आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

सु: तेजी ग्रोवर

उन इक्कीस पन्नों में भी सु नहीं है जो लिखकर मेज़ पर रखे हैं। पिछले कमरे में सु की सफ़ेद टी-शर्ट लोहे के बक्से में पड़ी है। सु की गन्ध सफ़ेद टी-शर्ट में नहीं है। वे बारिश के दिन थे।

सु बरामदे में नहीं है जहाँ नीली कुर्सियाँ है।

दोपहर की नींद टूटती है तो कुछ देर हवा में देखते रहने से सु वहाँ कभी-कभी होता है।

रूमी सान्तवना से परे है। मेरा सु की कमीज़ को सूँघना। दोपहर की नींद टूटती है तो हवा को देखना।

लेकिन उसे अभी उठकर लिख देने से हो सकता है सु को लिखा जा सकता हो। ऐसा लगते रहने में सु कभी-कभी रहता है, जिस्म के बेतरह धड़कने को पन्ने पर रख देने की कोशिश में सु के मिलने की सम्भावना में सु रहता है।

रूमी की आँखें ज़हर और दुख से भरी हैं।

मुझे नहीं पता था पाँच रातों से बने उस बरामदे से सु के हटते ही मैं हवा को चीरते हुए उसे देखने की कोशिश करूँगी। नहीं पता था पिछले कमरे में सु की भूली हुई सफ़ेद टी-शर्ट में से उसे खोद कर, सूँघ कर, बाहर लाने की कोशिश । कि मैं आँखों और नाक से बहते हुए पानी को सु की सफ़ेद शर्ट से पोंछती रहूँगी। कि दिदिया दिखायेगी, उसके जाने के तुरन्त बाद, कि उसकी सफ़ेद टी-शर्ट मेरे पिछले कमरे में थी, तो मैं दिदिया के हाथ से खींच लूँगी उसे। नहीं पता था दुख मनाते हुए जिस्म में इतनी हिंसा रह सकती होगी।

पाँच रातों के बाद की सुबह होते ही वह पूछेगा कि कुछ दिन बाद मैं उसे विदा करने बड़े शहर जाऊँगी या नहीं तो मैं कहूँगी नहीं।

मुझे नहीं पता था कि अगली ही रात बड़े शहर से जब सु का फ़ोन आयेगा तो इतनी बारिश में भी मैं भरतपुर का नाम लूँगी। न यह पता था उसी रात कि अपनी रसोई में रूमी उस चाकू पर कुछ देर एकाग्र रहेगा जो डबलरोटी काटने के लिए ख़रीदा गया था।

उसी रात कुमार से फ़ोन पर बात करते हुए रूमी के रोने में कुमार को समुद्र की आवाज़ सुनायी देगी।

सुबह के तीन बजे मेरी गाड़ी भरतपुर के बरसते हुए प्लेटफ़ार्म पर खड़ी है। इससे पिछले स्टेशन के अँधेरे में उतरकर मैं बारिश में चलती हुई एक लालटेन से पूछ रही थी, भाई साहब क्या यह भरतपुर है। कोई नहीं बताता था वह भरतपुर है या नहीं, मेरे डिब्बे में वे तीन मुसाफ़िर भी नहीं जिन्हें भरतपुर उतरना था। मुझे नहीं पता था भरतपुर के प्लेटफ़ार्म पर रोशनी होगी और भरतपुर लिखा हुआ बारिश में भी पढ़ना सम्भव होगा।

नहीं पता था जब मैं उतरूँगी कि सु के होने और न होने की सम्भावनाएँ मेरे जिस्म को एक ही तरह से ख़त्म कर रही होगी।

सु के चश्मे में फिर वही धुँध होगी, भीगने पर भी सु ऐसा ही दिखेगा जैसे उसकी त्वचा उतनी ही गर्म हो। वह मुस्कुराएगा। वह न सोने की कोशिश करते हुए ट्रेन से भरतपुर उतरेगा। उसके नीले बैग में मरीना स्वेतायेवा की किताब होगी।

सुबह चार बजे, उसके बाद फिर छहः बजे जंगल में प्रवेश पाने की कोशिश, हल्की सी बारिश में।

पक्षियों की जल-राशियों में पेड़ और झाड़ियाँ, उनसे झिरती हुई बूँदे, नावों जैसे दिखते पक्षियों की पीठ पर । रिक्शे वाले से माँगी हुई बीड़ियाँ। शिव के मन्दिर के पास चाय का एक खोखा। बुर्ज के नीचे रस्सी की चारपाई। आठ कप चाय। दोस्तोएव्सकी के सामोवार से।

सु और मेरे बीच की कई किताबों को बन्द कर देने से सु का जाना सम्भव होगा।

रूमी के घर जाने के लिए सु को मेरे साथ नहीं होना चाहिए था। लेकिन सु अपने चेहरे के सारल्य की सोचकर रूमी के घर जा सकता है। रूमी उसे पढ़ लेगा फिर दुख नहीं होगा, सु का कहना है। सु के चेहरे पर दुख देने के रेखाएँ नहीं बनी हैं। रूमी आजकल पक्तियों और चेहरों पर लिखे से परे, ज़्यादा, ऊपर, बीच, सब पढ़ता है। उसके इतना पढ़ने के सामने मेरा चेहरा ज़्यादा गर्म हो उठता है। सु का चेहरा रूमी का पढ़ना सह नहीं पायेगा। रेखाएँ टूट जाएँगी। फिर भी सु रूमी की चटाई पर पड़े मेरे चश्मे से खेलता रहेगा। रूमी के ज़हर और दुख के सामने बैठा, वह मेरे चश्मे को अपने रुमाल से पोंछेगा।

हर वाक्य एक हल्का झूठ होगा जिसमें मैं सु को रखूँगी? उस गुम्बद के चारों और घूमती रहूँगी, कि सु दिखे भी और न भी दिखे? झूठ के मोतियों से खेलूँगी, और सु का जाना हवा में खून की तरह चढ़ता रहेगा?

सु शब्द ही ऐसा होगा कि फिर शेष ध्वनियों का शान्त हो जाना ही सु होगा। कि सु सिर्फ़ उस शब्द के पीछे सो रहा होगा, जो सु के आकार में पन्ने पर सोया है। सु कहने से उसी के नाम की हवा चलने लगे। सु कहने से सु अपने ही अक़्स में घुलकर शान्त हो जाये। सु शब्द ही ऐसा होगा कि कोई श्वेत पन्ना अकेले में बात करने लगे।

वह श्वेत में बोलता है, श्वेत में मुस्कुराता है।

मैंने पूछा तुम मेरे छोटे से ठिये में बैठे पाँच दिन तक क्या करोगे? मेरे पास मरीना स्वेतायेवा है, सु बोला।

सु पूरा दिन चुप बैठकर मरीना को पढ़ता है।

सु अदृश्य है, उसका खाना बनाना याद रखने के लिए श्रम करना पड़ता है। वह अपने से छोटे एक दिवान पर सो लेता है। उसके पास रहते हुए मेरा चेहरा वैसी ही रेखाएँ ले सकता है, जैसी अकेले में। ही हैज़ नो हिस्ट्री आव लव। मुझे मंच पर नहीं रहना है, मैं इस नाटक के लिए ज़रा भी तैयार नहीं हूँ।

इन पाँच दिनों में उसका जाना मेरे यहाँ बन रहा है और जाने से पहले उसका दिखना। जब मुझे यह पता चलेगा, बहुत देर हो चुकी होगी। मुझे पता नहीं यह कहने का अर्थ क्या है। निश्चित ही यह पहली ऐसी घटना है और इसके लिए पहले से कोई वाक्य बने हुए नहीं है, कोई विन्यास नहीं ।

सु इस तरह दिखता है कि उसके इस दृश्य से चले जाने के बाद की जगह मुझे दिखती है। उसके जाने से पहले वह जगह चमकने लगी है जो उसके पीछे रहेगी, जिसमें मैं रहने लगूँगी। मैं इस जगह से कहीं नहीं जाऊँगी। गुस्ल की ज़रूरत तक नहीं होगी। बालों को सुलझाना ठीक नहीं होगा। चींटियाँ आयेंगी, मेरी सोयी हुई बाँहों की ओर ।

इसे लिखना शायद मुमकिन नहीं है। देह वहाँ होने को तरसेगी जहाँ कुछ वाक्य बन सकते हों। सु इन दिनों उन्हीं कुछ वाक्यों का अभाव है।

रूमी का ज़हर और दुख मुझे घूरता है। उन वाक्यों को सुनने के लिए।

और एक मार्ग्रीत है जो बिना किसी घटना की कहानी लिख लेती है। मार्ग्रीत की लिखी घटना दिखायी नहीं देती। एक नीली हवा।

वह कहीं नहीं जाती, सांकल बन्द किये समुद्र की ओर चेहरा लिये पड़ी रहती है। वह समुद्र की ध्वनियों से बनी रहती है, समुद्र की रोशनियों से । वह मरने के क़रीब रहने लगी है। फिर भी उसके सभी प्रेम अभी तक सोलह और सत्रह के हैं। वह स्मृति के बिना लिखने लगी है। मार्ग्रीत।

स्मृति के बिना ही लिखना उसे आता है। उसके पन्नों पर वह सब रहता है जिसे वह दोपहार की नींद में हवा में देखती है। उसकी पंक्तियों के बीच ही सु कभी-कभी मुझे दीख पड़ता है।

सु जब भी दिखता है सहने से परे होता है। मार्ग्रीत की पंक्तियों में भी। फ़्योदोर का इडियट मिश्किन, मार्ग्रीत की पंक्तियों के बीच के अवकाश में। मेरे मेज़ पर रखे श्वेत पन्नों में वह नहीं है।

उसे देखने के लिए मार्ग्रीत को खोलकर देखना होता है। मैं देखती हूँ कि किस डिटेल में सु अचानक मार्ग्रीत के पन्नों पर बन उठता है। किस ख़ाली जगह में उसकी आँखें, उसकी साँस। फिर मार्ग्रीत के पन्नों में वह मेरा होता है, सु।

मेरे बरामदे की सीढ़ी पर रात की बारिश की एक पनीली पर्त है। वह ध्वनि-चित्र बहुत सियाह और तेज़ था जिसमें सु और मैं बरामदे में बैठे थे। नीली कुर्सियाँ और पूरी रात का समय हमारे पास था। बारिश हमारे चेहरों पर थी, जहाँ अँधेरा था। आँधी में बिजली और पानी चमक उठता था। सफ़ेदे के पेड़ चमकते थे। पीले फूलों से लदा हुआ पेड़ चमकता था। पेड़ों में अन्धड़ की टहनियों पर मोरों की नींद थी। बरामदे के फ्रेम में चित्र की आँधी उठती थी। बीच की कौंध में सु कभी दिखता था, कभी नहीं।

यह तीसरी रात थी। मैं सु को तीसरी बार लिखने की कोशिश कर रही हूँ।

सु सफ़ेदे के पेड़ों की ओर मुँह उठाये बैठा है। वह मोरों को उड़कर बागीचे में उतरते हुए देखेगा, सुबह के ठण्डे चित्र में । फिर वह सोयेगा। बरामदे की सीढ़ी पर रात की बारिश की सतह में मैं अक़्सोँ के मोरों को देखती हूँ। कुछ ही देर में वे पानी के काँच में उड़ते हुए मुझे दिखायी देंगे, सु को आकाश से नीचे आते हुए । वह नीली कुर्सी से उठेगा, मैं भी। वह मुस्कुराएगा।

अभी एक रात और है। उसे इस समय मर जाना चाहिए था।

इसे लिखते समय ठीक इसी क्षण सु का फ़ोन। नामुमकिन। लेकिन कोई हैरत नहीं। हो सकता जो वाक्य कट गये हैं सु वहीं से बोल रहा हो। वह नहीं, पूरी शाम उसकी पी हुई आवाज़। पार्टी में से उठकर दूसरे कमरे से मुझे फ़ोन करने के बारे में सोचता हुआ, सु। जैसे वह अभी तक सोच ही रहा हो, ऐसी आवाज़। जैसे मेरी आवाज़ उसे पहुंच ही न रही हो। मार्ग्रीत की रीडर वह लड़की, सु कहता है, दैट मार्ग्रीत वुमन आय स्पोक टु यू अबाऊट, वह भी यहीं है पार्टी में। वह मिट्टी के दियों का घेरा बनाकर मेरे साथ उसमें बैठना चाहती थी आज शाम

सु के भूगोल में, वहाँ फिर आधी रात है। यहाँ सर्दी की पहली बारिश और दोपहर। मुझे ईष्या होती है। तुम्हारी आवाज़ में हमेशा रात हो गयी होती है।

मार्ग्रीत फ़ोन की आवाज़ से भी तुम्हें लिख सकती थी। मार्च में अपनी मृत्यु हो चुकने के बाद भी वह कहती है कि वह फ़ोन पर तुम्हारी आवाज़ से तुम्हें लिख सकती थी।

उसका चीनी प्रेमी फ़ोन पर है। चौंसठ बरस के बाद। उसकी आवाज़ चीन में उसके घर के भीतर से उसके घर की अन्य आवाज़ों के बीच से। वह आवाज़ जिसने पन्द्रह साल की मार्ग्रीत की देह को जगाया था।

फिर आवाज़ भी नहीं है। उसने फ़ोन पर अभी-अभी उसके न रहने की ख़बर सुनी है। उसकी मृत्यु ने मार्ग्रीत को एक बार फिर उपन्यासकार में बदल दिया है। मार्ग्रीत ख़ुश है। वह स्मृति के सहारे नहीं लिखेगी। मार्ग्रीत अपने छोटे भाई के साथ भी उन्हीं दिनों प्रेम कर रही होगी। माँ से झूठ बोलना आसान हो जायेगा।

वे वाक्य कौन से रहे होंगे। वह झूठ ?

रूमी सड़क के बीचों-बीच बसों के सामने चलता-फिरता है। सु को अपने सीने में कुचल नहीं पाता है। ड्राइवर बस रोककर गाली से रूमी को किनारे लगाता है।

रूमी फ़ोन पर कुमार की आवाज़ को थामे फफक-फफक कर रोने लगा है।

उसकी जेब में फ़ोन पर रोने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं। कुमार का कहना है वि उस रात चन्द्रमा के नीचे सियाह समन्दर की आवाज़ उसने फ़ोन पर सुनी। प्रेम के बड़े होने की आवाज़।

रूमी फ़ोन पर कहता है मेरे साथ रहने के लिए वह और कितना बड़ा कर सकता है ख़ुद को?

तीसरी रात की सुबह के चित्र से उठकर सु को नींद आने लगी है। आज दिन भर कमरों में पानी टपकता रहेगा। दिन भर शाम रहेगी, किताबों और कम्बलों के लिए जगह बनाते हुए घर में बढ़ते हुए शोर के बीच कुछ देर सोया हुआ सु मुझे दिखायी देगा। घर में कई तरह के बच्चे घूम रहे होंगे। जबकि दिन भर मुझे एक पूरा नक्षत्र चाहिए होगा दरख्तों की साँय-साँय और सु की सोयी हुई साँस को सुनने के लिए।

बिना कुछ कहे सु उस कमरे से, मैं इस कमरे से, चौथी रात के बरामदे में आते हैं।

वह पहले ही से नीली कुर्सी पर बैठा है।

मेरे हाथ में मरीना की किताब है। अभी मुझे मालूम नहीं मैं परसों शाम जाते समय उसे सु के बैग में रखूँगी। मरीना को अपने पास रखने का यह ढंग मेरे लिए नया होगा।

मरीना की अन्त की कविता‘ : प्रेम एक रक्त-प्लावित फूल है। तुम्हें लगता था मेज़ पर बैठे कुछ देर गप लगाना?

बरामदे में साँस की आवाज़ तक नहीं है।

सु के चश्मे में धुँध है। मेरे स्कार्फ़ के एक कोने से वह पोंछता है।

क्या यह सच है कि बीज एक स्पर्श से टूट जाते हैं?

सारी की सारी मरीना सु की आवाज़ में चौथी रात बरामदे में। सिर्फ़ एक पंक्ति मीरनशाह की।

मैं पाँच दिन के लिए इसलिए आया क्योंकि तुमने कहा था पाँच दिन काफ़ी होंगे।

पाँच दिन पानी बरसता रहेगा। सूखे कोने ढूँढते हुए गन्धाते बच्चों के गानों और युद्धों के बीच सु के जाने के बाद पीछे छूट जाने वाली धुँआसी जगह मुझे सु के रहते ही दिखायी देने लगेगी, मुझे पता था? मेरे न होने की वजह से सारे बच्चे मेरे ही निकल आयेंगे, पता था?

फ़ोन मरा रहेगा पाँच दिन। रूमी अपने अप्रिय शहर में, अपने दफ़्तर में बैठे सु और मुझे वैसे बुन रहा होगा कि ज़हर और दुख बनता रहे। वह आदित्य की जेब से पैसे उधार लेकर आधी बरसती रातों में कुमार की आवाज़ सुनने टेलिफ़ोन बूथ ढूँढता फिरेगा।

अन्तिम रात नींद आती है।

सु याद दिलाता है यह अन्तिम रात है।

मुझे ग़लत याद रहा कि नास्तास्या फ़िलिपोवना एक लाख रूबल जलाकर ही दम लेगी। सु पागलपन की हद तक मिश्किन है। वह भी मार्ग्रीत के उपन्यास में, फ़्योदोर के उपन्यास से निकलकर।

मैं नामुमकिन रास्तों से सु को बनाने की कोशिश करती हूँ।

रूमी कहता है यह सब इसलिए हो रहा है कि मार्ग्रीत को मैंने इस तरह अपने को दे दिया है द पावर शी हे ओवर यू, और मरीना की एक पंक्ति को। इसलिए कि कुमार ने दुनिया को तुम्हारे लिए कुछ वाक्यों में बदल दिया है। रूमी कहता है कि छहः बरस पहले सु जब पहली बार आया था, जैसे चुपचाप बैठ गया था तुम्हारे सामने, रूमी कहता है उसी रात उसे पता था : इट है टेकन यू सिक्स यिअर्ज टु फ़ाइण्ड आउट

रूमी को वाक्यों का असर मालूम है, फिर भी वह बोलता रहता है।

सु के जाने के बाद दिदिया के हाथ से सफ़ेद टी-शर्ट छीन कर मैं सु को छूने की कोशिश करती हूँ। सीलन की गन्ध के बीच कहीं सु की देह है, लेकिन सीलन उसकी ओर बढ़ रही है। फिर मैं तहाकर उसे लोहे के बक्से में उतार देने वाली हूँ। सिर्फ़ कुछ देर उससे चेहरा ढाँपकर रोया जा सकता होगा।

अपनी सफ़ेद टी-शर्ट कहानी में रखकर सु पिछले कमरे में भूल चुका है।

मुझे पता नहीं है। दिदिया बच्चों से पीछा छुड़ाकर सारा दिन मार्ग्रीत को पढ़ रही है। मैं बच्चों को रंग देकर थोड़ी देर शान्त बैठना चाहती हूँ, किताबें देकर थोड़ी देर, लेकिन वे बाढ़ की तरह बढ़ रहे हैं। सूखे कोनों को ढूँढते हुए सु बाहर बारिश में जाकर बैठ गया है। उसके चेहरे के तापमान पर पानी बरस रहा है।

सु को पता नहीं था जहाज़-महल के एक चबूतरे पर दूर से जिन गीतों को सुनकर वह उन लागों की ओर गया था …

अपनी ही उम्र के एक शख्स की चिता की ओर, सु। गीतों से कुछ पता नहीं चलता, वे धुनें विलाप की नहीं हैं। न आसपास किसी के रोने की आवाज़ है, वे सु को अपने समूह में देख हैरान होते हैं। चिता पर लेटे नौजवान के पिता को गाँव भर कर का खाना जुटाना है। फ़सलें बारिश में डूब गयी हैं, वे सु से कहते हैं।

दिदिया और मैं बच्चों को तालाब के पास बिठा उन्हें साफ़ कर रही हैं। उमा का काला सूट फटा है। उसकी दुबली टाँगें काँपती हैं।

सु मृतक के पिता को अपनी जेब में पड़े रुपये देकर तालाब की ओर लौटता है। उसका चेहरा ज़र्द है। मैं कोई चाय की दुकान ढूँढती हूँ।

उमा सु की उँगली पकड़ एक से दूसरे पत्थर पर कूदना चाहती है।

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  1. सुंदर-मार्मिक कहानी। अजीब से भाव उमड़ते-घुमड़ते हैं। न पकड़ में आने वाले भावों को भाषा के नैट के जरिये पकड़ने की कोशिश। इस नैट को फेंकने के पीछे कल्पना औऱ अवसाद दोनों की ताकत है। इस हासिल करना मुश्किल है। स्वेतायेवा औऱ दोस्तोव्यस्की के मिश्किन यूं ही नहीं चले आए हैं। प्रेम एक रक्त प्लावित फूल है। उसकी आवाज में जो रात होती है वह और कुछ नहीं जलते हुए चंद्रमा का धुंआ है। एक सूना गलियारा है जिसमें छूटती ट्रेन की सीटी गूंजती है जो पीठ से पीठ टिकाकर बैठने की कोशिश में है। पांच दिन नहीं कई दिनों तक पानी बरसता रहेगा और चंद्रमा से धुआं उठता रहेगा…

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