आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

सब अनर्थ है कहा अर्थ नेः रमेशचंद्र शाह

जीवनी

सब अनर्थ है
कहा अर्थ ने
मुझे साध कर

तू अनाथ है
कहा नाथ ने
मुझे नाथ कर

इसी तरह
शह देते आए
मुझे मातबर

पहुँचाना घर
उन्हें भी मगर मुझे
लादकर

पनपे खर-
पतवार सभी तो
मुझे खाद कर

ओर छोर

चिलकती है रेत
चारों ओर

हर कहीं
दबती यहाँ पर
हर किसी की
कोर

कौन दे फिर साथ
अनुपस्थित
तुम्हारा?

नहीं हो हो तुम
नहीं, अपनी या किसी की
ओर

तुम वहाँ हो
जहाँ मिलते
हर कहीं के
छोर

वे भी

गाय को दो गोठ
पक्षी को हरे बिरवे
देवता को थान
घर में आदमी के

बरतनों की तरह मँजते
देखता था देवताओं को
लड़कपन में

देवता ही क्यों
अरे! ये हवा पानी धूप मिट्टी
सब बरतने के लिए हैं
सभी व्रत हैं पालने के

पालते हैं उन्हें हम
वे
भी

लय

गाढ़ी होती साँझ
गढ़े के जल में

घर जाने को खड़ी
इकट्ठी
गायें

अलग-थलग भी एक साथ
पूँछों का
उठना-गिरना

सँवलाते आकाश-फलक पर

खड़ी देखती चकित हवा भी
एक अनोखी लय में अंकित
अपनी
आतुरताएँ

तोते

उग रहा रक्त
उगते-उगते
चुग रहा रक्त

फल रहा रक्त
फलते-फलते
चल रहा रक्त।

दो पहर : पेड़
खिड़की पर खड़े-खड़े
सहसा

रूक गया वक़्त

प्रलय-समुद्र पर…..

प्रलय-समुद्र पर चलते हुए मार्कण्डेय
दूर कुछ उजाला सा
देखकर चकित हुए

दौड़कर पहुँचे पास देखा एक अद्भुत दृश्य
बरगद के पत्ते पर लेटा मुस्कुराता शिशु

निकाल अँगूठा मुँह से
तुतलाया, ‘बेटा! तुम…’

सँभलते जब तक ऋषि
शिशु ने ली सॉंस
और…खींच लिया भीतर उन्हें

भीतर जगमगाहट थी
और…..ख़ूब चहल-पहल
मस्त थे मार्कण्डेय
नापते ब्रह्माण्ड की गलियाँ और सड़कें
ख़ूब

इतने में छोड़ी सॉंस
ली थी जो भीतर शिशु ने
और उसी साँस के साथ
टपक पड़े बाहर ऋषि

प्रलय की जगह वही
जानी-पहचानी सृष्टि
समुद्र की जगह वही
जानी-पहचानी सड़क

देखकर मुदित हुए
‘जय हो हे ऊर्णनाभ’ – कहकर झट
चलते बने
नहीं देखा मुड़कर पीछे…
अगली साँस खींच वह
अनुपस्थित पुरखा कहीं
निगल ले फिर से उन्हें
अगली ही साँस में

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  1. Shah sahab ko main dayen,bayen,upar,neeche,tirchhe,banke kahin se parhun, ve hamesha mere aswadak man ke kisi atal men utarte hain. Main nahin samajhata unki in chh kavitavon men se pralay-samudr wali ko samajhne wale Hindi men badi sankhya men honge. Mujhe to dar hai is kavita ke charitr Markandey ko koi Hindi kathakar Markandey na samaj le jinka ki hal hi men nidhan ho gaya. Baharhal Shah sahab Hindi ke viral samskarvan lekhak hain aur ve shatayu hon, yahi kamna.

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