आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

आतंकवादी की मानसिक बुनावट: प्रभात रंजन

पिछले महीने दिवंगत हुए जॉन अपडाइक की गणना आधुनिक अमेरिका के लिख्खाड़ और गंभीर लेखकों में की जाती रही है. २००६ में प्रकाषित टेररिस्ट उनका बाइसवां और जीवनकाल में प्रकाशित संभवतया अंतिम उपन्यास है. नाइन-एलेवन की घटना के बाद अमेरिका और योरोपीय मुल्कों में मुसलमान की छवि आतंकवादी के रूप में गढ़ी जा रही है, उसे अन्य के रूप में देखा जा रहा है. धीरे-धीरे एक निश्चित मुस्लिम छवि गढ़ी जा रही है. टेररिस्ट का इस संदर्भ में विशेष महत्व हो जाता है क्योंकि इसे अमेरिका के सबसे वरिष्ठ लेखकों में से एक ने लिखा.

नाइन-एलेवन की घटनाओं के बाद के विश्व और आतंकवाद ने दुनिया भर के लेखकों को लेखन के लिए प्रेरित किया. इस संदर्भ में अंग्रेज़ी में प्रकाशित जिन दो अन्य उपन्यासों की विशेष चर्चा की जा सकती है, उनमें एक उपन्यास सलमान रुश्दी का शालीमार द क्लाउन है. वैसे इस उपन्यास में व्यक्तिगत संबंधों के कारण भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत की एक कश्मीरी द्वारा हत्या की जाती है, लेकिन इसी विशेष संदर्भ के कारण यह घटना अपने आप में आतंकवादी घटना प्रतीत होने लगती है. दूसरा उपन्यास मोहसिन हामिद का रिलक्टेंट फंडामेंटलिस्ट है. नाइन-एलेवन का इस उपन्यास में गहरा संबंध है.

लेकिन जॉन अपडाइक के इस उपन्यास का विशेष महत्व इस कड़ी में इसलिए हो जाता है क्योंकि इसमें एक अमेरिकी नज़रिया दिखाई देता है. मुस्लिम अन्य की छवि का निर्माण किस तरह किया जा रहा है इसकी एक झलक इस उपन्यास में दिखाई देती है. किस तरह अमेरिका में मुसलमानों को लेकर धारणाएं रुढ़ होती जा रही हैं, किस तरह समाज में उनको शंका की निगाह से देखा जाता है – उपन्यास की कथा में इसके अनेक संदर्भ आते हैं. कथानायक १८ वर्षीय अहमद को जब जोरीलीन नामक एक लड़की चर्च में अपने प्रदर्शन को देखने के लिए आमंत्रित करती है, तो वहां उसे उस लड़की का प्रेमी अरब और ब्लैक मुस्लिम जैसे संबोधनों द्वारा अपमानित करता है. समकालीन अमेरिकी समाज की यह विडंबना ही कही जाएगी कि इजिप्शीयन पिता और आइरिश मूल की अमेरिकी मां के बेटे अहमद की तरह ही अमेरिका में मुसलमानों की पहचान अरब के रूप में रूढ़ होती जा रही है.

टेररिस्ट के माध्यम से मानो अपडाइक समकालीन अमेरिकी समाज के तनावों, उनकी राजनीति पर टिप्पणी करना चाहते थे. ऊपरी तौर पर यह कहानी १८ वर्षीय अहमद के एक मस्जिद के नौजवान इमाम शेख राशिद के प्रभाव में आकर सुसाइड बाम्बर के रूप में रूपांतरण की है. प्रसंगवश, शेख राशिद का चरित्र उपन्यास में इस तरह का नहीं लगता जो किसी के व्यक्तित्व को इतना प्रभावित कर जाए कि वह सुसाइड बाम्बर बनने को तैयार हो जाए. बहरहाल, यह कथा का ऊपरी तौर ताना-बाना भर है. उपन्यास में कथा के अनेक संदर्भ हैं, अनेक पहलू और उनसे जुड़े विमर्श हैं. सलमान रुश्दी के उपन्यास शालीमार द क्लाउन की तरह इसमें भी जासूसी उपन्यासों की तरह थ्रिल है, जिसके सूत्र धर्म-राजनीति-सांस्कृतिक पहचान से जुड़े सवालों से जुड़ते हैं.

कथा की एक विशेषता यह है कि इसमें अहमद नामक उस आतंकवादी के नज़रिए से कथा कहने की कोशिश की गई है. लेखक ने उसके माइंड को समझने की कोशिश की है. किस तरह के विचारों के प्रभाव में आकर वह लिंकन टनेल उड़ा देने जैसी घटना को अंजाम देने वाला आतंकवादी बनने को तैयार हो जाता है. उपन्यास के आरंभ में वह पाश्चात्य सभ्यता के प्रतीकों को डेविल कहकर याद करता है. अहमद की इसाई दोस्त जोरीलीन जब बातों-बातों में उसे यह बताती है कि वह चर्च तो जाती है मगर धर्म को वह उतनी गंभीरता से नहीं लेती, तो अहमद को बड़ा आश्चर्य होता है. वह जोरीलीन से कहता है कि अगर तुम अपने धर्म को गंभीरता से नहीं लेती तो तुमको चर्च नहीं जाना चाहिए.

उपन्यास में अहमद का चरित्र बहुत नैतिक दिखाया गया है. वह धर्म के अनुरूप आचरण करता है और इस बात को लेकर दुखी रहता है कि समाज में सर्वत्र अनैतिकता बढ़ती जा रही है, लड़कियां बदन उघाडू कपड़े पहनती हैं, जिससे युवकों का नैतिक स्तर गिरता जा रहा है. उसका मानना है कि संसार में मुश्किलें इसलिए बढ़ती जा रही है क्योंकि इसमें शैतानों का जोर बढ़ता जा रहा है और जिनकी वजह से अच्छे भले लोग भी बदमाश बनते जा रहे हैं. अहमद का चरित्र उपन्यास की उपलब्धि है. लेखक ने उसकी पारिवारिक जीवन की जटिलताओं का कांट्रास्ट उसके धार्मिक जीवन की सरलताओं के साथ दिखाया है.

उपन्यास में एक और बात जो रेखांकित करने योग्य लगती है वह यह है कि उपन्यास के सारे पात्र युवा हैं या यौवन की दहलीज पर हैं. यहां तक कि अहमद की मां भी युवतियों की तरह प्रेमियों के संग घूमती रहती है. बहुलतावादी समाजों के लिए आदर्श समझे जाने वाले देश, अमेरिका, के युवाओं को स्टैंडप्वाइंट क्या है यह उपन्यास की कथा में उभर कर आता है. किस तरह नाइन-एलेवन के बाद अमेरिका में पहचानों का सवाल महत्वपूर्ण होता जा रहा है, किस तरह जातीय पहचानों के आधार पर लोग संगठित होने लगे हैं – समाज के इस आकस्मिक रूपांतरण के तनाव को कथा में पकड़ने की कोशिश अपडाइक ने की है.

उपन्यास में जिस तरह से मुसलमान और इसाइ धर्म के लोगों की एक दूसरे के प्रति घृणा दिखाई देती है उससे लगता है कि लेखक के दिमाग में हंटिंगटन की क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन वाली बात रही होगी. आतंकवाद को धार्मिक उन्माद से जोड़कर अपडाइक ने इसाइ और इस्लाम धर्मों के बीच के निर्णायक संघर्ष की ओर इशारा किया है. दूसरी ओर, अहमद को जिस तरह नैतिक व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है उससे कथा में एक स्तर नैतिकता और अनैतिकता के द्वंद्व का भी दिखाई देता है.

बहरहाल, अहमद के औपन्यासिक चरित्र से यह समझ में आता है कि क्यों कफील अहमद जैसा पढ़ा-लिखा इंजीनियर एक दिन सुसाइड बाम्बर बनकर इंग्लैंड के ग्लासगो हवाई अड्डे को उड़ाने चल देता है. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें पढ़े-लिखे व्यक्ति आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं. अहमद का चरित्र अप्रत्याशित नहीं लगता. यह जरूर है कि जिहाद के विचार को ठीक से उपन्यास में लेखक प्रस्तुत नहीं कर पाया है. दूसरे, उपन्यास का वैचारिक पक्ष अधिक सशक्त है, कथा में वर्णनात्मकता अधिक है. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि उपन्यास आद्योपांत पठनीय है.

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