आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

लोग सपनों की बातें करते थे: रुस्तम (सिंह)

जब ‘नहीं’ भी नहीं लगेगा

जब ‘नहीं’ भी नहीं लगेगा,
तब ‘नहीं’ से भी परे होगा.

तब ‘मिलने’ को
कुछ और कहना होगा.

तब
कौन,
किससे,
कैसे,
क्या कहेगा?

* * *

कहेगा
कि अब कैसा मिलना,
‘नहीं’ कहेगा.

कोई उन्हें
मिलने का
औचित्य नहीं बताएगा.

कैसे मिलना है
उन्हें नहीं आएगा.

किससे मिलना है
उन्हें नहीं सूझेगा.

वे
खाली ह्रदय लौटेंगे,
पर कहाँ?

* * *

जहाँ से नहीं आते थे
कोई घर नहीं होता था.

कोई घर,
न बसेरा,
पाँव कहाँ लौटेंगे?

वे हवा में लहराते थे,
उनका पानी जैसा घर था.

कहाँ लौटते?

* * *

कहाँ लौटते
या कहाँ जाते,

किस द्वार की सांकल खोलते,
बजाते,
किस प्रेमी को पुकारते, किसका नाम लेते,
जब प्रेमी कोई नहीं था,
न मन में प्रेम ही था.

मन
तब शून्य था.

कैसे लौटता?

काँपते हुए

काँपते हुए वह सोचता था :
मेरा सोचना जब स्वंय कांपता था
तभी उसमें
काँपने का
स्वर
आता था.
यह स्वर — कांपता हुआ — संपूर्ण कंपन को स्वर देता चलता था.

काँपते हुए वह सोचता था. 

फिर वह सोचता था : क्योंकि मैं कांपता था इसीलिए सोचता था.
सोचना कंपन ही में आकार लेता था. प्रगाढ़ कम्पन ही
में मेरा सोचना ज्यादा घनीभूत होता था.

वह सोचता था और कांपता था.

चेहरा

वो चेहरा
जो मेरा
अपना जैसा था,
जिसे मैं
अपने ही
चेहरे की तरह
पहचानता था,
आज उस से भी
मैं डर रहा हूँ.

कांपता हुआ
यह चेहरा
जो पहले मेरा था
इसे मैं
कांपते हुए
नहीं जानता था,
उसने सोचा.

उसका सोचना
किसी दर्पण में
बहुत कांपता हुआ
कोई चेहरा था
जिसे
पहचानने से
वह डर रहा था.  

तुम चली जाती थीं

तुम चली जाती थीं. उसी में मैं भी. हम दोनो अस्थिर थे. मैं तुम्हें रोक नहीं पाता था.
तुम मुझे भेजकर ही रहती थीं. मुझे भेजकर तुम कांपती थीं. जाकर, मैं भी.

लौटने के बाद भी हम काँपते थे. कांपना बस कांपना ही होता था, और कुछ भी नहीं.
आते-जाते, जुदा होते-मिलते, सोचते-लिखते हम काँपते थे, और इसे जानते थे.

लोग सपनों की बातें करते थे

लोग सपनों की बातें करते थे. हमारा एक भी सपना ऐसा नहीं था कि उसे जिया जाए.
हर सपना बिल्कुल वैसाही था, उतना ही डरावना जितना हमारा जीवन था.

फिर कोई और जीवन था.
हम सपने लेना भूल गए थे. उनके लिए समय नहीं था, न गुंज़ायश ही थी. जीवन बहुत
व्यस्त था. तेज़ी से बीत रहा था.

एक अन्य जीवन में हमारे सपने ही हमें छोड़ गये थे. हमारी कल्पना सूख गयी थी.
उसमें रंग और बिंब नहीं आते थे.

लोग सपनों की बातें करते थे.

One comment
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  1. लोग सपनों की बातें करते थे….I still remember your paintings….

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