आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

दस हंगारी कवि

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एवॉ तोथ

गवाही वैन गो की

एक समय था
जब अपने चित्रांकन में
चाहा था अपना उद्धार
और उद्धार इस अनुध्दार्य जगत का
गेहूँ के खेतों का कौओं का
सींखचों के पीछे या परे बिलबिलाते
सुखी-दुखी बंधु-बांधवों का उद्धार
वृक्षों वस्तुओं सूरजमुखियों नक्षत्रों का

अब मुझे पता है
मेरी उत्कृष्ट कृति तो
मेरी अनवरूद्ध मृत्यु ही है
उसी को सँवार पूर्ण करना है

मेरे रक्त से लिपे चित्रों के फलक ये
जिन्हें लिये-दिये मैं
भूख से मरा होता कल
और अब आागामी कल
बजाय इसके कि ऊन के गोले से
खेलें बिलौटे
ये जा सजाएँगे घर अरबपतियों के

ये तो बस पीड़ा के फल हैं
संयोगजात

अनुवादः गिरधर राठी / सहयोगः मारगित कोवैश

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4 comments
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  1. बहुत सुंदर और मार्मिक कविता। बहुत गहरे छू गई…

  2. Fine translation into Hindi of a beautiful Hungarian poem,

  3. बेहतरीन अनुवाद

  4. THIS IS ALSO A FINE TRANSLATION

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