगी लेकिन उससे निःसृत का सुख हम जैसे पाठको का है. उन्हें साधुवाद !

  6. ओ रेतीले देश के अजनबी…

  7. लीना जी आप की तीनो कविताये मैंने पढ़ीं ,मै पहले ही कह चुका हूँ की भाषा पर आप की पकड़ जबरदस्त है ,एक एक शब्द तौल कर रखती है आप /यह एक विशिष्ट कला है जो अनायास ही आप को दूसरों से भिन्न करती है ,आज की कविता की भाषा को आप ने साध लिया है बधाई/मेरा मानना है की स्मृतिवान मनुष्य इतिहास बोध संपन्न प्राणी है वह विचारो में जीता है ,सिद्धांतो को रचता है ,इन्हीं में उठता रहता है ,लोक उसकी स्मृतियों का श्रोत है,वाही मूल जड़ है ,मनुष्य का अपना रचा हुआ एक लोक होता है
    उसी से आभिजात्य विकसित हुआ है, हो रहा है ,होता रहेगा/अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लोक राग को सुरक्षित कर पाना आज के समय की सब से बड़ी चुनौती है /आप इस चुनौती से मुठभेड़ कर रही हैं बधाई /मै समीक्षक नहीं हूँ पठाक हूँ/

  8. Leena ji mai bahut bada sahitya ka jankaar to nahi hu kintu mera ye manna hai ki jo rachna mujhe padhne me bhaye wo sabse uttam rachna hai aur aapki rachna mujhe bahut bha gai ….. Badhai sweekare

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