आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

रात्रि: अम्बर्तो इको

जिसमें, यह शीर्षक जिन विलक्षण रहस्योद्घाटनों के बारे में बताता है,
अगर उनका संक्षेप किया जाय, तो यह शीर्षक, चलन के विपरीत,
उतना ही लम्बा होगा जितना कि यह अध्याय है।

हमने अपने आपको फफूँदियाई पुस्तकों जैसी गंध से भरे एक ऐसे कक्ष की देहलीज पर खड़े पाया जो अपने आकार-प्रकार में अन्य तीनों सप्तभुजीय अन्ध कक्षों के ही समान था। जिस चिराग को मैं ऊँचा उठाये हुए था, उससे सबसे पहले मेहराब रोशन हुआ; फिर जब मैंने अपना हाथ नीचा कर उसको दाँयें-बाँयें घुमाया तो चिराग की लौ ने दूर, दीवारों से लगे, सेल्फों पर रोशनी फेंकी। अन्त में, हमने बीचों-बीच काग़ज़ों से ढँकी एक मेज़, और मेज़ के पीछे बैठी एक मानव-आकृति देखी, जिसे देखकर लगा जैसे वह, अगर मृत नहीं थी तो, अँधेरे में निश्चल बैठी हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। इससे भी पहले कि रोशनी उसके चेहरे को उजागर करती, विलियम बोल उठे।

“रात्रि शुभ हो, श्रद्धेय ज्यार्गी[i],” उन्होंने कहा। “क्या आप हमारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे?”

इस बीच, जैसे ही हम कुछ कदम आगे बढ़े, चिराग ने बूढ़े के चेहरे को रोशन कर दिया था, जो हमारी तरफ़ कुछ यूँ ताक रहा था मानो वह देख सकता हो।

“क्या तुम हो, विलियम ऑव्‌ बास्करविले?” उसने पूछा। “मैं तो तुम्हारी प्रतीक्षा आज तभी से कर रहा हूँ जब सान्ध्योपासना के भी पहले, तीसरे पहर मैंने यहाँ आकर खुद को बन्द कर लिया था। मुझे मालूम था तुम आओगे।”

“और मठाधीश?” विलियम ने पूछा। “क्या वही हैं जो गुप्त सीढ़ी के भीतर से आवाज़ कर रहे हैं?”

ज्यार्गी पल भर को झिझका। “क्या वे अब भी जीवित हैं?” उसने पूछा। “मैं तो सोचता था कि अब तक उनका दम घुट चुका होगा।”

“इसके पहले कि हम बातचीत शुरू करें,” विलियम ने कहा, “मैं उनको बचाना चाहूँगा। आप इस तरफ़ से दरवाज़ा खोल सकते हैं।”

“नहीं,” ज्यार्गी विरक्त-से स्वर में बोला, “अब सम्भव नहीं है। यन्त्र-विधि का नियन्त्रण नीचे से एक फलक को दबाने से होता है, और यहाँ ऊपर एक लीवर खिसकता है, जिससे उस अलमारी के पीछे एक दरवाज़ा खुलता है।” उसने अपना सिर घुमाया। “अलमारी के बगल में तुम समतुल्य भार से युक्त एक चक्का देख सकते हो, जो यहाँ ऊपर से यन्त्र-विधि को नियन्त्रित करता है। लेकिन जब मैंने चक्के के घूमने की आवाज़ सुनी, जो इस बात का सूचक था कि अब्बू ने नीचे से प्रवेश किया था, मैंने उस रस्सी को झटके से खींच दिया जिससे वजन बँधा हुआ है, और रस्सी टूट गयी। अब वह जगह दोनों तरफ़ से बन्द हो चुकी है, और तुम उस यन्त्र को अब कभी सुधार नहीं सकते। मठाधीश मर चुके हैं।”

“आपने उनकी हत्या क्यों की?”

“आज, जब उन्होंने मुझे बुलाया, तो उन्होंने मुझे बताया कि आपकी मेहरबानी से उनको सब कुछ पता चल चुका है। उनको अब तक इसकी जानकारी नहीं थी कि मैं किस चीज़ को बचाने की कोशिश में लगा था – उनको अब तक खज़ानों और पुस्तकालय के लक्ष्यों  तक की समझ नहीं थी। वे मुझसे एक ऐसी चीज़ की कैफ़ियत माँग रहे थे जिसके बारे में वे नहीं जानते थे। वे फिनिस आफ्रिकेइ को खुलवाना चाहते थे। इताल्वियों ने उनसे उस “रहस्य” को समाप्त करने का आग्रह किया था जिसे उनके मुताबिक मैंने और मेरे पूर्वजों ने जिन्दा रखा हुआ था। वे लोग नवीनता की वासना से उत्प्रेरित हैं…।”

“और निश्चय ही आपने वचन दिया था कि आप यहाँ आएँगे और अपने जीवन को उसी तरह ख़त्म कर देंगे जिस तरह आपने दूसरों के जीवन को ख़त्म किया है, ताकि मठ के आत्मसम्मान की रक्षा हो सके और किसी को कुछ पता न चल सके। फिर आपने उन्हें यहाँ आने का रास्ता बताया और कहा कि वे बाद में आकर इस बात की ताईद कर लें। लेकिन उनका इन्तज़ार करने की बजाय आपने उन्हें मार डाला। आपने यह नहीं सोचा था कि वे आईने वाले रास्ते से भी तो आ सकते थे?”

“नहीं, मठाधीश का कद बहुत छोटा था, वे अकेले अपने बूते उस छन्द-पंक्ति तक पहुँचने में कभी कामयाब नहीं हो सकते थे। मैंने उनको इस दूसरे रास्ते के बारे में भी बताया था जिसकी जानकारी तब तक सिर्फ़ मुझी को थी। ये वो रास्ता है जिसका इस्तेमाल मैं वर्षों से करता रहा हूँ, क्योंकि अँधेरे में वह ज़्यादा आसान है। मुझे सिर्फ़ चैपल तक पहुँचना होता था, इसके बाद मृतकों की अस्थियों का अनुसरण करते हुए गलियारे के आखिरी सिरे तक।”

“तो आपने उनको यह जानते हुए यहाँ बुलाया था कि आप उनकी हत्या करेंगे…।”

“मैं उन पर और भरोसा नहीं कर सकता था। वे डर गये थे। जिस व्यक्ति की प्रसिद्धि इसी कारण हो कि वह  फ़ोसानोवा में किन्हीं चक्करदार सीढ़ियों से एक शव को नीचे ले आने में कामयाब हुआ था, वह व्यक्ति इसलिए मर गया था कि  वो अपनी ही सीढ़ियाँ नहीं चढ़ पाया! – वे पात्र नहीं थे इस गौरव के।

“आप चालीस सालों से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। जब आपको यह लगा कि आप अंधे होने वाले हैं और पुस्तकालय का नियन्त्रण आपके वश में न रह जाएगा, तो आपने चालाकी से काम लिया। आपने मठाधीश के रूप में एक ऐसे आदमी का चुनाव करवाया जिस पर आप भरोसा कर सकें; और उनसे आपने लाइब्रेरियन के रूप में पहले रॉबर्ट ऑव्‌ बोबियो को नियुक्त करवाया, जिसको आप मनमाने ढंग से निर्देशित कर सकते थे, और फिर मेलाची को जिसको आपकी मदद की ज़रूरत पड़ती थी और जो आपकी सलाह के बिना एक कदम भी नहीं बढ़ा सकता था। चालीस सालों से आप इस मठ के सिरमौर बने हुए हैं। यही वह चीज़ है जिसका अहसास यहाँ के इताल्वियों को हो चुका था, यही वह चीज़ है जिसे एलिनार्दो दोहराता रहता था, लेकिन उसकी कोई नहीं सुनता था, क्योंकि लोग अब तक उसको पागल समझने लगे थे। मैं ठीक कह रहा हूँ? लेकिन तब भी आपको मेरी प्रतीक्षा थी, और आईने वाले दरवाज़े को आप इसलिए अवरुद्ध नहीं कर सके, क्योंकि उसकी यन्त्र-विधि दीवार में स्थापित है। क्यों कर रहे थे आप मेरी प्रतीक्षा? आप इतने निश्चित कैसे हो सके कि मैं आऊँगा ही?” विलियम ने पूछा, लेकिन उनके लहजे से स्पष्ट था कि उनको जवाब का अन्दाजा था, वे सिर्फ उससे अपनी विदग्धता का पुरस्कार पाना चाहते थे।

“पहले ही दिन मुझे लग गया था कि तुम समझ जाओगे। तुम्हारे स्वर से, तुम्हारे उस तरीके से जिससे तुम मुझे उस विषय पर बहस में घसीट ले गये थे जिसका ज़िक्र तक मैं नहीं करना चाहता था। तुम दूसरों से बेहतर थे : तुम समस्या के हल तक पहुँच सकते थे, वह हल चाहे जैसा भी होता। तुम जानते हो कि दूसरों के विचारों को अपने दिमाग में सोचना और उनकी पुनर्रचना करना पर्याप्त है। और फिर मैंने सुना कि तुम अन्य संन्यासियों से एकदम सटीक सवाल पूछ रहे थे। लेकिन तुमने पुस्तकालय के बारे में कभी सवाल नहीं पूछा, मानो तुम्हें उसके सारे रहस्यों की पहले से ही जानकारी थी। एक रात मैं आया और मैंने तुम्हारी कोठरी पर दस्तक दी, और तुम कोठरी के अन्दर नहीं थे। तुमको तो यहाँ होना था। मैंने एक नौकर को कहते सुना था कि रसोई से दो चिराग गायब थे। और अन्ततः, जब एक दिन सेवेरिनॅस गिरजे की ड्योढ़ी में तुम्हारे पास एक पुस्तक के बारे में बात करने आया, तो मुझे निश्चय हो गया था कि तुम मेरा पीछा कर रहे हो।”

“लेकिन आप उस पुस्तक को मुझसे दूर ले जाने में कामयाब हुए। आप मेलाची के पास गये, जिसको हालात के बारे में कुछ भी पता नहीं था। अपनी ईष्या में वह बेवकूफ़ यही सोचे चला जा रहा था कि अडेल्मो ने उसके प्रिय बेरेंगर को उससे चुरा लिया है, जिसको तब तक एक ज़्यादा जवान जिस्म की लालसा हो चली थी। इस मसले से वेनेण्टियॅस का क्या ताल्लुक है, मेलाची इस बात को नहीं समझता था, और आपने उसकी सोच को और भी भ्रमित कर दिया था। आपने शायद उससे यह भी कहा कि बेरेंगर सेवेरिनॅस का करीबी हो गया है, और इनाम के तौर पर सेवेरिनॅस ने उसको फिनिस आफ्रिकेइ से लाकर एक पुस्तक दी है; आपने ठीक-ठीक क्या कहा था, मैं नहीं जानता। ईष्या से पागल होकर मेलाची सेवेरिनॅस के पास गया और उसकी हत्या कर दी। फिर उसके पास उस पुस्तक को तलाशने का वक़्त ही नहीं बचा जिसका वर्णन आपने उससे किया था, क्योंकि भण्डार-रक्षक आ गया था। क्या ऐसा ही नहीं हुआ?”

“कमोबेश।”

“लेकिन आप मेलाची को मरने देना नहीं चाहते थे। उसने शायद फिनिस आफ्रिकेइ की पुस्तकों की ओर कभी निगाह ही नहीं डाली थी, क्योंकि वह आप पर भरोसा रखता था, आपके प्रतिबंधों का सम्मान करता था। उसने घुसपैठियों को डराने के लिए शाम के वक़्त जड़ीबूटियों को यथास्थान रखने तक अपने को सीमित कर लिया था। उनकी आपूर्ति उसके लिए सेवेरिनॅस करता था। इसीलिए सेवेरिनॅस ने मेलाची को उस दिन चिकित्सालय में प्रवेश करने दिया था : उस दिन भी वह रोज की तरह उन जड़ीबूटियों को लेने आया था जिनको वह मठाधीश के आदेश पर रोज तैयार करता था। क्या मैंने सही अनुमान लगाया?”

“तुम्हारा अनुमान सही है। मैं मेलाची को मरने नहीं देना चाहता था। मैंने उससे कहा था कि वह जैसे भी सम्भव हो उस पुस्तक को दोबारा हासिल करे, और बिना उसको खोले यहाँ वापस लाये। मैंने उससे कहा था कि इस पुस्तक में हज़ारों बिच्छुओं की ताक़त है। लेकिन पहली बार हुआ जब उस पागल ने अपनी प्रेरणा से काम लिया। मैं उसको मरने नहीं देना चाहता था : वह एक वफ़ादार कारिन्दा था। लेकिन वे बातें मत दोहराओ जो तुम जानते हो : मैं जानता हूँ कि तुम जानते हो। मैं तुम्हारे अहंकार को पोषित नहीं करना चाहता; वो तो तुम खुद ही बखूब कर लेते हो। आज सुबह मैंने तुमको कोएना सिप्रिआनि [ii] के बारे में बेनो से पूछताछ करते सुना था। तुम सचाई के बहुत करीब थे। मैं नहीं जानता कि आईने के रहस्य का पता तुमने कैसे लगा लिया, लेकिन जब मैंने मठाधीश से सुना कि तुम फिनिस आफ्रिकेइ का जि़क्र कर रहे थे, तो मैं निश्चित हो गया था कि तुम जल्दी ही आओगे। इसीलिए मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था। खैर, अब बताओ कि तुम क्या चाहते हो?”

“मैं,” विलियम ने कहा, “मैं उस ज़िल्दबन्द ग्रंथ की अन्तिम पाण्डुलिपि देखना चाहता हूँ जिसमें एक अरबी मज़मून, एक सीरियाई मज़मून, और कोएना सिप्रिआनि का एक भाष्य या लिप्यान्तरण समाविष्ट है। मैं ग्रीक भाषा की सम्भवतः किसी अरब, या किसी स्पहानी द्वारा तैयार की गयी वह प्रति देखना चाहता हूँ, जो आपको तब हासिल हुई थी जब आप, पॉल ऑव्‌ रिमिनी के सहायक की हैसियत से जुगाड़ बिठाकर, लियों और कैसिले से इल्हाम[iii] से सम्बंधित उत्कृष्ट पाण्डुलिपियाँ इकट्ठा करने, वापस अपने देश की यात्रा पर गये थे, एक ऐसी लूट जिसने इस मठ में आपको प्रसिद्धि और सम्मान दिलाया और जो लाइब्रेरियन के उस पद पर आपकी फ़तह का कारण बनी, जिस पर दरअसल एलिनार्दो का हक़ था, जो आपसे दस वर्ष वरिष्ठ था। मैं उस ग्रीक प्रतिलिपि को देखना चाहता हूँ, जिसे लिनन के काग़ज़ पर लिखा गया है, जो उस ज़माने में बहुत दुर्लभ माना जाता था और जो आपके गृहनगर बर्गोस के पास सिलॉस में तैयार किया जाता था। मैं उस पुस्तक को देखना चाहता हूँ जो आपने पढ़ने के बाद वहाँ से चुरायी थी, और चतुराई से उसकी रक्षा करते हुए उसको यहाँ लाकर छुपा दिया था, और आपने उसको नष्ट नहीं किया क्योंकि आप जैसा इन्सान किसी पुस्तक को नष्ट नहीं करता, उसकी महज़ पहरेदारी करता है यह सुनिश्चित करने के लिये कि कोई दूसरा इन्सान उसको छूने न पाये। मैं अरस्तू की पोएटिक्स का दूसरा भाग देखना चाहता हूँ, वह पुस्तक जिसके बारे में बहुतों का विश्वास है कि वह या तो खो चुकी है या कभी लिखी ही नहीं गयी थी, और जिसकी सम्भवतः एकमात्र प्रति आपके पास है।”

“वाह, तुम कितने ज़बरदस्त लाइब्रेरियन हुए होते, विलियम,” ज्यार्गी ने कहा, एक ऐसे लहज़े में जिसमें सराहना और खेद एक साथ मौजूद थे। “तो तुम सब कुछ जानते थे। आओ, मेरा ख़याल है कि तुम्हारी तरफ़ मेज़ के पास एक स्टूल होगा। बैठ जाओ। यह रहा तुम्हारा इनाम।”

विलियम बैठ गये और चिराग को, जो मैंने उनके हाथ में थमा दिया था, उन्होंने नीचे रख दिया, जो अब ज्यार्गी के चेहरे को नीचे की ओर से रोशन करने लगा था। बूढ़े ने अपने सामने पड़ा एक ग्रंथ उठाया और विलियम के सामने रख दिया। मैंने उस जि़ल्द को पहचान लिया: यह वही पुस्तक थी जिसको मैंने औषधालय में खोलकर देखा था, यह सोचते हुए कि वह कोई अरबी की पाण्डुलिपि है।

“तो, पढ़ो इसको, पलटो इसके पन्ने, विलियम,” ज्यार्गी ने कहा। “तुम्हारी जीत हुई।”

विलियम ने ग्रंथ को देखा पर उसको छुआ नहीं। उन्होंने अपने चोगे से एक जोड़ा दास्ताने निकाले, वे नहीं जिनसे अँगुलियाँ बाहर निकली रहती थीं और जो वे आतमौर से पहन लिया करते थे, बल्कि वे जिनको सेवेरिनॅस ने पहन रखा था, जब वह मृत पाया गया था। उन्होंने धीमे से उस जीर्ण-शीर्ण और नाजुक ज़िल्द को खोला। मैं करीब खिसक आया और उनके कंधे पर झुक गया। अपनी सूक्ष्मग्राही श्रवण-शक्ति के चलते ज्यार्गी ने मेरी आहट को सुन लिया। “बच्चे, तुम भी हो यहाँ?” उसने कहा। “मैं तुमको भी दिखाऊँगा…बाद में।”

विलियम ने फुर्ती से पहले पन्ने पर निगाह डाली। “कैटलॉग के मुताबिक तो यह किसी मूर्ख की उक्तियों की एक अरबी पाण्डुलिपि है,” उन्होंने कहा। “क्या है यह?”

“ओह, विधर्मियों की बेवकूफी से भरी किंवदन्तियाँ, जिनमें उन मूर्खों की वे निहायत ही चतुर टिप्पणियाँ भरी पड़ी हैं जो उनके पुरोहितों तक को चमत्कृत करती हैं और उनके खलीफ़ाओं को आनन्दित करती हैं…”

“दूसरी एक सीरियाई पाण्डुलिपि है, लेकिन कैटलॉग के मुताबिक यह रसायन-विद्या पर केन्द्रित मिस्र की किसी छोटी-सी पुस्तक का अनुवाद है। इस संग्रह में यह कैसे आ गयी?”

“यह हमारे युग की तीसरी सदी की एक मिस्री कृति है। अगली कृतियों के साथ इसकी संगति है, लेकिन यह कम ख़तरनाक है। एक अफ्रीकी रसायनशास्त्री की बकवासों पर कोई ध्यान नहीं देता। वह सृष्टि की रचना का श्रेय दैवीय अट्टहास को देता है…।” उसने चेहरा ऊपर उठाया और उस विलक्षण स्मरण-शक्ति का परिचय देते हुए उसका पाठ करने लगा, जो सिर्फ़ उस जैसे पाठक में ही सम्भव हो सकती थी जो पिछले चालीस सालों से उन चीज़ों को मन ही मन दोहराता रहा था जो उसने तब पढ़ी थीं जब उसके पास दृष्टि का वरदान मौजूद था : “जिस क्षण ईश्वर हँसा सात देवता उत्पन्न हुए जिन्होंने सृष्टि का संचालन किया, जब उसकी हँसी फट पड़ी तो रोशनी प्रगट हुई, उसकी दूसरी हँसी से जल प्रगट हुआ, उसकी हँसी के सातवें दिन आत्मा प्रगट हुई…।” बेवकूफ़ी। इसके बाद की रचना भी ऐसे ही किसी बौड़म की लिखी हुई हैं, जो उन अन्तहीन बौड़मों में शामिल है जो कोएना की व्याख्याएँ करने बैठ जाया करते थे…लेकिन ये वे रचनाएँ नहीं हैं जिनमें तुम्हारी दिलचस्पी है।”

विलियम भी दरअसल फुर्ती से पन्ने पलटते हुए ग्रीक मज़मून पर आ पहुँचे थे। मैंने तत्काल ही लक्ष्य कि ये पन्ने एक अलग ढंग के, किसी अपेक्षाकृत कोमल पदार्थ के, बने हुए थे, जिनमें से पहला तो लगभग क्षत-विक्षत ही था, हाशिये का एक हिस्सा नष्ट हो चुका था, जगह-जगह फीके से दाग़, जैसे कि समय और नमी की वजह से दूसरी पुस्तकों पर पड़ जाया करते हैं। विलियम ने शुरूआती पंक्तियाँ पढ़ीं, पहले ग्रीक में, और फिर लैटिन में उनका अनुवाद करते हुए, और इसके बाद उन्होंने इसी भाषा में पढ़ना जारी रखा ताकि मैं भी समझ सकूँ कि एक सांघातक पुस्तक की शुरूआत किस तरह से होती है :

पहली पोथी में हमने ट्रैज़ेडी की चर्चा की थी और यह देखा था कि वह किस तरह करुणा और भय को जाग्रत कर विरेचन को उत्पन्न करती है, कैसे उन अनुभूतियों का शुद्धीकरण करती है। जैसा कि हमने वादा किया था, अब हम कॉमेडी की (साथ ही साथ प्रहसन और स्वाँग की) चर्चा करेंगे, और देखेंगे कि वह किस तरह से किसी हास्यास्पद स्थिति के प्रति आनन्द जगाकर उस संवेग का शुद्धीकरण करती है। यह संवेग किस कदर विचारणीय है, यह बात हम आत्मा पर केन्द्रित पोथी में कर आये हैं, क्योंकि – प्राणियों में एकमात्र – मनुष्य ही हँसने में सक्षम है। इसके बाद हम उन क्रियाओं के  लक्षण स्पष्ट करेंगे जिनका अनुकार कॉमेडी है, इसके बाद हम उन साधनों की परीक्षा करेंगे जिनके सहारे कॉमेडी हास्य को उद्दीप्त करती है, और ये साधन हैं क्रियाएँ तथा वाणी। हम दिखायेंगे कि किस तरह उत्कृष्ट की निकृष्ट से और निकृष्ट की उत्कृष्ट से उपमा करने से, छल-छद्म के सहारे विस्मय जगाने से, असम्भव से, नैसर्गिक नियमों के उल्लंघन से, अप्रासंगिक और असंगत से, खोटे आचरण से, विद्रूप और भद्दे मूकाभिनय से, असामंजस्य से, न्यूनतम रूप से उचित चीज़ों के वरण से कृत्यों में हास्यास्पदता पैदा होती है। इसके बाद हम दिखायेंगे कि किस तरह वाणी की हास्यास्पदता सजातीय शब्दों को भिन्न चीज़ों के अर्थ में और भिन्न शब्दों को सजातीय चीज़ों के अर्थ में भ्रमित करने से, वाचालता और पुनरुक्ति से, शब्द-क्रीड़ा से, अल्पार्थक शब्दों से, ग़लत उच्चारणों से, और खिचड़ी भाषा से पैदा होती है।

अनुवाद करने में विलियम को कुछ मुश्किल हुई, सटीक शब्द तलाशने पड़े, जगह-जगह रुकना पड़ा। अनुवाद करते हुए वे मुस्कराते जाते थे, मानों वे उन चीज़ों को पहचान रहे हों जिनकी अपेक्षा उन्होंने की थी। पहला पन्ना उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से पढ़ा, फिर जैसे उनको और ज़्यादा जानने में कोई दिलचस्पी न हो, वे रुक गये, और जल्दी-जल्दी आगे के पन्नें पलटते गये। लेकिन कुछ पन्नों के बाद उनको रुकावट का सामना करना पड़ा, क्योंकि बाजू वाले किनारे के ऊपरी कोने के पास, और ऊपर के समूचे हिस्से में कुछ पन्ने आपस में चिपके हुए थे, जैसा कि तब होता है जब नमी और क्षयग्रस्त काग़ज़ी पदार्थ मिलकर एक किस्म का चिपकने वाला लेप तैयार कर देते हैं। पन्नों की सरसराहट की इस रुकावट को ज्यार्गी ने महसूस किया, और उसने विलियम से जारी रखने का आग्रह किया।

“जारी रखो, पढ़ते जाओ, पन्ने पलटो। यह तुम्हारी है, तुमने इसको अर्जित किया है।”

विलियम, किंचित चकित से होते हुए, हँसे। “इसका मतलब है, ज्यार्गी, कि आपकी यह बात सच नहीं है कि आप मुझे चतुर समझते हैं! आप देख नहीं सकते : मैंने दस्ताने पहन रखे हैं। इससे मेरी अँगुलियाँ जिस तरह बेडौल हो गयी हैं, उसके चलते मैं एक पन्ने को दूसरे पन्ने से अलग नहीं कर सकता। मुझे नंगे हाथों से, अपनी अँगुलियों को जुबान से गीला करते हुए, उसी तरह पढ़ना जारी रखना चाहिए, जैसा मैं आज सुबह स्क्रिप्टोरियम में पढ़ते वक़्त कर रहा था, जिससे कि वह रहस्य भी अचानक मेरे लिए सुलझ गया था। और मुझे उसी तरह तब तक पन्ने पलटते जाना चाहिए जब तक कि ज़हर की अच्छी खासी मात्रा मेरे मुँह में न पहुँच जाए। मैं उस ज़हर की बात कर रहा हूँ, जो आपने बहुत पहले एक दिन सेवेरिनॅस की प्रयोगाला से चुराया था। शायद तब तक आपके मन में चिन्ता बैठ चुकी थी, क्योंकि आपने स्क्रिप्टोरियम में किसी को या तो फिनिस आफ्रिकेइ के बारे में या अरस्तू की गुमुशुदा पोथी के बारे में, या दोनों ही चीज़ों के बारे में, उत्सुकता जताते सुन लिया था। मैं समझता हूँ कि आपने काँच की उस छोटी सी शीशी को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा, ताकि ख़तरा महसूस होते ही आप उसका इस्तेमाल कर सकें। और उस ख़तरे को आपने कई दिन पहले महसूस कर लिया था, जब वेनेण्टियॅस इस पुस्तक की विषय-वस्तु के बहुत करीब आ पहुँचा था, और इसी के साथ जब उस लापरवाह, अहम्मन्य, और अडेल्मो को खुश करने में लगे बेरेंगर ने यह साबित कर दिया था कि वह गोपनीयता को लेकर उतना सतर्क नहीं था जितने की आपने उससे उम्मीद की थी। इसलिए आप आये और अपना जाल बिछा दिया। एकदम सही समय पर, क्योंकि कुछ ही रातों के बाद वेनेण्टियॅस अन्दर घुसा, उसने किताब चुरायी, और, लगभग एक जिस्मानी भुख्खड़पन के साथ, लालच से भरकर उसके पन्नों को पलट गया। तुरन्त ही वह बीमार पड़ गया और मदद के लिए रसोई में भागा। जहाँ वह मर गया। क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ?”

“नहीं। जारी रखो।”

“बाक़ी बातें तो आसानी से समझ में आने वाली हैं। बेरेंगर को रसाई में वेनेण्टियॅस की लाश मिलती है, वह डर जाता है कि पूछताछ होगी, क्योंकि, आखिरकार, अडेल्मो के समक्ष पूर्व में किये गये बेरेंगर के रहस्योद्घाटन के चलते ही तो वेनेण्टियॅस रात के समय में इडीफीसियम में गया था। उसको समझ में नहीं आता कि क्या किया जाय; वह लाश को कंधे पर उठाता है और उसको खून की नाद में फेंक देता है, यह सोचकर कि हर कोई यही मानेगा कि वेनेण्टियॅस डूबकर मरा है।”

“और तुम कैसे जानते हो कि ऐसा ही हुआ था?”

“आप खुद भी जानते हैं। जब लोगों को बेरेंगर के खून से लिथड़ा हुआ एक कपड़ा मिला था, तो मैंने देखा था कि आपने किस तरह प्रतिक्रिया की थी। उस अक्खड़ ने वेनेण्टियॅस को नाद में फेंकने के बाद उस कपड़े से अपने हाथ पोंछे थे। लेकिन क्योंकि बेरेंगर ग़ायब हो गया था, वह उस पुस्तक के साथ ही ग़ायब हुआ हो सकता था, जिसने अब तक उसकी भी उत्सुकता जगा दी थी। और आप उम्मीद कर रहे थे कि वह कहीं न कहीं ज़रूर मिलेगा, खून से लथपथ नहीं बल्कि ज़हर का शिकार होकर। बाक़ी चीज़ें ज़ाहिर सी हैं। सेवेरिनॅस को पुस्तक मिलती है, क्योंकि बेरेंगर पुस्तक को पढ़ने सबसे पहले औषधालय में गया था, जो नासमझ निगाहों से सुरक्षित जगह थी। मेलाची आपके उकसावे पर सेवेरिनॅस की हत्या करता है, इसके बाद, जब वह यहाँ वापस आने पर पता लगाता है कि उस चीज़ में इस कदर निषिद्ध आखिर ऐसा क्या था कि उसने उसको एक हत्यारा बना दिया, तो वह भी मर जाता है। और इस तरह तमाम लाशों की कैफियत मिल जाती है…क्या बेवकूफ़…”

“कौन?”

“मैं। एलिनार्दो की महज़ एक टिप्पणीं की वजह से मैंने मान लिया कि अपराधों की यह श्रृंखला कयामत की सात तुरहियों का अनुसरण कर रही थी। एडेल्मो के लिए गाज, जबकि उसकी मौत एक आत्महत्या थी। वेनेण्टियॅस के लिए रक्त, जबकि उसके पीछे बेरेंगर की एक बेतुकी धारणा थी; स्वयं बेरेंगर के लिए पानी, जबकि उसके पीछे एक अविचारित कृत्य था; सेवेरिनॅस के लिए आका का तीसरा हिस्सा, जबकि मेलाची ने सिर्फ़ इसलिए उस छल्लेदार गोले से उस पर आघात किया था कि क्योंकि उसको वही एक आसान-सी चीज़ दिखायी दी। और अन्त में मेलाची के लिए बिच्छू…क्यों कहा था आपने उससे कि उस पुस्तक में हज़ार बिच्छुओं की शक्ति है?”

“तुम्हारी वजह से। एलिनार्दो ने अपनी इस कल्पना के बारे में मुझे बताया था, और फिर मैंने किसी से सुना कि तुमको भी इस कल्पना ने आकर्षित किया था…। मेरे मन में यह बात बैठ गयी कि कोई दैवीय योजना इन मौतों के पीछे कार्यरत थी, जिनके लिए मैं जि़म्मेदार नहीं था। और मैंने मेलाची से कहा था कि अगर उसके भीतर जिज्ञासा पैदा हुई तो वह भी इसी दैवीय योजना के अनुसार मिट जाएगा; और वही उसने किया।”

“तो, ख़ैर…मैंने अपराधी की चालों की व्याख्या के लिए एक मिथ्या तस्वीर की कल्पना कर ली, और अपराधी संयोग से उस कल्पना के अनुरूप ढलता गया। और यही वह मिथ्या कल्पना थी जिसने मुझे आपके पीछे लगा दिया। वैसे तो आजकल हर कोई जॉन की पोथी को लेकर उद्विग्न है, लेकिन आप मुझे ऐसे व्यक्ति लगे जिसने उस पर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया था, और एण्टीक्राइस्ट के बारे में अपने चिन्तन की वजह से उतना नहीं जितना इसलिए कि आप उस देश से हैं जिसने महानतम प्रकाशना-ग्रंथों[iv] की रचना की है। एक दिन किसी ने मुझसे कहा कि आप ही वो व्यक्ति थे जो इस पोथी की सबसे सुन्दर प्राचीन पाण्डुलिपियाँ [v]इस पुस्तकालय में लेकर आये थे। फिर, एक दिन, एलिनार्दो किसी रहस्मय शत्रु को लेकर प्रलाप कर रहा था जिसको पोथियों की तलाश में सिलॉस भेजा गया था (मेरी उत्सुकता तब और भड़क उठी जब उसने कहा कि यह शत्रु अकाल अँधेरे का ग्रास बन गया था : शुरू में तो लगा कि वह किसी ऐसे इन्सान की बात कर रहा था जिसकी जवानी में मौत हो गयी थी, लेकिन वह दरअसल आपके अन्धेपन की तरफ़ इशारा कर रहा था)। सिलॉस बर्गोस के पास है, और आज सुबह, कैटलॉग में मैंने प्राप्त की गयी पुस्तकों की एक पूरी श्रृंखला, जो सबकी सब स्पहानी प्रकाशनाओं से सम्बन्धित हैं, को लक्ष्य किया, जो उसी दौरान लायी गयी थीं जब आप पॉल ऑव्‌ रिमिनी की जगह या तो ले चुके थे या लेने वाले थे। और प्राप्त पुस्तकों के उस समूह में यह पुस्तक भी थी। लेकिन मैं अपने द्वारा गढ़ी गयी इस कहानी को लेकर तब तक निश्चित नहीं हो सका था जब तक कि मुझे यह पता नहीं चल गया कि चुरायी गयी पुस्तक लिनन के काग़ज़ पर थी। तब मुझे सिलॉस की याद आयी, और मुझको निश्चय हो गया। ज़ाहिर है, जैसे-जैसे इस पुस्तक का विचार और इसकी ज़हरीली ताक़त ने क्रमशः रूप लेना शुरू किया, इल्हाम की कल्पना ने ध्वस्त होना शुरू कर दिया था, हालाँकि मैं यह नहीं समझ सका था कि किस तरह पुस्तक और तुरहियों का क्रम दोनों मिलकर आपकी ओर इशारा करते थे। लेकिन पुस्तक का किस्सा मैं बेहतर ढंग से समझ गया था, क्योंकि इल्हाम की कल्पना से परिचालित मैं, उत्तरोत्तर आपके बारे में, और हास्य के बारे में आपकी बहस पर, सोचने को विवश हो गया था। इसलिए आज शाम जब इल्हाम की कल्पना में मेरा कोई विश्वास न रह गया था, मैंने अस्तबल पर निगाह रखने पर ज़ोर दिया, और उस अस्तबल में, शुद्ध संयोग से, एड्सो ने मुझे फिनिस आफ्रिकेइ में प्रवेश की कुंजी उपलब्ध कर दी।”

“मैं तुम्हारी बात समझ नहीं पाया,” ज्यार्गी ने कहा। “एक तरफ़ तो तुम मेरे सामने इस बात पर गर्व कर रहे हो कि अपनी बुद्धि के रास्ते चलते हुए तुम मुझ तक पहुँचे हो, और दूसरी तरफ़ तुम यह प्रदर्शित कर रहे हो कि तुम एक छद्म तर्कणा के सहारे यहाँ तक पहुँचे हो। तुम कहना क्या चाहते हो?”

“आपसे मैं कुछ नहीं कहना चाहता। बात सिर्फ़ इतनी सी है कि मैं व्याकुल हूँ। लेकिन कोई बात नहीं। अब मैं यहाँ हूँ।”

“ईश्वर सातवीं तुरही फूँक रहा था। और तुमने, ग़लती से ही सही, उसमें एक भ्रामक प्रतिध्वनि सुन ली थी।”

“यह बात आपने कल शाम के अपने प्रवचन में कही थी। आप एक हत्यारे हैं, यह बात खुद से छुपाने के लिए आप खुद को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि सारे किस्से के पीछे एक दैवीय योजना कार्यरत थी।”

“मैंने किसी की हत्या नहीं की। हर एक की मौत उसकी अपनी नियति के हिसाब से उसके अपने पापों की वजह से हुई है। मैं तो एक निमित्त मात्र था।”

“कल आपने कहा था कि जूडास भी एक निमित्त मात्र था। लेकिन यह चीज़ उसको अभिशाप से नहीं बचा सकती।”

“मैं अभिशाप का जोखिम स्वीकार करता हूँ। ईश्वर मुझे इससे मुक्त कर देगा, क्योंकि वह जानता है कि मैंने जो कुछ किया है वह उसकी महिमा की खातिर किया है। पुस्तकालय की रक्षा करना मेरा कर्त्तव्य था।”

“कुछ मिनिट पहले आप मेरी भी हत्या करने को तैयार थे, और इस बच्चे की भी…।”

“तुम दूसरों के मुकाबले कुशाग्रबुद्धि हो, लेकिन उनसे बेहतर नहीं हो।”

“और अब क्या होगा, अब जबकि मैं इस जाल से बच निकला हूँ?”

“हम देखेंगे,” ज्यार्गी ने जवाब दिया। “मैं तुम्हारी मौत अनिवार्यतः नहीं चाहता; हो सकता है मैं तुम्हें सहमत करने में कामयाब हो जाऊँ। लेकिन पहले मुझे बताओ: यह अनुमान तुमने कैसे लगा लिया कि यह अरस्तू की दूसरी पुस्तक थी?”

“हास्य के खिलाफ़ आपकी फटकारें, या दूसरों के साथ किये गये आपके तर्कों से जितना थोड़ा-सा मैं समझ पाया था, वह मेरे लिए निश्चय ही पर्याप्त नहीं हो सकता था। शुरू में मैं उनकी सार्थककता नहीं समझा था। लेकिन वहाँ ज़मीन पर लुढ़कते हुए एक निर्लज्ज पत्थर का जि़क्र था, और एक झींगुर का जो ज़मीन से अंजीर के पूजनीय वृक्षों को गीत सुनाएगा। मैं इस किस्म की चीज़ पहले कभी पढ़ चुका था : मैंने इन कुछ दिनों के दौरान उसकी पुष्टि की। ये वे दृष्टान्त हैं जो अरस्तू ने पोएटिक्स की पहली पुस्तक में, और अलंकारशास्त्र[vi] में  दिये हैं। तब मुझे याद आया कि इसाडोर ऑव्‌ सेविले कॉमेडी को एक ऐसी चीज़ के रूप में परिभाषित करता है जो हमें stupra virginum et amores meretricum[vii] – कैसे कहूँ? – सत्प्रेम से कमतर प्रेम के बारे में बताती है…। धीरे-धीरे इस दूसरी पुस्तक की सम्भावित शक्ल मेरे दिमाग में बनती चली गयी। मैं वह लगभग सब कुछ आपको बता सकता था, बिना इन पन्नों को पढ़े जिनका उद्देश्य मेरे लिए ज़हर देना था। कॉमेडी का जन्म किसानों के गाँवों कोमाई[viii] में  भोज या दावत के बाद होने वाले उल्लासमय उत्सव से हुआ है । कॉमेडी प्रसिद्ध और शक्तिशाली लोगों की बात नहीं करती, बल्कि उनकी बात करती है जो, यद्यपि पापात्मा नहीं हैं लेकिन निचले स्तर के और हास्यास्पद प्राणी हैं; और उसका अन्त चरितनायक की मृत्यु से नहीं होता। वह साधारण इन्सानों की कमियों और बुराइयों को दिखाकर हास्यास्पदता का प्रभाव उत्पन्न करती है। यहाँ अरस्तू हास्य की प्रवृत्ति को शिवत्व के बल के रूप में देखता है, जिसका एक शिक्षापरक मूल्य भी हो सकता है : हालाँकि वह चीज़ों को उनके यथा-अर्थ रूप से भिन्न रूप में पेश करती है, जैसे वह झूठ का सहारा ले रही हो, लेकिन इसके बावजूद परिहासजनक पहेलियों और अप्रत्याशित  रूपकों के माध्यम से वह हमें चीज़ों को ज़्यादा करीब से परखने को बाध्य करती है, और वह हमें यह कहने को विवश करती है : अरे, यही तो है, और हमें इसका पता ही न था। वहाँ सत्य तक पहुँचने के लिए मनुष्य को और जगत को उससे कहीं बदतर रूप में पेश किया जाता है जैसे वे हैं या जैसा कि हम मानते हैं कि वे हैं, कम से कम महाकाव्यों और त्रासदियों में सन्तों के माध्यम से हमें जो जीवन दिखाया जाता है उसकी तुलना में तो वे बदतर होते ही हैं। क्या ऐसा ही नहीं है?”

“काफी कुछ। तुमने दूसरी पुस्तकों को पढ़कर इसको गढ़ा है?”

“उनमें से कई को जिन पर वेनेण्टियॅस काम कर रहा था। मेरा ख़याल है, वेनेण्टियॅस को अरसे से इस पुस्तक की तलाश थी। उसने कैटलॉग में निश्चय ही उन संकेतों को पढ़ा होगा जिनको मैंने भी पढ़ा है, और निश्चय ही यह कल्पना की होगी कि यही वह पुस्तक थी जिसकी उसको तलाश थी। लेकिन फिनिस आफ्रिकेइ में प्रवेश की विधि उसको नहीं आती थी। जब उसने बेरेंगर को अडेल्मो से इसके बारे में बात करते सुना, तो वह खरगोश का शिकार करते कुत्ते की भाँति उसके पीछे पड़ गया।”

“यही हुआ था। मैं तुरन्त ही समझ गया था। मुझको लग गया था कि अब वक़्त आ चुका है जब मुझे पुस्तकालय की रक्षा के लिए जी जान से कोशिश करनी होगी…।”

“और आपने लेप चढ़ा दिया। बहुत मुश्किल काम रहा होगा…अँधेरे में…।”

“मेरे हाथ अब तुम्हारी आँखों से ज़्यादा देख लेते हैं। मैंने सेवेरिनॅस से एक ब्रश प्राप्त कर लिया था, और दस्तानों का भी इस्तेमाल मैंने किया था। यह एक अच्छी तरकीब थी, नहीं? तुम्हें इसको पकड़ पाने में काफी वक़्त लगा…”

“हाँ। मुझे लगा था कि यह अपेक्षाकृत कोई जटिल युक्ति होगी, ज़हर-बुझा पिन, या ऐसी ही कोई चीज़। मुझे मानना पड़ेगा कि आपका यह निदान अपने में एक मिसाल था: शिकार ने खुद को उस वक़्त ज़हर दिया जब वह अकेला था, और उतना ही जितना कि वह पढ़ना चाहता था…।”

मैंने काँपते हुए अनुभव किया कि एक नैतिक मुठभेड़ के लिए तैयार ये दोनों इन्सान, इस पल, कुछ इस तरह एक दूसरे की सराहना कर रहे थे, मानों प्रत्येक ने सब कुछ महज़ दूसरे की तारीफ़ हासिल करने के लिए किया था। मेरे मन में विचार आया कि बेरेंगर अडेल्मों को ललचाने के लिए जिन युक्तियों का इस्तेमाल करता था, और जिन सरल और सहज कृत्यों से उस लड़की ने मेरे आवेगों और इच्छाओं को उकसाया था, उनका कोई मुकाबला उस चालाकी और उन्मादपूर्ण विदग्धता से नहीं हो सकता था जिसका प्रयोग ये दोनों एक दूसरे पर जीत हासिल करने के लिए कर रहे थे; उसका कोई मुकाबला मेरी निगाहों के सामने जारी बहकावे के उन कृत्यों से नहीं हो सकता था, जो इन पिछले सात दिनों को कुछ इस तरह सामने ला रहे थे मानों बातचीत में मुब्तिला ये दोनों लोग एक दूसरे से डरते और नफरत करते हुए, मन ही मन एक दूसरे की सराहना हासिल करने की आकांक्षा करते हुए, आपस में रहस्यमय मुलाकातें करते रहे हों।

“लेकिन अब मुझे बताइये,” विलियम कह रहे थे, “क्यों? आखिर क्यों आप दूसरी बहुत सी पुस्तकों को छोड़कर इसी पुस्तक को मुहरबन्द कर रखना चाहते थे? क्यों आप प्रेतविद्या के उन ग्रंथों को तो छुपाये रहे – जिसके लिए भले ही आपने किसी अपराध का सहारा नहीं लिया – जिनके पन्नों ने ईश्वर के नाम को कलंकित किया हो सकता है, लेकिन इन पन्नों की खातिर आपने अपने बन्धुओं को और खुद को नर्क में झोंक दिया? और भी दूसरी पुस्तकें हैं जो कॉमेडी की बात करती हैं, जो हास्य की सराहना करती हैं। फिर इसी पुस्तक ने क्यों आपको इस कदर आतंकित किया?”

“क्योंकि वह दार्शनिक था। इस इन्सान की लिखी हर पुस्तक ने उस ज्ञान के एक अंश को नष्ट किया है जिसको ईसाइयत ने सदियों की मेहनत से एकत्र किया था। वाक्‌-शक्ति के बारे में जो कुछ भी कहे जाने की ज़रूरत थी वह सब कुछ हमारे प्राचीन ग्रंथकार कह चुके थे, लेकिन इसके बाद बीथियॅस को दार्शनिक की व्याख्याएँ भर उसमें जोड़ने की ज़रूरत थी और वह दिव्य वाक्‌ -शक्ति धारणाओं और हेत्वाभासों की एक मानवीय पैरोडी में रूपान्तरित होकर रह गयी। सृष्टि-कथा[ix] की पोथी में वह सब कुछ कह दिया गया है जो इस ब्रह्माण्ड की रचना के बारे में जानने योग्य है, लेकिन इसके बाद जड़ और चिपचिपे पर्दाथों की पदावली में विश्व की पुनर्कल्पना के लिए दार्शनिक की भौतिकी के पुनराविष्कार भर की ज़रूरत थी, और अरब एवेरोस ने तो इस दुनिया की शाश्वतता के बारे में हर किसी को लगभग विश्वास ही दिला दिया था। हम दैवीय नामों के बारे में लगभग सब कुछ जानते थे, और दार्शनिक द्वारा बहकाये गये एबो के हाथों दफ़्न डोमीनिकन ने नैसर्गिक तर्क का अनुसरण करते हुए, उनका फिर से नामकरण किया। और नतीजतन ब्रह्माण्ड जिसने एरोपेगाईट की दृष्टि में अपने आपको उन लोगों के लिए प्रगट किया था जो जानते थे कि आदर्श-स्वरूप आदि कारण के तेजोमय प्रपात का साक्षात्कार किस तरह किया जाना चाहिए, वह उन सांसारिक निशानों का अहाता बनकर रह गया है जिनका सम्बंध किसी अमूर्त कर्त्तत्व से जोड़कर देखा जाता है। कभी हम, जड़ प्रकृति के दलदल की तरफ़ कृपापूर्वक महज़ एक क्रुद्ध निगाह डालते हुए, आसमान की ओर उम्मीद से ताका करते थे, आज हम धरती की ओर उम्मीद से ताकते हैं, और दुनियावी साक्ष्य के आधार आसमान में विश्वास करते हैं। दार्शनिक के हर शब्द ने, जिसके नाम पर अब संत और पैगम्बर तक शपथ लेने लगे हैं, जगत की छवि को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है। अगर यह पुस्तक व्याख्या का विषय बन जाती है…व्याख्या का विषय बन गयी होती, तो हम आखिरी हद पार कर गये होते।”

“लेकिन हास्य की इस बहस में वह क्या चीज़ थी जिसने आपको भयभीत किया? आप इस पुस्तक को नेस्तनाबूत करके हास्य को तो नेस्तनाबूत नहीं कर सकते।”

“नहीं, निश्चय ही नहीं। लेकिन हँसी कमज़ोरी है, विकृति है, हमारी देह की मूढ़ता है। यह गँवारों की दिलजोई है, पियक्कड़ों का स्वैराचार है; गिरजाघर तक ने अपनी अक्लमन्दी में जश्न, रंगरेली, नुमाइश के आवेग की इजाज़त दे रखी है, इस रोज़मर्रा प्रदूषण की, जो विनोद की भावनाओं का उन्मोचन करता है और दूसरी इच्छाओं और दूसरी महत्त्वाकांक्षाओं से विरत करता है…। हास्य तब भी घृणित है, क्षुद्र इन्सानों के लिए बचाव का एक साधन, प्राकृत जनों के लिये भद्दी पहेली। अनुयायी ने भी यही कहा है : जलते रहने से ब्याह कर लेना भला है। ईश्वर की स्थापित व्यवस्था के ख़िलाफ़ विद्रोह करने की बजाय, भोजन करने के बाद, जब तुम जग और फ्लास्क ढँगोस चुको, तो हँसो और इस व्यवस्था की पैरोडी का आनन्द लो। मूर्खों के राजा को चुनो, अपने को गधे और सुअर की सार्वजनिक पूजा के लिए ढीला छोड़ दो, अपने शनि महोत्सव में सिर के बल करतब दिखाओ…। लेकिन यहाँ, यहाँ पर” – कहते हुए ज्यार्गी ने मेज़ पर, विलियम के हाथ में थमी पुस्तक के करीब, अपनी अँगुली पटकी – “यहाँ पर हास्य की भूमिका उलट गयी है, यहाँ उसको कला की ऊँचाई पर पहुँचा दिया गया है, ज्ञानियों की दुनिया के दरवाज़े उसके लिए खोल दिये गये हैं, वह दार्शनिक जिज्ञासा का, प्रवंचक धर्मशास्त्र का विषय बन गया है…। कल तुम देख ही चुके हो कि क्षुद्र लोग किस तरह से, ईश्वर के और कुदरत के नियमों को नकारते हुए, घोर विधर्मिताओं की कल्पना को रूप दे सकते हैं और उनका पालन कर सकते हैं। लेकिन चर्च इन क्षुद्र लोगों की विधर्मिता से निबट सकती है, जो अपने ही अज्ञान का शिकार होकर खुद को सज़ा दे देते हैं। डोल्सिनो और उस जैसों की अज्ञान से भरी विक्षिप्तता दैवीय विधान के लिए कभी कोई संकट खड़ा नहीं कर सकती। वह हिंसा का प्रचार करेगा और हिंसा से ही मारा जाएगा, अपनी कोई निशानी छोड़कर नहीं जाएगा, उसी तरह निःशेष हो जाएगा जिस तरह रंगरेलियाँ निःशेष हो जाती हैं, और अगर जश्न के दौरान पृथ्वी पर थोड़ी-सी देर के लिए सिर के बल खड़ी दुनिया का चमत्कार पैदा कर दिखा भी दिया जाता है, तो इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। बशर्ते कि इस कृत्य को योजना में न बदल दिया जाय, बशर्ते कि इस गन्दी जुबान को वह लैटिन न मिल जाए जो उसका अनुवाद कर दे। हास्य खेतिहर मज़दूर को शैतान के खौफ़ से आज़ाद कर देता है, क्योंकि मूर्खों के जश्न में शैतान भी अकिंचन और बेवकूफ़ प्रतीत होता है, और इसलिए लगता है कि उसको काबू में रखा जा सकता है। लेकिन यह पुस्तक सीख दे सकती थी कि अपने आपको शैतान के खौफ़ से आज़ाद कर लेना अक्लमन्दी है। जब एक खेतिहर हँसता है और उसके गले में मदिरा गड़गड़ाती है, तो उसको लगता है कि वह मालिक है, क्योंकि उसने अपने सामन्त के सन्दर्भ में अपनी स्थिति को उलट दिया है; लेकिन यह पुस्तक ज्ञानियों को उन चालाक और सुविदित युक्तियों की सीख दे सकती थी जो इसकी विपरीत स्थिति को वैधीकृत कर सकती थीं। तब जो चीज़ उस खेतिहर में अब तक, सौभाग्य से उदर तक सीमित है, वह उसके मस्तिष्क के क्रिया-व्यापार में बदल जाएगी। हास्य का मानवोचित होना हम पापियों की सीमा का संकेत है। लेकिन तुम्हारे जैसे बहुतेरे भ्रष्ट दिमाग इस पुस्तक से एक ऐसी अतिवादी तर्क-विधि ढूँढ निकाल सकते हैं, जिसके मुताबिक हास्य को मनुष्य का लक्ष्य सिद्ध कर दिया जा सकता है! हास्य, कुछ पलों के लिए, खेतिहर को निर्भीक बना सकता है। लेकिन क़ानून उस भय के सहारे ही प्रभावी होता है, जिसका असल नाम ईश्वर का भय है। यह पुस्तक लुसीफरीय चिंगारी पैदा कर सकती थी जो समूची दुनिया में एक नयी आग फैला देती, और हास्य को भय का उन्मूलन करने वाली एक ऐसी नूतन कला के रूप में परिभाषित किया जाने लगता, जिसकी जानकारी प्रॉमेथियॅस तक को नहीं थी। खेतिहर के लिए अपने हँसी के क्षण में मौत कोई मानी नहीं रखती : लेकिन फिर, जब वह लाइसेंस खत्म हो जाता है, तो प्रकाशना-ग्रंथ, दैवीयोजना के मुताबिक, उसमें मृत्यु का भय फिर से आरोपित कर देता है। जबकि इस पुस्तक से भय-मुक्ति के रास्ते मृत्यु को खत्म कर देने का एक नया विनाशकारी लक्ष्य पैदा हो सकता था। और इस भय के बिना, इस अत्यन्त दूरदृष्टिपूर्ण, अत्यन्त प्रिय दैवी वरदान के बिना, हमारा, हम पापी प्राणियों का क्या अर्थ होता? सदियों तक विद्वानों और पुरोहितों ने उत्तम का ध्यान करते हुए पवित्र ज्ञान का सौरभ उत्पन्न किया है, ताकि जो अधम है उसकी कष्टमयता और प्रलोभन से मुक्ति मिल सके। और, अपने विद्रूपों और स्वाँगों से युक्त कॉमेडी को, एक ऐसी चमत्कारी औषधि मानते हुए जो दोषों, ग़लतियों और कमज़ोरियों के अभिनय के माध्यम से मनोविकारों का शुद्धीकरण कर सकती है, यह पुस्तक छद्म अध्येताओं को एक पैशाचिक विपर्यय के सहारे, यानी अधम की स्वीकृति के सहारे,  उत्तम की मुक्ति के प्रयत्न के लिए प्रोत्साहित करती। यह पुस्तक इस धारणा को उभाड़ सकती थी कि इन्सान धरती पर (जैसा कि तुम्हारे बेकॅन ने नैसर्गिक माया के प्रसंग में संकेत किया था) आलसियों के स्वर्ग के प्राचुर्य की आकांक्षा कर सकता है। लेकिन यह वह चीज़ है जिसे हम न तो हासिल कर सकते हैं और न करना चाहिए। देखो उन युवा भिक्षुओं की तरफ़ जो कोएना सिप्रिआनि की पैरोडी करती भड़ैती को बेशर्मी से पढ़ते रहते हैं। क्या ही पैशाचिक रूपान्तरण है पवित्र ग्रंथ का! और उसको पढ़ते हुए वे जानते हैं कि यह पाप है। लेकिन जिस दिन दार्शनिक के शब्द इस लम्पट कल्पना के हाशिये के मज़ाक का औचित्य सिद्ध कर देंगे, या जब हाशिये की यह चीज़ उछलकर केन्द्र में आ जाएगी, तो केन्द्र का हर निशान खो जाएगा। परमात्मा के लोग अज्ञात लोक के गर्त से उगले गये दैत्यों के झुण्ड में बदल जाएँगे, और उस पल में ज्ञात सृष्टि का छोर ईसाई साम्राज्य का हृदय-स्थल बन जाएगा, एरिमास्पी पीटर के सिंहासन पर होगा, ब्लेमी मठों में होंगे, भारी तोंदों और विशाल सिरों वाले बौने पुस्तकालय के प्रभारी होंगे! दास क़ानून बनाएँगे, हम (लेकिन तब तुम भी), किसी क़ानून के अभाव में, उन क़ानूनों का पालन करेंगे। एक ग्रीक दार्शनिक (पाप में भागीदार और घृणित ग्रंथकार, जिसको तुम्हारे अरस्तू ने यहाँ पर उद्धृत किया है) का कहना है कि प्रतिपक्षी की गम्भीरता को हँसी में उड़ा देना चाहिए, और हँसी का मुकाबला गम्भीरता से करना चाहिए। हमारे पुरोहितों की मनीषा ने अपना विकल्प रखा है : अगर हँसी नीचों का आह्लाद है, तो इन नीचों की इस छूट पर रोक लगानी चाहिए और उसको कुचल देना चाहिए, और उनको पूरी बेरहमी के साथ डराया जाना चाहिए। और इन नीचों के पास अपनी हँसी को परिष्कृत करने के कोई हथियार नहीं होते जब तक कि वे उसको उन आध्यात्मिक रखवालों की संजीदगी के खिलाफ़ एक उपकरण में नहीं बदल लेते जिनका कर्तव्य है कि वे उनको चिरन्तन जीवन की ओर ले जाएँ और जठर, उपस्थ, आहार के प्रलोभनों से, उनकी कुत्सित वासनाओं के प्रलोभनों से, उनका उद्धार करें। लेकिन कल्पना करो कि अगर एक दिन कोई उस दार्शनिक के शब्दों को भाँजता हुआ और लिहाजा एक दार्शनिक जैसी भाषा में बात करता हुआ आये और हास्य के शस्त्र को एक सूक्ष्म शस्त्र की अवस्था तक ऊँचा उठा दे, कि परिहास की वाग्मिता दृढ़ आस्था की वाग्मिता की जगह ले ले, कि प्रत्येक पवित्र और श्रद्धास्पद आदर्श के अधीर खण्डन और विपर्यास के विषय मुक्ति के आदर्शों को धीरज के साथ गढ़ने वाले विषयों की जगह ले लें – आह, विलियम, उस दिन यहाँ तक कि तुम, और तुम्हारा सारा ज्ञान भी खत्म हो जाएगा!”

“क्यों? मैं दूसरों की बुद्धि के साथ अपनी बुद्धि का मेल बिठाऊँगा। यह उससे तो बेहतर दुनिया होगी जहाँ बर्नार्ड गुई की आग और दहकता हुआ लोहा डोल्सिनो की आग और दहकते हुए लोहे को नीचा दिखाते हैं।”

“तुम खुद भी तब तक शैतान के जाल में फँस चुके होगे। तुम उस अर्मागेडॉन की युद्ध-भूमि में दूसरे पक्ष की ओर से लड़ रहे होगे जहाँ निर्णायक लड़ाई का लड़ा जाना सुनिश्चित है। लेकिन तब तक इस संघर्ष का नियमन चर्च के हाथ में होगा। ईश-निन्दा हमें डराती नहीं है, क्योंकि हम तो ईश्वर को दी जा रही गालियों में भी उस जेहोवह के क्रोध की बिगड़ी हुई शक्ल को पहचान लेते हैं जो विद्रोही देवदूतों को शाप देता है। हम उन लोगों की हिंसा से नहीं डरते जो नवीनीकरण की किसी फन्तासी के नाम पर रखवालों की हत्या करते हैं, क्योंकि यह उन राजपुत्रों जैसी ही हिंसा है जिन्होंने इज़राइल के लोगों का विनाश करने की कोशिश की थी। हम डोनाटिस्टों की उग्रता से, सर्कमसेलियनों की विक्षिप्त आत्महत्या से, बोगोमिलों की वासना से अल्बिजेन्सियनों की अहंकारी शुचिता से, अपने आपको कोड़ों से पीटने वालों की रक्त की आकांक्षा से, ब्रदर्स ऑव् द फ्री स्पिरिट्स सम्प्रदाय के सहधर्मियों के अनिष्टकारी पागलपन से खौफ़ नहीं खाते: हम उन सब को जानते हैं और उनके पाप की जड़ों को भी जानते हैं, जोकि हमारी धार्मिकता की भी जड़ें हैं। हम खौफ़ नहीं खाते, और इससे भी बढ़कर यह कि हम उनको खत्म करना भी जानते हैं – बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि हम जानते हैं कि उनको खुद ही अपने आप को खत्म कर डालने की छूट कैसे दी जानी चाहिए, उनको जो स्वयं अपने पतन की पराकाष्ठा पर उत्पन्न मरने के संकल्प को अहंकारपूर्वक उसकी पराकाष्ठा पर लिये फिरते हैं। बल्कि मैं तो यह कहूँगा कि उनकी मौजूदगी हमारे लिए बहुत मूल्य रखती है, वह परमात्मा के विधान में अंकित है, क्योंकि उनके पाप हमारे सदाचार को उत्प्रेरित करते हैं, उनकी ईश-निन्दा हमारी स्तुतियों को प्रोत्साहित करती है, उनकी अनुशासनहीन तपश्चर्या उत्सर्ग की हमारी अभिरुचि का नियमन करती है, उनकी अश्रद्धा हमारी श्रद्धा में चमक पैदा करती है, ठीक वैसे ही जैसे कि विद्रोह और हताशा से भरा हुआ अँधेरे का राजकुमार, शैतान ईश्वर की उस महिमा को और भी दैदीप्यमान बनाने के लिए ज़रूरी था जिसमें सारी उम्मीदों का आरम्भ और अन्त निहित है। लेकिन अगर किसी दिन – और प्राकृत जनों के करने योग्य लोकापवाद की तरह नहीं, बल्कि सुशिक्षितों यानि पवित्र ग्रंथ के अविनश्वर साक्ष्य के प्रति समर्पित लोंगों के समुदाय के आचरण के रूप में – हँसी-ठिठोली की कला स्वीकार्य बना दी जाती है, और उसको अभिजात और उदार शक्ल प्रदान कर दी जाती है और उसको नैसर्गिक नहीं बने रहने दिया जाता; अगर किसी दिन कोई यह कहने (और सुने जाने) का दुस्साहस करता है कि “कि मैं अवतार पर हँसता हूँ,” तो फिर ईश-निन्दा का मुकाबला करने के कोई हथियार हमारे पास नहीं रह जाएँगे, क्योंकि तब वह दैहिक पदार्थों की अँधेरी शक्तियों का आह्वान कर रही होगी, उन शक्तियों का जिनका प्रतिज्ञान पादने और डकारने की क्रियाओं में होता है, और जिस चीज़ पर सिर्फ़ आत्मा का हक़ है उस पर पाद और डकार दावा करेंगे, कि जहाँ वे चाहें वहाँ बहें!”

“लाइसर्गस ने हास्य के लिए एक प्रतिमा खड़ी की थी।”

“इसे तुमने उस क्लोरीशियन के अपलेख में पढ़ा है, जिसने अश्रद्धा के पाप के स्वाँगों को दोषमुक्त करने का प्रयत्न किया था, और जिसका कहना है कि एक डॉक्टर ने किसी बीमार आदमी को हँसाकर भला-चंगा कर दिया था। क्या ज़रूरत थी उसको भला-चंगा करने की, जबकि परमात्मा ने निश्चित कर दिया था कि उस इन्सान का पार्थिव जीवन अपने अन्त पर पहुँच चुका था?”

“मैं नहीं मानता कि डॉक्टर ने उसको भला-चंगा कर दिया था। उसने उसको उसकी बीमारी पर हँसना सिखाया था।”

“बीमारी को झाड़-फूँक कर दूर नहीं किया जाता। उसको ख़त्म करना होता है।”

“बीमार आदमी के शरीर के साथ?”

“अगर ज़रूरी हो, तो।”

“आप शैतान हैं,” तब विलियम ने कहा।

लगा जैसे ज्यार्गी को कुछ समझ में नहीं आया। अगर वह देखने में सक्षम होता, तो मैंने कहा होता कि उसने अपने सम्भाषणकर्ता की ओर विस्मय से देखा। “मैं?” उसने कहा।

“हाँ। उन्होंने आपसे झूठ बोला है। भूत-द्रव्यों का सम्राट शैतान नहीं है; शैतान है आत्मा का दर्प, मुस्कान-रहित आस्था, वह सत्य जिसे कभी भी संशय ने नहीं घेरा। शैतान क्रूर है क्योंकि वह जानता है कि वह कहाँ जा रहा है, और, अपनी गति में, वह हमेशा वहीं लौटता है जहाँ से वह आया था। आप शैतान हैं, और शैतान की ही भाँति आप अँधेरे में रहते हैं। अगर आपका इरादा मुझको सहमत कर लेने का था, तो आप विफल रहे हैं। मैं आप से घृणा करता हूँ, ज्यार्गी, और अगर मेरा वश चलता, तो मैं आपको नीचे ले जाकर, नंगा कर, आपकी गाँड में मुर्गे के पंख खोंसकर और आपके चेहरे को एक मदारी और मसखरे की तरह रँगकर, आपको  खुले मैदान में घुमाता, ताकि समूचा मठ आप पर हँसता और उसके दिल से आपका खौफ़ जाता रहता। मैं आपके सारे शरीर पर शहद चुपड़ता और फिर आपको पंखों में लपेटता, और आपके गले में पट्टा बाँधकर आपको मेलों में ले जाता, यह ऐलान करने कि : यह आपके लिए सत्य का प्रकाशन कर रहा था और आपसे कह रहा था कि सत्य में मृत्यु का स्वाद होता है, और आप विश्वास करते थे, उसके शब्दों में नहीं, बल्कि उसकी क्रूरता में। और अब मैं आपसे कहता हूँ कि सम्भावित चीज़ों के अनन्त आवर्तन में परमात्मा आपको एक ऐसी दुनिया की कल्पना करने की छूट भी देता है जहाँ सत्य का यह अहंकारी व्याख्याकार एक भौंडे कव्वे से ज़्यादा कुछ भी नहीं है, जो सदियों पहले रटे गये शब्दों को दोहराता रहता है।”

“तू शैतान से भी बदतर है, माइनॉराइट,” ज्यार्गी ने कहा। “तू उस सन्त की ही तरह का एक मसखरा है जिसने तुम सब को पैदा किया था। तू अपने उस फ्रांसिस जैसा ही है, जिसने de toto fecerat linguam[x], नीमहकीम की तरह करतब दिखा-दिखा कर उपदेश दिया करता था, जो लालचियों की मुट्ठी में सोने की मुहर रखकर उनका मुँह बन्द कर देता था, जो प्रवचन देने की बजाय “मिज़रीअॅरी”[xi] का पाठ कर ननों को अपमानित करता था, जो फ्रांसीसी बोलकर भीख माँगता था और लकड़ी का एक टुकड़ा हाथ में लेकर एक वायलिन-वादक की तरह अभिनय करता था, जिसने पेटू भिक्षुओं को दिग्भ्रमित करने के लिए यायावर का वेश धारण कर रखा था, जो नंगा होकर बर्फ़ में कूद गया था, जो जानवरों और पौधों से बतियाता था, जिसने नैटिविटी  के चमत्कार को एक गँवई कौतुक में बदल दिया था, भेड़ की मिमियाहट की नकल कर बैथलेहेम के मेमने को पुकारा था…। अच्छा सम्प्रदाय था। दिवोतिसाल्वी ऑव्‌ फ्लोरेंस भी क्या माइनॉराइट ही नहीं था?”

“हाँ।” विलियम मुस्कराये। “वही जिसने प्रचारकों के कॉन्वेण्ट में जाकर कहा था कि वह तब तक अन्न ग्रहण नहीं करेगा जब तक कि उसको एक निशानी की तरह अपने पास सुरक्षित रखने के लिए ब्रॅदर जॉन के चोगे का एक टुकड़ा नहीं दे दिया जाता, और जब उसको वह दे दिया गया, तो उसने उससे अपने चूतड़ पोंछे और उसको लीद के ढेर पर फेंक दिया और एक छड़ी से उसको लीद में लिथेड़ते हुए चिल्लाया : आह, बंधुओं मेरी मदद करो, क्योंकि मैंने सन्त की निशानी पाखाने में गिरा दी है!”

“लगता है, इस किस्से में तुम्हें मज़ा आ रहा है। शायद तुम मुझे उस दूसरे माइनॉराइट भिक्षु पॉल मिलेमो के बारे में भी बताना चाहो, जो एक दिन बर्फ़ पर पछाड़ खाकर गिरा था; जब उसके नगर के लोगों ने उसका मज़ाक उड़ाया और एक ने उससे पूछा कि क्या वह किसी बेहतर चीज़ पर लेटना पसन्द नहीं करेगा, तो उसने उस आदमी को जवाब दिया: हाँ, तुम्हारी बीवी पर…यह है सत्य को खोजने का तुम और तुम्हारे सहधर्मियों का ढंग।”

“इस तरह से फ्रांसिस ने चीज़ों को एक बिल्कुल अलग कोण से देखने की शिक्षा लोगों को दी थी।”

“लेकिन हमने उनको सीधा कर दिया है। तुमने कल अपने उन सहधर्मियों को देखा ही है। वे फिर से हमारी जमात में शामिल हो गये हैं, उन लोगों ने अब प्राकृत जनों की जुबान में बात करना बन्द कर दिया है। प्राकृत जनों को बोलना कतई ज़रूरी नहीं है। यह पुस्तक इस धारणा का औचित्य सिद्ध कर सकती थी कि प्राकृत जनों की जुबान प्रज्ञा की वाहक होती है। इसका प्रतिकार अनिवार्य था, जो मैंने किया। तुम कहते हो, मैं शैतान हूँ, लेकिन यह सच नहीं है : मैंने ईश्वर के हाथ की भूमिका निभायी है।”

“ईश्वर का हाथ सृजन करता है, वह छिपाता नहीं है।”

“कुछ मर्यादाएँ हैं जिनके परे जाने की इजाज़त नहीं है। यह ईश्वर का ही निर्देश था कि कुछ खास पन्नों को ही “hic sunt leones”[xii] शब्दों को धारण करना चाहिए।”

“ईश्वर ने दैत्यों की भी सृष्टि की है। और आपकी भी। और वह हर चीज़ को बोलने देना चाहता है।”

“ज्यार्गी ने अपने काँपते हाथ आगे बढ़ाये और पुस्तक को अपनी तरफ़ खीच लिया। उसने उसको खुला रखा लेकिन इस तरह मोड़ दिया कि विलियम अब भी उसको ठीक से देख सकते थे। “तब फिर,” उसने कहा, “इस मज़मून को उसने सदियों के अन्तराल में लुप्त क्यों हो जाने दिया, और सिर्फ़ एक प्रति बची रहने दी, और फिर उस प्रति की एक प्रतिलिपि, जो न जाने कहाँ जा पहुँची थी, को क्यों उस एक काफ़िर के हाशिये में बने रहने दिया जिसको ग्रीक नहीं आती थी, और फिर उसको एक प्राचीन पुस्तकालय के एकान्त में परित्यक्त पड़ा रहने दिया, जहाँ विधाता ने इसे खोज कर कई और वर्षों तक छुपाये रखने के लिए मुझको, न कि तुमको बुलाया? मैं जानता हूँ, मैं जानता हूँ, कुछ इस तरह मानों मैंने इसे पत्थर की लकीर की तरह खुदा हुआ देखा था, अपनी इन आँखों के सहारे, जो उन चीज़ों को देख सकती हैं जिनको तुम नहीं देख सकते, मैं जानता हूँ कि यह प्रभु की इच्छा थी, और उस इच्छा का निर्वचन करते हुए मैंने अपना काम किया। परम पिता के नाम पर, उसके पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर।”

(अंग्रेज़ी से अनुवादः मदन सोनी )


Notes:

[i] Jorge का उच्चारण स्पहानी ढंग से करने पर ‘होर-हे’ और अन्यथा ‘ज्यार्गी’ किया जाता है। चूँकि इस पात्र (पूरा नाम Jorge de Burgos) को इसके नाम और कई अन्य समानताओं के कारण अक्सर मशहूर अर्जेंटीनी लेखक Jorge Loius Borges से प्रेरित माना जाता है, इसके नाम को भी होरहे पुकारा गया है।मैंने वह उच्चारण काम में लिया है जो पात्र और कथा की इतालवी पृष्ठभूमि के साथ अधिक संगत जान पड़ा। उपन्यास पर बनी सॉन कॉनेरी और क्रिश्चियन स्लेटर अभिनीत फिल्म में भी यही उच्चारण काम में लिया गया है।

[ii] Coena Cypriani

[iii] Apocalypse

[iv] Appocalypses

[v] Codices

[vi] Rhetoric

[vii] लेखक ने इस उपन्यास में कई जगह कई वाक्यों को लैटिन में लिखा है। अंग्रेजी पाठ (अनुवाद विलिय वीवर, विंटेज क्लैसिक) में भी वे मूल ही में प्रकाशित हैं (और उन्हें कई बार पाठ के कहीं भी भीतर ना बाहर अनूदित भी नहीं किया गया है – योरोपीय परिप्रेक्ष्य में यह शायद पर्याप्त था लेकिन हिन्दी में अनुवाद करते हुए यह एक प्रमुख बाधा रही है जो इस वजह से और भी बढ़ गई कि बहुत सारे लैटिन ‘उद्धरण’ Apocryphal हैं। यहाँ हिन्दी अर्थ हैः सत्प्रेम से कमतर प्रेम उपन्यास के पृ. 442 पर stupris virginum et meretricum amoribus एक पुस्तक का शीर्षक है और पृ. 287 पर वेनेजियो की डेस्क पर विलियम जिन नोट्स को पढ़ता है उसमें एक पद stuprano vergini e giacciono con meretrici है। उपन्यास के एक पाठकर्ता गेरहार्द वान डर लिण्डे (1995) ने इन तीन सिलसिलेवार प्रयोगों को इस बात के क्लू के रूप में पढ़ा है कि विलियम बिना देखे/पढ़े ही अरस्तू की द सैकण्ड बुक ऑव् पोएटिक्स के अवयवों (Content) का सही अनुमान कैसे कर पाता है।

[viii] Komai

[ix] The Book of Genesis

[x] पर्याप्त खोजबीन के बावज़ूद मैं इसे लोकेट करने में सफल नहीं हुआ।

[xi] Miserere

[xii] इसका अर्थ है Here be dragons और यह पद अनखोजे इलाकों और मार्गों को इंगित करने के अर्थ में प्रयुक्त होता है।

5 comments
Leave a comment »

  1. बहुत बड़ा कार्य है! मेरे प्रियतम लेखकों में शुमार एको की इतनी जटिल पुस्तक का अनुवाद करने हेतु आपको साधुवाद सोनी जी!

  2. adhbhut, sir.
    aap ne ek mahaan kaarya kiya hain.

  3. shresth,aise hi kaam hindi ki aadaten badal sakte hain.

  4. madanji ke is anuvaad se pahle mai unka is upanyas par likha lekh bhi kai kai baar parha hai, wah ek apratim samikshha hai. maine sachmuch us lekh ko parhkar pustak samikshhaa likhna seekha. bahut prawahpurna anuvaad hai. aapne ye bahut achha kiya ki saath me lekh bhi chhap diya. is lekh se name of the rose ke text ki ranniti samajh men aati hai. madanji par aapki likhat bhi bahut achha hai. dhanyavaad ki aapke kaaran itna achha text parne ko mila.

  5. mujhe madanji k eco prem ki bhanak thi…pratilipi ke madhyam se use itni pramanikta se main jaan bhi saka…

Leave Comment