आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

बकरी का वायलिन: आशुतोष भारद्वाज

और अंत में…
गल्पकार होना चाहते तुम सभी किरदार थे.
किरदार होना चाहते तुम सभी गल्पकार थे.

सूत्रधार भी.

लेकिन उससे पहले, उस अष्टकोणीय ऑक्टोपसनुमा हरे हॉल में, जिसकी लाल चकत्तेदार दीवारों पर पुतली-रहित पीली ऑंखों वाली नीली मछलियों की तस्वीरें लगीं थीं, श्वानमुद्रा में नृत्यरत लंबू अफगानी के पिछवाड़े सटकर खड़ी बेमौसम बकरिया को काला वायलिन बजाते…

किसी भौतिक शास्त्र की प्रैक्टिकल कॉपी के अंतिम से तीसरे पन्ने पर लिखी कूट भाषा में लिखी एक इबारत.

सितबंर दो हजार छह चित्रकूट की एक दोपहर मार्फत दो सितंबर उन्नीस छप्पन के किसी फिरंगी शहर की रात.

चीन में एक अद्भुत वायलिननुमा यंत्र निर्मित हुआ है जिसे किसी गैया या गोरी चमड़ीवाली के शरीर में पहले पीछे और फिर आगे उपयुक्त कोण में प्रविष्ट-अधिष्ठापित कर देने पर जब ग्वाला राग निनादित करता है तो उपजा संगीत किसी श्रोता या उस वायलिन वादक ग्वाले के लिये नहीं खुद उस गैया पर केंद्रित होता है. उस राग की लय में न्यूटन का तीसरा नियम अपवाद होने लगता है तार पर उतरते ग्वाले के महज उंगली-कंप से संचालित होते वायलिन-यंत्र के आवेग में गैया की देह ताप-गतिविज्ञान के सभी नियम तोड़ उन्मादी झूमती है उसकी उत्पादकता, प्रजनन क्षमता कई गुना अधिक उफन जाती है शायद इसलिये गोरी चमड़ीवालियाँ और जर्सी गैयायें भारतीय मवेशियों से कहीं अधिक पुष्ट होती हैं ज्यादा दूध दे पाती हैं भारतीय ग्वाले अभी तक यहाँ की गैयाओं और उनकी जरूरतों को समझ ही नहीं पाये इसलिये यहाँ के मवेशी मुरझाये ग्वाले सिटपिटाये रहते हैं भारत को ऐसे यंत्र और ग्वालों की सख्त ज़रूरत है

यहाँ गैया की जगह कोई आदमी या औरत भी हो सकती है.

…देख डंडी बंगालन ने भूरे ब्लैकबेरी पर कई सारे सफेद ट्वीट्स धड़ाक से किये. ‘‘कंप्यूटर गेम्स में एक अवस्था पर पहुंच उंगलियाँ तुम्हारी की बोर्ड पर चलती हैं, स्क्रीन पर तुम होते हो लेकिन खेल किसी और ही नियम द्वारा संचालित होने लगता है. तुम अंत तक पहुंचते हो लेकिन तुम नहीं पहुंचते. तुम जहाँ पहुंचते हो पाते हो वहाँ तो और ही कोई तुम्हें लेकर आया है जिसकी मुठ्ठी में अब पासे हैं.”

यह लेकिन अंतिम ट्वीट था, इसके बाद उसने ब्लैकबेरी बुझा अपने काले-सफेद-लाल पर्स में डाल दिया था, इससे पहले के ट्वीट कुछ और ही थे और तब तक ऑक्टोपस हॉल के बाहर बालकनी में लटके लोटन लंपटिया सोये नहीं जाग रहे थे.

बालकनी के छज्जे से लटके पिंजरे में बंद लोटन लंपटिया अगर अचानक से बोल न पड़े होते–बस अब, आगे की कथा अब मैं सुनाउँगा तुम्हें पुत्रो – तो तुम सब उन्हें अंदर ऑक्टोपस हॉल के बीचोबीच उल्टी लटकी लोपमुद्रा लांगुरिया की तरह मुर्दा ही समझते. अंधेरे में पिलपिली हंसी हरहरायी, बब्रुवाहन से लटके, जो आया तो महाभारत युद्ध लड़ने था लेकिन जिसका गला काट कृष्ण ने पेड़ पर टाँग दिया था चिरंतन दर्शक बना, लोटन लंपटिया बोले – पारदर्शी शीशे के परे लंबू अफगानी का यह श्वान नृत्य अनहोना नहीं पुत्रो, मैंने इसी बालकनी से कईयों को अंदर हॉल में श्वान मुद्रा में नृत्यरत देखा है.

छिपकली के आकार की थी वह बालकनी, आगे से फूली बीच में फैली अखीर में पूँछनुमा संकरी, जहाँ तुम खड़े थे जिसके छज्जे से लोटन लंपटिया लटके थे. उस छिपकली बालकनी का गिलगिलापन तुम्हारे जिस्मों पर बोल रहा था, लेकिन बजाय उस केंचुल को उतार फेंकने के तुम हलवाई की भट्टी के नीचे झूठे दौने चाटने को मचलते, पिछले पंजों पर पिपियाते पालतू पिल्ले की कायर और कातर उत्तेजना में मुँह फाड़े खड़े लार गिराते थे. उत्तेजना जो आगामी लम्हों में तुम्हारे हश्र के भयावह ख्याल के बावजूद तुम्हारी धमनियों को फोड़ उफन रही थी,

आत्मघाती मानव बम से तुम्हें अपने पीछे घसीटे ले जा रही थी.

आत्मघाती बम. यह तुम्हारे महानायक नंबर तीन ने कहा था जो अफगानी तालिबानों के बीच महीने अठारह बिता आया था, लेकिन यह न उसे और न ही तुम्हें मालूम था उसी को आज की रात मरना था.

– कुछ भी हो सकता है आज की रात हमारे साथ. लेकिन फिर भी चखना चाहूंगा मैं इस बारूद को. नंबर तीन की ऑंखों में चिंगारियों की सुर्खी, आवाज में आश्वस्ति की हुंकार बोलती थी. कई अर्थों में वही था जो तुम्हें रोके था, घबड़ाते-हड़बड़ाते नंबर दो और चार को संभालता, संभावित उन्माद से ललचाता, किसी जेहादी बमबार को मौत के बाद मिलनी जन्नत के सपने दिखलाता. कुल पाँच थे तुम. और मिनट अब महज सोलह. रात एक दस पर तुम्हें लेडी गिद्ध ने बाहर छिपकली बालकनी में भेज दिया था बीस मिनट का समय दे तुम धार चढ़ा लो हथियारों पर अपने. उसके बाद बुलावा आना था तुम्हारा. सबका. किसी भी क्रम से. ऑक्टोपस हॉल में. और बहुत लंबी रात बची थी इकत्तीस दिसंबर दो हजार नौ की.

अपने पैंटहाउस में यह अष्टकोणीय हॉल लेडी गिद्ध ने एक अमरीकी आंतरिक सज्जाकार से डिजाइन करवाया था जिसने लॉस वेगस का सबसे महाकाय क्लब कभी निर्मित किया था. किसी विशाल ऑक्टोपस से पसरे इस हॉल से कांच की आठ भुजायें निकलती थीं आगे जा संकरी होती जातीं थीं. सात भुजायें हरे कांच की थीं जिनसे बहुत नीचे बित्ते भर सड़क और बित्ते भर उपर बहुत आकाश दीखता था. पारदर्शी कांच की आठवीं भुजा दरअसल बालकनी थी जो छिपकलीनुमा थी.

हवा में टंगी आठों भुजाओं की सभी सतह – छत, फर्श, दीवारें– भूकंप और गोलीप्रूफ फाइबर कांच की थीं, वही कांच जिससे ग्रांड कैनयन पर घोड़े के नाल जैसी स्काईवॉक निर्मित हुई थी. किसी भी भुजा में प्रवेश करते ही तुम पृथ्वी से एकदम जुदा आकाश में खिंची कांच की सुरंग में आ जाते थे.

कांच की भुजाओं में लुपलुपाती नीली-लाल-पीली बत्तियों वाला यह ऑक्टोपस, जिसकी नारंगी चकत्तेदार दीवार पर टंगी सुनहरी तख्ती पर लाल भुरभुर में सने रुपहले अक्षरों में Ecstasy In El Dorado चौंधियाता था, चंद्रमा से देखने पर किसी सुदूर ग्रह से उतर आयी उड़नतश्तरी सा भी कौंधता था जो पंख फड़फड़ाता उस ऊँची इमारत पर आ ठहर गया था या उड़ने की मुद्रा में तैनात था.

तुममें से जो बचे रहे थे अगली सुबह उन्हें महज एक चीज़ याद रह गयी थी – नाड़े वाली बेलगाम, बेनियाम बकरी. ‘नंबर तीन, जो उछल रहा था वही लेडी गिद्ध की अगली कहानी का नायक होगा, की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखा होगा वह वायलिन ज्यादा बज जाने से मर गया,’ ऐसा तुम बचे चार कह रहे थे और बिलबिलाते बच जाने पर प्रण, जो तुम्हारी पिछली कसमों-रसमों की तरह जल्दी ही झूठा हो जाने वाला था, कर रहे थे अब किसी कहानी का किरदार हो जाने की ख्वाहिश नहीं करोगे.

सभी गल्पकार तुम कितनी जल्दी भूल रहे थे खुद तुम भी हत्यारे थे बिना अपने किरदार का कत्ल किये गल्प का अपने तिलिस्म फोड़ ही नहीं सकते थे.

महज मामूली मौत थी मसलन एक पाँच महीने के शिशु की पतंग के मंजे से गरदन चिर जाने से. प्रेस ट्र्स्ट ऑफ इंडिया द्वारा खबरों की बरसात में टपकी फकत एक बूंद. किसी भी कोण से अखबार में नहीं लेने लायक. यह कौंधते ही लेकिन कि हाल ही गुजरात सरकार ने चीन से आयातित मंजे पर रोक लगाई है और यह मौत भुज के प्रस्तावित नाभिकीय संयंत्र के एकदम नजदीक हुई है, जहाँ कुछ महीने पहले नकली रेडियोएक्टिव विकिरणों की खबर आयी थी, उन दिनों सूरत में तैनात नंबर तीन तुरंत ही घटनास्थल पर गया और अगले दिन संसद में पमाड़ा हो गया जब हमारे अखबार के पहले पन्ने पर आया ––

निर्माणाधीन नाभिकीय संयंत्र बदनाम करने की चीनी साजिश. चीनी मंजे में लगा एक विशिष्ट रसायन नकली रेडियोएक्टिव विकिरणें छोड़ता है ज्योंही मानव लहू में इसके रेशे डूबते हैं. कथित तौर पर यह चीनी चाल है कि जिन जगहों पर भारत-अमरीकी परमाणु करार के तहत नाभिकीय संयंत्र लग रहे हैं वहाँ इस तरह के मंजे निर्यात किये जायें कि पतंग उड़ाते लोगों का हाथ चिरे, मंजे के खून में डूबते ही रेडियोएक्टिव विकिरणें वहाँ फैलें और सिद्ध कर दिया जाये भारत के नाभिकीय संयंत्र असुरक्षित, मनुष्य के लिये खतरनाक हैं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट कि शिशु की गरदन पर जहरीले रसायन के अंश थे, उसकी मां का बयान कि मंजे से अजीब सी किरणें निकलती थीं से लेकर सभी जानकारियाँ कैसे नंबर तीन ने महज कुछ ही घंटों में जुटा डालीं थीं वही सिर्फ जानता था.

चौवालीस इंची छाती वाले सवा छह फुटे नंबर तीन को जल्दी ही अफगानिस्तान में रिपोर्टिंग करने भेज दिया गया था जहाँ से वह दुर्दांत तालिबानी इलाकों में जा दुर्लभ तस्वीरें व खबरें ले आया था.

लेकिन रात सवा दो बजे लेडी गिद्ध, नाड़े वाली बदमस्त बकरिया और तुम सब वायलिन के राग पर स्पंदित होती सहसा थम गयी आक्टोपसी हॉल के बीचोंबीच नंबर तीन की अष्टावक्रीय मुद्रा में पड़ी निर्आडंबर दिगंबर देह के सामने थे. नंबर तीन के पृष्ठ भाग पर लिथड़ा ताजा खून अभी तक सूख नहीं पाया था. तुम इस मृत्यु को अप्रत्याशित कह रहे थे लेकिन बालकनी की छत से लटके लोटन लंपटिया बोले थे – पुत्रो तुम्हारी अजन्मी वासना की गर्भस्थ शिशु इस कथा में कुछ भी अजनबी नहीं, गल्प की परिणति मृत्यु में ही होती है, किसी एपिक आख्यान की भांति तुम इसमें कहीं से भी, आदि या अंत से, जन्म या मृत्यु से प्रवेश कर सकते हो, बाहर आ सकते हो.

और आयी थी अपने बैडरूम से बाहर एक बजकर चार मिनट पर लेडी गिद्ध अचानक से काई हरे काँच का डिजाइनर गिलास ले, इस पार्टी की रात उसका नवाँ या आठवाँ गिलास, हॉल के बीच में आ बची रात के कार्यक्रम की घोषणा कर कि तुम पाँचों की आज रात नीलामी होगी जिसमें वे पाँचों बोली लगायेंगी, बीस मिनट का समय दे तुम्हें बड़े से स्टिकर थमायी थी, जिन पर तुम्हारे नंबर खुदे थे, जिनसे तुम पाँचों को, अब पुकारा जाना था, जिन्हें तुमने अपनी पीठ पर चुपका लिया था.

– मुझे बहुत डर लग रहा है. अगर कुछ ज्यादा हुआ…..बालकनी का कांच फोड़ नीचे कूद जाऊँगा. नंबर दो, तुम सबसे छोटा, एक बड़े कॉलेज से ताजा निकला.

– पप्पू की लगी फटने, प्रसाद लगा बंटने. नंबर एक, उम्र में लेडी गिद्ध से बड़ा लेकिन ओहदे में कहीं कम, ने दांये हाथ की बीच की उंगली नंबर दो को दिखाई फिर मुंह में डाली, फिर निकाली.

तुम सब हँसे.

अब थे फकत मिनट बारह. बुलावा आने में. और पहली बार किसी ने कहा. पता नहीं किसने. वोदका में लिथड़ी उस रात में सभी आवाजें एक सी लगीं – कुछ तो तैयारी करनी चाहिये हमें.

तैयारी? कसाई बाजार में बिकने से पहले मवेशी आखिर क्या तैयारी करता था? तुम्हें इस खेल का कोई नियम नहीं मालूम था. यह भी नहीं कि कोई नियम है भी या फकत लेडी गिद्ध का फरमान बजेगा. भले ही तुम पाँचों में सबसे ऊँची बोली उठाने वाले को ही लेडी गिद्ध की कहानी का नायक होना था, लेकिन चूंकि उसके अलावा वहाँ चार अन्य भी थीं यानी तुम पाँचों के हिस्से तर माल ही आने वाला था जिसके लंगड़ाते लालच के पीछे तुम लुढ़कते जा रहे थे.

उन चार में से एक बाईस साल की गोल्फ और चिड़िया बल्ला रिपोर्टर बंगालन, पैंतीस में पसरी राजनैतिक संपादक चाणक्या, तेतीस में तिरकती अपराध विशेषज्ञ और नाड़े वाली बुटकन बकरिया. चाणक्या पुरानी मॉडल, अब सैनिक फार्म्स पार्टियों की चहेती.

नाड़े वाली बकरी को उन्मादा हो बीचोबीच हॉल में वायलिन बजाते देख सोफे पर बैठी डंडी बंगालन कई सारे ट्वीट्स करने वाली थी.

‘‘कंप्यूटर गेम्स में एक अवस्था पर पहुंच स्क्रीन पर तुम होते हो लेकिन खेल कोई और संचालित करने लगता है. अंत तक पहुंचते हो तुम लेकिन तुम नहीं पहुंचते हो वहाँ तो और ही कोई तुम्हें लेकर आया है जिसकी मुठ्ठी में अब पासे हैं.‘‘

इसके बाद उसने ब्लैकबेरी बुझा अपने काले-सफेद-लाल पर्स में डाल दिया था जिसके उपर लगे मानव अंगों के चमकीले स्टीकर्स को चिमकती चाणक्या किट्शी किशमिश कहा करती थी.

लालच. बड़ी ही कुत्ती चीज. अपने अंजाम की फिक्र किये बगैर आकाश में टंगी कांच की सुरंग में खड़े तुम मनमाफ़िक जल्लाद हासिल कर लेने की जुगत लगा रहे थे. भले ही स्वीकार नहीं रहे थे लेकिन इस लालच में थे मौका मिलते ही आखेट से आखेटक, किरदार से कथाकार हो जाओ.

– सबसे गरदा माल तो नंबर पाँच ही ले जायेगा….क्यों बे तूने तो अमरीका में ये सब देख रखा है न. तू तो जो भी ये करवायेंगी कर ले जायेगा. हम सबमें दूसरे नंबर के सबसे बूढ़े–छत्तीस साल– नंबर चार ने अपनी चमड़े की जैकिट की चैन उपर तक खींच ली.

– गुरु…फिरंग को झेल सकते हो, देसी का जहर हलक से नहीं उतरने पायेगा उससे पहले ढेर हो जाओगे. नंबर एक कुर्सी पर पैर टिकाये खड़ा था.

बहुत देर से कोने में अकेला बैठा नंबर पाँच अचानक से आ कूदा, किस किसने एक से ज्यादा ब्रेड पर मक्खन लगाया हुआ है?

– अपने पंजाब में तो ब्रेड चलती ही नहीं, रोटियाँ कुटकते हैं और हर रोटी पर घी चुपड़ खाते हैं. पलक मींढ़ती नंबर तीन की ऑंखें अंधेरी बालकनी के दूसरी ओर मुड़ीं. पारदर्शी कांच के परे चमकता लाल हॉल और हरे काँच की उसकी भुजायें. हरी चकत्तेदार दीवारें. बैंगनी रोशनी में बजता काला संगीत बाहर पहुंचने से पहले लाल मछलियों की पुतली-रहित पीली आँखों में डूब जाता था. डंडी बंगालन की नीली मोमबत्ती जींस लंबे बूटों में ठुंसी. फर्श पर बूट टकटकाते थे लेकिन बाहर तक आवाज नहीं आने पाती थी.

मेज पर रखे सोडे के गिलासों के उपर छमछमाती अपारदर्शी बूंदों का आबशार हाँ खिड़की के परे भी चमक रहा था.

सोडे की बूंदों के हवा में तने-बने अपारदर्षी दर्पण से वे तुम्हें देखती, मुस्कुराती, आपस में मंत्रणा करने लगती.

– पाँच तंदूरी रोटियाँ हैं, इन्हें अमूल मक्खन नहीं देसी घी में तर कर लिया जायेगा. नंबर तीन ने अनमना सा कान खुजाया.

सब पूरा मुँह फाड़ हँसे, नंबर तीन की रोटियों पर नहीं, बल्कि नंबर पाँच, जो ऐसे मसलों में खुद को थोड़ा ऊँचा करके दिखाता था कि वह अमरीका के बड़े विश्वविद्यालय से डिग्री लेकर आया था, की किरकिरी हो जाने पर.

– रोटी पर केवल एक साइड से घी लग पाता है, ब्रैड पर दोनो ओर मक्खन लगाओ. नंबर पाँच ने अपना गिलास स्टूल पर रख, कलाई

घुमा घड़ी देखी– एक बाइस. आठ मिनट और.

निगाह तो घुमा देख लो पुत्रो – शुकदेवीय मुद्रा में हरी मिर्च कुतरते लोटन लंपटिया ने अपनी हरी देह हरे पिंजरे की पीठ से रगड़ी, जैसे

बूढ़े जेवड़ी की खाट या हाथ घुमाने वाले पंखे से अपनी पीठ खुजाते हैं. पल्टी मारी थी निगाह ने तुम्हारी, शेरॉन स्टोन अजीब सी चीजें हॉल की मेज पर ला सजा रही थी, जो बाहर से देखने पर काफ्का की इन द पीनल कॉलोनी या लॉस वेगस के किसी क्लब में प्रयुक्त हुये उपकरण जैसी लग रही थीं – एक मेज, लंबा सा क्रास, एक कंप्यूटरीकृत मिनियेचर वायलिन, हंटर, चमड़े के काले अंडरवियर जिनमें आगे बड़ा सा छेद था और आदमकद बैटरीचालित बार्बीनुमा गुड़िया जिसकी पीठ पर लगे कंट्रोल पैनल के बटन दबाने पर उसमें अद्भुत हरकत होने लगती थी उसके व जीवित स्त्री का भेद मिटने लगता था.

शेरॉन स्टोन. उसके करीबी, वे बहुत थोड़े लोग जो जानते थे वह कहानियाँ लिखती थी, लेडी गिद्ध को शेरॉन स्टोन भी कहते थे. 1993 के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में दिल्ली के प्लाजा में बेसिक इंस्टिंक्ट पर जब भीड़ आमादा हुई पत्रकारिता की शुरुआत करती पहले प्रेम के विछोह से उबरती एक बाइस साल की लड़की ने पूरे आठ शो उस समारोह के दौरान और उसके बाद जब प्लाजा में वह फिल्म लगी रही, चौदह यानी कुल बाइस मरतबा देखी और कुछ ही महीनों बाद जब पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी कर एक अखबार में साक्षात्कार देने पहुंची उससे पूछा गया किस तरह वह खबर को सामने लायेगी तो उसने कहा वह ऐसी परिस्थितियाँ रच देगी कि खबर को खुद ही पैदा होना पड़े, किसी गल्पकार की भांति अपने शब्द ही अपनी रिपोर्ट के किरदारों से कहलवायेगी अपने किरदारों को उतना ही स्पेस देगी जितना उस खबर के लिये आवश्यक है, फिर उससे पूछा गया कि अखबार की खबर में वह गल्प और गल्पकार कहाँ से घुसेड़ रही है तो बोली जिस घटना को पत्रकार खबर बनाता है, उसी को गल्पकार कहानी.

तब से अप्रकाशित दो औपन्यासिका, चार प्रकाशित कहानी और तीन अखबारों का संपादन उसके सीवी में जड़े थे.

2001 में एक पूर्व दस्यु को उसके अशोक मार्ग, दिल्ली घर के बाहर गोली मार दी गयी थी तो उसने मुख्य पृष्ठ पर पिचासी फोंट साइज की हैडलाइन दी थी….. पास्ट रिटर्न्स टू फूलन–प्वांइट ब्लैंक. 2007 दिसंबर में जब पड़ौसी देश की पूर्व प्रधानमंत्री को आत्मघाती बमबार ने उड़ा दिया था तो पहले पन्ने पर था….मर्डर इन सर्च ऑफ एन ऑथर. अगली सुबह प्रधान संपादक ने इतनी महत्वपूर्ण खबर जो पूरे उपमहाद्वीप को उलट सकती थी की कविताना हैडलाइन देने पर उसे तलब किया तो उसने जवाबी सबूत बतौर पिछली रात भर जाग लिखी अपनी ताजा कहानी के शुरुआती पन्ने दिखाये और कुछ ही हफ्तों बाद वह पूरी कहानी प्रधान संपादक की मेज पर पटक दी कि आज इस कत्ल को कथाकार मिल गया कि इसी कत्ल के लहूलुहान तंतुओं को छील-मरोड़ उसने इस कहानी की कॉस्मैटिक सर्जरी की है.

पड़ौसी देश की वह मरहूमा हाँ एकमात्र सर्वज्ञात सबूत थी जहाँ उसने किसी ज्ञात देह को निचोड़-मरोड़ अपना गल्प रचा था, वह ऐसी मूढ़ नहीं थी जो अपनी मां की मृत्यु के बाद किसी स्त्री के साथ सोते हैं और खुले में स्वीकार भी लेते हैं. शेरॉन स्टोन सी ही वह कोई निशान नहीं छोड़ती थी उसने किसके अंडरवियर से अपना रक्तरंजित खंजर पौंछ साफ किया था.

मृत्यु इसलिये तब नहीं ही डराती सितमगर जब लेडी गिद्ध हो. मालूमात होने के बावजूद उसके अनेक अज्ञात किरदार किसी कब्र में कसमसा रहे होंगे, दफ्तर में हर कोई उससे आश्नाई चाहता था, काम खत्म हो जाने, अखबार प्रैस में चले जाने के बाद देर रात बेसमेंट जिम के ट्रेडमिल पर दौड़ती उसका पसीने में भीगा नीला ट्रेक सूट देखने देर तक रुका रहता था. आज रात तुम पाँच घोषित डर के बावजूद, इसी अघोषित रोमांच में सिहरे थे तुममें से सबसे अधिक नीलामी उठाने वाला ही उसका ताजा नायक, डोरियन ग्रे होगा जिसके साथ वह लांग ड्राइव पर जायेगी, जिसकी कथा वह अपने कमरे की लाल चकत्तेदार दीवारों पर लिखेगी, भले ही डोरियन ग्रे की भांति वह अखीर में मुर्दा पाया जायेगा. किसी मायाविनी वधिक की कथा का नायक हो जाना और नायक होने में उस वधिक को ही चाहने लगना आखिर मानव जाति की बुनियादी भूख थी जो किसी चित्रकार के कैनवास का किरदार होने सी ही थी जिसके संगीन सम्मोहन के समक्ष मृत्यु-भय भी मरियल हो आता था. तुम पाँचों से पहले भी अनेक इसी व्यामोह के फंदी हुये थे, उपरांत भी होने वाले थे.

लेकिन नादान पुत्रो तुम्हें नहीं ही मालूम अपने कथाकार की तलाश में निकले तुम किरदारों और अपने किरदारों की तलाश में निकले तुम कथाकारों के खेल से एकदम परे यहाँ चार और भीं हैं, जिनका ख्याल तुम्हें न लेडी गिद्ध को.

तुम चार. जो अपनी प्रतिकथा गढ़ रही हो. तुम्हारे और बालकनी में खड़े उन पाँचों के मध्य पारदर्शी कांच की खिड़की. बिग बॉस अपने स्टोर से चीजें ला हॉल में सजा रही है तुम उन पाँचों को देखती, मुस्कुराती– किसे पहले बुलाया जाये, किससे क्या करवाया जाये. तुम चार में से दो उन पाँच में से दो की जूनियर और बाकी दो बाकी तीन में से दो की, दफ्तर में पूरे दौरान उनसे त्रस्त रहती लेकिन अब बिग बॉस तुम्हारे साथ, पासे तुम्हारी मुठ्ठियों में और वे पाँचों बिसात पर.

‘तुझे कौन चाहिये?‘

‘वो साला लंबू अफगानी..बहुत उछलता है.‘

‘कितना देगी उसका?‘

‘क्या करवायेगी उससे?‘

‘गोटियाँ निकाल कर उसकी कंचे खेलॅूगी.‘

सारा सामान मेज पर सजा देने के बाद लेडी गिद्ध स्नेक लैदर के अपने महाकाय सिंहासन पर टाँग फैलाये बैठ गयी है. लाल हंटर सिंहासन के बांये हत्थे पर टंगा, डॉम पैरियों की काली बोतल दांये हत्थे में बने खांचे से बाहर उफन पड़ने को मचली. यह शेंपेन, लेडी गिद्ध की घोषणानुसार, सबसे उत्कृष्ट कलाबाज पर न्यौछावर होनी. लेडी गिद्ध ने उड़नतश्तरी की सभी भुजाओं की डिस्को बत्तियाँ – नीली-लाल-पीली – जलाईं. पंख मचलाता ऑक्टोपस उड़ने को आतुर अब. उल्टी लटकी लोपमुद्रा लाँगुरिया गुरुत्व बल से आहिस्ते हिली, कंचा आँखें उसकी बत्तियों के रंग में चकमक हुईं.

सिंहासन के ठीक उपर नीली चकत्तेदार दीवार पर लाल भुरभुर वाले सुनहरे अक्षरों में Ecstasy In El Dorado.

डंडी बंगालन लगातार ट्वीट किये जा रही थी सबसे ट्वीटर पर राय मांग रही थी जंगली घोड़े को पालतू कुत्ता कैसे बनाया जाये, चीते में नकेल कैसे डाली जाये. पाँच साल की अपनी बेटी, सैंतीस के पति को घर छोड़ आयी चाणक्या अपना मोबाइल बंद किये गिलास लिये काउच पर बिछी थी. उसने उतनी ही बेफिक्र सोफे पर पसरी अपराधविद् को आँख मारी – शायद दोनो को दो साल पुरानी ऐसी ही कोई न्यू इयर पार्टी याद आयी या शायद नहीं आयी – दोनो ही बंगालन की नादानी पर हॅंसी.

‘कितने ट्वीट करेगी, अपन हैं तो सही,‘ अपराध स्वामिनी ने बंगालन से ब्लैकबेरी झपट लिया, ‘ इस खिलौने को बंद कर, अब खेल देख, खेल की धार देख.‘

‘और अपने जिस्म पर थोड़ा मांस ला…एकदम सूखी-सर्राई डंडी. कौन लेगा तुझे?‘ चाणक्या हँसने लगी.

‘क्यों री,‘ चाणक्या जरा सा पलटी नाड़े वाली बुटकन बकरिया की ओर जो अब तक चुपचाप एक कोने में बैठी थी जिसका मेज पर कई खाली हो चुकी बोतलों में कोई योगदान नहीं था, ‘घबरा तो नहीं रही. तुझे लग रहा होगा कहाँ मंगल ग्रह पर आ गयी.‘

टाँग भींचे बैठी उसने धीमे से सिर हिलाया.

‘ये देख…‘ अपराधविद् ने अपने झोले से निकाल एक बेलननुमा चीज का बटन दबाया, वह अद्भुत गति में घरघराया, ‘वो क्या कहते हैं….. चित्रकूट के घाट पर हुई भीड़…..तुझे तो पता होगा न.’ अपराधविद् ने आगे बढ़ वह घराराता यंत्र दीवार से टिकी खड़ी उस आदमकद गुड़िया से जहाँ तहाँ छुलाया, पारदर्शी शीशे के परे बालकनी में खड़े उन पाँचों को दिखाया और उसकी गोद में फेंका. वह तुरंत घबरायी – किसी ने नाभिकीय मिसाइल उस पर फेंकी. सभी बुझने न कभी वाली हॅंसी में फूटे और फटे और सहमी सी दिखती वह चुपचाप मिसाइल मेज पर रख आयी, अपनी सलवार कमीज पर आयी काल्पनिक सलवटें हटाती वापस कुर्सी पर बैठी. चुपचाप गुड़िया देखती रही जिसकी त्वचा उसे किसी नायिका से भी ज्यादा नाजुक लगी.

बुझने न कभी वाली हँसी, जाहिर है, अभी भी जारी रही.

तुम्हें लेकिन नहीं ही मालूम एक झपट्टे से पासे तुमसे छीन इस खेल को वो संचालित करेगी जिसने एक बार वाइब्रेटर के बारे में पूछे जाने पर बताया था चित्रकूट का उसका स्कूल बहुत छोटा था उसकी भौतिकी प्रयोगशाला में बहुत ही कम उपकरण थे.

पाँच फुट पौन इंची राजवंती यादव. जन्मस्थान चित्रकूट और डिग्री स्थान कानपुर के अलावा किसी तीसरे शहर में पहली बार छह महीने पहले जुलाई में तुम्हारे अखबार में इंटर्नशिप करने आयी वह दिल्ली की भरी उमस में पूरी बाजू सलवार कमीज पहने रही थी ; तुम उसे बकरी बुलाने लगे थे कि बकरी की तरह वह भी थन अपने बेमौसम बॉंधे रखती है; और दिसंबर की शुरुआत से सलवार के नीचे उनी पजमिया जिसका पता तब चला जब वॉशरूम गयी एक लड़की ने देखा वह काफी देर लगा रही है और दरवाजा खटखटा मजाक में पूछा क्या वह वाइब्रेटर अंदर ले गयी है तो उसने रुंआसू होते भीतर से बताया उसकी उनी पजमिया का नाड़ा नेफे में अटक गया है, वह हेयर पिन में उसके दूसरे छोर को बाँध उसे खींच रही है.

जबकि तुम अभी तय कर ही रही थीं किसे किस क्रम से बुलाया जाये, गोटियाँ कैसे चली जायें उसने पाँच ही मिनट में पूरा प्लान बना भी लिया था कि पहले से ही योजना उसके पास तैयार हो.

– अगर इनसे कहा जाये इस लोपमुद्रा लांगुरिया के साथ किसी प्लेब्वॉय की मॉडल सरीख बर्ताव करो और इस करतब के अनुसार उनकी नीलामी होगी, सबसे दिलचस्प करतबबाज की सबसे बड़ी बोली तो कैसा रहे…. लेकिन हाँ सिर्फ यह एक भाग होगा उनकी पूरी कलाबाजी का.

यह सुन तुम सब बेतरहा चौंके. पिछले साढ़े पाँच घंटों में पहली बार बेआवाज़ बकरिया की आवाज आयी, ऑक्टोपसी हॉल की सभी भुजाओं के कॉंच को थरथरा गयी. इस बुटकी बकरिया को अचानक ये क्या सूझी – महाकाय सिंहासन पर बेठी लेडी गिद्ध ने अलसाया अपना सिर हिलाया शेरनीनुमा अंदाज में अपने चेहरे पर पंजा फिराया. कोई छोटे बच्चे की भोली शरारत पर तनिक भर मुस्कुरा दिया.

ऑक्टोपसी हॉल के बीचों बीच किसी भव्य फानूस सी टंगी लोपमुद्रा लांगुरिया लेडी गिद्ध सवाई माधोपुर के राजघराने के अपने मित्रों के साथ रणथंभौर के जंगलों से आखेट कर ले आई थी भूसा भर अपने ड््राईंग रूम में उल्टा लटका लिया था.

एक कहानी लेकिन और थी लोपमुद्रा लांगुरिया की. आज की सी कई बरस पुरानी रात इसी हॉल में ऐसी ही नीलामी चल रही थी और एक मादा लाश सुबह पड़ी मिली थी जिसे लेडी गिद्ध ने लोपमुद्रा लांगुरिया बना लटका दिया था. यह लेकिन उतनी ही संदिग्ध थी जितनी यह कथा कि बाहर बालकनी में लटके लोटन लंपटिया भी कभी नंबर तीन की तरह घोषित तौर पर लेडी गिद्ध की कहानी का नायक हो जाना चाहते थे लेकिन अघोषित चाहना खुद एक कहानी लिखने और लेडी गिद्ध को अपनी नायिका बनाने की लिये रहे थे, जिसे जानते ही लेडी गिद्ध ने उन्हें हरी मिर्च खिला कायांतरित पिंजरे में बंद कर दिया था.

भले ही ये दोनो और शायद यह कथा भी जिसे तुम पढ़ रहे हो निरी संदिग्ध-अप्रमाणिक हों, लोपमुद्रा लांगुरिया का हॉल के बीच में, लोटन लंपटिया का बाहर बॉलकनी में और तुम्हारा इस कथा के मध्य में लटका होना निसंदेह असंदिग्ध-प्रामाणिक था.

– इस टँगी हुई को लेकिन नीचे उतारोगे कैसे, दिन में बीसियों सफेद डंडी फूंकने वाली, ढाई इंची के कानों में छह इंची के इयररिंग रोज बदल कर पहनने वाली डंडी बंगालन ने अपनी जैकिट खोल सोफे को पहना दी.

– नहीं. ये वहीं टँगी रहेगी. इसके बगल की मेज पर चढ़ना पड़ेगा उन पाँचों को एक एक कर. शुरुआत में यह पोल डांस के पोल बतौर काम करेगी फिर एक प्लेब्वॉय की मॉडल. नाड़े वाली बकरी की आवाज में सर्कस के रिंग मास्टर सरीखा अचानक उमड़ आया आत्मविश्वास था जो किसी दुर्दांत जानवर को भी मिमियाता मेमना बना देने की क्षमता से आता है.

सुबह लेकिन नंबर तीन खून में सना नीचे औंधा पड़ा था लोपमुद्रा लांगुरिया के बाजू में और हॉल के कोने में पड़ी उसकी नीली जींस में खुंसे पर्स में एक महान विदूषक की सी मूंछ वाले इंसान की तस्वीर हँस रही थी.

तस्वीर में सेनानायक की पोशाक पहने उस इंसान ने बढ़ती आती सोवियत सेना से बचने के लिये खुद को गोली मार ली थी लेकिन सिर्फ वह जानता था बचना वह दरअसल सोवियत डॉक्टरों से चाहता था जिन्हें उनके जासूस ने, जिसने उसके गुसलखाने में गुप्त कैमरे लगा दिये थे और जिनका पता उसे हाल ही में चला था, सूचना दी थी कि वह जर्मन महानायक मोनॉर्किज्म से ग्रस्त यानी एकअंडकोषीय था. भले ही नंबर तीन इसे बताने को अब जिंदा न बचा था और लोटन लंपटिया इस बारे में कुछ भी कहने को तैयार न थे लेकिन हो सकता था उस जर्मन सेनानायक की तस्वीर पर्स में रख घूमने की वजह शायद यही रही हो और इसी वजह से दोनो की मौत में एक कॉमिक समानता रही आयी हो.

आखिर जिस तरह सोवियत डॉक्टर उस जर्मन का पोस्टमार्टम करते समय उसकी देह के निचले अंगों में एक विदूषकीय अनुपस्थिति को देख हँसे अनेक अफगानी बालाओं को ‘ले आये‘ का दंभ करने वाले और किसी भी ‘देसी चीज‘ को उंगली तक नहीं धरने देने वाले नंबर तीन की मृत्यु से पहले भी सबने अट्टाहस किया

मेज पर चढ़ा नंबर तीन लोपमुद्रा लांगुरिया के इर्द-गिर्द अचक-लचक कर, कमर लहरा कर पोल डांस कर रहा है चार मोबाइल फोन के कैमरों का फ्लैश लगातार उस पर चमक रहा है पारदर्शी कांच की भुजा के परे तुम चार उसकी मेज को घेर कर खड़ीं उन पाँचों की सीटियों और बिफरती सीत्कारियों की कल्पना कर रहे हो लेडी गिद्ध आज पहली बार सिंहासन से उठ कर मेज तक आयी है शैंपेन का झाग उस पर उड़ेली है स्विमिंग पूल तक में स्विमिंग ट्रंक में नहीं आने वाला नंबर तीन आज सबसे पहले नीलाम होने आ गया है लेडी गिद्ध की कहानी का नायक हो जाना चाहता है कि सीटियाँ सहसा अट्टाहस में बदलीं

– अबे गुमशुदा की रपट नहीं लिखाई क्या. कहे तो टीवी पर दे दूं या एक खबर बना दूं. तराजू बरकरार लेकिन दो पलड़ों में से एक गायब. अपराध विशेषज्ञ यह.

– हम तो इसे धर्मकांटा समझे लेकिन निकला ये तो डंडीमार. एक पलड़े में कितना सामान आ जाता होगा बे. चाणक्या ने नंबर तीन के एकदम करीब आ सिगरेट का धुंआ उसके अनुपस्थित पलड़े पर ठहराया.

– डिफैक्टिव पीस बॉस, इसके तो चार आने ही दूं. डंडी बंगालन ने सोफे पर बैठे बटुये से एक सिक्का निकाल नंबर तीन पर फेंका.

अपने तिब्बती लाकेट से खेलती लेडी गिद्ध ने हरे गिलास को बहुत करीब ला उसमें झलकते अपने अक्स को जीभ चिढ़ायी, लंबा घूँट भर पुतली-रहित लाल ऑंखों वाली रुपहली मछलियों की ओर धुंये की माफिक तरल पदार्थ छोड़ दिया.

– पोल खुल गई तेरी आड़ू, कुछ है खास तो दिखा अफगानी पपलू नहीं तो मार कल्टी. चार और तेरे बाद अभी. चित्रकूटीय बकरी उम्र और ओहदे में कई साल बड़े नंबर तीन से बोली और लेडी गिद्ध ने वापस सिंहासन पर बैठ स्टॉप वॉच पर पहला साइरन बजाया. यानी अब बस तीन मिनट नंबर तीन के पास अपने को सिद्ध करने को.

तुम चार पारदर्शी खिड़की के परे बालकनी से अपने महानायक को देख रहे थे जिसे वे चार घेरे खड़ीं थीं. तुमने निगाह घुमाई लोटन लंपटिया की ओर जो पिंजरे की जाली से सर टिका मजे से सो चुके थे. कुछ कहें भगवन्, तुमने उन्हें जगाया, कथा अधूरी छोड़ कहाँ सुप्त हुये आप. अगर नंबर तीन का यह हाल तो हमारा क्या.

कथा खत्म हुई पुत्रो, बच गये तुम सभी. चुचपाप अंदर अब देखो. लोटन लंपटिया ने शुकदेवीय मुद्रा में आँखें मीढ़ी, फिर से खर्राटे लेने लगे.

सभी भुजाओं में लाल-नीली-हरी डिस्को बत्तियाँ थरथराईं, उड़नतश्तरी ने ले अंगड़ाई पंख अपने फड़फड़ाये. ऑक्टोपस अपनी काया छोड़ने को, आकाश के परे आसमान थामने को व्याकुल अब. पुतली रहित पीली ऑंखों वाली हरी मछलियों ने होंठों से पानी की पिचकारी छोड़ी.

आखिरी अवसर अब नंबर तीन के पास. लोपमुद्रा लांगुरिया को नीचे उतार उसने चारों पैरों पर खड़ी कर उसे श्वान मुद्रा बना ली है उसके साथ. नंबर तीन के पीछे खड़ी उन्मादी हो वायलिन, जिसका अग्रिम हिस्सा नंबर तीन के पृष्ठ भाग में प्रविष्ट हो चुका है, बजा रही है नाड़े वाली बकरी. इस विद्युतचालित वायलिन में कई बटन लगे हैं जिनसे स्वर कंप की गति संचालित होती है. बदमस्त बकरिया किसी कुशल वायलिनवादक की तरह बटन दबा रही है, हरेक झटके पर लोपमुद्रा लॉंगुरिया के साथ श्वान मुद्रा में लीन नंबर तीन लहरा जाता है. वे चारों ताली बजाती चीख रही हैं.

बुटकी को याद आ रही है वह डायरी जो उसने सवा तीन साल पहले पोस्टमैन रिफाइंड तेल के डिब्बे में बंद कर चित्रकूट के अपने बगीचे में गाड़ दी थी. किसी सल्वाडोर डाली नाम के आदमी या औरत की वो डायरी जो उसे चित्रकूट के किसी कबाड़ी की दुकान पर मिली थी जिसकी ठीक पचास साल–दो सितंबर 1956– पहले दर्ज इबारत को पढ़ वह थी अचकचाई, फिर गुदगुदाई, देह में जुंबिश की महसूस और बारहवीं क्लास की भौतिक शास्त्र की अपनी प्रैक्टिकल कापी के अंतिम से तीसरे पन्ने पर कूट भाषा में उस इबारत को उतार लिया.

इसके बाद महीनों तक पूरा चित्रकूट खंगोल लेने के बाद भी उसे वहाँ कोई वायलिन न मिला जो उसे डेढ़ साल बाद कानपुर की एक संगीत की दुकान में दिखा जिसे वह तुरंत खरीद लाई अपना कमरा बंद कर आइने में अपने को वायलिन के साथ विभिन्न मुद्राओं में देखती रही और आज इकत्तीस दिसंबर दो हजार नौ को बिग बॉस को विद्युतचालित बोन्साई वायलिन, वही चीनी वाद्य यंत्र जिसका उल्लेख डाली नाम की औरत या आदमी ने किया था, लाते देख लोपमुद्रा लांगुरिया की कंचे सी चमकती आंखों से निगाह मिलाईं जंगली लोमड़ी की मुद्रा में होंठ चबाये तुरंत बाथरूम जा अपनी उनी पजमिया उतार खिड़की से बाहर अंधेरे फेंक दी जो बहुत नीचे गश्त लगाते चौकीदार के चेहरे पर गरम कंबल सी लिपट गयी.

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