आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

No Other Tongue: 4 Hindi Poets in Vinay Dharwadker’s Translation

प्रसिद्द अकादमीशियन और अनुवादक विनय धारवाड़कर के ये अनुवाद पिछले ४० बरस में हिन्दी कविता को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाले कवियों में से चार का काम अंग्रेजी में एक समुच्चय में रखते हैं. मुख्यतः सत्तर और अस्सी के दशक की यह कवितायें हिन्दी के दो, एक दूसरे से बहुत भिन्न, एंग्री यंग कवियों धूमिल और श्रीकांत वर्मा से होते हुए केदारनाथ सिंह के बोलचाल के आत्मीय लहजे और कुंवर नारायण के ज्ञान मार्ग की ओर आती हैं. हिन्दी काव्य वाक्य जैसा अभी अक्सर दिखता है, उस पर इन चार कवियों का गहरा असर है. These translations by renowned academician, poet and translator, Vinay Dharwadkar, bring together works by 4 of the most influential Hindi poets of the past 40 years. Mostly from the 70s and 80s, this selection begins with some angry young poetry by two (very different) poets Dhoomil and Shreekant Verma, moves on to Kedarnath Singh’s intimate, conversational tone, finally reaching the Gyan Marg of Kunwar Narain. Hindi syntax, as one now finds it in poetry, owes much to these four poets.

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The 4 Poets

Shrikant Verma

Dhoomil

Kedarnath Singh

Kunwar Narain

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