आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

Ann Jäderlund / आन येदरलुण्ड

NOTES ON ANN JÄDERLUND

by Staffan Söderblom

1.

Modernism burst into Swedish poetry almost a hundred years ago, with the work of one single poet – Edith Södergran (1892-1923). With only a few books, she invented, or discovered, a new poetic language relevant to a modern experience of integrity and disillusion, boldly metaphorical, erotic, spiritual and visionary. Ridiculed at first by the male literary establishment, her poetry was virtually an intellectual challenge to the readers of her time, and for poets and scholars to analyze ever since. The impact of the poems of Edith Södergran on Scandinavian literature has been immeasurable.

2.

Of course, for most of the 20th century, poetry in Sweden has been dominated by men, as artists and critics. Modernism itself has, since long, been the established tradition in literature, a state of normality. But in the early eighties an unexpected change occurred. Some new female poets appeared with a radically different notion of language and poetic form that profoundly altered the identity and outlook of poetry in our country. These new poets made use of modern psychoanalysis and linguistics, as well as mythology and feminist theory, in their poetic work. They were deeply aware of the power structures, not only in society as a whole, but within language itself. Their poetry has dissolved, in different and personal ways, the order of these structures, not the least by questioning the idea of the poetic “self”, the position of the poetic “I”, and it more often connects to music and visual art than to the established forms of literary modernism. As a result, this new poetry also revealed an alternate tradition within the Scandinavian 20th century, a tradition of a different esthetics, non-metaphorical, often more coarse formally and more sexual than that of mainstream literature. This alternate tradition has been created and carried mainly by women through the decades – poets not seldom regarded as solitaries, more or less neglected by male critics and scholars. They now became recognizable as forebears of the poetry of the eighties. The landscape of Swedish poetry in little more than a decade has changed thoroughly through the work of these new poets. The beauty and challenge of it has become richer, more complex, even more mature.

3.

Ann Jäderlund (1955) holds a unique position within this new poetry. By now she has been a poet for more than twenty years and has published eight books of poems, the latest in 2006. Her status as the most important contemporary poet in Sweden is indisputable to many, still questioned by others. Anyway, her work can be regarded as a dramatic leap within poetic thought, and critics are still struggling to find a language apt to comprehend its subtleness and complexity.

4.

Not many poets in Scandinavia, or elsewhere, leave their reader as alone with the poem as Ann Jäderlund does – or, in other words, as alone with himself. Certainly, the codes of modernist poetry can be used to describe her work – she creates a poetic universe of her own, she explores unknown areas of sensibility. And a term often used in regard to her work is that most common of modern clichés: desire. Certainly, again, there is a deep sense of sexuality in the strange beauty of her poetry, as well as of abuse and violence. All the same, and important as matters of content may be, the essence of her poetry seems to be more involved with a profound independence in perspective of linguistic logic. Her sensibility seems to have moved beyond those limitations of ordinary structures in language, that normally dictate human expression. But her poems should not be read as psychological riddles, or as cases of literary “deconstruction”, they are no ordinary “laboratories of language”. Complex as they may be, theirs is a beautiful simplicity as well, within the logic, or even grammar, of their own. The calmness and the anxiety of their speech seem impossible to separate, and the voice of the poems talks intensely from some place where profound states of human mind are not yet, or not anymore, allowed to be handled, controlled, within the systems of linguistic rules, or edited into interpretation by the idea of ordinary grammar. Maybe, one could say that her poems take place and become readable within a human instance where language refuses to be a means of power – and where poetry must be the most ethical of linguistic practice.

5.

Personally, I first met with the poetry of Ann Jäderlund in 1985, the day when her first collection of poems appeared in public. The book was reviewed in a radio magazine, where she also read a couple of her poems. They were a poetic shock to me, one of the kind that you get two or three of in a lifetime, as a reader of poetry. In a way, they sounded simple enough, but I had, literally speaking, never heard anything like them before. The complexity of their inner form and thought was completely new to me. Of course, I didn’t grasp them at all in that moment, but I immediately knew that in the light of these new poems my own attempts at the craft at once had become irrelevant. It was a strange sensation, of sudden loneliness and deep joy – something similar to what it must have been like to the first readers of the poems of Edith Södergran.

6.

To read Ann’s poems, click here.

To read Teji’s intimate piece on her experience of translating Jäderlund, click here.

आन येदरलुण्ड की कविता पर कुछ नोट्स

स्ताफान स्यदरब्लुम

1.

स्वीडी कविता में आधुनिकतावाद का सोता लगभग एक शताब्दी पूर्व एक अकेली कवि एडिथ स्यदरग्रान (१८९२-१९२३) की कृतियों से फूट पड़ा। अपनी कुछ ही किताबों से स्यदरग्रान ने सन्निष्ठा और मोहभंग के आधुनिक अनुभव हेतु एक नयी काव्य भाषा आविष्कृत की या फिर उसे अनावृत किया। यह भाषा निडर रूप से रूपकात्मक, रतिमयी, आध्यात्मिक एवं दृष्टा भाषा थी। पहले पहल तो पुरुषों द्वारा रची हुई साहित्यिक सत्ता ने इस कविता का मज़ाक उड़ाया, लेकिन एडिथ स्यदरग्रान की कविता उसके समकालीन पाठकों के लिए प्रायः एक बौद्धिक चुनौती लेकर उपस्थित हुई और अभी तक कवियों और विद्वानों की गहन जिज्ञासा का विषय बनी हुई है। एडिथ स्यदरग्रान की कविता ने स्कान्दिनेविया के साहित्य को इस हद तक प्रभावित किया है कि इस प्रक्रिया का ठीक-ठीक जायज़ा नहीं लगाया जा सकता।

2.

निस्सन्देह बीसवीं शताब्दी की स्वीडी कविता पुरुष कलाकारों और आलोचकों के कब्ज़े में रही आयी है। पुरुष साहित्य में आधुनिकतावाद लम्बे समय तक एक स्थायी और सामान्य परम्परा के रूप में छाया रहा, लेकिन आठवें दशक में एक अनपेक्षित बदलाव पैदा हुआ। साहित्यिक परिदृश्य में भाषा और काव्य-रूप की एक बिलकुल अलग अवधारणा लिये कुछ स्त्री कवियों का प्रवेश हुआ जिन्होंने हमारे देश में लिखी जा रही कविता की दृष्टि और अस्मिता पर बड़ा गहरा प्रभाव छोड़ा, और उसे प्रायः बदल ही डाला। इन नयी कवयत्रियों ने अपनी कविता में आधुनिक मनोविश्लेषण, भाषा विज्ञान, मिथकों और नारीवादी थियरी का भरपूर उपयोग किया।

उन्हें न केवल समाज के बल्कि भाषा के अन्तर्गत भी चले आ रहे सत्तावादी ढाँचों का गहरा बोध था। उनकी कविता ने अलग-अलग और व्यक्तिगत युक्तियों से इन ढाँचों को गलाया और क्षरित किया। काव्यगत ‘आत्म’ की धारणा और कविता में काव्यगत मैं की अवस्थिति को प्रश्नांकित करने मात्र से ही नहीं बल्कि साहित्यिक आधुनिकतावाद के स्थापित रूपाकारों की बजाय संगीत और दृश्य-कलाओं से सम्बन्ध बनाकर। इसके परिणामस्वरूप बीसवीं शताब्दी के स्कान्दिनेविया में एक अलग सौन्दर्य-शास्त्र, एक वैकल्पिक परम्परा का आविर्भाव हुआ, प्रायः अ-रूपकात्मक थी, पहले की कविता की तुलना में कुछ खुरदुरी थी, और मुख्य धारा के साहित्य से कहीं अधिक कामपरक थी। यह वैकल्पिक परम्परा कई दशक तक स्त्रियों के माध्यम से ही प्रतिफलित हुई – ऐसी कवयत्रियाँ जो कि पुरुष आलोचकों और विद्वानों द्वारा प्रायः सनकी मानी जाती रहीं या उपेक्षित रही आयीं। नवें दशक तक आते-आते यह स्पष्ट होता चला गया कि अब स्वीडी कविता की प्रथम पंक्ति स्त्रियों की निर्मिति बनती चली जा रही थी। एक दहाके से कुछ ही अधिक समय में स्वीडी कविता का भूदृश्य एकदम बदल चुका था। इस बदलाव का सौन्दर्य और इसकी चुनौती क्रमशः समृद्ध, अधिक जटिल, और परिपक्व होती चली गयी।

3.

आन येदरलुण्ड (१९५५) इस नयी कविता के भीतर एक बिलकुल अपूर्व धरातल पर खड़ी हैं। उनके दस काव्य संग्रह आ चुके हैं और बहुत से लोग़ ऐसा मानने लगे हैं कि वे स्वीडन की सबसे महत्वपूर्ण समकालीन कवि हैं। कुछ अन्य लोग इस धारणा पर सवाल भी उठाते हैं।

जो भी हो आन येदरलुण्ड के लेखन से काव्यात्मक सोच के भीतर एक नाटकीय उछाल पैदा हुई है, और आलोचक अभी तक एक ऐसी भाषा को जुटाने में लगे हैं जो इस कविता की सूक्ष्मता और जटिलता को समझ सके।

4.

ऐसे कवि कम ही होंगे, स्कान्दिनेविया से बाहर भी, जोकि पाठक को कविता की सोहबत में इतना अकेला छोड़ देते हों, जितना कि आन येदरलुण्ड अपने – संग अकेला। निश्चित ही आधुनिक कविता के कूट कुछ हद तक जान की कविता का वर्णन कर सकते हैं – कि वे अपना काव्य-संसार स्वयं रचती हैं, अज्ञात एहसासों की ज़मीन को टटोलती है ….. और आधुनिक आलोचना का एक अन्य घिसा-पीटा मुहावरा : कामना । यह बात भी निश्चित है कि उनकी कविता के विचित्र सौन्दर्य में कामुकता का गहन बोध है, और दुव्यर्वहार एवं हिंसा का भी। विषय वस्तु भले ही महत्व की चीज़ हो, लेकिन आन की कविता तात्त्विक तौर पर भाषायी तर्क में एक गहरी स्वतंत्रता का परिप्रेक्ष्य धारण किये हुए हैं। उनका सम्पूर्ण संवेदन भाषा की सामान्य संरचनाओं की सीमाओं से परे का सवंदेन है, उन संरचनाओं से परे का जो मानवीय अभिव्यक्ति का संचालन करती हैं। लेकिन उनकी कविताओं को मनोवैज्ञानिक पहेलियों की तरह नहीं पढ़ा जाना चाहिए, न ही साहित्यिक विसरंचना के नमूनों के तौर पर, वे कोई सामान्य ‘भाषा प्रयोगशालाएँ’’नहीं हैं। वे जटिल हो सकती हैं, लेकिन उनका सुन्दर सारल्य भी उतना ही सच है, अपने ही तर्क, याकि अपनी ही व्याकरण के भीतर। उनकी वाणी की प्रशान्तता और उत्कंठा को अलगाना असम्भव जान पड़ता है, और कविताओं की आवाज़ किसी ऐसी जगह से बात करती है प्रतीत होती हैं जहाँ मनुष्य के मानस की गहनतम स्थितियाँ भाषिक नियमों के अन्तर्गत व्याख्यायित या नियंत्रित नहीं हुई हैं, न की जा सकती हैं, और न ही सामान्य व्याकरण विचार से सम्पादित। शायद कहा जा सकता है कि उनकी कविताएँ एक ऐसे मानवीय दृष्टान्त के भीतर पठनीय हैं जहाँ भाषा सत्ता का माध्यम बनने से साफ़ मुकर जाती है – और जहाँ कविता को भाषिक व्यवहार का सबसे करूणामयी अवयव बन जाना होता है।

5.

व्यक्तिगत तौर पर आन येदरलुण्ड की कविताओं से मेरा परिचय उस दिन हुआ जब उनका पहला कविता संग्रह छपकर आया। इस किताब की समीक्षा एक रेडियो पत्रिका में हुई, जिसमें आन ने स्वयं कुछ कविताओं का पाठ भी किया। उन कविताओं से मुझे एक झटका लगा, ऐसा झटका जो कविता के पाठक के रूप में आपको जीवनकाल में केवल दो या तीन बार लगता है। एक तरह से वे सुनने में वे काफ़ी सरल भी लगीं, लेकिन वास्तव में मैंने ऐसी कविताएँ पहले कभी नहीं सुनी थीं। उनके भीतरी रूपाकार और सोच की जटिलता मेरे लिए पूरी तरह नयी थी। बेशक, मैं उन क्षणों में मैं उन्हें ठीक तरह से आत्मसात भी नहीं कर पाया, लेकिन मैं एकदम समझ गया कि उन कविताओं के प्रकाश में कविता को लेकर मेरे अपने शिल्पगत प्रयासों की कोई भी प्रासंगिकता नहीं रह जाती । वह अनुभूति बड़ी विचित्र थी, अचानक अकेलेपन से घिर जाने की और गहरे उल्लास की। कुछ-कुछ वैसी ही अनुभूति जो उन पाठकों को हुई होगी जो एडिथ स्यदरग्रान की कविताओं को पहले-पहल पढ़ रहे थे ।

6.

आन की कवितायें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

उनकी कविताओं के हिन्दी अनुवाद की प्रक्रिया पर तेजी ग्रोवर का अंग्रेज़ी गद्य पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

(अंग्रेज़ी से अनुवाद: तेजी ग्रोवर)

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