आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

इम्फाल, शिलाँग और अगरतला से छह कवि

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शिलाँग

3. किम्फाम सिंह नॉन्गकिनरिः

माँ के लिए अपवित्र पंक्तियाँ

आर के नारायन मर गए

आज की रात, उदास मन अपनी बेंत की कुर्सी पर बैठ
‘एक दुर्लभ आत्मा’ की बात कर रहे हैं

अचानक मुझमें जगती है इच्छा
अपने ही ‘दुर्लभ आत्मा’ की करूं चीड़ फाड़
शुरू से अंत तक
पहले मैं बता दूं कि मेरी माँ, नारायन की माँ से कहीं ज्यादा
‘खांटी’ और ‘मुंहफट’ है

मेरी माँ रिटायर्ड, थोथी, मधुमेह से पीड़ित, सरदर्द और
मोतियाबिंद से ग्रस्तहै यानि कि संक्षेप में कहें तो
वो चिड़चिड़ी बुढिया है
मुझे वह समय भी याद है कि जब वह चिड़चिड़ी
युवती थी दुपहरिए की नींद के समय तो
पूरी बाघिन ‘साले चूतिए’, वो
गुर्राती, ‘आराम भी नहीं करने दोगे
साले शैतान के बेटों, इधर आओ साले जानवर के बेटे पकड़ में
आए तो टांगें तोड़ दूंगी। मुंह नोच लूंगी …चीलड़
की औलाद साले जनम देने वाली के ही देह का मांस खाते हो
अब अगर हल्ला किया तो ऐसे पीटूंगी कि
कुत्ते कि तरह चिल्लाओगे साले वाहियात बेवकूफ
अगर बढ़िया सपना नहीं देखूंगी, तो
दांव के लिए नम्बर कैसे पाऊंगी? कैसे खिलाउंगी तुम्हे साले सस्ती नस्ल के बेटों?
और ये अग्नि बान उड़ते आएंगे
मेज, चिमटे और कांसे के
धुकनी के साथ, और हम जान बचा कर भागते और वह
बेंत और जलावन उठाए हमारा पीछा करती,
बाल लहराते, आँखें अगियाते
और जीभ अगिया बेताल।
और हम क्योंकि केवल बच्चे थे, हमने
कुछ नहीं सीखा केवल उसके गैरपरम्परागत हथियारों
से बचने में पारंगत हो गए

मुझे याद है, क्योंकि बेटी नहीं थी उसकी, वो मुझसे ही
धुलबाती थी अपने खून सने चीथड़े मना
करने का तो सवाल ही नहीं। इसीलिए मैं चीथड़ों को
लकड़ी से उठा कर, एक पुराने लोहे की बाल्टी में तब तक
गूंथता जब तक कि पानी साफ ना हो जाए लेकिन समझ लीजिए यह सब
उसकी आंखों से दूर क्योंकि अगर उसने यह देख लिया होता
कि मैं अपने हाथ इस्तेमाल नहीं कर रहा तो ये प्राणघातक मसला था
उन दिनों चेरा में हमें संडास के बारे में कुछ पता
नहीं था हमारे घर में ना तो सेप्टिक टैंक था ना ही
लैट्रिन हम अपना काम अपने पावन वन में
कर आते थे लेकिन कभी कभी मेरी माँ कूड़े के टिन में ही
फारिग हो लेती थी। तब यह मेरी जिम्मेदारी थी कि पावन वन तक माल
मैं ले जाऊँ मना तो मैं कर नहीं सकता था इसीलिए हरदम मैं उस पर
छिड़कता राख, उस के ऊपर सुपारी के छिलके और मेरी कोशिश रहती
कि बच जाऊँ दोस्तों और जिज्ञासू पड़ोसियों से जिन्होंने
पुष्पक फिल्म में कमल हसन को देखा है वे मेरी रणनीति समझ सकतें हैं

मैं हजारों चीजें गिना सकता हूँ यह दिखाने के लिए कि मेरी माँ कितनी चिड़चिड़ी और दुर्लभ है मैं उसके बारे में कुछ भी अच्छा बताने से इंकार करता हूँ यह बताने से कि उसने कितना कष्ट झेला जब मेरे देहाती पिता जिन्दा थे; या उसका कष्ट जब वो मरे; या अपने दो बेटो और अपनी बहन के दूध पीते बच्चे को किन कष्टों से उसने बड़ा किया मैं केवल एक बात मानने के लिए तैयार हूँ:
अगर उसने दुबारा व्याहा होता और वह इतनी चिड़चिड़ी ना होती जो कि वो है, मैं शायद आज सामने खड़ा यह कविता पढ़ता नजर नहीं आता

(खासी से)

4. रॉबिन ड़ाड़ोम

बुरी जगहें

कभी-कभी, बिना अपनी गलती के, कुछ इलाके बदनाम हो जाते हैं। अगर आप एक सामान्य और शांत दिन यहाँ आएँ तो आप पाएँगे कि तना हुआ है एक नीला आसमान इसके ऊपर, और गहरी हरी चीड़ें और बाँस चूम रहे हैं इसकी धूल-धूसरित सड़कें। और यह सच है कि इसके ठिठुरते घरों में ही बना था प्रेम और मौन कब्रिस्तान में इसके मृत दफनाएँ जा चुके हैं, लेकिन आप यह नहीं जान पाएँगे कि बाहर वाले क्यों पालते हैं एक अजीब सी घृणा इस जगह से। हो सकता है एक रात, गुप्त सूचना के आधार पर, अर्द्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी ने इसके एक बदकिस्मत घर के दरवाज़े पर कुछ किशोर उग्रवादियों की चिथड़ियाँ उड़ा दी हों। यह भी विडम्बना है कि क्राँतिकारी इस इलाके के नहीं थे, वे तो वहाँ एक पार्टी में आ गए थे बेवक्त। बेशक यह भी हो सकता कि इस विश्वासहीन होते समय में कुछ औरतों और मर्दों ने डायनों की खोज में खुद को मध्ययुगीन औजार में बदल कर फूंक डाला वो घर जो कि चांदनी में लगता था डरावना और मार डाला अजीब दिखते हुए उस बुढ्ढे और उसकी बीबी को ।

बहुत कुछ कहा गया है इस इलाके को – जैसे कि, आतंक का अड्डा – कहते हैं कि इसकी दीवालों पर जो दाग है असल में हैं गोलियों के निशान। आप समझदार हैं तो आप इलाके की महिलाओं से आशिकी नहीं फरमाएँगे, क्योंकि सूरज ढलने के बाद खतरनाक हो जाता है यह इलाका। लेकिन ऐसे इलाकों की संख्या बढ़ ही रही है मानो आशंकाएँ पाल पोस रही हों इन्हें।

क्रांति के बाद

जब आरंभ हुई क्रांति
ऊंघते ठिठकते स्वरों में
बलिदानी उग आए सभी स्थानों पर
वे जगह जगह घूमकर खोजते हैं और नष्ट करतें हैं
सभी कुछ जो है जन विरोधी

हर रात वे सवार होते हैं और एकाग्रता से
रास्ते में खड़े सभी स्वप्न और स्मृतियाँ कुचलते हैं।
हम कृतज्ञ हैं
स्वतःस्फूर्त मंत्रमुग्धता और
स्वप्नों को अनुशासित करने के अनिवार्य पाठ के लिए
और अब हमारा आहार है यथार्थ

हर सुबह वे नए सवेरे की शिक्षा देने के लिए
दिवालोक को अनूदित करते हैं
इकहरे रंगों में,
और हम कृतज्ञ हैं इस सभ्य चमत्कार के लिए
जिसे हम इस वर्गविहीन सवेरे में
एक बढ़िया स्नान सा बांट सकते हैं

और हाँ, बलिदानियों ने सूर्य को गोली मार दी है
क्योंकि वह शोषक की तरह ही जलता रहा
और आकाश में टांक दिया एक तारा लाल

क्रांति की इस उत्साहित प्रकिया में
मैंने एक दिन कहा,”ब्रदर्स”, अगर हम ऐसे ही
अपने स्वार्थहीन उद्देश्यों पर अपने माताओं और बच्चों की बलि चढ़ाते रहे
तो बलिदान के लिए कोई बचेगा ही नहीं
या अगर सभी प्रतीक्षारत् बलिदानी
चढ़ना चाहेंगे फूलोंकी पालकी पर
कौन बचेगा जो शासक होगा नए सवेरे का?
मैंने कहा, ‘ब्रदर्स, क्रांति के समय मेरी
कविता मे आ गयी है शांतिप्रियता
जो कि लोकोपयोगी नहीं है,
लेकिन कृपया क्षमा करेंगे
इस व्यक्ति का सठियाना
जो ख्याति के सैकड़ों दिनों में भी लिखता है
नीले आकाश के बारे में’

भविष्यवाणियाँ

लाल कपड़ों का होगा चलन
सीढ़ियों पे चढ़ के तोड़े जाएँगे बैंगन
पत्थर तैरेंगे, रूईयाँ डूबेंगी

और पृथ्वी बाती की तरह जलेगी
तेल के बदले पानी में

ब्रदर उद्धारक,
बलिदानी जो गिरे हैं स्वर्ग से,
आपने चुरा लिया है मेरा बचपन
और चाँद,
और छोड़ दीं केवल देववाणियाँ
लिखी हुई रक्तिम आकाश पे
आप तो मानचित्रकार भी नहीं,
आप नई सीमाएँ खींचेंगे, गलियों के बदलेंगे नाम
उन सुन्दरियों के
बाल मूंड कर
जो बैठी हैं मेरी कविताओं में

आप हम सबसे अधिक भाग्यशाली हैं
आप को कष्ट नहीं देंगी
भटकी हुई गोली

आप अपने चमड़े के जैकटों मे मरेंगे तो
आप के होठों पर होंगे गीत,
आप हमारी तरह बूढ़े और कुरूप तो कभी नहीं होगे
क्योंकि आप अपनी जेबों में
चमकाएँगे इतिहास ताबीज की तरह

आप मरेंगे पिंजरबद्ध बाघों की तरह गाते
और औरतें सफेद कपड़ों में
बिन धुँए के धूपदानियाँ ले
सौ वर्षों तक आप का मातम मनाएँगी

5. डेसमंड खारमाँफ्लांग

सितम्बर का गीत

गलियाँ में
हरी वर्दियों वाले मर्द
पुलिस के सिपाही
कुछ लम्पट
कुछ बदमाश
अनचाहे घाव से बढ़ते
हिंसा के बोझ तले
आहें भरते
कर्फ्यू के लकवे के साथ साथ
तकलीफ देता
सन्नाटा टपकता है
तुम्हारे शरीर के काने में
एक ठंडी परछाईं-ठनठनाती
सरकारी आवाज बेमन अलापती है
‘कर्फ्यू में दो धंटे की
छूट’- और
लोग पगला जाते हैं
कारें नाचती हैं,
फुटपाथों को बाजार बनने में
लगते हैं कुछ ही पल
एक पागल हाट की तस्वीर
इस चहल कदमी से बेखबर
सड़क किनारे बैठी भिखारिन
बिना नाम, समुदाय,
भूत, भविष्य या राजनीति
कर्फ्यू वाले धंटों में
वह और गली के कुत्ते
चलाते हैं सुनसान गलियाँ
अमन नहीं आता किसी के हाथ
वे जो बोलते हैं
बंदूकों, गोलियों, चाकुओं और पत्थरों से
सबसे ऊँचा बोलते हैं
दो जीवन इस
खून के तूफान में
पड़े हैं परदेसी आसमान तले मातम बिन
दूर कहीं
बिजली की एक रेखा
दो भागों में चीरती है आसमान

आधिपत्य

अपने शहर के बारे में
बतियाने से थकता नहीं हूँ मैं
गर्मी में आकाश के गर्भ में
अनजन्मी बारिश
सर्दी आती है, शिथिल सूर्य
जमे पहाड़ों को छूता मानो स्वप्निल नावें
झील पर
बहुत दिनों पहले, पुरूष जाते थे
सूरमा से आगे,
व्यापार करने, औरतें लाने
अपने वीर्य के इस्तेमाल के लिए
बाद में आए अंग्रेज
खून के दाम, धर्म और
गोलियों के उपहारों के साथ
गोलियों के पार्श्वसंगीत में
शुरू हुई आधिपत्य की निरंतरता
अचानक प्रस्थान अंग्रेजों का
शांति, फिर से मीठी सुगंध
नम पत्तों की
लेकिन समय की ढुलमुल चाल में
आने लगे लोग
उमस भरे मैदानों से
ना जाने कहाँ कहाँ से
मेरी अभिशप्त जमीन, कैसे वे
चाहते हैं तुम्हारी उपजाऊ मिट्टी और जख्मी बच्चों को
एक ने तो मुझसे कहा, ‘जानते हो,
तुम्हारा शहर तो सचमुच का महानगर हैं’

रानीकोर, २२ नवम्बर, ८६

मेरे पुरखों का आंसू और पसीना
कैसे भाग निकलीं इन पहाड़ो से
और बन बैठीं खामोश नदियाँ
सूरमा के मैदानों में?
यहाँ कठिन है जीवन लोग
नदी तट के कुत्तों समान
भूखे और लिजलिजे

दर्दनाक है इस जमीन के लिए प्यार की गुहार
रेत उंगलियों से फिसलता है काल की तरह
फिर यह जो याद है मेरी आत्मा पर बैठी-
बांग्लादेश की जंगली बत्तखों की उड़ान,
मानव निर्मित सीमाओं को ठुकराती
हरे चट्टानों पर सूरज जल से
आँखें मिलाता।

(अंग्रेजी से)

यहाँ

यहाँ, जहाँ बरबादी बिछी है श्राप की तरह,
नीला आकाश सफेद आकाश-
पेड़ों के ऊपर उलझे चीथड़ों की तरह
लिपटते और खुलते
और हवा चीखती हंसी हंसती है कुछ महीनों में
फूलों के बीच हिलाते हुए पेट
इतिहास बन जाता है खून की गाँठ

ईश्वर आते हैं खसरा लेकर
और दरवाज़े बंद,
और सभी झरनों की कथाएँ
खुदकुशी के लिए मजबूर औरतों वाली
यहाँ, जहाँ मीठी है चावल की शराब
और लोग भूखे
शायद विलाप बहुत ही गहन है
और वे जो ज्यादा दुःखी हैं चुप कराए जा चुके हैं
अट्टहास जैसे मृत्यु का, सभी ओर
मैं अभी भी पारंगत नहीं हूँ भाषा में

(अंग्रेजी से)

(अनुवादः तरूण भारतीय)

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2 comments
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  1. adbhut!!!

  2. “अब मैं हूँ पूरा का पूरा बाबू
    चंद्र बाबू, कान्त बाबू, मुड़ासिंह बाबू, कवि बाबू
    ऐसे बाबू बाबू सुनकर
    मूक हदय में भी उदय हो जाए कविता
    और मैं तो जीता जागता कवि हूँ
    लेकिन बन्धु कविता लिखना आसान काम नहीं”

    “तुम गीत सुनना चाहते हो
    मैं गा सकता हूँ
    ठुमक-ठुमक नाच सकता हूँ
    लेकिन नाच दल बनाने के लिए
    कृपया मांगना मत पैसे
    उस पैसे से मैं मोल लूंगा घोड़ा
    घोड़ा और मैं, हम एक जोड़ा
    कूदेंगे, नाचेंगे और कभी-कभी युद्ध में चले जाएँगे
    जहाँ तुम्हारी गाड़ी नहीं जा सकती
    तुम हो पारखी कविता के
    जो कि मैं लिख सकता हूँ, थोड़ा वक्त चाहिए”
    बेजोड़ कविताएँ …

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