इम्फाल, शिलाँग और अगरतला से छह कवि
इम्फाल
1. थंगजम इबोपिशाक
मैं भारतीय गोली से मरना चाहता हूँ
मैंने बहुत दिनों पहले सुनी खबर कि वे मुझे ढूंढ रहे थे। सुबह में, दोपहर में, रात में। मेरे बच्चों ने मुझे बताया, मेरी पत्नी ने मुझे बताया।
एक सुबह वे घुस आए मेरे ड्राँइंग रूम में, वे पाँचों। अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश – पाँचों के नाम। वे चुटकियों में रच सकते है और नष्ट कर सकते हैं मनुष्य। वे जो चाहें कर सकते हैं। वे शक्ति के अवतार हैं।
मैं पूछता हूँ उनसे, ‘कब मारेंगे आप मुझे?’
लीडर ने कहां, ‘अभी। बिलकुल अभी। आज पवित्र दिन हैं प्रार्थना कर लो। स्नान कर लिया है क्या? भोजन?
‘क्यों मारेगे आप मुझे? मेरा क्या कसूर? मैंने कौन सा जुर्म किया है?’ मैंने फिर पूछा उनसे
‘तुम ही हो ना वो कवि जो लिखता है अनाप शनाप? या कि तुम सोचते हो कि तुम कोई युगद्रष्टा हो? या कि पागल?’ लीडर ने पूछा
‘मैं इतना तो जानता हूँ कि मैं वो पहली वाली दो चीजें नहीं हूँ’ लेकिन पागलपन के बारे में मैं बता नहीं सकता। आप ही सोचिए मैं खुद अपने को पागल कैसे सिद्ध कर सकता हूँ?
लीडर ने कहा, ‘तुम जो होना चाहों, हो लो, हमें उससे मतलब नहीं। हम तुम्हें अभी ही मारेंगे। हमारा मिशन लोगो को मारना है’
मैंने पूछा, ‘आप मुझे कैसे मारेंगे? क्या चाकू से चीरेंगे मुझे? या फिर गोली मारेगे? या लाठियों से?
‘हम गोलियों से उड़ाएंगे तुम्हें’
‘कौन सी बंदूक चलाएंगे आप? मेड इन इंडिया या फिर विदेशी?’
‘पूरी विदेशी। सारी बंदूकें जर्मन या रूसी या चीन में बनी हुई। हम मेड इन इंडिया बंदूकें इस्तेमाल नहीं करते। बंदूक की तो छोड़ो, इंडिया तो प्लास्टिक का फूल भी नहीं बना सकता। जब प्लास्टिक का फूल बनाने को कहो तो इंडिया बनाता है केवल टूथब्रश’
मैंने कहा, ‘यह तो अच्छी बात है। बिना सुगंध के प्लास्टिक के फूलों का क्या फायदा?’
लीडर ने कहा, ‘अरे कमरे को सजाने के लिए कोई गुलदस्ते में टूथब्रष रखता है क्या? जीवन में थोड़ी सुंदरता भी तो चाहिए’
‘जो भी हो, अगर आप मुझे मारना चाहते हैं तो कृपया मुझे भारतीय बंदूक से ही मारिए। मैं विदेशी गोली से नहीं मरना चाहता। आप जानते नहीं कि मुझे भारत से कितना प्रेम है’
‘वह तो हो नहीं सकता। तुम्हारी इच्छा कभी पूरी नहीं होगी। हमारे सामने भारत का कभी नाम भी मत लेना’
यह कहते हुए, मुझे बिना मारे वे चले गए मानो कुछ हुआ ही न हो
मृत्यु के प्रति नकचढ़ा होने के कारण बच गयी मेरी जान
2. युमलेमबम इबोमचा
अगले जन्म के लिए
अगले जन्म में
मैं हरामजादा जन्मूंगा
तुम्हें भी जन्मना चाहिए मेरे सा
फिर आजादी से मिलेंगे
बाजार के बिन मालिक के दुकान पर
उस जन्म में
जैसे ही टपकूंगा माँ के गर्भ से
मैं उस औरत की छाती रौंदूँगा
फिर उग आएँगे मेरे पंख
बिना माँ का दूध पिए
घर के संकरे दरवाजे से उड़ जाऊँगा
एक बाजारू कुत्ते सा मैं बड़ा होऊँगा
दिशाहीन अकेला घूमता,
ना कोई खिलाए मुझे भात
ना कोई बरसाए प्रेम
मैं अकेला रहना चाहता हूँ
फिर तुमसे मिलना चाहता हूँ
तुम भी बड़े होना मेरे जैसे ही लावारिस
जैसे ही तुम्हारी माँ जन्म दे तुम्हें
बिना दूध पिलाए
उसे मर जाने दो
किसी को नहीं करने दो खुद से प्रेम
तुम भी मत करना किसी से प्रेम
मत खाना मांगकर एक दाना चावल भी
कोई अगर खाना दे भी तो ठुकरा देना
तुम रहना-
नोचकर
छीनकर
खोद कर दूसरों के मुँह से
फिर मिलेंगे, तुम और हम
इस जन्म की कीमत के लिए
कुछ पलों के लिए ही सही
हमें मिलना चाहिए आजादी से
कुछ भय हीन क्षणों के लिए ही सही
चाहिए हमें गले मिलना
एक सपने की कथा
मेरे सिवाय
कौन देखेगा ऐसा सपना?
मुझे आ रहा था एक बेहतरीन सपना
जिसकी शुरूआत हुई एक दुःस्वप्न की तरह।
वह मेरा घर था, भीतर से काफी कुछ अंधेरा;
घर के फर्श पर बच्चों के शरीर
अंतड़ियाँ बाहर निकली हुई
गाड़ियों से दब गए चूहों की तरह
मैं सावधानी से रखता हूँ पाँव
लेकिन बहते खून में तलबे
हो ही जाते हैं चिपचिपे
बड़ी होशियारी से, बड़ी मेहनत से,
दरवाजा खोल कर मैं निकला बाहर
मेरे खुल गयी एक लम्बी सड़क
दूर धुंधलके में
टहल रहे थे कुछ लोग
रास्ते के दाहिने और बाएँ दोनो ओर
बंदूक की नलियाँ एक साफ़-सीधी कतार।
बंदूक का मुँह –
खेतों और खलियानों के
झुरमुट और छाहों में।
एक बंदूक की नली मेरे गाल के पास
दूसरी मेरे होठों के सामने।
कोई चीखा- ‘फायर’
ओह, चलनी शुरू हो गयीं बंदूकें,
मेरे गाल पर लगी गोली
मगर ये क्या!
क्या गोली लगना जवान औरत की छुअन
सा रेशमी है!
अरे मैं बहुत खुश हूँ कि मुझे
गोली मारी गयी
यह जो गोली मेरे मुँह में मारी गयी
एक रसीला अंगूर है
मैं चीखता हूँ – अगर गोलियाँ अंगूर हैं
तो मारो मुझे बार-बार
‘फायर’
जून की बौछारों की तरह
वे चला रहे बंदूकें लगातार
मेरे सामने – अंगूर, बादाम, किशमिश के ढेर
क्या मौज़
क्या मस्ती – ये बंदूकों की आवाज़
बांसुरियों, सितारों, बायलिनों का मधुर संगीत।
मज़ा आ रहा है मुझे
बंदूक की नलियों में उग आए हैं
रंग-बिरंगे फूल
हल्की सी बयार बह चली है
सूरज का बेदाग़ सुनहलापन पहाड़ों ओर घाटियों पर
लड़कियों के झुंड
महकते बालों और हंसते चेहरों के साथ
गुजरते हैं खुश युवकों के पास से।
बूढ़े भी चल रहे हैं ऐसे
जैसे जा रहे हो किसी शादी में
औरतें निकल रही हैं बाजार करने,
लौटती औरतों को मुस्कराकर करती हैं तस्लीम
और हंसतीं हैं साथ-साथ
यह सब सपना है
मैं जानता हूँ कि मैं नींद में हूँ, सपना ले रहा हूँ
यह सब जानते हुए भी, मैं तोड़ना नहीं चाहता अपनी नींद
मेरे सिवाय
कौन देखेगा ऐसा सपना?
(अनुवादः तरूण भारतीय)
adbhut!!!
“अब मैं हूँ पूरा का पूरा बाबू
चंद्र बाबू, कान्त बाबू, मुड़ासिंह बाबू, कवि बाबू
ऐसे बाबू बाबू सुनकर
मूक हदय में भी उदय हो जाए कविता
और मैं तो जीता जागता कवि हूँ
लेकिन बन्धु कविता लिखना आसान काम नहीं”
“तुम गीत सुनना चाहते हो
मैं गा सकता हूँ
ठुमक-ठुमक नाच सकता हूँ
लेकिन नाच दल बनाने के लिए
कृपया मांगना मत पैसे
उस पैसे से मैं मोल लूंगा घोड़ा
घोड़ा और मैं, हम एक जोड़ा
कूदेंगे, नाचेंगे और कभी-कभी युद्ध में चले जाएँगे
जहाँ तुम्हारी गाड़ी नहीं जा सकती
तुम हो पारखी कविता के
जो कि मैं लिख सकता हूँ, थोड़ा वक्त चाहिए”
बेजोड़ कविताएँ …