आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

दस हंगारी कवि

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लास्लो नॉज

धुएँ और बर्फ की बौछार में

धुएँ और बर्फ की बौछार में आगे बढ़ा मैं,
सपना मुझे खींच रहा था।
उस दूसरे को खोज रहा था मैं, तुम मेरे पास थे,
तलवार की धार पर खिली एक पंखुरी,
मेरा आहत फूल।

ये बीस बरस हिरा गये, लेकिन
तुम मेरी सांत्वना हो।
गन्दी बस्ती में जहाँ धुआँ उड़ रहा है,
तुम्हारे मुँह से बजता ‘ऑर्गन’
पुलक भर देता है।

सुन्दरता और खुशी दे जाती हैं मुझे
आश्चर्यमय जीवन।
उन्हीं की खातिर मैं जल रहा हूँ
गोकि निचोड़ना है मुझे शहद
एक बन्दी की तरह
फूलों से, ताकि मैं जीता रहूँ।

मेरा जीवन अस्तवयस्त है।
मेरा भाग्य अस्तवयस्त है।
कर दो मुझे लैस आपाद-मस्तक आस्था से
ताकि आखिरी दम तक
निभाऊँ मैं साथ।

अनुवादः गिरधर राठी / सहयोगः मारगित कोवैश

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4 comments
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  1. बहुत सुंदर और मार्मिक कविता। बहुत गहरे छू गई…

  2. Fine translation into Hindi of a beautiful Hungarian poem,

  3. बेहतरीन अनुवाद

  4. THIS IS ALSO A FINE TRANSLATION

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