आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

धार्मिक युद्दों का उद्दण्ड अट्टाहास / The Mocking Laughter of Religious Wars

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लाल्टू

इस तरह मरेंगे हम

मोबाइल पर माँ की आवाज आती है कि
जल्दी कमरे लौट जाओ
और हमें पता चलता है कि
फिर कहीं बम धमाके हुए हैं
हालाँकि सबकी आदत हो चुकी है
धमाकों की ख़बर को दूसरी दीगर ख़बरों के साथ सजाने की
फिर भी जल्दी लौट आते हैं
दोस्तों के साथ बातचीत होती है
बातों मे धमाके पीछे छूट जाते हैं
बात होती है शहर की
शहर में कहाँ कैसी मटरगश्ती की की
शहर कितना अच्छा या बुरा है की
धमाके होते रहेंगे
जैसे बस या ट्रेन दुर्घटनाएँ होती हैं
जैसे लंबे समय तक जहाँ जंग चल रही है
ऐसे इलाकों में होती रहती हैं वारदातें
आदमी को आदत हो जाती है मौत की
जैसे हत्यारों को आदत पड़ जाती है हत्याओं की
माँओं के फोन आऐंगे और हम सुनेंगे
जैसे सुनते हैं रिश्ते मे किसी की शादी की बात
हालाँकि सावधानी की रस्म निभाऐंगे
और जल्दी कमरे लौट जाएँगे
कविता गीत ग़ज़लों का स्वर होगा धीमा
जैसे धमाके और मौत पर अब रोया नहीं जा सकता
जैसे दूसरे दिन अख़बार में आई रोते हुए औरत की तस्वीर
एक बच्चे की तस्वीर जैसी है
जिसका खिलौना टूट गया है
और हँसते हैं हम यह देखते
कि रोता बच्चा कितना सुंदर है
एक दिन हँसेगे हम
पास पड़ी लाशों को देखकर
इस तरह मरेंगे हम

नाइन इलेवन

वह दुनिया की सबसे ऊँची छत थी
वहाँ मैं एक औरत को बाँहो में थामे
उसके होंठ चूम रहा था
किसी बाल्मीकि ने पढा नहीं श्लोक
जब तुम आए हमारा शिकार करने
हम अचानक ही गिरे जब वह छत हिली
एकबारगी मुझे लगा था कि किसी मर्द ने
ईर्ष्या से धकेल दिया है मुझे
मैं अपने सीने में साँस भर कर उठने को था
जब मैं गिरता ही चला
मेर चारों ओर तुम्हारा धुँआ था
यह कविता की शुरआत नहीं
यह कविता का अंत था
हमें बहुत देर तक मौका नही मिला
कि हम देखते कविता की वह हत्या
मेरी स्मृति से जल्द ही उतर गई थी वह औरत
जिसे मैं बहुत चाहता था
आखिरी क्षणों मे मेरे होठों पर था उसका स्वाद
जब तुम दे रहे थे अल्लाह को दुहाई
धुँआ फैल रहा था
सारा आकाश धुँआ धुँआ था
कितनी देर मुझे याद रहा कि मैं कौन हूँ
मैंने सोचा भी कि नहीं
कि मैं एक जिहाद का नाम हूँ
मेर जल रहे होंठ
जिनमें जल चुकी थी
एक इंसान की चाहत
यह कहने के काबिल न थे
कि मैं किसी को ढूँढ रहा हूँ
वह दुनिया की सबसे ऊँची छत थी
मेर जीते जी हुई धवस्त
मेर बाद भी बची रह गई थी धरती
जिस पर जलने थे अभी और अनिगनत होंठ
या अल्लाह!

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2 comments
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  1. Laltu,The Poem on 9×11 is the finest I have read so far. Is tarha marenge hum is no less.Are these works in English/

  2. A nice poem indeed. Showing realism and altruism and explaining the condition for creation of a meningfull poem.

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