उस पार: वरुण ग्रोवर
लंबी लाइन थी. इतने छोटे-से रोल के लिए भी इतने लड़के आ गए थे. कुछ तो सीधे नींद में चलकर आए लग रहे थे. जैरी नींद में नहीं था. उसने अपना पॉकेट मिरर निकाल कर चेक भी किया. एक बार बालों पर भी हाथ फेरा. बालों पर हाथ फेरने से उसे कॉन्फिडेंस आता था. इसलिए यह काम वो हर ३-४ मिनट में कर लिया करता था. अंदर कहीं एक अलार्म लगा हुआ था जो हर ३-४ मिनट पर खुद ही बज जाता. उसका हाथ उठता, बालों को सहलाता, गर्दन ज़रा सी मुड़ती, और दिमाग के अंदर कहीं एक न्यूरोन फायर होता जो उसे विश्वास दिलाता कि ‘बेटा तुम्हीं हो!’
१०:३० बज रहे थे. ऑडिशन ९ बजे से शुरू होना था लेकिन अब तक सिवाय एक चाय पिलाने वाले लड़के और एक पैरिस-फैशन-वीक जैसे कपड़े पहनी असिस्टेंट लड़की के अलावा कोई नहीं आया था. लड़की भी बिना कुछ बोले चुपचाप अंदर चली गयी थी. बीच में सिगरेट का धुँआ दुनिया को बाँटने के लिए उसने दरवाज़ा आधा खोल लिया था. जैरी ने, बाकियों की तरह उस दरवाज़े में से झाँक कर देखा कि शायद उस लड़की से आँख मिल जाए और वो कुछ बता दे कि काम कितनी देर में शुरू होगा या कम से कम याद करने के लिए लाइनें ही दे दे. लेकिन लड़की इन सब लड़कों के कहीं पार देख रही थी.
जैरी ने अपने बैग में से नॉवेल निकाला और पढ़ने की कोशिश की. ‘काईट रनर’ नाम की यह किताब २-३ साल पुरानी थी लेकिन जैरी अभी तक इसे खत्म नहीं कर पाया था. प्रॉब्लम ये थी कि वो हर बार भूल जाता था कि कहाँ तक पढ़ चुका है और इसलिए हर बार शुरू से शुरू करना पड़ता था. लेकिन जैरी को फर्क नहीं पड़ता था. नॉवेल निकालने का असली कारण था कि किसी से बात ना करनी पड़े. वैसे उसने देखा था कि सभी लड़के यही चाहते थे लेकिन फिर भी, कभी कभी, कोई नया स्ट्रगलर आ जाता था जिसे लगता था ‘सबसे फ्रेंडली रहना चाहिए’. ऐसे लड़कों से सभी बचना चाहते थे इसलिए सभी कोई ना कोई जुगाड़ साथ में रखते थे. कोई आँख बंद कर के बुदबुदाता रहता, कोई अखबार/किताब पढता, कोई मोबाईल फोन में घुस जाता और कुछ इतनी बर्फीली नज़र से देखते कि कोई उनसे बात क्या ही करेगा.
११:१५ बजे कास्टिंग डायरेक्टर (सुभाष जी) और उसका मुख्य असिस्टेंट (हुसैन) आया. दोनों सीधे अंदर गए. बीच में एक दो लड़कों ने अपना ‘हैल्लो सर’ रखा लेकिन सुभाष जी तेज़ी से, बिना उन्हें कबूल किये अपने कमरे में घुस गए. पाँच मिनट बाद हुसैन और लड़की दोनों बाहर आए. लड़की ने अंग्रेजी में सीन की रिक्वायरमेंट समझाई और कहा कि ‘वी नीड गाय्ज़ विद पैशन’. यह पहला संकेत था कि पैसा बहुत कम मिलेगा. लेकिन इस वक्त कोई नहीं पूछने वाला था कि कितना मिलेगा. हुसैन ने लाइनों की फोटोकॉपी बाँटी. ४ लाइनें थीं. लेकिन सीन लंबा था और २ लाइनें मज़ेदार भी थीं. (एक में माँ की गाली थी – मतलब पक्का तालीमार लाइन थी.)
“वी स्टार्ट इन फिफ्टीन मिनट्स” बोल के लड़की चली गयी. हुसैन ने बताया कि फिल्म में और भी ४-५ सीन हैं इस करैक्टर के, और अभी रोल बढ़ भी सकता है, इसलिए सब लोग दिल से करें. यह दूसरा संकेत था कि पैसे नहीं मिलने वाले हैं. जैरी ने एक दो लड़कों की तरफ देखा जिन्होंने हुसैन के मुड़ते ही टेढ़ी मुस्कान दी और मन ही मन उसे चूतिया बोला. जैरी ने भी बोला. पिछले ढाई घंटों में यह पहला मौका था जब लड़के एक दूसरे की तरफ देख रहे थे.
सबकी नज़रें मिलीं, सबने एक दूसरे को ताड़ा, और फिर अपनी अपनी लाइनें लेकर अपने अपने कोनों में चले गए. जैरी ने फिर से पॉकेट मिरर निकाला और खुद को देखा. जैरी को पता था कि इस वक्त सभी लड़के यही कर रहे हैं.
पंद्रह मिंट में वहाँ इतनी भीड़ जमा हो गयी थी मानो शाहरुख़ के लेवेल का रोल है. जेर्री अब तक अपनी लाइनें रट चुका था. धीरे धीरे बुदबुदाते उसकी नज़र इधर उधर भटक जाती – दूसरों की तरफ. मॉडेल टाइप, किशोर नामित कपूर वाले, वर्सोवा, चार बांग्ला म्हॅडा, कुछ कुछ लोखंडवाला का माल और एक आध बांद्रा का भी. फिल्मी अंदाज़ में लाइनें अपने मॅन में पढ़ी जा रही थी, उबलते हुए passion के छींटे दूसरों पे कभी कभार गिर जाते.
“आप आ जाइए. आप नही, आप लाल शर्ट”
एक बंदा गया. कमरे के एक कोने में एकलौती जगह खाली थी. बॅकग्राउंड में एक सफेद दीवार, फोरग्राउंड में हसन और सुभाष जी कमेरे के साथ खेल रहे थे.
“बॅटरी फुल नही है! चूतिया एक काम नही होता तेरे से!”
जेर्री को गाली सुनने के बाद अच्छा लगा. कम से कम कोई फिरंगी-अँग्रेज़ तो नही है जो improvisation, feel the character, be in the moment वाले पत्थर फेंकेगा.
“Action”
चार लाइनें बोली गयी, जज़्बे के साथ. सब आक्टर्स देख रहे थे अपने प्रतिद्वंदियों को. पर जेर्री को कुछ ख़ास फरक नही पड़ा. वो इससे पहले ऐसे कई auditions में नंगा फिर चुका था. कुछ कुछ शकलें भी जानी पहचानी लग रही थी. एक साथ सब आक्टर्स हमाम में उतरते चले गये. एक के बाद एक. एक साथ नंगा होने का वही आनंद है जो कॉलेज की टॅप्री पे किसी और की सिग्गेरेट से अपनी सिग्गेरेट जलाने में है. जैसे कुछ शेर किया भी और नही भी.
Single take, Loud, Filmy, इतना subtle की extreme close up ही पकड़ पाए – ताँता बढ़ता गया.
“रेडी सिर”
जेर्री ने जज़्बात के साथ उन चार लाइनें की उल्टी की. ठीक था पर “सेन्सेशनल” नही. शायद उसे तीसरी लाइन थोड़ी और loud बोलनी चाहिए थी. एक intonation उतना पर्फेक्ट नही आया जितना आना चाहिए था. व्यंग्य अच्छा आया था लेकिन. अलग सबसे. शायद शॉर्टलिस्ट हो और फोन आ …
“थॅंक यू. आप आ जाइए”
“सिर नंबर…”
“वहाँ mail id पे pictures भेज देना. हाँ जी आप रेडी हैं ?”
Kiterunner बंद करते करते उसकी नज़र ग़लती से पेज नंबर पे गयी. 128. यह अच्छा नही हुआ. एक और आडिशन है 2 घंटे में. अब जेर्री उस audition में busy दिखने के लिए करेगा?
मितव्ययता कहानी का दुर्लभ और आजकल तो अप्राप्य सा गुण है. शुरू में कहानी एक रेखाचित्र सा दिखाती है ,अंतिम पंक्ति एक झटके से वृत्त पूरा कर इसे सम्पूर्ण बनाती है.
कार्तिक ने जो लिखा है वह सीक्वल है ,बेशक अच्छा सीक्वल. 🙂
मुझे उन सब किताबों को लेकर अपराधबोध हो रहा है जिन्हें मैं पूरा नहीं कर पाया.
…और क्या कहूँ,’बेटा तुम्ही हो !’,यह तो मैं हूँ.
कार्तिक:
बहुत सुन्दर जोड़ा है. जिस चीज़ को मैंने आधे experience और आधी imagination से लिखा था, उसे तुमने पूरे experience से लिख दिया. तुम जल्दी एक पूरी कहानी लिखो. जैसा कि पीयूष मिश्रा कहते हैं – ‘दुनिया में बदतमीज़ी की कमी हो गयी है. सब सीधा दिखना चाहते हैं.’ ऐसे में तुम्हारे जैसे बिंदास लेखक बहुत ज़रूरी हैं.
हिमांशु:
अपराधबोध हम सबकी ज़िंदगी का बराबर हिस्सा है. यही परेशान कर कर के लिखवाता है. पढ़ने और यहाँ comment करने के लिए शुक्रिया. आपका reaction मिल गया…कहानी के भाग खुल गए. 🙂