श्वेत श्याम स्मरणः अनिरूद्ध उमट
झूलता स्वप्न
आकाश से उतरा एक झूला
कमरे की छत पर
उसमें एक हरा तोता
एक कव्वा
पुष्प पारिजात के
भीतर से मैंने कहा
‘ये मेरे झूला झूलने की उम्र नहीं’
बाहर से किसी ने कहा
‘मगर प्यास का क्या करें’
मैं लोटा भर शीतल जल
छत पर लाया
उठने लगा तब तक झूला ऊपर
जैसे खींच रहा हो कोई
अभ्यस्त हाथों
मेरे हाथों में लोटा था
दूर तोते और कव्वे की
पुकार से
पारिजात के पुष्प
उड़ते
गिर रहे थे मेरे सिर पर
भीतर कमरे में
झूल रही थी
मकड़ी
मुखौटे पर
मुआफ़ मत करना
मुआफ़ मत करना
जरा भी
कभी भी
लौटता रहा हूँ
तुम्हारे द्वार से
उलटे पाँव
अगर मैं कभी कभी
द्वार की स्मृति से सनी
लौट आती रही है
दस्तक को जाती हथेली
सोचते उपाय
मारने के तुम मुझे
थक अभी सोए हो
तुम मुझे आलिंगनबद्ध
चुम्बन करते
डबडबायी आँखों
अपना मरना देखते
अभी जागे हो
तुम को मार मैं कहाँ जाऊँगा
मुआफ़ मत करना
खरा न उतरा
अगर मैं तुम्हारी उम्मीदों पर
मेरी उम्मीदों की बात
फिर कभी
श्वेत श्याम स्मरण
रीलरहित कैमरे में
ठुँसी
तस्वीरें
मुट्टी में से
रिसते
जिन्हें कोई
देखता
आसमान से
लटकती
सीढ़ी
से
झूलता
पृथ्वी पर
बुरादे के ढेर पर
मृत एक
तितली
कभी तुम इतने जीवित
दिन बीते मज़ाक भूले
लिखी बहलाने को
कविता
गाई लोरी
किया शवासन
स्त्री संग यूँ सोया
कि न सोया
श्मसान में यूँ रोया
कि न रोया
अभी अभी तुम्हारे साथ
अभी अभी मैं नहीं रहा
कभी तुम इतने जीवित
कि तुम ही तुम नहीं
अब बहुत हुआ मज़ाक
भूले जिसे दिन बीते
लौटना चाहा तो देखा
अपनी राख
हो चुकी
ठंडी बहुत
धुँआ रहा
जिसमें एक दाँत
मजाक करता
कहाँ भीमबेटका
कहाँ भीमबेटका
यह सुन
दीमकों की कतार से
बूढ़ी दीमक
हाथ पकड़ खींच लेती
कतार में
यहाँ भीमबेटका
excellent poems…..we really love his poems……………
ROUNAK VYAS
AAJ TAK NEWS CHANNEL
REPORTER
मुआफ़ मत करना
खरा न उतरा
अगर मैं तुम्हारी उम्मीदों पर
मेरी उम्मीदों की बात
फिर कभी
मर्मस्पर्शी कविताएं, मनोभावों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति में उमट जी सिद्धहस्त है. हार्दिक बधाई
अनिरुद्ध की कविताओं का जादू बड़ा अनोखा है. लगता है मानो किसी उड़ने वाले कालीन पर बिठा दिया गया हो.इतना सुन्दर लिखने वाले कवि के संग दो पल बिताना भी जाने कैसा अद्भुत मंज़र होगा. यदि आप प्रतिलिपि वाले लोग मेरी उनसे मुलाक़ात करवा दें तो मेरी तो कसम से लोटरी ही निकल जायेगी.