आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

तुम्हारी कोहनी के एवज: मैट रीक

प्यार के अंग

तुम्हारी एडियाँ उड़ गयीं
छप्पर के ऊपर
मैंने वे देखीं जैसे
तुम्हारी ज़बान रात के अँधेरे पर
चिपक गयी थी.

मुझे एक दृश्य दिखता है
जिसमें तुम्हारा चेहरा
गहराई से गहराई में
खिसक जाता है.

मैं तुम्हारी आँखों का दम
फंसाना चाहता हूँ
उसे पिंजरे में लटका कर
चिड़ियों की सी आवाज़ में सीटी बजाना चाहता हूँ

ऐसा लगता है मेरा स्वरुप
अरूप बन गया है, जब से
तुम्हारी रान कुर्सी से
बुलाने लगी.

मुझसे पूछो, मैं बता दूंगा…
तुम्हारी कोहनी के एवज़
मैं तुमसे कहूँगा कि
मैं तुमसे कहूँगा कि…..

औखला की परिक्रमा

महावीर जयन्ती के दिन पे, 2002

क्या आप कभी औखला गए हैं?
क्या आपने औखला का नाम सुना है
वहां एक इंडस्ट्रियल पार्क है

क्या आपको पार्क का मतलब मालूम है?

पार्क के मायने बाग़ होता है

बाग़ में चमन होते हैं
फूल पौधे उगते हैं
पार्क की नर्म सी घास पर
परिवार पिकनिक करते हैं

ख्याल करिए
बच्चों की हर चीख पर
गिलहरियाँ झाड़ों के नीचे
खिसक जाती हैं

वहां मोर दीखते हैं
मैना तो ज्यादा हो सकते हैं

बाज़ारों के माल
परदेसी पर्यटकों की परिक्रमा से दूर आते हैं
यानी औखला के इंडस्ट्रियल पार्क से

औखला में
मैंने किसी मेवाड़ प्रेमी कुल्फी की ट्रॉली से
बेचते हुए बच्चे को देखा था
मेरे बस का कंडक्टर भी युवक था
उसके चबे हुए नखों के सिरे से मैला दिखाई दिया
उसकी आवाज़ बूढ़े की डांटने वाली जैसी थी
मगर उस खौफनाक आवाज़ के बावजूद
कई आदमियों ने उस से चार सौ बीसी की थी

महावीर जयन्ती के दिन पे
मैं अपना सुन्दर कुरता पजामा पहने हुए
औखला के पार्क गया

बस अड्डे पर मैंने
तीन आदमियों को देखा जो गन्ने का रस बना रहे थे –

एक आदमी
काटा हुआ गन्ना छील रहा था
दूसरा आदमी
छीला हुआ गन्ना निचोड़ रहा था
और तीसरा आदमी
निचोड़ा हुआ गन्ना गिलास में दाल के पिला रहा था

एक गिलास के लिए
तीन आदमियों का कार्य होता है

आपने औखला का नाम सुना है कभी?
औखला के बदसूरत
और बदबूदार इंडस्ट्रियल पार्क में
मैंने मालूम किया की
हमारे सुख-भोग के लिए
हमेशा किसी औखला की ज़रुरत होती रहेगी

शहरी ज़िंदगी

कई दिन पहले मैं किसी लडकी से
सेक्स कर रहा था, जब उसका फोन आया
उसका मोबाईल फोन.
और कौन था
उसका साला बोईफ्रेंड

उसका नाम कविता है
वो किसी अमेरिकी फोन सेंटर पे काम करती है
वैसी अमेरिकी ढंग की अंग्रेजी बोल लेती है
वह मेरे समझ नहीं आती

खैर कविता
कविता, नाटक, उपन्यास वगैरा से
नफ़रत करती है
हालाँकि पत्रिकाओं को बड़े प्यार से पढ़ती है
ख़ास तौर पर वह जिनमें
उस नंग बरंग टाईप की दुबली पतली लड़कियाँ हैं

सच कह कर कविता
फोन पर काफ़ी प्यारी लगती है
और खूबसूरत भी है
लेकिन मैं चिढ़ गया हूँ –
अक्सर जब मुझे सेक्स करने का मन लगता है –
वह या नेल पोलिश करने लगती है
या शीशे के सामने कपडे उतारती है

निश्चय किया मैंने
मैं गाँव में जा कर खूब अच्छी देहाती लड़की को पकडूँगा

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