आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

दस हंगारी कवि

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आग्नैश नैमैश नॉज

अपने शिल्प कौशल से

मेरे शिल्प कौशल मेरे आनन्द
किस क़दर बचाते हो तुम मुझे
नीति और भीती के बीच,
अंधेरे-उजाले के बीच;

चट्टानों और बेडौल बादलों के मस्तिष्क
भीषण सैरे –
टकराते, बिजली कड़कती है
फूट पड़ती है विकराल आग

लड़ रहे हैं वे
आग की लपटों वाली हवा में
बुदॉ का अंतहीन युद्ध
मैं जानती जिन्हें अपने जन्म के बीज से

जहाँ हर चीज़ कँपकँपाती है
और हर चीज़ खो जाएगी,
जहाँ हृदय होता है तार-तार,
शव्द टँगा है एक डोर पर,

जहाँ शव्द डोलता धरा से गगन तक
फुँफकारती कड़कड़ाती एक लय में
सँजोता अपने झटकों, तड़पड़ाहटों
और बादलों को।

नीति और भीति के बीच
या फिर अनीति-भरी भीति से,
मेरे शिल्प-कौशल तुम्हीं हो जो
अब भी तौल देते हो अतुल्य को,

तुम, एक डोलता पेण्डुलम,
टिकटिका देते तुम एकाकी काल को।
ओ मेरे शिल्प-कौशल तुम
करते हो रात को दिन से अलग।

अनुवादः गिरधर राठी / सहयोगः मारगित कोवैश

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4 comments
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  1. बहुत सुंदर और मार्मिक कविता। बहुत गहरे छू गई…

  2. Fine translation into Hindi of a beautiful Hungarian poem,

  3. बेहतरीन अनुवाद

  4. THIS IS ALSO A FINE TRANSLATION

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